गुरुवार, 21 फ़रवरी 2019

राहु और केतु

यदि लग्न में राहू और ७वें भाव में केतू हो तो राहु जातक को जीवन भर किसी ना किसी प्रकार का मानसिक कष्ट बना रहता है और केतु के कारन जातक अपने जीवन साथी को धोखा देने का प्रयास कर सकता है।
यदि २ भाव में राहू हो और ८वें भाव में केतू हो तो राहु के कारन जातक की मृत्यु और धन हानी जीवन में अचानक होती है और केतु के कारन जातक को मरने के बाद शांति मिलती है तथा जीवन में एक से अधिक बार धन लाभ होता है। यदि ३ भाव में राहू और ९वें भाव में केतू हो तो जातक को ४० से ४२ साल की उम्र तक खूब परिश्रम करने के बाद ही जीवन यापन हो पाता है उसके बाद सफलताएं मिलने लगती है।
यदि ४ भाव में राहू और १०वें भाव में केतू हो तो जातक निश्चित ही राजनीती में प्रवेश करेगा और सफलता प्राप्त करेगा किन्तु फिर अचानक ही पतन होने लगेगा।. यदि ५ भाव में राहू तथा केतु ११वें भाव में हो तो राहु के कारन जातक को बड़ी संतान से विशेष कष्ट होगा, साथ ही आय प्राप्ति में भी बाधाओं का सामना करना पड़ता है और केतु के कारन जातक अपनी प्रेमिका को धोखा देता है या धोखे का शिकार हो जाता है (ये जरूरी नहीं कि धोखा देने वाली प्रेमिका ही हो किसी से भी धोखे का शिकार होना पड़ता है)।
यदि ६वें स्थान में राहु और १२वें में केतु हो तो राहु के कारन जातक शत्रुओ को नष्ट कर देता है। छठे भाव का राहु मनुष्य का बल बुद्धि पराक्रम और अन्तःकरण स्थिर रहता है। ऐसे जातक को अपने चाचा मामा आदि से सुख की प्राप्ति नहीं होती है और केतु के कारन जातक उच्च पद वाला, शत्रु पर विजय पाने वाला, बुद्धिमान, धोखा देने वाला तथा शक्की मिजाज होता है। ऐसा व्यक्ति दीर्घायु तथा शत्रुओ पर विजय पाने वाला होता है। जातक परस्त्रीगामी होता है। इन्हे अपने जीवन काल में मुकदमों का सामना करना पड़ता है। शत्रु निरंतर इसके विरूद्ध षड्यंत्र करते ही रहते हैं।
यदि ७ भाव में राहू तथा लग्न में केतू हो तो राहु के कारन जातक मतिभृम का शिकार होता है तथा अपनी उम्र से बड़ी अथवा अपने समाज से अलग स्त्रियों का दीवाना होता है तथा उसका दाम्पत्य जीवन शर्मनाक हो सकता है और केतकेतु के कारन सदा ही किसी ना किसी प्रकार मानसिक कष्ट बना रहता है।
यदि राहू ८ भाव में तथा केतु धन भाव में हो तो राहु के कारन जातक को अचानक धन लाभ होता है, किन्तु इस धन से जातक सुख शान्ति से दूर होता चला जाता है , साथ ही अचानक स्वास्थ संबंधित समस्याओं के कारण मृत्यु तुल्य कष्ट भोगने के लिए मज़बूर रहता है। यदि किसी स्त्री की कुंडली में ८वें भाव में राहू हो तो उस स्त्री का विवाह बहुत सोच समझकर करना चाहिए, इस राहू के कारण जातिका के पति को शादी के पश्चात् अचानक स्वास्थ संबंधित समस्याओं का सामना करना पड़ता है या मृत्यु तुल्य कष्ट भोगने के लिए मज़बूर होना पड़ता है और केतु के कारन जातक राजभीरू, विरोधी होता है।
यदि ९ भाव में राहू तथा सहज भाव में केतु हो तो राहु के कारन जातक दुःसाहसी होता है जिससे वह सदा ही अनावश्यक मुसीबतों में फंसता रहता है। इस जातक का भग्योदय ३६ से ४२ वर्ष की आयु में होता है और केतु के कारन जातक चंचल, वात रोगी, व्यर्थवादी होता है।
यदि १०वें भाव में राहु और सुख भाव में केतु हो तो राहु के कारन जातक समाज में किसी न किसी रूप में जाना जाता है। ऐसा जातक राजनीति में माहिर होता है और केतु के कारन जातक चंचल, वाचाल, निरुत्साही होता है।
यदि ११वें भाव में राहु और ५वें भाव में केतु हो तो राहु के कारन जातक अपने भाई बहनो में या तो बड़ा या सबसे छोटा होता है। जिस मनुष्य के लाभ स्थान में राहु है तो वैसे जातक को धन की कमी नही होती है। वह अभिमानी तथा सेवको को साथ लेकर चलने वाला होता है। उसे एक पुत्र संतति अवश्य होता है। उसे राजाओ से मान और सुख प्राप्त होता है। इस स्थान में राहु मनुष्य को बहुत बड़ा आदमी नही बनने देता है। ऐसा जातक अपने इन्द्रियों को दमन करने वाला होता है और केतु के कारन जातक कुबुद्धि एवं वात रोगी होता है।
यदि १२वें भाव में राहु और ६वें स्थान में केतु हो तो राहु के कारन जातक जितना भी काम करेगा उसे उतना नहीं मिलता है बल्कि उसके काम बिगड़ते रहते है। उसे नेत्र रोग तथा पैर में जख्म जरूर होता है। ऐसा मनुष्य झगड़ा करने वाला तथा इधर उधर घूमने वाला होता है। यह व्यक्ति अपने पैतृक निवास को छोड़कर अन्यत्र रहता है। इसे देर रात तक नींद नही आती है और केतु के कारन जातक वात विकारी, झगड़ालु, मितव्ययी होता है।
जिस भाव में केतू किसी स्वग्रही ग्रह के साथ बैठता है उसके अच्छे या बुरे फल को चार गुना बड़ा देता है , जैसे-यदि 2 रे भाव में कोई स्वग्रही ग्रह है और उसके साथ केतू होगा तो जातक बड़ा परिवार वाला और बड़ा धनवान होगा।


आपके जीवन पर ग्रहों के प्रभाव और ग्रह दोष को नष्ट करने के उपाय

आपके जीवन पर ग्रहों के प्रभाव और ग्रह दोष को नष्ट करने के उपाय

ज्योतिषशास्त्र के अनुसार आकाश मंडल में विचरण कर रहे ग्रहों के प्रभाव का मानव प्रकृति पर असर पड़ता है। मनुष्य, पशु-पक्षी, वनस्पति और हर एक सजीव-निर्जीव पर ग्रहों का अच्छा-बुरा असर देखने को मिलता है। जन्मकुंडली में छपे ग्रह और उनके परस्पर क्रास से बनने वाले शुभ व अशुभ योग और ग्रहों की वक्री व मार्गी स्थिति का असर मनुष्यों के जीवन पर पड़ता देखा गया है। कुंडली के शुभ ग्रह अनुकूल स्थितियों में जातक के लिए शुभ समाचार तथा कुंडली के अशुभ ग्रह या शुभ ग्रहों के प्रतिकूल स्थितियों में होने पर जातक के लिए अशुभ समाचार लेकर आते हैं। इसलिए, ग्रहों के खराब असर से मनुष्यों को सुरक्षित रखने के लिए हमारे दिव्य दृष्टा ऋषि-मुनियों ने ज्योतिष शास्त्र में अनेक ज्योतिषीय उपायों द्वारा मानव कल्याण के रास्ते बताएं हैं। वैदिक शास्त्रों में वर्णित इन उपायों में भिन्न-भिन्न ग्रहों को बली करने के लिए विशेष रत्नों के साथ-साथ अनिष्टकारी ग्रहों के निराकरण हेतु विशेष मंत्र जाप करने की व्याख्या भी विशद रूप से दी है। इसके अलावा, ग्रह शांति के उपाय सामान्यजन सरलता से कर सकें इसके लिए प्राचीन शास्त्रों में इसकी जानकारी भी विस्तार से दी गई है। जातक स्वयं इन उपायों को अजमाते हुए ग्रहों के सकारात्मक प्रभावों में बढ़ोत्तरी कर सकता है।
यहां पर हम आपको एेसे ही कुछ सरल उपाय बताने जा रहे हैं जिन पर अमल करते हुए आप आसानी से ग्रहों के अशुभ प्रभाव से बचे रह सकते हैं। हर एक ग्रह के गुण अलग-अलग होते हैं। इसलिए, उनकी प्रकृति के अनुसार निर्धारित मंत्र जाप या ग्रहों की वस्तुओं का दान करने से आप इनके ग्रह दोष से खुद को बचाए रखते हुए सुखपूर्वक जीवन यापन कर सकते हैं। खगोलीय मंडल में विद्यमान नव ग्रहों की बात करें तो सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि इन सात ग्रहों के उपरांत दो छायाग्रह-राहु व केतु को मिलाकर इन नवग्रहों के अशुभ असर से खुद को दूर रखने के लिए ज्योतिष में अलग-अलग उपाय बताए गएं हैं। आइए, इस लेख के द्वारा जानते हैं कि 9 ग्रहों के बुरे असर को कम या दूर करने करने के लिए क्या-क्या किया जा सकता है।
सूर्य ग्रह
सबसे पहले ग्रहमंडल के राजा सूर्य के विषय में जानकारी प्राप्त करते हैं। सूर्य आपकी आत्मा का कारक है। आपकी जन्मकुंडली में यदि सूर्य अपनी नीच राशि में हो अथवा शत्रु नक्षत्र में हो तो इसके नकारात्मक असर को दूर करने के लिए ज्योतिषियों की सलाह के अनुसार सूर्य का रत्न माणिक धारण किया जा सकता है। सूर्य नमस्कार करने के बाद सूर्य को कुमकुम मिश्रित जल अपर्ण करें। सरकार या अधिकारियों की नीतियों का विरोध नहीं करें। पिता का सम्मान करें। रविवार के भोजन में नमक का त्याग करें। सूर्य को बली करने के लिए माणिक / रूबी खरीदें।
चंद्र ग्रह
जन्मकुंडली में मन का कारक चंद्र यदि निर्बल हो, शत्रु के क्षेत्र में हो, नीच का हो या शत्रु के नक्षत्र में हो तो दूषित कहलाता है। चंद्रमा मन का कारक होता है। इसलिए, मन की नकारात्मकता दूर करने के लिए चंद्र से जुड़े उपाय किये जा सकते हैं। चंद्र माता का भी कारक होता है इसलिए अपनी माता का सम्मान करें। उसके उपरांत, चांदी के पात्र में पानी-दूध वगैरह का सेवन करने से भी फायदा होता है। सोमवार को सफेद वस्त्र धारण करने, दूध, चावल और चीनी से बनी खीर का भोजन में समावेश करें। शिवजी की पूजा-अर्चना करें। पानी को व्यर्थ में नहीं बहाने की गणेशजी खास चेतावनी देते हैं। कुंडली में चंद्र के प्रभाव को बढ़ाने के लिए मोती रत्न धारण करें।
मंगल ग्रह
अब ग्रहों के सेनापति मंगल की बात करते हैं। जन्मकुंडली में मंगल जब कर्क राशि में हो, नीच राशि में हो या फिर शत्रु के क्षेत्र में होने पर कई बार उसका नकारात्मक असर व्यक्ति पर देखने को मिलता है। मंगल के कुप्रभाव को दूर करने के लिए गणपति जी की उपासना करें। लाल फल और गुड़ अर्पण करें। सदाचार की राह पर चलें। जेब में लाल रंग का रुमाल रखें। मंगल का रत्न भी शुभ फल देगा। शरीर पर तांबे धातु को धारण करें या फिर दान करें। छोटे-भाई बहनों के साथ अपने रिश्ते मधुर बनाए रखें। मंगल के जोश व ऊर्जा को प्राप्त करने के लिए लाल मूंगा रत्न धारण करें।
बुध ग्रह
उपवन में विहार करने वाले कुमार अवस्था का ग्रह बुध है। बुद्धि और वाणी का कारक ग्रहबुध जब कुंडली में नीच, अस्त का या फिर शत्रु क्षेत्र में तो उसके कारकत्व में आने वाली चीजों में मुश्किलें आती है। अपने ऊपर से बुध के नकारात्मक असर को दूर करने के लिए भगवान विष्णु की आराधना कीजिए। बुधवार को हरे रंग की सब्जियां और मूंग को अपने भोजन में शामिल कीजिए। पुदीने का सेवन गेहूं के साथ कीजिए। मूक पशु-पक्षिओं को प्रेम करें। इन उपायों को करने से बुध बली होता है। कुमारियों, बहन या बुआ को भेट दीजिए। ज्योतिष की सलाह के अनुसार बुध का रत्न पन्ना धारण किया जा सकता है। इससे बुध का अशुभ असर दूर होता है।
गुरु ग्रह
जन्मकुंडली में गुरु पांचवें भाव का कारक ग्रह बनता है। जन्मकुंडली में जब गुरु की उपस्थिति किसी खराब भाव जैसे कि 6-8-12 भाव में हो या फिर नीच राशि में हो तब जातकों पर इसका व्यापक असर देखा गया है। जातकों को काफी तकलीफों का सामना करना पड़ता है। अपनी कुंडली में बृहस्पति ग्रह को मजबूत करने के लिए उसका सम्मान करें। किसी महापुरुष अथवा बड़ी उमर के किसी गुणीजन को अपना गुरु मान सकते हैं। अाप साधु-संत को भी गुरु के पद पर विराजित कर सकते हैं। गुरुवार को पीले वस्त्र धारण करें। पीली मीठी वस्तुओं का सेवन और दान करें। पीपल के वृक्ष की पूजा कीजिए। गुरु को अधिक बलवान बनाए रखने के लिए ज्योतिषियों की सलाहानुसार पीला पुखराज रत्न धारण किया जा सकता है।
शुक्र ग्रह
नव ग्रहों में संबंधों का कारक ग्रह शुक्र सुंदरता और पत्नी का भी कारक ग्रह होता है। कुंडली में यदि शुक्र दूषित है तो जातक का जीवन संघर्ष से भर जाता है। दूषित शुक्र को पवित्र बनाकर अपनी जिंदगी को सुखमय बनाने के लिए घी और आंवले का सेवन कीजिए। स्वच्छ और साफ वस्त्र पहनिए। पत्नी का सम्मान करें। माँ लक्ष्मी की आराधना कीजिए। सफेद वस्त्र धारण करें। कर्णप्रिय संगीत सुनिये और उस पर थिरकिए। घर-परिवार में कपूर के दिए को प्रज्वलित करें और श्रृंगारिक चीजों को दान स्वरूप दीजिए।
शनि ग्रह
ग्रहों की दुनियां में जातकों को हमेशा उनके कर्मों के अनुसार यदि कोई ग्रह फल प्रदान करता है तो वो शनिदेव हैं। जज शनि जातकों से अनुशासन और नेक नीयत की अपेक्षा रखता है। जन्मकुंडली में जब शनि नीच का हो, शनि सूर्य के साथ युति या शत्रु क्षेत्र में हो तो यह जातक की लाइफ में अनेक अवरोध व अड़चनें लाता है। इन अवरोधों को दूर करने के लिए शनिदेव के मंत्र और सुंदरकांड का पाठ करना चाहिए। तेल या तेल से बनी चीजों को किसी गरीब, वृद्ध,और भिक्षुक को दान दीजिएं। काली उड़द से बने खाद्यपदार्थो का सेवन किया जा सकता है। लोहे की अंगूठी बनवाकर धारण कीजिए। कौए को खाना खिलाएं। पीपल के वृक्ष के नीचे तेल का दिया जलाएं।
राहु-केतु ग्रह
छायाग्रह के रूप में प्रचलित राहु-केतु हमेशा वक्री गति से भ्रमण करते रहते हैं। ये पाप ग्रह हैं। इन पाप ग्रहों का असर कम करने के लिए इनका मंत्र जाप किया जा सकता है। महादेव की उपासना करें। लघु रूद्र का पाठ करें। समस्त ग्रहों के राहु-केतु की चपेट से बनने वाले कालर्सप दोष की विधि करायी जा सकती है। खासकर कि केतु के नकारात्मक प्रभावों को दूर करने के लिए घर में मछली रखें, पश-पक्षिओं को खिलाएं, शमशान में लकड़ी का दान करें। राहु की कृपा प्राप्त करने के लिए दुर्गा देवी की उपासना करें। घर में कुत्ता पालिए। जहां तक संभव हो इन दोनों ग्रहों के रत्नों का धारण नहीं करना चाहिए। घर में नमक से पोछा लगाएं। चंदन का तिलक मस्तक पर लगाएं। अपने पास मोर का पंख रखें। गणेशजी का परामर्श है कि नकारात्मक शक्तियों को समाप्त करने के लिए पूरे घर में पवित्र गोमूत्र का भी छिड़काव करना चाहिए।
जन्मकुंडली का ठीक तरह से ज्योतिषीय विश्लेषण आपके भविष्य पर प्रकाश डाल सकता है। कुंडली में बैठे ग्रह अपनी शुभाशुभ स्थितियों के अनुसार अपना फल दिया करते हैं। ग्रहों के नकारात्मक असरों को हमारे इस लेख में बताए गए निःशुल्क उपायों के द्वारा कम या मिटाया जा सकता है। ये बात सच है कि भाग्य को बदल पाना मनुष्य के हाथों में नहीं होता। पर, परिस्थितियों में सुधार लाकर जीवन को बेहतरी की ओर तो मनुष्य ले ही जा सकता है। पाप ग्रहों के खराब असरों की वजह से जिंदगी में छायी अस्त-व्यस्तता और आंधी-तूफान मचाने वाले पापी या अशुभ ग्रहों के निराकरण हेतु उनसे संबंधित ग्रहों के देवी-देवता को ज्योतिषीय उपायों द्वारा प्रसन्न करके शुभ फल पाया जा सकता है।

भगवान श्रीकृष्ण ने किए थे ये 7 चमत्कार।

भगवान श्रीकृष्ण ने किए थे ये 7 चमत्कार।

भगवान विष्णु के आठवें पूर्णावतार और हिन्दू धर्म के पुर्नसंस्थापक लीलाधारी श्री कृष्ण ने यूं तो कई चमत्कार किए थे। जैसे जन्म लेते ही जेल के दरवाजे खुल जाना। यमुना में उफान के बावजूद यमुना द्वारा रास्ता देना। बहुत ही छोटी-सी उम्र में पूतना, कालिया नाग, कंस, चाणूर और मुष्टिक का वध करना। लेकिन हम यहां सिर्फ 7 ऐसे चमत्कारों के बारे में बताना चाहते हैं जो कि सिर्फ कृष्ण ही कर सकते थे।
पहला चमत्कार-
एक समय बाल कृष्ण अपने सखाओं के साथ खेल रहे थे। बलराम ने देखा की उन्होंने मिट्टी खा ली है। उन्होंने बाकी सखाओं के साथ मिलकर मां यशोदा से इसकी शिकायत कर दी। यशोदा मां तुरंत आई और कान पकड़कर पूछने लगी कि क्या तूने मिट्टी खाई है। भगवान श्रीकृष्ण अपना मुंह बंद कर गर्दन हिलाकर बताने लगे की नहीं खाई है।
मां ने कहा मुंह खोल तेरा देखती हूं कि खाई की नहीं। कृष्ण ने मुंह खोलकर कहा, ये सभी मित्र झूठ बोल रहे हैं मां। ऐसा कहकर कृष्ण ने अपना मुंह खोल दिया। माता यशोदा को मिट्टी तो नजर नहीं आई मुंह के अंदर लेकिन इसके स्थान पर कृष्ण के मुंह में उन्‍हें संपूर्ण ब्रह्मांड के दर्शन हो गए। यह देखकर माता यशोदा घबरा गई थी और अपने लल्ला को गले से लगा लिया।

दूसरा चमत्कार-
भगवान श्रीकृष्ण और बलराम उज्जैन (अवंतिका) में सांदीपनि ऋषि के आश्रम में पढ़ते थे। शिक्षा पुरी होने के बाद जब ऋषि को दक्षिणा देने की बारी आई तो कृष्ण को अद्वितीय मान गुरु दक्षिणा में सांदीपनि ने कृष्ण से मांगा कि उनके पुत्र को प्रभास क्षेत्र के समुद्र में रहने वाला एक शंखासुर नामक राक्षस चुराकर ले गया है यह वह समुद्र में डूब गया है। आप उसे वापस ले आएं।'
गुरु की यह बात सुनकर श्रीकृष्ण और बलराम दोनों ही प्रभाष क्षेत्र के समुद्र तट पर गए और समुद्रदेव से कहा कि वे गुरु के पुत्र को लौटा दें। समुद्र ने उत्तर दिया कि यहां पर कोई बालक नहीं है। तब समुद्र ने बताया कि पाञ्चजन्य नामक समुद्री दैत्य, जो शंखासुर नाम से भी प्रसिद्ध है। संभवत: वह बालक को खा गया है। कृष्ण बालक की खोज में समुद्र में उतरे वहां उन्होंने पाञ्चजन्य शंख में छिपे दैत्य को देखा। दैत्य का उदर चीरा तो कृष्ण को वहां पर कोई बालक नहीं मिला।

तब शंखासुर के शरीर का शंख लेकर कृष्ण और बलराम यम के पास पहुंचे। यमलोक में पाञ्चजन्य शंख बजाने पर अनेक गण उत्पन्न हो गए। यम ने दोनों भ्राताओं की पूजा करते हुए कहा, 'हे सर्वव्यापी भगवान, अपनी लीला के कारण आप मानव स्वरूप में हैं। मैं आप दोनों के लिए क्या कर सकता हूं?'..श्री कृष्ण ने कहा, 'हे महान शासक, मेरे गुरु पुत्र को मुझे सौंप दीजिए, जो अपने कर्मों के कारण यहां लाया गया था।'.. तब श्रीकृष्ण अपने गुरु संदीपनी के पुत्र को लेकर उज्जैन आए और उन्होंने उनके पुत्र को जीवित सौंप दिया।
तीसरा चमत्कार-
भगवान कृष्ण के पहले 'इंद्रोत्सव' नामक उत्तर भारत में एक बहुत बड़ा त्योहार होता था। भगवान कृष्ण ने इंद्र की पूजा बंद करवाकर गोपोत्सव, रंगपंचमी और होलीका का आयोजन करना शुरू किया।
श्रीकृष्ण के निवेदन पर स्वर्ग के सभी देवी और देवताओं की पूजा बंद हो गई। धूमधाम से गोवर्धन पूजा शुरू हो गई। जब इंद्र को इस बारे में पता चला, तो उन्होंने प्रलयकालीन बादलों को आदेश दिया कि ऐसी वर्षा करो कि ब्रजवासी डूब जाएं और मेरे पास क्षमा मांगने पर विवश हो जाएं। जब वर्षा नहीं थमी और ब्रजवासी कराहने लगे तो भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी अंगुली पर धारण कर उसके नीचे ब्रजवासियों को बुला लिया। गोवर्धन पर्वत के नीचे आने पर ब्रजवासियों पर वर्षा और गर्जन का कोई असर नहीं हो रहा। इससे इंद्र का अभिमान चूर हो गया। बाद में श्रीकृष्ण का इंद्र से युद्ध भी हुआ और इंद्र हार गए।
चौथा चमत्कार-
महाभारत में द्युतक्रीड़ा के समय युद्धिष्ठिर ने द्रौपदी को दांव पर लगा दिया और दुर्योधन की ओर से मामा शकुनि ने द्रोपदी को जीत लिया। उस समय दुशासन द्रौपदी को बालों से पकड़कर घसीटते हुए सभा में ले आया। जब वहां द्रौपदी का अपमान हो रहा था तब भीष्मपितामह, द्रोणाचार्य और विदुर जैसे न्यायकर्ता और महान लोग भी बैठे थे लेकिन वहां मौजूद सभी बड़े दिग्गज मुंह झुकाएं बैठे रह गए। इन सभी को उनके मौन रहने का दंड भी मिला।
देखते ही देखते दुर्योधन के आदेश पर दुशासन ने पूरी सभा के सामने ही द्रौपदी की साड़ी उतारना शुरू कर दी। सभी मौन थे, पांडव भी द्रोपदी की लाज बचाने में असमर्थ हो गए। तब द्रोपदी ने आंखें बंद कर वासुदेव श्रीकृष्ण का आव्हान किया। द्रौपदी ने कहा, ''हे गोविंद आज आस्था और अनास्था के बीच जंग है। आज मुझे देखना है कि ईश्वर है कि नहीं''... तब श्रीहरि श्रीकृष्ण ने सभी के समक्ष एक चमत्कार प्रस्तुत किया और द्रौपदी की साड़ी तब तक लंबी होती गई जब तक की दुशासन बेहोश नहीं हो गया और सभी सन्न नहीं रह गए। सभी को समझ में आ गया कि यह चमत्कार है।

पांचवां चमत्कार-
भीम का पौत्र और घटोत्कच का पुत्र बर्बरीक अत्यंत ही मायावी और शक्तिशाली था। बर्बरीक के लिए तीन बाण ही काफी थे जिसके बल पर वे कौरवों और पांडवों की पूरी सेना को समाप्त कर सकते थे। युद्ध के मैदान में भीम पौत्र बर्बरीक दोनों खेमों के मध्य बिन्दु एक पीपल के वृक्ष के नीचे खड़े हो गए और यह घोषणा कर डाली कि मैं उस पक्ष की तरफ से लडूंगा जो हार रहा होगा। बर्बरीक की इस घोषणा से कृष्ण चिंतित हो गए।
तब भगवान श्रीकृष्ण ब्राह्मण का भेष बनाकर सुबह बर्बरीक के शिविर के द्वार पर पहुंच गए और दान मांगने लगे। बर्बरीक ने कहा- मांगो ब्राह्मण! क्या चाहिए? ब्राह्मणरूपी कृष्ण ने कहा कि तुम दे न सकोगे। लेकिन बर्बरीक कृष्ण के जाल में फंस गए और कृष्ण ने उससे उसका शीश मांग लिया।
बर्बरीक द्वारा अपने पितामह पांडवों की विजय हेतु स्वेच्छा के साथ शीशदान देने से पहले कहा, प्रभु में यह युद्ध देखना चाहता हूं। तब श्रीकृष्ण ने उसका शीश एक ऊंचे स्थान पर रखवा दिया और आश्चर्य की कटे शीश ने बर्बरीक महाभारत का युद्ध देख रहा था। जब बाद में उससे पूछा गया कि तुमने महाभारत के युद्ध देखा तो कैसा लगा। उसने जवाब दिया कि मुझे तो दोनों ओर से श्रीकृष्ण ही लड़ते हुए दिखाई दे रहे थे।...बर्बरीक के इस बलिदान को देखकर दान के पश्चात श्रीकृष्ण ने बर्बरीक को कलियुग में स्वयं के नाम से पूजित होने का वर दिया। आज बर्बरीक को खाटू श्याम के नाम से पूजा जाता है।

छठा चमत्कार-
महाभारत के युद्ध के दौरान अभिमन्यु का क्रूरतापूर्वक वध करने के बाद अर्जुन ने शपथ ली थी कि कल सूर्योस्त से पूर्व यदि में जयद्रथ का वध नहीं कर पाया तो आत्मदाह कर लूंगा। इस शपथ के बाद कौरव पक्ष ने जयद्रथ को छिपा दिया था। जब सूर्योस्त होने वाला था तो अर्जुन ने अपनी शपथ अनुसार अपनी चिता सजाना शुरू कर दी।

तभी श्रीकृष्ण ने एक चमत्कार किया और सूर्य को वक्त के पहले ही अस्त कर दिया। यह देख कौरव पक्ष में हर्ष व्याप्त हो गया। इस बीच जिज्ञासा वश छुपा हुआ जयद्रथ भी हंसते हुए यह नजारा देखने के लिए यह सोचकर बाहर निकल आया कि अब तो सूर्यास्त हो ही गया है। जब श्रीकृष्ण ने जयद्रथ को देखा तो उन्होने अर्जुन को इशारा किया और तभी सभी ने देखा कि सूरज निकल आया है अभी तो सूर्यास्त हुआ ही नहीं है। यह देखकर जयद्रथ घबराकर भागने लगा लेकिन अर्जुन ने उसे भागने का मौका दिए बगैर उसकी गर्दन उतार दी।

सातवां चमत्कार-
अश्‍वत्थामा ने पांडव पक्ष को कुल का नाश करने हेतु जहां पांडवों के सभी पुत्रों को मार दिया था वहीं उसने अभिमन्यु के पत्नी उत्तरा के गर्भ में पल रहे शिशु पर भी एक विशेष अस्त्र से प्रहार कर उसके गर्भ में स्थित शिशु को लगभग मार ही दिया था। यह देखकर कृष्ण ने अश्वत्थामा से कहा- 'उत्तरा को परीक्षित नामक बालक के जन्म का वर प्राप्त है। उसका पुत्र तो होगा ही। यदि तेरे शस्त्र-प्रयोग के कारण मृत हुआ तो भी मैं उसे जीवित कर दूंगा। वह भूमि का सम्राट होगा और तू? नीच अश्वत्थामा! तू इतने वधों का पाप ढोता हुआ 3,000 वर्ष तक निर्जन स्थानों में भटकेगा। तेरे शरीर से सदैव रक्त की दुर्गंध नि:सृत होती रहेगी। तू अनेक रोगों से पीड़ित रहेगा।' वेद व्यास ने श्रीकृष्ण के वचनों का अनुमोदन किया।

ग्रहो के प्रभाव

लक्षण बताते हैं कौन सा ग्रह है आपसे नाराज, अभी पढ़ें….
ग्रहो के प्रभाव
ग्रह अच्‍छे या बुरे प्रभाव कुंडली में अपने स्‍थान के अनुसार देते हैं। यदि जीवन में कुछ परेशानियां हैं और उसका ज्‍योतिषीय समाधान चाहते हैं तो ये जानना बहुत जरूरी है कि आपकी परेशानी किस ग्रह के कारण है। जिससे उस ग्रह को प्रसन्‍न करने के उपाय कर सकें। आइए जानते हैं ग्रह और उसके अशुभ प्रभावों के बारे में:
सूर्य के अशुभ प्रभाव
अहंकार इतना अधिक होना कि स्‍वयं का नुकसान करते जाना, पिता के घर से अलग होना, कानूनी विवादों में फंसना और संपति विवाद होना, पत्‍नी से दूरी, अपने से बड़ों से विवाद, दांत, बाल, आंख व हृदय रोग होना। सरकार की ओर से नोटिस मिलना व सरकारी नौकरी में परेशानी आना भी सूर्य के दुष्‍प्रभाव हैं।
चंद्र के अशुभ प्रभाव
घर-परिवार के सुख और शांति की कमी,मानसिक रोगों का होना, बिना कारण ही भय व घबराहट की स्थिति बनी रहना, माता से दूरियां, सर्दी-जुखाम रहना, छाती सम्बंधित रोगों का बना रहना और कार्य तथा धन में अस्थिरता रहना।
मंगल के अशुभ प्रभाव
अत्‍यधिक क्रोध व चिड़चिड़पन मंगल के अशुभ प्रभावों में से एक है। भाइयों से मनमुटाव और आपसी विरोध मंगल के कारण ही होता है। रक्‍त में विकार होना और शरीर में खून की कमी मंगल के कमजोर होने की निशानी है। जमीन को लेकर तनाव व झगड़ा, आग में जलना और चोट लगते रहना, छोटी-छोटी दुर्घटनाओं का होता रहना मंगल के अशुभ प्रभावों के कारण ही होता है।
बुध के अशुभ प्रभाव
बोलने-सुनने में परेशानी, बुद्धि का कम इस्‍तेमाल, आत्‍मविश्‍वास की कमी, नपुंसकता, व्‍यापार में हानि, माता का विरोध और शिक्षा में बाधाएं बुध के अशुभ प्रभाव के कारण होता है। बुध यदि अशुभ हो अच्‍छे मित्र भी नहीं मिलते।
गुरु के अशुभ प्रभाव
जिनका सम्‍मान करना चाहिए उनसे ही अनबन हो, समाज के सामने बदनामी हो और मान-सम्‍मान न हो तो समझ लीजिए गुरू आपसे नाराज है। बड़े अधिकारियों से विवाद हाो धर्मिक ढोंग के साथ अधर्म के काम करना, अनैतिक कार्य करना, पाखंड से धन कमाना, स्त्रियों से अनैतिक संबंध बनाना, संतान दोष, मोटापा और सूजन गुरू के अशुभ प्रभाव हैं।
शुक्र के अशुभ प्रभाव
शुक्र यदि अशुभ प्रभाव दे तो यौन सुख को कम करता है। गुप्‍त रोग, विवाह में रूकावट, प्रेम में असफलता, हृदय का अत्‍यधि‍क चंचल हो जाना, प्रेम में धोखे की प्रवृतिशुक्र में अशुभ होने के लक्षण हैं।
शनि के अशुभ प्रभाव
अशुभ शनि जातक को झगडालूं, आलसी, दरिद्र, अधिक निद्रा वाला, वैराग्य से युक्तबनाता है। यह पांव में या नसों से रोग देता है। स्‍टोन की समस्‍या शनि के अशुभ होने पर ही होती है। लोगों से उपेक्षा, विवाह में समस्‍या और नपुंसकता शनि के ही अशुभ प्रभाव हैं।
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राहु के अशुभ प्रभाव
नशा व मांस-मदिरा का लती, गलत कार्यों को करने का शौक, शेयर मार्केट से हानि होना, घर-गृहस्‍थी से दूर होकर अनैतिक कार्यो में जुड़ना, अपराधों में संलिप्‍त होना और फोड़े-फुंसी जैसे घृणित रोगों का होना राहु के अशुभ प्रभाव है।
केतु के अशुभ प्रभाव
इसके अशुभ प्रभाव राहू और मंगल का मिलाजुला रूप होता है। अत्यधिक क्रोधी, शरीर में अधिक अम्लता होना जिस कारण पेट में जलन का रहना, चेहरे पर दाग धब्बे का होना केतु के अशुभ प्रभाव हैं। केतु जब रूष्‍ट हो तो व्‍यक्ति किसी न किसी प्रकार के ऑपरेशन से गुजरता है।

थायराइड की समस्‍या


: थायराइड की समस्‍या अब आम होने लगी है और इसी के साथ ही ये सवाल भी उठने लगा है कि थायराइड में डाइट कैसी होनी चाहिए। वैसे थायराइड में क्या खाएं और क्या ना खाएं, इसे जानने से पहले जरूरी है कि थायराइड की जानकारी और इसकी वजह से होने वाली परेशानियां क्‍‍‍‍या हो सकती हैं।
थायराइड दरअसल एक एंडोक्राइन ग्लैंड है जो बटरफ्लाई आकार का होता है और ये गले में स्थित है। इसमें से थायराइड हार्मोन निकलता है जो शरीर में मेटाबॉलिज्म को संतुलित करता है। थायराइड ग्लैंड शरीर से आयोडीन की मदद से हार्मोन बनाता है। थायराइड हार्मोन का स्राव जब असंतुलित हो जाता है तो इससे शरीर में कई तरह की मुश्किलें पैदा हो जाती है। ये बीमारी पुरुषों के मुकाबले ज्यादातर महिलाओं में होती है। मेट्रो हॉस्पिटल की सीनियर डायटीशियन रितु गिरि बता रही हैं थायराइड की बीमारी होने पर क्या खाना चाहिए और क्या नहीं खाना चाहिए।



पहले जानें थायराइड के प्रकार - 

1. Hypothyroid
इसमें थायराइड ग्लैंड सक्रिय नहीं होता, जिससे शरीर में जरूरत के मुताबिक T3, T4 हार्मोन नहीं पहुंच पाता। इसकी वजह से शरीर का वजन अचानक बढ़ जाता है। सुस्ती महसूस होने लगती है। शरीर में रोगों से लड़ने की क्षमता कम हो जाती है। अनियमित पीरियड, कब्ज की शिकायत, चेहरे और आंखों पर सूजन आ जाता है। यह बीमारी 30 से 60 साल की महिलाओं में अधिक होती है।
क्या खाएं
आयोडिन नमक, आयोडिन से भरपूर चीजें, सी फूड, फिश, चिकेन, अंडा, टोंड दूध और उससे बनी चीजें जैसे दही, पनीर, टमाटर, मशरुम, केला, संतरे आदि, फिजिशियन की सलाह पर विटामिन, मिनिरल्स, आयरन सप्लीमेंट्स।
क्या नहीं खाएं
सोयाबीन और सोया प्रोडक्ट रेड मीट, पैकेज्ड फूड, ज्यादा क्रीम वाले प्रोडक्ट जैसे केक, पेस्ट्री, स्वीट पोटैटो, नाशपाती,  स्ट्रॉबेरी, मूंगफली, बाजरा आदि, फूलगोभी, पत्ता गोभी, ब्रोकली, शलगम आदि।
2. Hyperthyroid
इसमें थायराइड ग्लैंड बहुत ज्यादा सक्रिय हो जाता है। T3, T4 हार्मोन जरुरत से अधिक मात्रा में निकलकर ब्लड में घुलने लगता है। इस हालत में शरीर का वजह एकाएक कम हो जाता है। मांशपेशियां कमजोर हो जाती है। भूख ज्यादा लगती है, ठीक से नींद नहीं आती, स्वभाव चिड़चिड़ा हो जाता है। पीडियड्स में अनियमितता, अधिक ब्लीीडिंग की समस्या, गर्भपात का भी खतरा बना रहता है।
क्या खाएं
हरी सब्जियां, साबूत अनाज, ब्राउन ब्रेड, ओलिव ऑयल, लेमन, हर्बल और ग्रीन टी, अखरोट, जामुन, स्ट्रॉबेरी, गाजर, हरी मिर्च, शहद।
 क्या नहीं खाएं
मैदा से बने प्रोडक्ट जैसे पास्ता, मैगी, व्हाइट ब्रेड, सॉफ्ट ड्रिंक, अल्कोहल, कैफीन, रेड मीट, ज्यादा मीठी चीजें जैसे मिठाई, चॉकलेट।

पुस्तककोश


अगर आप संस्कृत पढना / या समझना चाहते है तो 
इस मेसेज को पढकर जरूर प्रिंट निकलवा कर अपने पुस्तककोश में सम्मान देगे।



ॐ ॥ पारिवारिक नाम संस्कृत मे ......
जनक: - पिता , माता - माता
पितामह: - दादा , पितामही - दादी
प्रपितामह: - परदादा , प्रतितामही - परदादी
मातामह: - नाना , मातामही - नानी
प्रमातामह: - परनाना , प्रमातामही - परनानी
वृद्धप्रतिपितामह - वृद्धपरनाना
पितृव्य: - चाचा , पितृव्यपत्नी - चाची
पितृप्वसृपितृस्वसा - फुआ , पितृस्वसा - फूफी
पैतृष्वस्रिय: - फुफेराभाई
पति: - पति , भार्या - पत्नी
पुत्र: / सुत: / आत्मज: - पुत्र , स्नुषा - पुत्र वधू
जामातृ - जँवाई ( दामाद ) , आत्मजा - पुत्री
पौत्र: - पोता , पौत्री - पोती
प्रपौत्र:,प्रपौत्री - पतोतरा
दौहित्र: - पुत्री का पुत्र , दौहितत्री - पुत्री का पुत्री
देवर: - देवर , यातृ,याता - देवरानी , ननांदृ,ननान्दा - ननद
अनुज: - छोटाभाई , अग्रज: - बड़ा भाई
भ्रातृजाया,प्रजावती - भाभी
भ्रात्रिय:,भ्रातृपुत्र: - भतीजा , भ्रातृसुता - भतीजी
पितृव्यपुत्र: - चचेराभाई , पितृव्यपुत्री - चचेरी बहन
आवुत्त: - बहनोई , भगिनी - बहिन , स्वस्रिय:,भागिनेय: - भानजा
नप्तृ,नप्ता - नाती
मातुल: - मामा , मातुली - मामी
मातृष्वसृपति - मौसा , मातृस्वसृ,मातृस्वसा - मौसी
मातृष्वस्रीय: - मौसेरा भाई
श्वशुर: - ससुर , श्वश्रू: - सास , श्याल: - साला
सम्बन्धीन् - समधी, सम्बन्धिनि - समधिन
पशव: ।।
उंट - उष्‍ट्रक्रमेलकः
उद्बिलाव -
कछुआ - कच्‍छप:
केकडा - कर्कट: कुलीरः
कुत्‍ता - श्‍वान:, कुक्कुर:कौलेयकःसारमेयः
कुतिया सरमाशुनि
कंगारू - कंगारुः
कनखजूरा कर्णजलोका
खरगोश - शशक:
गाय - गो, धेनु:
गैंडा - खड्.गी
गीदड (सियार) - श्रृगाल:गोमायुः
गिलहरी - चिक्रोड:
गिरगिट - कृकलास:
गोह गोधा
गधा - गर्दभ:, रासभ:खरः
घोडा - अश्‍व:, सैन्‍धवम्सप्तिःरथ्यःवाजिन्हयः
चूहा - मूषक:
चीता - तरक्षु:, चित्रक:
चित्‍तीदार घोडा - चित्ररासभ:
छछूंदर - छुछुन्‍दर:
छिपकली गृहगोधिका
जिराफ - चित्रोष्‍ट्र:
तेंदुआ तरक्षुः
दरियाई घोडा - जलाश्‍व:
नेवला - नकुल:
नीलगाय - गवय:
बैल - वृषभ: उक्षन्अनडुह
बन्‍दर - मर्कट:
बाघ - व्‍याघ्र:द्वीपिन्
बकरी - अजा
बकरा - अज:
बनमानुष - वनमनुष्‍य:
बिल्‍ली - मार्जार:, बिडाल:
भालू - भल्‍लूक:
भैस - महिषी
भैंसा महिषः
भेंडिया - वृक:
भेंड - मेष:
मकड़ी उर्णनाभःतन्तुनाभःलूता
मगरमच्‍छ - मकर: नक्रः
मछली मत्स्यःमीनःझषः
मेंढक - दर्दुरःभेकः
लोमडी -लोमशः
शेर - सिंह:केसरिन्मृगेन्द्रःहरिः
सुअर - सूकर:वराहः
सेही शल्यः
हाथी - हस्ति, करि, गज:
हिरन - मृग:
बाल - केशा:
2-
माँग - सीमन्‍तम्
3-
सफेद बाल - पलितकेशा:
4-
मस्‍तक - ललाटम्
5-
भौंह - भ्रू:
6-
पलक - पक्ष्‍म:
7-
पुतली - कनीनिका
8-
नाक - नासिका
9-
उपरी ओंठ - ओष्‍ठ:
10-
निचले ओंठ - अधरम्
11-
ठुड्डी - चिबुकम्
12-
गाल - कपोलम्
13-
गला - कण्‍ठ:
14-
दाढी, मूँछ- श्‍मश्रु:
15-
मुख - मुखम्
16-
जीभ - जिह्वा
17-
दाँत- दन्‍ता:
18-
मसूढे - दन्‍तपालि:
19-
कन्‍धा - स्‍कन्‍ध:
20-
सीना - वक्षस्‍थलम्
21-
हाँथ - हस्‍त:
22-
अँगुली - अंगुल्‍य:
23-
अँगूठा - अँगुष्‍ठ:
24-
पेट - उदरम्
25-
पीठ - पृष्‍ठम्
26-
पैर - पाद:
27-
रोएँ - रोम
।।संस्कृतं सर्वेषां संस्कृतं सर्वत्र 📚।।
*
शब्दान् जानीमहे वाक्यप्रयोगञ्च कुर्महे >
विमानम् ।
उपायनम् ।
🚘 
यानम् ।
आसन्दः / आसनम् ।
नौका ।
पर्वत:।
🚊 
रेलयानम् ।
लोकयानम् ।
द्विचक्रिका ।
🇮🇳 
ध्वज:।
शशक:।
व्याघ्रः।
वानर:।
अश्व:।
मेष:।
गज:।
🐢 
कच्छप:।
🐜 
पिपीलिका ।
मत्स्य:।
🐄 
धेनु: ।
🐃 
महिषी ।
🐐 
अजा ।
🐓 
कुक्कुट:।
🐁 
मूषक:।
🐊 
मकर:।
🐪 
उष्ट्रः।
पुष्पम् ।
पर्णे (द्वि.व)।
🌳 वृक्ष:।
🌞 
सूर्य:।
🌛 
चन्द्र:।
⭐ 
तारक: / नक्षत्रम् ।
☔ 
छत्रम् ।
👦 
बालक:।
👧 
बालिका ।
👂 
कर्ण:।
👀 
नेत्रे (द्वि.व)।
👃
नासिका ।
👅 
जिह्वा ।
👄 
औष्ठौ (द्वि.व) ।
👋 
चपेटिका ।
💪 
बाहुः ।
🙏 
नमस्कारः।
👟 
पादत्राणम् (पादरक्षक:) ।
👔 
युतकम् ।
💼 
स्यूत:।
👖 
ऊरुकम् ।
👓 
उपनेत्रम् ।
💎 
वज्रम् (रत्नम् ) ।
💿 
सान्द्रमुद्रिका ।
🔔 
घण्टा ।
🔓 
ताल:।
🔑 
कुञ्चिका ।
 घटी।
💡 
विद्युद्दीप:।
🔦 
करदीप:।
🔋 
विद्युत्कोष:।
🔪 
छूरिका ।
 अङ्कनी ।
📖 
पुस्तकम् ।
🏀 
कन्दुकम् ।
🍷 
चषक:।
🍴 
चमसौ (द्वि.व)।
📷 
चित्रग्राहकम् ।
💻 
सड़्गणकम् ।
📱
जड़्गमदूरवाणी ।
 स्थिरदूरवाणी ।
📢 
ध्वनिवर्धकम् ।
समयसूचकम् ।
 हस्तघटी ।
🚿 
जलसेचकम् ।
🚪
द्वारम् ।
🔫 
भुशुण्डिका ।(बु?)
🔩
आणिः ।
🔨
ताडकम् ।
💊 
गुलिका/औषधम् ।
💰 
धनम् ।
 पत्रम् ।
📬 
पत्रपेटिका ।
📃 
कर्गजम्/कागदम् ।
📊 
सूचिपत्रम् ।
📅 
दिनदर्शिका ।
 कर्त्तरी ।
📚 
पुस्तकाणि ।
🎨 
वर्णाः ।
🔭 
दूरदर्शकम् ।
🔬 
सूक्ष्मदर्शकम् ।
📰 
पत्रिका ।
🎼 🎶 
सड़्गीतम् ।
🏆 
पारितोषकम् ।
⚽ 
पादकन्दुकम् ।
☕ 
चायम् ।
🍵
पनीयम्/सूपः ।
🍪 
रोटिका ।
🍧 
पयोहिमः ।
🍯 
मधु ।
🍎 
सेवफलम् ।
🍉
कलिड़्ग फलम् ।
🍊
नारड़्ग फलम् ।
🍋 
आम्र फलम् ।
🍇 
द्राक्षाफलाणि ।
🍌
कदली फलम् ।
🍅 
रक्तफलम् ।
🌋 
ज्वालामुखी ।
🐭 
मूषकः ।
🐴 
अश्वः ।
🐺 
गर्दभः ।
🐷 
वराहः ।
🐗 
वनवराहः ।
🐝 
मधुकरः/षट्पदः ।
🐁
मूषिकः ।
🐘 
गजः ।
🐑 
अविः ।
🐒
वानरः/मर्कटः ।
🐍 
सर्पः ।
🐠 
मीनः ।
🐈 
बिडालः/मार्जारः/लः ।
🐄 
गौमाता ।
🐊 
मकरः ।
🐪 
उष्ट्रः ।
🌹 
पाटलम् ।
🌺 
जपाकुसुमम् ।
🍁 
पर्णम् ।
🌞 
सूर्यः ।
🌝 
चन्द्रः ।
🌜
अर्धचन्द्रः ।
⭐ 
नक्षत्रम् ।
 मेघः ।
⛄ 
क्रीडनकम् ।
🏠 
गृहम् ।
🏫 
भवनम् ।
🌅 
सूर्योदयः ।
🌄 
सूर्यास्तः ।
🌉 
सेतुः ।
🚣 
उडुपः (small boat)
🚢 
नौका ।
 गगनयानम्/विमानम् ।
🚚 
भारवाहनम् ।
🇮🇳 
भारतध्वजः ।
1⃣ 
एकम् ।
2⃣ 
द्वे ।
3⃣ 
त्रीणि ।
4⃣ 
चत्वारि ।
5⃣ 
पञ्च ।
6⃣ 
षट् ।
7⃣ 
सप्त ।
8⃣ 
अष्ट/अष्टौ ।
9⃣ 
नव ।
🔟 
दश ।
2⃣ 0⃣ 
विंशतिः ।
3⃣ 0⃣ 
त्रिंशत् ।
4⃣ 0⃣ 
चत्त्वारिंशत् ।
5⃣ 0⃣ 
पञ्चिशत् ।
6⃣ 0⃣ 
षष्टिः ।
7⃣ 0⃣ 
सप्ततिः ।
8⃣ 0⃣ 
अशीतिः ।
9⃣ 0⃣ 
नवतिः ।
1⃣ 0⃣ 0⃣ 
शतम्।
⬅ 
वामतः ।
 दक्षिणतः ।
 उपरि ।
 अधः ।
🎦 
चलच्चित्र ग्राहकम् ।
🚰 
नल्लिका ।
🚾 
जलशीतकम् ।
🛄 
यानपेटिका ।
📶 
तरड़्ग सूचकम् ( तरड़्गाः)
+
सड़्कलनम् ।
-
व्यवकलनम् ।
×
गुणाकारः ।
÷
भागाकारः ।
%
प्रतिशतम् ।
@
अत्र (विलासम्)।
⬜ 
श्वेतः ।
🔵 
नीलः ।
🔴 
रक्तः ।
⬛ 
कृष्णः ।
इदानीं वाक्यप्रयोगं कुर्मः ..........
संस्कृतेन सम्भाषणं कुर्मः ........
जीवनस्य परिवर्तनं कुर्मः ......

पुष्पनाम संस्कृतम्
१ कनेर कर्णिकार:
२ कमल (नीला) इन्‍दीवरम्
३ कमल (श्‍वेत) कैरवम्
४ कमल (लाल) कोकनदम्, पद्मम्
५ कुमुदनी कुमुदम्
६ कुन्‍द कुन्‍दम्
७ केवडा केतकी
८ गुलाब पाटलम्
९ गेंदा स्‍थलपद्मम्
१० चम्‍पा चम्‍पक:
११ चमेली
१२ जवापुष्‍प जपापुष्‍पम्
१३ जूही यूथिका
१४ दुपहरिया बन्‍धूक:
१५ नेवारी नवमालिका
१६ बेला मल्लिका
१७ मौलसरी बकुल:
१८ रातरानी रजनीगन्‍धा
१९ हरसिंगार शेफालिका
२० मालती मालतीपुष्‍प