रविवार, 21 सितंबर 2014

नवरात्र

नवरात्र सामान्य तौर पर दो ऋतुओं का मिलन काल है। सर्दी और गर्मी की ऋतुएं जब मिलती हैं तो यह अवसर आता है। क्षितिज में जब सुबह और शाम दोनों मिलते हैं, सूर्य का उदय हो रहा हो या अस्त, उस संधि को संध्या का समय कहते हैं। सभी धर्मों के अनुयायी सुबह शाम ईश्वर का स्मरण करते हैं। भारतीय धर्म पंरपरा में दोनों संध्याओं के मिलन की तरह दोनों ऋतुएं मिलती हैं, तब भी साधना उपासना का क्रम और विधान अपनाया जाता है।

नवरात्र दो माने गए हैं। छह-छह महीने के अंतर से बदलने वाली दो ऋतुओं के समय सर्द गर्म मौसम का मिजाज बदलता है और सूक्ष्मजगत में आध्यात्मिक तंरगों का प्रवाह भी नई दिशा और ऊर्जा की गति बदलती है। वैसे वर्षा शरद, शिशिर, हेमंत, वसंत, ग्रीष्म यह छह ऋतुएं हैं, लेकिन दो ही ऋतुएं खास मानी गई हैं सर्दी एवं गर्मी। वर्षा तो दोनों ही ऋतुओं में होती है।
गर्मियों में सावन-भादो में बादल बरसते हैं तो सर्दियों में पौष और माघ में। सर्दी जब आने को होती है और गर्मी भाग रही होती है तो वह आश्विन के नवरात्र होते हैं। और सर्दी के जाने तथा गर्मी शुरु होने के दिनों में आती है। चैत्र की या वासंती नवरात्र कहलाती है, दो प्रधान ऋतुओं का मिलन काल इस तरह अतिमहत्वपूर्ण है व उसमें भी नौ दिनों की यह विशिष्ट अवधि और भी अधिक है।
नवरात्र स्थूल और सूक्ष्म जगत में चल रहे प्रवाहों का संधिकाल है। दिन व रात जब मिलते हैं तो वह भी संधिकाल कहलाता है। वैसे अब चार नवरात्र भी माने जाने लगे हैं, छह -छह महीनों की जगह तीन तीन महीने के अंतर से चार नवरात्र। आश्विन और चैत्र की दो प्रमुख नवरात्रियों के अलावा आषाढ़ और पौष में दो नवरात्र और।
इन्हें गुप्त नवरात्र कहते हैं। लेकिन प्रमुख और प्रचलित नवरात्र दो ही हैं। इन दिनो सूक्ष्म जगत में अनेक प्रकार की हलचलें होती है। शरीर से लेकर पूरे चेतन जगत में ज्वार भाटा जैसी हलचलें पैदा होती है। जीवनी शक्ति शरीर में जमी हुई विकृतियों को बहार निकालने का प्रयास करती है। अंतरिक्ष में व्याप्त सूक्ष्म शक्तियां साधक के शरीर, मन, अंतकरण का कायाकल्प करने का प्रयास करती है।
वैदिक साहित्य में नवरात्रों का विस्तृत वर्णन है। इनकी व्याख्या करते हुए कहा है इसका शाब्दिक अर्थ तो नौ राते ही है पर इनका गूढार्थ कुछ और है। नवरात्र का एक अर्थ तो यह किया गया है कि मानवी कायारूपी अयोध्या में नौ द्वार अर्थात् नौ इन्द्रियां है।
एक मुख, दो नेत्र, दो कान, नासिका के दोनों छिद्र और दो गुप्त गुप्तेंद्रिय जैसे नौ द्वारों के विषय में जागरूक रहता है, वह उनमें लिप्त नहीं होता और न ही उनका दुरूपयोग करके अपना तेज, ओज और वर्चस्व को बिगाड़ता है, वही योगी यति है। नवरात्र के इन नौ दिनों में साधक अपने-अपने ढंग से संयम, साधना और संकल्पित अनुष्ठान करते है।

इस अवधि की प्रत्येक अहोरात्र बड़ी महत्वपूर्ण मानी जाती है और उन प्रत्येक क्षणों में साधक अपनी चेतना को शुद्ध करता हुआ आगे बढ़ने का प्रयास करता है।

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