रविवार, 30 नवंबर 2014

बजरंग बाण का पाठ

श्री हनुमान का एक प्रसिद्ध नाम बजरंगबली भी है। जिसका अर्थ है कि----
 श्री हनुमान की देह का हर अंग वज्र के समान मजबूत है। शास्त्रों के मुताबिक बलवीर हनुमान की ऐसी शक्ति के पीछे विलक्षण ज्ञान, संयम और योग बल है।
यही कारण है कि श्री हनुमान की उपासना भक्त को भी न केवल शरीर बल्कि मन और धन से संपन्न करने वाली भी मानी गई है। खासतौर पर हिन्दू पंचांग की चैत्र माह की पूर्णिमा पर श्री हनुमान भक्ति का विशेष महत्व है। यह तिथि हनुमान जन्मोत्सव या जयंती के रूप में मनाई जाती है।
हनुमान उपासना की तंत्र शाखा में बजरंग बाण का ध्यान तो सारे दु:ख, भय, बाधा, कलह और अभाव का नाश करने वाला माना गया है। इसलिए अगर आप भी मुश्किलों से बचना चाहते हैं तो जानिए और करें यह बजरंग बाण का                                   पाठ - दोहा-

निश्चय प्रेम प्रतीति ते, बिनय करैं सनमान।
तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्ध करैं हनुमान॥
                             चौपाई-
जय हनुमंत संत हितकारी। सुन लीजै प्रभु अरज हमारी॥1।।
जन के काज बिलंब न कीजै। आतुर दौरि महा सुख दीजै॥2।।
जैसे कूदि सिंधु महिपारा। सुरसा बदन पैठि बिस्तारा॥3।।
आगे जाय लंकिनी रोका। मारेहु लात गई सुरलोका॥4।।
जाय बिभीषन को सुख दीन्हा। सीता निरखि परमपद लीन्हा॥5।।
बाग उजारि सिंधु महँ बोरा। अति आतुर जमकातर तोरा॥6।।
अक्षय कुमार मारि संहारा। लूम लपेटि लंक को जारा॥7।।
लाह समान लंक जरि गई। जय जय धुनि सुरपुर नभ भई॥8।।
अब बिलंब केहि कारन स्वामी। कृपा करहु उर अंतरयामी॥9।।
जय जय लखन प्रान के दाता। आतुर ह्वै दुख करहु निपाता॥10।।
जै हनुमान जयति बल-सागर। सुर-समूह-समरथ भट-नागर॥11।।
ॐ हनु हनु हनु हनुमंत हठीले। बैरिहि मारु बज्र की कीले॥12।।
ॐ ह्नीं ह्नीं ह्नीं हनुमंत कपीसा। ॐ हुं हुं हुं हनु अरि उर सीसा॥13।।
जय अंजनि कुमार बलवंता। शंकरसुवन बीर हनुमंता॥14।।
बदन कराल काल-कुल-घालक। राम सहाय सदा प्रतिपालक॥15।।
भूत, प्रेत, पिसाच निसाचर। अगिन बेताल काल मारी मर॥16।।
इन्हें मारु, तोहि सपथ राम की। राखु नाथ मरजाद नाम की॥17।।
सत्य होहु हरि सपथ पाइ कै। राम दूत धरु मारु धाइ कै॥18।।
जय जय जय हनुमंत अगाधा। दुख पावत जन केहि अपराधा॥19।।
पूजा जप तप नेम अचारा। नहिं जानत कछु दास तुम्हारा॥20।।
बन उपबन मग गिरि गृह माहीं। तुम्हरे बल हौं डरपत नाहीं॥21।।
जनकसुता हरि दास कहावौ। ताकी सपथ बिलंब न लावौ॥22।।
जै जै जै धुनि होत अकासा। सुमिरत होय दुसह दुख नासा॥23।।
चरन पकरि, कर जोरि मनावौं। यहि औसर अब केहि गोहरावौं॥24।।
उठु, उठु, चलु, तोहि राम दुहाई। पायँ परौं, कर जोरि मनाई॥25।।
ॐ चं चं चं चं चपल चलंता। ॐ हनु हनु हनु हनु हनुमंता॥26।।
ॐ हं हं हाँक देत कपि चंचल। ॐ सं सं सहमि पराने खल-दल॥27।।
अपने जन को तुरत उबारौ। सुमिरत होय आनंद हमारौ॥28।।
यह बजरंग-बाण जेहि मारै। ताहि कहौ फिरि कवन उबारै॥29।।
पाठ करै बजरंग-बाण की। हनुमत रक्षा करै प्रान की॥30।।
यह बजरंग बाण जो जापैं। तासों भूत-प्रेत सब कापैं॥31।।
धूप देय जो जपै हमेसा। ताके तन नहिं रहै कलेसा॥32।।
                दोहा

उर प्रतीति दृढ़, सरन ह्वै, पाठ करै धरि ध्यान।बाधा सब हर करैं सब काम सफल हनुमान॥

शुक्रवार, 28 नवंबर 2014

गाय के घी के फायदे...-

,,,, नूर बरसता है धरती पर जो भी चाहे स्नान करे |
जीवन सफल बनाना है तो साईनाथ का ध्यान करे ||
बौछारे है बड़ी मनोरम आत्म शांति देने वाली |
साईनाथ की कृपा ,सब सुखो से भरी है थाली ||
इसकी मस्त फुहार जगाये मन में मस्त उमंगे |
दिल की तह को जो छू जाए ऐसी तरल तरंगे ||
इस वर्षा से तर हो जाता जब इस जीवन का राग |
शक्ति-भक्ति के साथ जगाता चरणों में अनुराग ||
साईं चरण-रज़ जब पहुंचती है मस्तक पर |
आंसू की बौछारे होती तब साईं चरण पर ||
श्यामसाईं की आभा होती है बड़ी निराली |
मुख से शब्द नहीं निकलते, चाल बने मतवाली ||
जो नामुमकिन को मुमकिन करदे आओ उसका ध्यान धरे |
गर जीवन सफल बनाना है तो साईं नाथ का ध्यान करे ||
                             
      
गाय के घी के फायदे...-

गाय का घी और चावल की आहुती डालने से महत्वपूर्ण गैसे जैसे एथिलीन ऑक्साइड, प्रोपिलीन ऑक्साइड, फॉर्मल्डीहाइड आदि उत्पन्न होती हैं । इथिलीन ऑक्साइड गैस आजकल सबसे अधिक प्रयुक्त होनेवाली जीवाणुरोधक गैस है, जो शल्य-चिकित्स
ा (ऑपरेशन थियेटर) से लेकर जीवनरक्षक औषधियाँ बनाने तक में उपयोगी हैं । वैज्ञानिक प्रोपिलीन ऑक्साइड गैस को कृत्रिम वर्षो का आधार मानते है । आयुर्वेद विशेषज्ञो के अनुसार अनिद्रा का रोगी शाम को दोनों नथुनो में गाय के घी की दो दो बूंद डाले और रात को नाभि और पैर के तलुओ में गौघृत लगाकर लेट
जाय तो उसे प्रगाढ़ निद्रा आ जायेगी ।
गौघृत में मनुष्य शरीर में पहुंचे रेडियोधर्मी विकिरणों का दुष्प्रभाव नष्ट करने की असीम क्षमता हैं । अग्नि में गाय का घी कि आहुति देने से उसका धुआँ जहाँ तक फैलता है, वहाँ तक का सारा वातावरण प्रदूषण और आण्विक विकरणों से मुक्त हो जाता हैं ।

देसी गाय के घी को रसायन कहा गया है। जो जवानी को कायम रखते हुए, बुढ़ापे को दूर रखता है। गाय का घी खाने से बूढ़ा व्यक्ति भी जवान जैसा हो जाता है। गाय के घी में स्वर्ण छार पाए जाते हैं जिसमे अदभुत औषधिय गुण होते है, जो की गाय के घी के इलावा अन्य घी में नहीं मिलते । गाय के घी से बेहतर कोई दूसरी चीज नहीं है। गाय के घी में वैक्सीन एसिड, ब्यूट्रिक एसिड, बीटा-कैरोटीन जैसे माइक्रोन्यूट्रींस मौजूद होते हैं। जिस के सेवन करने से कैंसर जैसी गंभीर बीमारी से बचा जा सकता है। गाय के घी से उत्पन्न शरीर के माइक्रोन्यूट्रींस में कैंसर युक्त तत्वों से लड़ने की क्षमता होती है।
गाय के घी के अन्य महत्वपूर्ण उपयोग :
1.गाय का घी नाक में डालने से पागलपन दूर होता है।
2.गाय का घी नाक में डालने से एलर्जी खत्म हो जाती है।
3.गाय का घी नाक में डालने से लकवा का रोग में भी उपचार होता है।
4.20-25 ग्राम घी व मिश्री खिलान@

वास्तु में रंग प्रयोग

,,,,,नवरात्र समाप्त होते ही दीपावली की तैयारी जोरों पर शुरु हो जाती है। माता लक्ष्मी के स्वागत के लिए लोग घर की साफ-सफाई और रंग-रोगन के काम में जुट जाते हैं।
अगर आप भी इस दीपावली के मौके पर अपने घर की रंगाई-पुताई करवा रहे हैं तो सिर्फ आपका घर सुंदर दिखे यह सोचकर रंगाई-पुताई नहीं करवाएं, यह भी सोचिए कि रंगाई-पुताई ऐसी हो कि मां लक्ष्मी प्रसन्न होकर आपके घर पर कृपा बनाए रखें।
आपके घर पर मां लक्ष्मी की कृपा का मतलब है घर में सकारात्मक उर्जा का बना रहना जो घर में रहने वाले लोगों को स्वस्थ और उर्जावान बनाए रखे ताकि आप अपनी मेहनत और योग्यता से उन्नति की ओर बढ़ते रहें।
घर में सकारात्मक उर्जा को बनाए रखने के लिए जरुरी है कि आपका घर वास्तुदोष से मुक्त हो। इसके लिए ज्योतिषशास्त्र और वास्तु विषय की जानकर बताते हैं कि रंगाई-पुताई करवाते समय सभी कमरों में एक ही रंग की पुताई नहीं करवाएं।
इसका कारण यह है कि हर कमरा अलग उद्देश्य से बना होता है जैसे शयन कक्ष का उद्देश्य अच्छी नींद से है। शयन कक्ष का प्रभाव व्यक्ति के रिश्तों पर भी होता है जबकि ड्राइंग रुम का उद्देश्य अन्य बातों से है इसलिए उद्देश्य के हिसाब से कमरे का रंग-रोगन भी अलग होना चाहिए। शयन कक्ष में मानसिक शांति और रिश्तों में मधुरता बनी रहे इसके लिए गुलाबी, आसमानी या हल्का हरा रंग की पुताई करवा सकते हैं।


ड्राइंग रूम में गुलाबी, क्रीम, सफेद या भूरा रंग प्रयोग किया जा सकता है। रसोई घर के लिए लाल, गुलाबी और नारंगी शुभ रंग माना जाता है जबकि डाइनिंग रुम के लिए गुलाबी, आसमानी और हल्का हरा।
पढ़ने लिखने में रुचि बढ़ाने के लिए अध्ययन कक्ष में गुलाबी, हल्का हरा या आसमानी रंग की पुताई करवा सकते हैं। शौचालय एवं स्नान गृह के लिए गुलाबी और सफेद अनुकूल रंग है।
          अगर आप दिशा का भी ध्यान रखते हुए कमरे में पुताई करवाते हैं तो वास्तु का शुभ प्रभाव बढ़ता। इसलिए उत्तर पूर्वी दिशा में जो कमरा हो उसमें सफेद या बैंगनी रंग का प्रयोग सबसे अनुकूल रहता है। इस कमरे में गाढ़े रंगों का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
दक्षिण पूर्वी कमरे में पीले या नारंगी रंग का प्रयोग करना चाहिए। दक्षिण पश्चिमी कमरे में ऑफ ह्वाइट यानी भूरा या पीला रंग मिश्रित सफेद रंग करवा सकते हैं।

दक्षिण-पूर्वी दिशा में हरे रंग की पुताई शुभ फल देती है। पश्चिमी कमरे में कोई भी रंग प्रयोग कर सकते हैं, सिर्फ सफेद रंग इस दिशा में प्रयोग नहीं करें।किसी भी घर का सबसे प्रमुख स्थान होता है किचन। क्योंकि यही वह स्थान है जहां से उस घर में रहने वाले लोगों के लिए भोजन बनता है। इसलिए किचन को अन्नपूर्णा का घर भी कहा जाता है।,           ,लेकिन कई बार किचन में मौजूद वास्तु दोष के कारण यह मकान में रहने वाले लोगों की सेहत को भी प्रभावित करने लगता है। आर्थिक मामलों में उतार-चढ़ाव का एक बड़ा कारण किचन में मौजूद वास्तुदोष को भी माना गया है।

            अगर आप किचन के वास्तु पर जरा सा ध्यान दें तो संभव है कि आपकी आर्थिक स्थिति मजबूत हो जाए। परिवार के सदस्यों के स्वास्थ्य में उतार-चढ़ाव में भी कमी आए।किचन में भोजन बनाने का काम अग्नि से होता है इसलिए किचन के लिए सबसे उत्तम दिशा दक्षिण पूर्व यानी आग्नेय कोण माना गया है।
इस दिशा में किचन होने पर घर की महिलाएं प्रसन्न और स्वस्थ रहती हैं। किचन के अंदर महिलाओं की हुकूमत चलती है। परिवार में आपसी तालमेल बना रहता है।
         किचन उत्तर दिशा में होना आर्थिक दृष्टि से अच्छा रहता है। जिस घर में किचन उत्तर दिशा में होता है उस घर की महिला बुद्घिमान होती है। घर की मालकिन सभी से स्नेह रखती है। लेकिन परिवार की महिलाओं के बीच आपसी तालमेल की कमी रहती है।
     जिनके घर में किचन पूर्व में होता है उनके घर में धन का आगमन अच्छा रहता है लेकिन घर की पूरी कमान पत्नी के हाथ में होता है। बावजूद इसके पत्नी खुश नहीं रहती है, स्त्री रोग, पित्त रोग एवं नाड़ी संबंधी रोग का इन्हें सामना करना पड़ता है।

गुरुवार, 20 नवंबर 2014

ठोड़ी की बनावट \ दांतों की बनावट से जानिए अपना भविष्य

किसी भी व्यक्ति को देखकर उसकी चारित्रिक विशेषताओं का आकलन किया जा सकता है। चेहरा हमारे व्यक्तित्व और स्वभाव का प्रतिनिधित्व करता है। मन के भीतर जो भाव चलते हैं वही चेहरे पर प्रतिबिंबित होते हैं। आइए जानते है ज्योतिष के आधार पर ठोड़ी की बनावट से कैसे की जाती है व्यक्ति की पहचान।
लंबी ठोड़ी- ऐसा व्यक्ति शील स्वभाव तथा स्थिर बुद्धि वाला होता है। जीवन में अपना रास्ता स्वयं तय करता है। प्रेमभाव की कमी होने से कई बार जीवन नीरस होता है।
 ठोड़ी  के नीचे गड्ढा (डिम्पल)- जिस व्यक्ति की ठोड़ी के ठीक नीचे गड्ढा होता है, वह भाग्यशाली, बुद्धिमान तथा सज्जन वृत्ति का होता है। लोक जीवन में सम्मान का अधिकारी होता है।
 ठोड़ी के सामने गड्ढा- ऐसे व्यक्ति कामुक होते हैं। स्त्री या पुरुष दोनों ही रसिया वृत्ति के होते हैं। इनका जीवन सदा ऐश्वर्यशील होता है। धनवान तथा सांसारिक दृष्टि से सफल होते हैं।
 छोटी ठोड़ी‍- दुर्भाग्य का प्रतीक है। ऐसे व्यक्ति सदा धन का अभाव अनुभव करते हैं। प्रेम संबंधों में भी असफल रहते हैं तथा सामान्य जीवन व्यतीत करते हैं।
 गालों के बीच गड्ढे- जिस स्त्री या पुरुष के गालों में गड्ढे यानी डिम्पल पड़ते हैं वे अत्यंत भाग्यशाली होते हैं। जीवन की हर सुख-सुविधा का भोग करते हैं। कामुक नहीं होते, परंतु यौन संबंधों का भरपूर आनंद लेते है !                  

                        दांतों की बनावट से 
 जानिए अपना भविष्य 
पना भविष्यपंक्तिबद्ध दांत- सौभाग्य तथा ऐश्वर्य के प्रतीक हैं। ऐसे व्यक्ति जीवन में हर प्रकार का सुख भोगते हैं। सुशील तथा सज्जन वृत्ति के होते हैं।

टेढ़े-मेढ़े दांत- संघर्ष तथा असफलता का चिह्न हैं। ऐसे व्यक्ति सत्य वक्ता नहीं होते तथा छल-कपट से जीवन निर्वाह करते हैं।
सामने के दांतों में छिद्र- जिस पुरुष के सामने के दो दांतों में छिद्र होता है वह बड़ा भाग्यशाली, बुद्धिमान, विद्वान तथा परोपकारी होता है, परंतु जिस स्त्री के दांतों में छिद्र हो वह दुर्भाग्य का सामना करती है, वैधव्य का संताप भोगती है तथा हर प्रकार से दुखी रहती है।
 सामने वाले दो बड़े दांत- भाषण में प्रवीणता दर्शाते हैं। ऐसे व्यक्ति शत्रु का नाश करने वाले तथा आदर्श जीवन व्यतीत करने वाले होते हैं।
 दांतों की पंक्तियां ऊपर-नीचे ठीक बैठती हों- ऐसे व्यक्ति वाक्-पटु तथा गौरवशाली होते हैं। बुद्धिमान तथा स्वार्थरहित भावना से जनसेवा करते हैं।
 दांत के ऊपर एक दांत- ऐसे व्यक्ति शत्रु को परास्त करते हैं। साहसी तथा युक्तिपूर्ण होते हैं।
 एक दांत दबा हुआ तथा एक उठा हुआ- किसी व्यक्ति के ऊपरी दांतों की यदि ऐसी स्थिति है तो वह संतुलित विचारों का स्थिर प्राणी होता है। दु:ख-सुख को समभाव से भोगता है और सदा विवेक से काम लेता है।
शिशु का दांतयुक्त जन्म लेना- शिशु का दांतयुक्त जन्म लेना माता-पिता के लिए अहितकर तथा मृत्यु का सूचक माना जाता है।
 शिशु का पहले ऊपरी दांत निकलना- शिशु का पहले ऊपरी दांत निकलना नाना परिवार के लिए घातक सिद्ध होता है।
 स्त्री के मध्य दांतों में छिद्र- जिस स्त्री के ऊपर के मध्य दांतों में छिद्र यानी बिरल होती है, वह वैधव्य का कष्ट भोगती है।
 दांत का कटकटाना- रात को सोते समय दांतों का कटकटाना दुर्भाग्य का सूचक है।


सोमवार, 17 नवंबर 2014

लाल किताब के चमत्कारिक उपाय

, लाल किताब पर आधारित चमत्कारिक उपाय राशियों के आधार पर हैं, आप भी अपनी राशि के अनुसार इन वैदिक नियमों का पालन कर सकते हैं।



मेष राशि
किसी से कोई वस्तु मुफ्त में न लें। लाल रंग का रूमाल हमेशा प्रयोग करें। साधु-संतों, मां व गुरु की सेवा करें। सदाचार का सदा पालन करें। वैदिक नियमों का पालन करें। विधवा की सहायता करें और आशीर्वाद लें। मीठी रोटी गाय को खिलाएं।
वृषभ राशि
घी का चिराग प्रतिदिन जलाएं। शुक्रवार उपवास रखें। वस्त्रों में इस्त्र आदि का प्रयोग करें। स्वच्छ कपड़े पहनें। नया जूता-चप्पल जनवरी माह में न खरीदें। झूठी गवाही न दें और धोखाधड़ी न करें। घर में मनी प्लांट लगाएं।
मिथुन राशि
तामसिक भोजन का परित्याग करें और मछलियों को कैद मुक्त करें। दमे की दवा अस्पताल में मुफ्त दे दें। माता का पूजन करें और 12 वर्ष से छोटी कन्याओं का आशीर्वाद लें। बेल्ट का प्रयोग न करें। फिटकरी से दांत साफ करें। सूर्य संबंधी उपचार करें।
कर्क राशि
माता से चांदी, चावल लेकर अपने पास रखें और दुर्गा पाठ करें। कन्या दान में सामान दें। धार्मिक कार्यों को हमेशा कार्य रूप दें। तीर्थस्थान की यात्रा करने से किसी को न रोकें। यदि आप डॉक्टर हैं तो रोगियों को मुफ्त में दवा दें। धर्म स्थान में नंगे पैर जाएं। सार्वजनिक तौर से पानी पिलाएं। माता की सलाह का पालन करें।
सिंह राशि
अखरोट व नारियल धर्म स्थान में दें। अंधे को भोजन कराएं। सदा सत्य बोलें, किसी का अहित न करें। साले, दामाद व भानजे की सेवा करें। मीठा खाकर ही कोई शुभ कार्य प्रारंभ करें। वैदिक एवं सदाचार के नियमों का पालन करें।
कन्या राशि
अपशब्द न बोलें और न ही क्रोध करें। दुर्गा सप्तशती का पाठ कर छोटी कन्याओं से आशीर्वाद लें। शनि से संबंधित उपचार करें। काली नेकर धारण करें। चांदी का छल्ला धारण करें। भूरे रंग का कुत्ता न पालें।
तुला राशि
गौमूत्र का पान करें। पत्नी हमेशा टीका लगाए रखें एवं परम पिता पर पूर्ण आस्था रखें। गौ ग्रास रोज दें। माता-पिता की आज्ञा से विवाह करें। परिवार की कोई भी स्त्री नंगे पैर न चले। तवा, चिमटा, चकला और बेलन धर्म स्थान में दें।
वृश्चिक राशि
तंदूर की मीठी रोटी बनाकर गरीबों को खिलाएं। पीपल और किकर के वृक्ष न काटें। किसी से मुफ्त का माल न लें। बड़े भाई की अवहेलना न करें। प्रातःकाल शहद का सेवन कर हनुमान जी को सिंदूर और चोला चढ़ाएं। बड़ों की सेवा करें।
धनु राशि
भिखारियों को निराश न लौटने दें। तीर्थयात्रा करें। तीर्थयात्रा के लिए दूसरों की मदद करें। कार्य शुरू करने से पहले नाक साफ करें। गुरु, साधु और पीपल की पूजा करें। पीले फूल वाले पौधे लगाएं।
मकर राशि
बंदरों की सेवा करें। असत्य भाषण न करें। घर के किसी हिस्से में अधेरा न रखें। पूर्व दिशा वाले मकान में निवास करें। अखरोट धर्म स्थान में चढ़ाएं और थोड़ा बहुत घर में लाकर रखें। पराई स्त्री पर नजर न डालें। भैंस, कौओं और मजदूरों को भोजन कराएं।
कुंभ राशि
48 वर्ष से पहले अपना मकान न बनवाएं और दक्षिण दिशा वाले मकान का परित्याग करें। चांदी का टुकड़ा अपने पास रखें। शनिवार का व्रत रखें। भैरव मंदिर में तेल और शराब का दान करें और खुद न पिएं। सोना धारण करें।
मीन राशि
किसी से मदद स्वीकार न करें, अपने भाग्य पर विश्वास करें। किसी के सामने स्नान न करें। धर्म स्थान में जाकर पूजन करें। कुल पुरोहित का आशीर्वाद प्राप्त कर सिर पर शिखा रखें, संतों की सेवा के साथ धर्म स्थान की सफाई करें, स्त्री की सलाह से व्यापार करें।,,,

रविवार, 16 नवंबर 2014

'ॐ' शब्द का उच्चारण

हिंदू या सनातन धर्म की धार्मिक विधियों के प्रारंभ में '' शब्द का उच्चारण होता है, जिसकी ध्वनि गहन होती है। इसे प्रणव मंत्र भी कहते हैं। प्राचीन भारतीय धर्म विश्वास के अनुसार ब्रह्मांड के सृजन के पहले प्रणव मंत्र का उच्चारण हुआ था। ॐ का हिंदू धर्म के अलावा अन्य धर्मों में भी महत्व है।




योगियों में यह विश्वास है कि इसके अंदर मनुष्य की सामान्य चेतना को परिवर्तित करने की शक्ति है। यह मंत्र मनुष्य की बुद्धि व देह में परिवर्तन लाता है। ॐ से शरीर, मन, मस्तिष्क में परिवर्तन होता है और वह स्वस्थ हो जाता है। ॐ के उच्चारण से फेफड़ों में, हृदय में स्वस्थता आती है। शरीर, मन और मस्तिष्क स्वस्थ और तनावरहित हो जाता है। ॐ के उच्चारण से वातावरण शुद्ध हो जाता है।
 ॐ शब्द तीन ध्वनियों से बना हुआ है। जिनका उच्चारण एक के बाद एक होता है। ओ, , म इन तीनों ध्वनियों का अर्थ उपनिषद में भी आता है, जिसके अनुसार साधक या योगी इसका उच्चारण ध्यान करने के पहले व बाद में करता है। ॐ '' से प्रारंभ होता है जो चेतना के पहले स्तर को दिखाता है। चेतना के इस स्तर में इंद्रियाँ बहिर्मुख होती हैं। इससे ध्यान बाहरी विश्व की ओर जाता है। चेतना के इस अभ्यास व सही उच्चारण से मनुष्य को शारीरिक व मानसिक लाभ मिलता है। हिंदू या सनातन धर्म की धार्मिक विधियों के प्रारंभ में '' शब्द का उच्चारण होता है, जिसकी ध्वनि गहन होती है। इसे प्रणव मंत्र भी कहते हैं। प्राचीन भारतीय धर्म विश्वास के अनुसार ब्रह्मांड के सृजन के पहले प्रणव मंत्र का उच्चारण हुआ था।
 आगे '' की ध्वनि आती है, जहाँ पर साधक चेतना के दूसरे स्तर में जाता है। इसे तेजस भी कहते हैं। इस स्तर में साधक अंतर्मुखी हो जाता है और वह पूर्व कर्मों व वर्तमान आशा के बारे में सोचता है। इस स्तर पर अभ्यास करने पर जीवन की गुत्थियाँ सुलझती हैं व उसे आत्मज्ञान होने लगता है। वह जीवन को माया से अलग समझने लगता है। हृदय, मन, मस्तिष्क शांत हो जाता है।
 '' ध्वनि के उच्चार से चेतना के तृतीय स्तर का ज्ञान होता है, जिसे 'प्रज्ञा' भी कहते हैं। इस स्तर में साधक सपनों से आगे निकल जाता है व चेतना शक्ति को देखता है। साधक स्वयं को संसार का एक भाग समझता है और इस अनंत शक्ति स्रोत से शक्ति लेता है। इसके द्वारा साक्षात्कार के मार्ग में भी जा सकते हैं। इससे साधक के शरीर, मन, मस्तिष्क के अंदर आश्चर्यजनक परिवर्तन आता है। शरीर, मन, मस्तिष्क, शांत होकर तनावरहित हो जाता है।

ॐ का उच्चारण पद्मासन, अर्धपद्मासन, सुखासन, वज्रासन में बैठकर कर सकते हैं। साधक बैठने में असमर्थ हो तो लेटकर भी इसका उच्चारण कर सकता है। इससे मानसिक बीमारियाँ दूर होती हैं। काम करने की शक्ति बढ़ जाती है। इसका उच्चारण 5, 7, 10, 21 बार अपने समयानुसार कर सकते हैं। ॐ जोर से बोल सकते हैं, धीरे-धीरे बोल सकते हैं। ॐ जप माला से भी कर सकते हैं।