सोमवार, 28 अगस्त 2017

HINDUISM:

HINDUISM: The first person who translated Bhagvat Gita in Urdu was Mohammad Meherullah.Later he adopted Hinduism.
The first person who translated Bhagvat Gita in Arabic was a Palestinian named El Fateh Commando.Later he joined Iskcon in Germany and followed Hinduism.
The first person who translated Bhagvat Gita in English was Charles Wiliknos.Later he adopted Hinduism.He even said only Hinduism will survive in the world.

The first person who translated Bhagvat Gita in Hebrew was an Israeli named Bezashition le Fanah.Later he adopted Hinduism in India.
The first person who wrote Bhagvat Gita in Russian language was Novikov.Later he became devotee of Bhagwan Krishna.


Till now 283 intellectuals translated Bhagvat Gita out of which 58 were in Bengali,44 in English,12 German,4 Russian,4 French,13 Spanish,5 Arabic,3 Urdu and in many other world languages.
A funny thing,the person who translated Al Quran in Bengali was Girish Chandra Sen and he didn't convert to Islam as he read Bhagvat Gita before.
Jai Shree Krishna :)
P.S The spelling of names could be wrong,so i beg your pardon in advance.One more thing,the post is for basic knowledge.Any person twisting the context will not be entertained 🙏🙏🙏🙏

भगवान मेरे सामने तो आओ

एक धार्मिक व्यक्ति था, भगवान में उसकी बड़ी श्रद्धा थी.
उसने मन ही मन प्रभु की एक तस्वीर बना रखी थी. एक दिन भक्ति से भरकर उसने भगवान से कहा- भगवान मुझसे बात करो.
और एक बुलबुल चहकने लगी लेकिन उस आदमी ने नहीं सुना. इसलिए इस बार वह जोर से चिल्लाया,
भगवान मुझसे कुछ बोलो तो और आकाश में घटाएं उमङ़ने घुमड़ने लगी बादलो की गड़गडाहट होने लगी. लेकिन आदमी ने कुछ नहीं सुना.
उसने चारो तरफ निहारा, ऊपर- नीचे सब तरफ देखा
और बोला, -भगवान मेरे सामने तो आओ और बादलो में छिपा सूरज चमकने लगा.
पर उसने देखा ही नही,आखिरकार वह आदमी गला फाड़कर चीखने लगा भगवान मुझे कोई चमत्कार दिखाओ - तभी एक शिशु का जन्म हुआ और उसका प्रथम रुदन गूंजने लगा किन्तु उस आदमी ने ध्यान नहीं दिया.

अब तो वह व्यक्ति रोने लगा और भगवान से याचना करने लगा - भगवान मुझे स्पर्श करो मुझे पता तो चले तुम यहाँ हो, मेरे पास हो,मेरे साथ हो और एक तितिली उड़ते हुए आकर उसके हथेली पर बैठ गयी
लेकिन उसने तितली को उड़ा दिया, और उदास मन से आगे चला गया. भगवान इतने सारे रूपो में उसके सामने आया,
इतने सारे ढंग से उससे बात की पर उस आदमी ने पहचाना ही नहीं
शायद उसके मन में प्रभु की तस्वीर ही नहीं थी.
हम यह तो कहते है कि ईश्वर प्रकृति के कण-कण में है,लेकिन हम उसे किसी और रूप में देखना चाहते ही नही है
इसलिए उसे कही देख ही नहीं पाते.
इसे भक्ति मे दुराग्रह भी कहते है.
भगवन अपने तरीके से आना चाहते है और हम अपने तरीके से देखना चाहते है और बात नहीं बन पाती..!!
बात तभी बनेगी जब हम भगवान को भगवान की आँखों से देखेंगे।
जयजय श्री राधे

#कैसे_56_देशो_में_इस्लाम_फैला

#कैसे_56_देशो_में_इस्लाम_फैला - ईरान 634 -651
632 ईस्वी में मुहम्मद की म्रत्यु हो गयी थी । पूरे अरब प्रायदीप पर मुसलमानो का कब्जा हो गया था । मुहम्मद की भी महत्वकांशा थी, की वो ज़्यादा से ज़्यादा आगे बढ़ता चला जाये । उसकी इन दुष्ट इच्छा को उसके इस्लामी गुंडो ने पूर्ण किया ।

अरब की सीमा से लगता #ईरान था । जिसका #पुराना_नाम #पर्शिया था ।
आज जो ईरानी मुसलमान मुसलमान बनकर ईरान में इस्लामिक शाशन चला रहे है, ईरान में कभी इनके पूर्वजो के साथ क्या हुआ था, यह लोग खुद भी शायद नही जानते, कोई और बताए तो मानने को भी तैयार नही होंगे । ईरान ही वो गैर - अरब राज्य था,जो सर्वप्रथम इस्लामी जिहाद का शिकार हुआ ।
एक छोटा सा माफिया मुसलमानो ने शुरू किया, जो अब पूरे अरब में फैलता जा रहा था , इस नए नवेले धर्म का नाम भी लोगो ने नही सुना होगा, जिसे कबूल करने के लिए लोगो को भयंकर यातना दी जा रही थी । अगर इस गुंडो के गिरोह को शुरू में ही कुचल दिया जाता, तो विश्व के हालात आज यह ना होते । इस्लाम एक सीख ह लोगोै के लिए, की किसी भी अत्याचारी को आगे ना बढ़ने दिया जाए ।उसे सुधरने काएक मौका देकर ही उसे खत्म कर दिया जाए ।
ईरान ही वह प्रथम देश था, जो इन पागल , जंगली, हिंसक पशुओं का रास्ता रोके खड़ा था । फारसी साम्राज्य इन अरबी पशुओं को परास्त करने के लिए अयोग्य ही था ।
इस्लाम के आगमन से पूर्व युद्ध के एक नियम थे , सेनाएं आपस मे लड़ती थी । जनता पर धावा नही बोला जाता था, किसी विपक्षी के युद्ध जितने के बाद भी जनता पर अत्याचार नही होता था । इस इस्लाम के गुंडो ने तो युद्ध के सारे नियम ही बदल दिए । सेना से छुपकर घुसपैठ करते, ओर आम जनता पर हमला करते । उसे मुसलमान बनाते, साथ ही अपनी लुटेरी सेना में शामिल कर लेते ।
इस्लाम कब आक्रमणों में ज़्यादा से ज़्यादा इस बार पर जोर होता था , की किस तरह नागरिकों को सताया जाए । कोई शाशक हार जाता, तो उसकी पूरी जनता को इस्लामी प्रकोप झेलना पड़ता । यह लोग लोगो से उसका धर्म छीन, उसपर इस्लाम थोप देते थे । इन जिहादियों की तलवार से पीड़ित लोग केवल मुसलमान बनकर अपना जीवन बचा सकते थे । मुसलमान बनकर यह पीड़ित लोग भी खूंखार ओर जंगली पशु बन जाते ।
प्रथम युद्ध ( नामराक ओर कासकर का युद्ध - 634
अरब प्रायद्वीप को पूरा इस्लाम की धार चखाने कब बाद इन लुटेरे पशुओं के कारवां ने दूसरे देशों की सीमाओं पर पंजा मारना शुरू किया । मुहम्मद के काल मे भी प्रयास तो हुआ था, लेकिन फारसियो की मार ऐसी पड़ी, की दुबारा हिम्मत नही हुई । काश की फारसी लोग उसी समय इन्हें अरब तक रंगेद कर मारते ।
शुरू शुरू में फारस की सीमाओं पर इन्होंने फारसी लोगो को परेशान करना शुरू किया । यूफ्रेट्स नदी के किनारे इन लोगो ने भयंकर कोहराम मचाया । वे लोग इनके आक्रमण से परेशान होकर फारसी राजा "याजदयार्ड " को अपनी रक्षा के लिए पत्र लिखा करते थे। राजा ने एक साधारण सी टोली को उनकी रक्षा के लिए भेजा । हीरा नामक शहर पर मुसलमानो ने पूर्णतः अपना कब्जा कर लिया था ।
फ़ारसी सेनिको ने इस शहर को आजाद करवा लिया । यहां से यह अरबी लोग भागकर नर्मक ( वर्तमान कूफा ) चले गए । फारसी सेना नव इन लुटेरो का पीछा किया । इस क्षेत्र से अरब के लोग परिचित थे, लेकिन फारसी नही । मुस्लिम सेना पैदल ओर ऊंट पर सवार थी, जबकि फारसी सेना घोड़ो पर सवार थी । यह इलाका रेगिस्तान का था । जहां ऊंट काम आ गए, ओर घोड़े फंस गए । अरब सेनिको ने इस युद्ध मे तीरों से ईरानी सेनिको को छलनी कर दिया । सभी फारसी सेनिको को या तो मार डाला गया, या मुसलमान बना दिया गया । ताकि अगले निशाने कास्कर पर हमला करते समय यह लुटेरे सैनिक काम आएं ।
फारस का साम्रज्य बिना चिंता के सो रहा था । उसे लगा ही नही, की अरब के सैनिक कास्कर तक पहुंच सकते है । यह वहसी मुसलमान दरिंदे अपने व्यभिचार ओर धन की भूख मिटाने भारत तक आ सकते थे, तो कास्कर कौनसा दूर था ?
फारसी शाशक ने सोचा ही नही, की इस्लाम नाम की यह छिपकली अब उन्हें निगलने जा रही है :-

जब कास्कर में मुस्लिम सेना अपना डेरा डालकर बैठ गयी, तो फारस के राजा के पास अरबो ने अपना दूत भेजा -
" हमारे सम्राट पूछते है, की क्या आप इस शर्त पर शांति के लिए सहमत होंगे कि " टायगिरिस " तक हमारे बीच सीमा हो । टायगिरिस कि पूर्वी हिस्से की ओर जो भी है हमारा, ओर पश्चिमी हिस्से की ओर जो भी हैज़ तुम्हरा । यह " टायगिरिस " पूरा प्रदेश ही ईरानियों का था ।
अपनी प्रजा पर होते अत्याचार को देख राजा ने यह शर्त मंजूर कर ली । जब इससे सहमति बन गयी, तो कुछ ही दिनों बाद दूसरा दूत भेज दिया ।
अरब मुस्लिम कमांडर इन चीफ " साद-इब्न-बागा " नाम के एक गुंडे ने अपने दूत से राजा को कहलवाया , की हम मुसलमान जमीन के भूखे नही है। यदि फारसी सम्राट को अगर शांति चाहिए, तो इस्लाम कबूल करें, या जजिया का भुगतान करें । दोनो ही विकल्पों को राजा ने अस्वीकार कर दिया । अब तो तलवार से ही यह मुद्दा सुलझ सकता था ।
"अबु-उबेद लिखता है - सऊद पार कर कास्कर पर हमला करने का आदेश 1 मार्च को दिया गया । यह हमला नही बल्कि घुसपैठ थी । फारसी राजा ने तुरंत एक सेना का गठन किया, ओर मुस्लिम लुटेरो का सामना करने की ठानी । मुसलमानो ने सेना का सामना ना कर्ज़ आतंकवादी की तरह पूरे शहर को लूटकर तबाह कर दिया । फारसी सेना ने मुसलमानो को तो पीछे धकेल दिया, लेकिन पूरा कास्कर लगभग मुसलमान बन चुका था ।
अल-जिस्र का युद्ध ( 637 )
इस लड़ाई का नेतृत्व अली कर रहा था, जो मुहम्मद का दामाद भी था । इस हनले में अली नव नेतृत्व में कई महिलाओं का अपहरण हैज़ बच्चो को बलपूर्वक मुसलमान बनाया गया । महिलाओ का बलात्कर होना निश्चित ही था । बूढ़े जवान सभी जिंदा तभी रह सके, जाव उन्होंने इस्लाम को कबूल कर लिया । बाकी जो धर्मप्रिय लोग थे, तड़पा तड़पा कर मार डाले गए ।
राजधानी तक इन अरबी लुटेरो ने चढ़ाई कर दी थी । खुद राजा याजदयार्ड की 3 साल की बेटी को भी मुसलमान उठा कर ले गए । अली ने सारी लूट की संपत्ति और राजकुमारी को खलीफा उमर के सामने पेश किया, इतनी मात्रा में धन संपदा देख उमर अली पर बड़ा खुश हुआ, उसने वह 3 साल की बच्ची अली को सौंप दी, अली ने उसे अपनी उपपत्नी बना लिया ।
राजा को अपनी राजकुमारी बहुत प्रिय थी । उसके कलेजे का टुकड़ा उससे अलग हो गया था । उसने ठानी की किसी भी कीमत पर वह अपनी बेटी को उन दुष्ट पशुओं के चंगुल से वापस लेकर आएगा । लेकिन अरब में घुसकर अरबियों को हराना इतना आसान नही था । पूरी की पूरी सेना अरब में मारी गयी ।
इस दुस्साहस का परिणाम अब फारसियों को भोगना था । गदासियर का युद्ध हुआ, मुसलमानो ने रात्रि में हमला कर फारसी सेना के कमांडर को पकड़ लिया, पूरी सेना के सामने ही उसे निवस्त्र कर दिया गया, सिर पर तलवारों से वार किये, ओर पूरा शरीर तीरों से छलनी कर दिया ।
4 दिन तक यह युद्ध चलता रहा, विशाल अरब सेना ईरान की राजधानी में घुस आए । राजा यार्ड को भी बंदी बना लिया । उन्हें बंदी बनाकर अरब के खलीफा के सामने पेश किया गया । जहां उनके पास इस्लाम कबूलने या मृत्यु चुनने कि शर्त रखी गयी । राजा ने मृत्यु । भरे दरबार मे उनका सिर काट दिया गया ।
जब पारस पर अरब के मुसलमानों का राज हो गया और पारसी जबरदस्ती मुसलमान बनाए जाने लगे, तब फारसी शरणार्थियों का पहला समूह मध्य एशिया के खुरासान (पूर्वी ईरान के अतिरिक्त आज यह प्रदेश कई राष्ट्रों में बंट गया है) में आकर रहे। वहां वे लगभग 100 वर्ष रहे। जब वहां भी इस्लामिक उपद्रव शुरू हुआ तब फारस की खाड़ी के मुहाने पर उरमुज टापू में उसमें से कई भाग आए और वहां 15 वर्ष रहे।
आगे वहां भी आक्रमणकारियों की नजर पड़ गई तो अंत में वे एक छोटे से जहाज में बैठ अपनी पवित्र अग्नि और धर्म पुस्तकों को ले अपनी अवस्था की गाथाओं को गाते हुए खम्भात की खाड़ी में भारत के दीव नामक टापू में आ उतरे, जो उस काल में पुर्तगाल के कब्जे में था। वहां भी उन्हें पुर्तगालियों ने चैन से नहीं रहने दिया, तब वे सन् 716 ई. के लगभग दमन के दक्षिण 25 मील पर राजा यादव राणा के राज्य क्षे‍त्र 'संजान' नामक स्थान पर आ बसे।
इन फारसी शरणार्थियों ने अपनी पहली बसाहट को ‘संजान’ नाम दिया, क्योंकि इसी नाम का एक नगर तुर्कमेनिस्तान में है, जहां से वे आए थे। कुछ वर्षों के अंतराल में दूसरा समूह (खुरसानी या कोहिस्तानी) आया, जो अपने साथ धार्मिक उपकरण (अलात) लाया। स्थल मार्ग से एक तीसरे समूह के आने की भी जानकारी है। इस तरह जिन फारसियों ने इस्लाम नहीं अपनाया या तो वे मारे गए या उन्होंने भारत में शरण ली।
गुजरात के दमण-दीव के पास के क्षे‍त्र के राजा जाड़ी राणा ने उनको शरण दी और उनके अग्नि मंदिर की स्थापना के लिए भूमि और कई प्रकार की सहायता भी दी। सन् 721 ई. में प्रथम फारसी अग्नि मंदिर बना। भारतीय पारसी अपने संवत् का प्रारंभ अपने अंतिम राजा यज्दज़र्द-1 के प्रभावकाल से लेते हैं।
10वीं सदी के अंत तक इन्होंने गुजरात के अन्य भागों में भी बसना प्रारंभ कर दिया। 15वीं सदी में भारत में भी ईरान की तरह इस्लामिक क्रांति के चलते 'संजान' पर मुसलमानों के द्वारा आक्रमण किए जाने के कारण वहां के फारसी जान बचाकर पवित्र अग्नि को साथ लेकर नवसारी चले गए। अंग्रेजों का शासन होने के बाद फारसी धर्म के लोगों को कुछ राहत मिली।
16वीं सदी में सूरत में जब अंग्रेजों ने फैक्टरियां खोली तो बड़ी संख्या में फारसी कारीगर और व्यापारियों ने बढ़-चढ़कर भाग लिया। अंग्रेज भी उनके माध्यम से व्यापार करते थे जिसके लिए उन्हें दलाल नियुक्त कर दिया जाता था। कालांतर में ‘बॉम्बे’ अंग्रेजों के हाथ लग गया और उसके विकास के लिए कारीगरों आदि की आवश्यकता थी। विकास के साथ ही फारसियों ने बंबई की ओर रुख किया।
इस तरह फारसी धर्म के लोग दीव और दमण के बाद गुजरात के सूरत में व्यापार करने लगे और फिर वे बंबई में बस गए।
वर्तमान में भारत में फारसियों की जनसंख्या लगभग 1 लाख है जिसका 70% मुंबई में रहते हैं।
#गर्व_से_कहो....#हम_हिन्दू_हैं !!
साभार :- **कट्टर हिन्दू**
#कैसे_56_देशो_में_इस्लाम_फैला - ईरान 634 -651
632 ईस्वी में मुहम्मद की म्रत्यु हो गयी थी । पूरे अरब प्रायदीप पर मुसलमानो का कब्जा हो गया था । मुहम्मद की भी महत्वकांशा थी, की वो ज़्यादा से ज़्यादा आगे बढ़ता चला जाये । उसकी इन दुष्ट इच्छा को उसके इस्लामी गुंडो ने पूर्ण किया ।
अरब की सीमा से लगता #ईरान था । जिसका #पुराना_नाम #पर्शिया था ।
आज जो ईरानी मुसलमान मुसलमान बनकर ईरान में इस्लामिक शाशन चला रहे है, ईरान में कभी इनके पूर्वजो के साथ क्या हुआ था, यह लोग खुद भी शायद नही जानते, कोई और बताए तो मानने को भी तैयार नही होंगे । ईरान ही वो गैर - अरब राज्य था,जो सर्वप्रथम इस्लामी जिहाद का शिकार हुआ ।
एक छोटा सा माफिया मुसलमानो ने शुरू किया, जो अब पूरे अरब में फैलता जा रहा था , इस नए नवेले धर्म का नाम भी लोगो ने नही सुना होगा, जिसे कबूल करने के लिए लोगो को भयंकर यातना दी जा रही थी । अगर इस गुंडो के गिरोह को शुरू में ही कुचल दिया जाता, तो विश्व के हालात आज यह ना होते । इस्लाम एक सीख ह लोगोै के लिए, की किसी भी अत्याचारी को आगे ना बढ़ने दिया जाए ।उसे सुधरने काएक मौका देकर ही उसे खत्म कर दिया जाए ।
ईरान ही वह प्रथम देश था, जो इन पागल , जंगली, हिंसक पशुओं का रास्ता रोके खड़ा था । फारसी साम्राज्य इन अरबी पशुओं को परास्त करने के लिए अयोग्य ही था ।
इस्लाम के आगमन से पूर्व युद्ध के एक नियम थे , सेनाएं आपस मे लड़ती थी । जनता पर धावा नही बोला जाता था, किसी विपक्षी के युद्ध जितने के बाद भी जनता पर अत्याचार नही होता था । इस इस्लाम के गुंडो ने तो युद्ध के सारे नियम ही बदल दिए । सेना से छुपकर घुसपैठ करते, ओर आम जनता पर हमला करते । उसे मुसलमान बनाते, साथ ही अपनी लुटेरी सेना में शामिल कर लेते ।
इस्लाम कब आक्रमणों में ज़्यादा से ज़्यादा इस बार पर जोर होता था , की किस तरह नागरिकों को सताया जाए । कोई शाशक हार जाता, तो उसकी पूरी जनता को इस्लामी प्रकोप झेलना पड़ता । यह लोग लोगो से उसका धर्म छीन, उसपर इस्लाम थोप देते थे । इन जिहादियों की तलवार से पीड़ित लोग केवल मुसलमान बनकर अपना जीवन बचा सकते थे । मुसलमान बनकर यह पीड़ित लोग भी खूंखार ओर जंगली पशु बन जाते ।
प्रथम युद्ध ( नामराक ओर कासकर का युद्ध - 634
अरब प्रायद्वीप को पूरा इस्लाम की धार चखाने कब बाद इन लुटेरे पशुओं के कारवां ने दूसरे देशों की सीमाओं पर पंजा मारना शुरू किया । मुहम्मद के काल मे भी प्रयास तो हुआ था, लेकिन फारसियो की मार ऐसी पड़ी, की दुबारा हिम्मत नही हुई । काश की फारसी लोग उसी समय इन्हें अरब तक रंगेद कर मारते ।
शुरू शुरू में फारस की सीमाओं पर इन्होंने फारसी लोगो को परेशान करना शुरू किया । यूफ्रेट्स नदी के किनारे इन लोगो ने भयंकर कोहराम मचाया । वे लोग इनके आक्रमण से परेशान होकर फारसी राजा "याजदयार्ड " को अपनी रक्षा के लिए पत्र लिखा करते थे। राजा ने एक साधारण सी टोली को उनकी रक्षा के लिए भेजा । हीरा नामक शहर पर मुसलमानो ने पूर्णतः अपना कब्जा कर लिया था ।
फ़ारसी सेनिको ने इस शहर को आजाद करवा लिया । यहां से यह अरबी लोग भागकर नर्मक ( वर्तमान कूफा ) चले गए । फारसी सेना नव इन लुटेरो का पीछा किया । इस क्षेत्र से अरब के लोग परिचित थे, लेकिन फारसी नही । मुस्लिम सेना पैदल ओर ऊंट पर सवार थी, जबकि फारसी सेना घोड़ो पर सवार थी । यह इलाका रेगिस्तान का था । जहां ऊंट काम आ गए, ओर घोड़े फंस गए । अरब सेनिको ने इस युद्ध मे तीरों से ईरानी सेनिको को छलनी कर दिया । सभी फारसी सेनिको को या तो मार डाला गया, या मुसलमान बना दिया गया । ताकि अगले निशाने कास्कर पर हमला करते समय यह लुटेरे सैनिक काम आएं ।
फारस का साम्रज्य बिना चिंता के सो रहा था । उसे लगा ही नही, की अरब के सैनिक कास्कर तक पहुंच सकते है । यह वहसी मुसलमान दरिंदे अपने व्यभिचार ओर धन की भूख मिटाने भारत तक आ सकते थे, तो कास्कर कौनसा दूर था ?
फारसी शाशक ने सोचा ही नही, की इस्लाम नाम की यह छिपकली अब उन्हें निगलने जा रही है :-
जब कास्कर में मुस्लिम सेना अपना डेरा डालकर बैठ गयी, तो फारस के राजा के पास अरबो ने अपना दूत भेजा -
" हमारे सम्राट पूछते है, की क्या आप इस शर्त पर शांति के लिए सहमत होंगे कि " टायगिरिस " तक हमारे बीच सीमा हो । टायगिरिस कि पूर्वी हिस्से की ओर जो भी है हमारा, ओर पश्चिमी हिस्से की ओर जो भी हैज़ तुम्हरा । यह " टायगिरिस " पूरा प्रदेश ही ईरानियों का था ।
अपनी प्रजा पर होते अत्याचार को देख राजा ने यह शर्त मंजूर कर ली । जब इससे सहमति बन गयी, तो कुछ ही दिनों बाद दूसरा दूत भेज दिया ।
अरब मुस्लिम कमांडर इन चीफ " साद-इब्न-बागा " नाम के एक गुंडे ने अपने दूत से राजा को कहलवाया , की हम मुसलमान जमीन के भूखे नही है। यदि फारसी सम्राट को अगर शांति चाहिए, तो इस्लाम कबूल करें, या जजिया का भुगतान करें । दोनो ही विकल्पों को राजा ने अस्वीकार कर दिया । अब तो तलवार से ही यह मुद्दा सुलझ सकता था ।
"अबु-उबेद लिखता है - सऊद पार कर कास्कर पर हमला करने का आदेश 1 मार्च को दिया गया । यह हमला नही बल्कि घुसपैठ थी । फारसी राजा ने तुरंत एक सेना का गठन किया, ओर मुस्लिम लुटेरो का सामना करने की ठानी । मुसलमानो ने सेना का सामना ना कर्ज़ आतंकवादी की तरह पूरे शहर को लूटकर तबाह कर दिया । फारसी सेना ने मुसलमानो को तो पीछे धकेल दिया, लेकिन पूरा कास्कर लगभग मुसलमान बन चुका था ।
अल-जिस्र का युद्ध ( 637 )
इस लड़ाई का नेतृत्व अली कर रहा था, जो मुहम्मद का दामाद भी था । इस हनले में अली नव नेतृत्व में कई महिलाओं का अपहरण हैज़ बच्चो को बलपूर्वक मुसलमान बनाया गया । महिलाओ का बलात्कर होना निश्चित ही था । बूढ़े जवान सभी जिंदा तभी रह सके, जाव उन्होंने इस्लाम को कबूल कर लिया । बाकी जो धर्मप्रिय लोग थे, तड़पा तड़पा कर मार डाले गए ।
राजधानी तक इन अरबी लुटेरो ने चढ़ाई कर दी थी । खुद राजा याजदयार्ड की 3 साल की बेटी को भी मुसलमान उठा कर ले गए । अली ने सारी लूट की संपत्ति और राजकुमारी को खलीफा उमर के सामने पेश किया, इतनी मात्रा में धन संपदा देख उमर अली पर बड़ा खुश हुआ, उसने वह 3 साल की बच्ची अली को सौंप दी, अली ने उसे अपनी उपपत्नी बना लिया ।
राजा को अपनी राजकुमारी बहुत प्रिय थी । उसके कलेजे का टुकड़ा उससे अलग हो गया था । उसने ठानी की किसी भी कीमत पर वह अपनी बेटी को उन दुष्ट पशुओं के चंगुल से वापस लेकर आएगा । लेकिन अरब में घुसकर अरबियों को हराना इतना आसान नही था । पूरी की पूरी सेना अरब में मारी गयी ।
इस दुस्साहस का परिणाम अब फारसियों को भोगना था । गदासियर का युद्ध हुआ, मुसलमानो ने रात्रि में हमला कर फारसी सेना के कमांडर को पकड़ लिया, पूरी सेना के सामने ही उसे निवस्त्र कर दिया गया, सिर पर तलवारों से वार किये, ओर पूरा शरीर तीरों से छलनी कर दिया ।
4 दिन तक यह युद्ध चलता रहा, विशाल अरब सेना ईरान की राजधानी में घुस आए । राजा यार्ड को भी बंदी बना लिया । उन्हें बंदी बनाकर अरब के खलीफा के सामने पेश किया गया । जहां उनके पास इस्लाम कबूलने या मृत्यु चुनने कि शर्त रखी गयी । राजा ने मृत्यु । भरे दरबार मे उनका सिर काट दिया गया ।
जब पारस पर अरब के मुसलमानों का राज हो गया और पारसी जबरदस्ती मुसलमान बनाए जाने लगे, तब फारसी शरणार्थियों का पहला समूह मध्य एशिया के खुरासान (पूर्वी ईरान के अतिरिक्त आज यह प्रदेश कई राष्ट्रों में बंट गया है) में आकर रहे। वहां वे लगभग 100 वर्ष रहे। जब वहां भी इस्लामिक उपद्रव शुरू हुआ तब फारस की खाड़ी के मुहाने पर उरमुज टापू में उसमें से कई भाग आए और वहां 15 वर्ष रहे।
आगे वहां भी आक्रमणकारियों की नजर पड़ गई तो अंत में वे एक छोटे से जहाज में बैठ अपनी पवित्र अग्नि और धर्म पुस्तकों को ले अपनी अवस्था की गाथाओं को गाते हुए खम्भात की खाड़ी में भारत के दीव नामक टापू में आ उतरे, जो उस काल में पुर्तगाल के कब्जे में था। वहां भी उन्हें पुर्तगालियों ने चैन से नहीं रहने दिया, तब वे सन् 716 ई. के लगभग दमन के दक्षिण 25 मील पर राजा यादव राणा के राज्य क्षे‍त्र 'संजान' नामक स्थान पर आ बसे।
इन फारसी शरणार्थियों ने अपनी पहली बसाहट को ‘संजान’ नाम दिया, क्योंकि इसी नाम का एक नगर तुर्कमेनिस्तान में है, जहां से वे आए थे। कुछ वर्षों के अंतराल में दूसरा समूह (खुरसानी या कोहिस्तानी) आया, जो अपने साथ धार्मिक उपकरण (अलात) लाया। स्थल मार्ग से एक तीसरे समूह के आने की भी जानकारी है। इस तरह जिन फारसियों ने इस्लाम नहीं अपनाया या तो वे मारे गए या उन्होंने भारत में शरण ली।
गुजरात के दमण-दीव के पास के क्षे‍त्र के राजा जाड़ी राणा ने उनको शरण दी और उनके अग्नि मंदिर की स्थापना के लिए भूमि और कई प्रकार की सहायता भी दी। सन् 721 ई. में प्रथम फारसी अग्नि मंदिर बना। भारतीय पारसी अपने संवत् का प्रारंभ अपने अंतिम राजा यज्दज़र्द-1 के प्रभावकाल से लेते हैं।
10वीं सदी के अंत तक इन्होंने गुजरात के अन्य भागों में भी बसना प्रारंभ कर दिया। 15वीं सदी में भारत में भी ईरान की तरह इस्लामिक क्रांति के चलते 'संजान' पर मुसलमानों के द्वारा आक्रमण किए जाने के कारण वहां के फारसी जान बचाकर पवित्र अग्नि को साथ लेकर नवसारी चले गए। अंग्रेजों का शासन होने के बाद फारसी धर्म के लोगों को कुछ राहत मिली।
16वीं सदी में सूरत में जब अंग्रेजों ने फैक्टरियां खोली तो बड़ी संख्या में फारसी कारीगर और व्यापारियों ने बढ़-चढ़कर भाग लिया। अंग्रेज भी उनके माध्यम से व्यापार करते थे जिसके लिए उन्हें दलाल नियुक्त कर दिया जाता था। कालांतर में ‘बॉम्बे’ अंग्रेजों के हाथ लग गया और उसके विकास के लिए कारीगरों आदि की आवश्यकता थी। विकास के साथ ही फारसियों ने बंबई की ओर रुख किया।
इस तरह फारसी धर्म के लोग दीव और दमण के बाद गुजरात के सूरत में व्यापार करने लगे और फिर वे बंबई में बस गए।
वर्तमान में भारत में फारसियों की जनसंख्या लगभग 1 लाख है जिसका 70% मुंबई में रहते हैं।
#गर्व_से_कहो....#हम_हिन्दू_हैं !!
साभार :- **कट्टर हिन्दू**

स्वामी रामतीर्थ

स्वामी रामतीर्थ की ख्याति अमेरिका में दिनोंदिन बढ़ती जा रही थी। लोग उन्हें 'जिन्दा मसीहा' कहते थे और वैसा ही आदर-सम्मान भी देते थे। कई चर्चों, क्लबों, महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों में व्याख्यान देने के लिए उन्हें बुलाया जाता था।


उनके व्याख्यानों में बहुत भीड़ होती थी। बड़े-बड़े प्राध्यापक, दार्शनिक, वैज्ञानिक, वकील, धार्मिक जनता और पादरी इत्यादि सभी प्रकार के लोग उनके विचार सुनने के लिए आया करते थे। कभी-कभी तो इतनी भीड़ हो जाती थी कि हॉल में खड़े होने तक की जगह नहीं रहती थी। इस भीड़ में पुरुष-महिलाएँ सभी सम्मिलित होते थे। कभी-कभी पुरुषों से महिलाएँ अधिक हो जाया करती थीं, जो बहुत ध्यान से स्वामीजी का व्याख्यान सुनती थीं।

व्याख्यान के अंत में स्वामी रामतीर्थ श्रोताओं के प्रश्नों के उत्तर भी देते थे। एक शाम को मनोरिना नाम की एक सुन्दर युवती ने अपने प्रश्नों के लिए स्वामी जी से अलग समय माँगा। स्वामी जी ने दूसरे दिन सुबह मिलने को कहा।

दूसरे दिन वह युवती स्वामी रामतीर्थ से मिलने के लिए उनके निवास स्थान पर आयी। उसने स्वामी जी से कहाः "मैं एक धनी पिता की पुत्री हूँ। मैं संसार भर में आपके नाम से कॉलेज, स्कूल, पुस्तकालय और अस्पताल खोलना चाहती हूँ। सारी दुनिया में आपके नाम से मिशन खुलवा दूँगी और प्रत्येक देश तथा नगर में आपके वेदांत के प्रचार का सफल प्रबंध करवा दूँगी।"

स्वामी रामतीर्थ ने उसके उत्तर में इतना ही कहा कि "दुनिया में जितने भि धार्मिक मिशन है, वे सब राम के ही मिशन हैं। राम अपने नाम की छाप से कोई अलग मिशन चलाना नहीं चाहता क्योंकि राम कोई नयी बात तो कहता नहीं है। राम जो कुछ कहता है, वह शाश्वत सत्य है। राम के पैदा होने से हजारों वर्ष पूर्व वेदों और उपनिषदों ने दुनिया को यही संदेश सुनाया है, जो राम आप लोगों के समक्ष यहाँ अमेरिका में प्रस्तुत कर रहा है। नाम तो केवल एक ईश्वर का ही ऐसा है, जो सदा-सदा रहेगा। व्यक्तिगत नाम तो ओस की बूँद की तरह नाशवान है।"

उस युवती ने जब बार-बार खैराती अस्पताल और कॉलेज इत्यादि खोलने तथा भारतीय विद्यार्थियों की सहायता की बात कही, तब स्वामी रामतीर्थ ने बहुत शांतिपूर्ण ढंग से पूछा कि "आखिर आपकी आंतरिक इच्छा क्या है ? आप चाहती क्या हैं ?" इस सीधे प्रश्न पर उस युवती ने स्वामी रामतीर्थ को घूरकर देखा, कुछ झिझकी व शर्मायी। फिर रहस्यमय चितवनि से देखकर मुस्करायी और बोली कि "मैं कुछ नहीं चाहती। केवल मैं अपना नाम मिसेज राम लिखना चाहती हूँ। मैं आपके नजदीक-से-नजदीक रहकर आपकी सेवा करना चाहती हूँ। बस, केवल इतना ही कि आप मुझे अपना लें।"

स्वामी रामतीर्थ अपने स्वभाव के अनुसार खिलखिलाकर हँस पड़े और बोलेः "राम न तो मास्टर है, न मिस। न मिस्टर है, न मिसेज। जब राम मास्टर ही नहीं तो उसकी मिसेज होने का कोई प्रश्न ही नहीं उठता !"

वह युवती लज्जित होकर व्याकुल हो उठी। उसकी प्यारभरी एक मुस्कराहट से अन्य लोग अपनी सुध खो बैठे थे और यह भारतीय स्वामी उसकी प्रार्थना का यों अनादर कर रहा है ! वह खीझकर बोलीः "जब तुम मास्टर और मिस्टर कुछ नहीं हो तो तुम क्या हो ?"

स्वामी रामतीर्थ फिर मुस्कराये और बोलेः "राम एक मिस्ट्री है, एक रहस्य है।" वह युवती अब बिल्कुल बौखला उठीः "नहीं, नहीं राम ! मैं फिलॉस्फी नहीं चाहती। मैं तुम्हें दिल से प्यार करती हूँ। मुझे आत्महत्या से बचाओ। मैं तुमसे नजदीक का रिश्ता चाहती हूँ।"

स्वामी रामतीर्थ शांतिपूर्वक बोलेः "ठीक है, मुझे मंजूर है।" युवती के चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ गयी। स्वामी रामतीर्थ ने कहा कि "मैं तुमसे नजदीक-से-नजदीक तो हूँ ही। कहने को हम दोनों अलग-अलग दिखायी देते हैं किंतु आत्मा के रिश्ते से हम तुम दोनों एक ही हैं। इससे और ज्यादा नजदीक का रिश्ता क्या हो सकता है !" युवती इस उत्तर से पागल हो उठी। वह कहने लगीः "फिर वही फिलॉस्फी !" उसने परेशानी दिखलाते हुए कहा कि "मैं आत्मा का रिश्ता नहीं चाहती। मैं तुमसे शारीरिक नजदीकी का (हाड़-मांस का) रिश्ता चाहती हूँ। राम ! मुझे निराश मत करो। मैं तुमसे प्यार की भीख माँगती हूँ। बस, और कुछ नहीं।"

स्वामी रामतीर्थ शांत भाव से बैठे थे। वे तनिक भी विचलित नहीं हुए। उन्होंने कहाः "जानती हो हाड़ और मांस का नजदीक-से-नजदीक का रिश्ता माँ और बेटे का ही होता है। माँ के खून और हाड़-मांस से बेटे का खून और हाड़-मांस बनता है। बस, आज से तुम मेरी माँ हुई और मैं तुम्हारा बेटा।"

यह उत्तर सुनकर युवती ने अपना माथा पीट लिया और बोलीः "आपने पूर्णरूप से परास्त कर दिया। राम ! तुम्हारा दिल पत्थर का है। सचमुच मैं पागल हो जाऊँगी ! मैं क्या करूँ स्वामी ! मैं क्या करूँ ?" युवती ने अपनी दोनों हथेलियाँ अपनी दोनों आँखों पर रखीं और फूट-फूटकर रोने लगी। उधर स्वामी रामतीर्थ ने भी अपनी आँखें बंद कर लीं और वे समाधिस्थ हो गये। जब उनकी समाधि खुली तो उन्होंने देखा कि वह युवती कमरे से बाहर जा चुकी थी।

उस घटना के पश्चात वह युवती बराबर स्वामी रामतीर्थ के व्याख्यानों में आती तो रही, किंतु दूर एक कोने में बैठकर रोती रहती थी। एक दिन स्वामी रामतीर्थ ने व्याख्यान के पश्चात उसे अपने पास बुलाकर बहुत समझा-बुझाकर शांत कर दिया। बाद में वह स्वामी रामतीर्थ की भक्त बन गई और उनकी इण्डो-अमेरिकन सोसाइटी की एक प्रमुख संरक्षक भी रही।
स्वामी रामतीर्थ ने मात्र 33 बर्ष की आयु में जलसमाधि लेकर नश्वर देह का त्याग कर दिया था

#गायत्री_मन्त्र

ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं । भर्गो देवस्य धीमहि धियो, यो नः प्रचोदयात् ।।
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आकाश में अरबो तारे.... ये छोटे छोटे टिम टीमाते तारे इन में से ज्यादातर सूरज से कई कई गुना ज्यादा बड़े होते है। काम वो ही इन का भी जो सूरज करता है :- न्यूक्लियर फ्यूज़न, हाईड्रोजन के एटामिक न्यूक्लियस आपस में जुड़कर हीलियम के न्यूक्लियस में तब्दील होते रहते हैं। इस दौरान कुछ मैटर खत्म होकर एनर्जी (उर्जा) देते हैं ।
हम उस उर्जा की कल्पना भी नहीं कर सकते जैसे सूरज को ही ले लो 15 मिलियन डिग्री तापमान होता है एक सेकंड में 4 मिलियन टन तत्व बदल जाते हैं उर्जा में। तो सोचो उन तारो में क्या नहीं होता होगा । अरबो प्रकाश वर्ष दूर ये तारे।
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ऐसे ही अन्तरिक्ष में Quasar क्वासर भी होते हैं ये सूरज तारो जैसे नहीं होते। ये आकाशगंगा (Galaxy) जैसे भी नहीं होते। ये क्या होते है वो विजय सिंह ठकुराय Uday Singh जी ने पोस्ट में मिलेगा (लिंक कमेन्ट बॉक्स में )।
मैं अपनी भाषा में लिखता हूँ पहला क्वासर खोजा गया 1960 में टी० मैथ्यू तथा एंडसैन्सेज नामक खगोलज्ञों के द्वारा। इस का नाम रखा गया 3C 273. अब ज्यादा गहराई मैं नहीं जाते।
तो कुल मिला के क्वासर तारा नहीं है सूरज नहीं है आकाशगंगा नहीं है। इस को एक शक्ति पुंज समझ लो इस में इतनी उर्जा है जितनी 1 ट्रिलियन सूरज जैसे सितारों में होती है ये एक अनुमान है इस से भी ज्यादा हो सकती है इस से कई नई आकाशगंगाएं पैदा होती हैं।
खगोलवैज्ञानिक अभी तक भीषण ऊर्जा की इस पहेली को सुलझा नहीं पायें हैं। वैज्ञानिक यह नही समझ पा रहे हैं कि किस भौतिक प्रक्रिया के द्वारा क्वासर इतनी भीषण ऊर्जा, प्रकाश पैदा करते हैं। आज भी उन के लिए ये पहेली ही है वो इन के वर्ण कर्म को नहीं समझ पा रहे। (मेरे भी समझ नहीं आ रहा)
क्वासर में प्रकाश है उर्जा है ब्लैक होल है तीन शक्तियां हैं।
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अब और आसान भाषा में लिखता हूँ
Quasar क्वासर का जिक्र कूरान और बाइबल में भी है..... होगा ही जब वेदों में होगा तो दुनिया की हर किताब में कॉपी पेस्ट तो होगा ही।
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ऐसे ही अपना गायत्री मन्त्र दुनिया की हर भाषा में है।
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#तीन_शक्तियां
संतान धर्म में ट्रिनिटी त्रिदेव #ब्रह्मा_विष्णु_शिवा #क्रिएटर_मीडिएटर_डिस्ट्रॉयर
इनकी शक्ति माँ #सरस्वती_लक्ष्मी_पार्वती
हिन्दू धर्म में मानव अवतारों को छोड़ कर सभी देवी देवता किसी न किसी तत्व का रूपकात्मक रूप है (COSMIC ALLEGORIES).
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त्रिदेव अधूरे है अपनी शक्ति के बिना :- शिव को विनाशकारी (डिस्ट्रॉयर) माना गया है शिव की शक्ति माँ पार्वती जो काली के रूप अंतिम संहारक है काली माँ और शिव की चित्र आपने देखे होंगे जहाँ शिव काली के चरणों में जिस पर बहुत सी कहानी बनी हैं असल में अंतिम संहारक है काली माँ #black_hole ब्लैक होल।
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ऐसे ही ब्रह्मा जी जो निर्माता हैं क्रिएटर हैं उन की शक्ति माँ सरस्वती जी जो प्रकाश की देवी है प्रकाश का रूपकात्मक रूप माँ सरस्वती। (सरस्वती, सवित्र गायत्री मन्त्र में “तत्सवितुर्वरेन्यं” और विज्ञान में QUASAR)
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ब्रह्मांड के निर्माण में माँ सावित्री की प्रमुख भूमिका है।
भगवान ब्रह्मा के आशीर्वाद के साथ, सावित्री ने चार वेदों को मानव जाति को सौंप दिया – (संस्कृत भाषा के सुंदर रूप श्रुतियों के माध्यम से।)
इन में ही एक श्रुति या मन्त्र या छंद जिस को “गायत्री मन्त्र” कहा जाता है
वैदिक मीटर में गायत्री मंत्र के 24 अक्षर के 3 छंद होते हैं ।
भगवद गीता के अध्याय 10 के 35 श्लोक में भगवान् कृष्ण जी ने भी जिक्र किया है ।
बृहत्साम तथा साम्नां गायत्री छन्दसामहम् ।
मासानां मार्गशीर्षोऽहमृतूनां कुसुमाकर: ॥
गायन करने योग्य श्रुतियों में मैं बृहत्साम और छन्दों में “गायत्री छन्द” हूँ तथा महीनों में मार्गशीर्ष और ऋतुओं में वसन्त मैं हूँ ॥
गायत्री मन्त्र का सूर्य से कुछ लेना देना नहीं| सूर्य इस पृथ्वी का महत्त्वपूर्ण हिस्सा है मगर ब्रह्मांड का एक मामूली सा हिस्सा है माँ सावत्री या क्वसार ऐसे अरबो सूर्य तारो की माता हैं |
7000 हज़ार साल पहले ऋग्वेद 3.62.19
तत सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि |
tat saviturvareṇyaṃ bhargho devasya dhīmahi |
May we attain that excellent glory of #Savitar_the_God:
हम माँ सावित्री के उस महान गौरव को प्राप्त कर सकते हैं
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ऋग्वेद 3.62.20
धियो यो नः परचोदयात |
dhiyo yo naḥ pracodayāt |
So May he stimulate our prayers.
इसलिए वह हमारी प्रार्थनाओं को प्रोत्साहित करने की कृपा करे ।
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ऋग्वेद 3.62.21
देवस्य सवितुर्वयं वाजयन्तः पुरन्ध्या |
devasya saviturvayaṃ vājayantaḥ purandhyā |
With understanding, earnestly, of Savitar the God we crave
हे देव हम समझदारी, ईमानदारी के साथ , माँ सावित्री से जुड़ना चाहते हैं (लालसा या तलाश)
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ऋग्वेद 3.62.23
देवं नरः सवितारं विप्रा यज्ञैः सुव्र्क्तिभिः |
devaṃ naraḥ savitāraṃ viprā yajñaiḥ suvṛktibhiḥ |
Men, singers worship Savitar the God with hymn and holy rites,
देव नर गायक हम सब माँ सावित्री की आराधना करते हैं
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एक मित्र बोले की गायत्री मन्त्र में की शुरुवात ॐ से नहीं होती
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं ।
ये मन्त्र यजुर्वेद में है
ॐ भूर्भुवः
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ॐ – “श्री यंत्र की ज्यामिति”
भू - "पृथ्वी"
भवस- "वायुमंडल"
स्वः - "प्रकाश"
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गायत्री मन्त्र को सावित्री मन्त्र भी बोला जाता है।
गायत्री मतलब :- ब्रह्म का अथर्व गान,
गायतो मुखाद् उदयपदिती गायत्री
परमात्मा से मुख से निकलने वाला प्रथम गीत
वो गायत्री कहलाता है
गायत्री मन्त्र में माँ सावित्री की आराधना होती है माँ सावित्री प्राण है जीवन शक्ति है
Quasar (क्वासर) माँ सावित्री ही है शक्ति पुंज है उर्जा का प्रकाश का और संहारक।
7000 हज़ार साल पहले ये ज्ञान विश्वामित्र ने दिया था विश्वामित्र मतलब विश्व का मित्र। और ये गोरे 1960 में ले कर आ रहे हैं जिस को अभी भाई नहीं सुलझा सके।
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#गायत्री_मन्त्र है #गायत्री_माता       
कोई नहीं।
बाकि वंदना आप किसी भी रूप में कर सकते हो जैसे सिम्पल मैं करता हूँ :-
हे सरस्वती माँ उर्जा की देवी मैं आपकी वंदना करता हूँ आप का स्वागत करता हूँ मेरे जीवन में मुझ पर कृपा बनाये रखना ।
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बाकि अपने ऋषि जो आज कल के खगोलज्ञों के भी गुरु थे उन का लिखा इतना छोटा नहीं हो सकता जिनता ये पंडे शंकराचार्य और संत बताते हैं।
इतना भी मुस्किल नहीं कुछ समझना मगर आपको तो डराया जाता है की गुरु बिन ज्ञान नहीं विवेक नहीं बुधि नहीं धन नहीं तो गुरु के साथ मिल कर बोलो :-
ॐ (परमात्मा) भूः (प्राण स्वरूप) भुवः (दुःख नाशक) स्वः (सुख स्वरूप) तत् (उस) सवितुः (तेजस्वी) वरेण्यं (श्रेष्ठ) भर्गः (पाप नाशक) देवस्य (दिव्य) धीमहि (धारण करें) धियो (बुद्धि) यः (जो) नः (हमारी) प्रचोदयात (प्रेरित करें)।
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उस प्राण स्वरूप, दुखनाशक, सुख स्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देव स्वरूप परमात्मा को हम अन्तरात्मा में धारण करें। वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग पर प्रेरित करें।
"सुख दुःख में उलझे रहो गुरु के साथ"
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आने वाले समय में मम्मी बच्चो को गायत्री मन्त्र सुना के स्कूल भेजेगी और अर्थ बताएगी स्कूल की गायत्री मैडम जो पढाती है वो ही प्रकाश है उस से बुद्धि को सन्मार्ग मिलता है।
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बाकि आपके लिए ईश्वर से कामना करता हूँ की सावत्री माँ हम सब को अच्छे स्वास्थ्य, जीवन शक्ति, दीर्घायु, धन, सफलता, सहयोग, प्यार, बौद्धिक उन्नति और आत्म की दिव्यता का अनुभव कराये ।

संत या साधु बनने की प्रक्रिया

सनातन धर्म में सन्यास लेने अर्थात संत या साधु बनने की प्रक्रिया
^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^ वैदिक हिन्दू सनातन धर्म में सन्यास लेने की एक शास्त्र सम्मत प्रक्रिया है और मर्यादा रेखा भी सुनिश्चित है |
वानप्रस्थ समाप्ति के पश्चात (७५ वर्ष की आयु के बाद ) सन्यास लेना श्रेयकर माना जाता है और इसे पन्द्रहवां संस्कार भी कहते हैं |
यदि किसी व्यक्ति की वानप्रस्थ में प्रवेश से पूर्व ही सांसारिक बन्धनों से विरक्ति हो जाती है तो वह व्यक्ति किसी सन्यासी द्वारा दीक्षा लेकर सन्यास आश्रम में प्रवेश पाने का अधिकारी होता है |

सन्यासी जीवन बेहद कठिन है, जिसमें कठिन तप से गुजरना पड़ता है। सभी इंद्रियों सहित काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार और तृष्णा को समाप्त कर चित्त को इष्ट की आराधना में एकाग्र करना होता है।
सेवा भाव, इष्ट के प्रति समर्पण, मोक्ष की कामना और शून्यता की ओर लगातार अग्रसर होना सन्यासी की दिनचर्या है।
सन्यास आश्रम में प्रवेश लेने के लिए किसी अखाड़े में जाकर अपनी इच्छा व्यक्त करनी होती है |
इसके पश्चात अखाडा व्यक्ति के सांसारिक विरक्ति होने और ब्रह्मचर्य भाव की परीक्षा लेता है |
इस परीक्षा में उतीर्ण होने के पश्चात ही सन्यास की दीक्षा दी जाती है | परीक्षा इतनी कड़ी होती है कि कई बार वर्षों का समय लग जाता है |
एक बार व्यक्ति अखाडा की परीक्षा में उत्तीर्ण हो गया तब उसे पंच गुरु दीक्षा दी जाती है | जिसमे उसे लंगोटी, चोटी, भभूत, रुद्राक्ष एवं भगवा अलग - अलग गुरुओं द्वारा प्रदान किया जाता है |
इसके पश्चात विर्जा हवन दीक्षा दी जाती है जिसमें व्यक्ति जनेऊ पहन, हाथ में दण्ड - कमंडल लेकर नदी के तट पर जाता है। वहां पर उसे परिवार के सदस्यों सहित खुद का पिण्डदान करना होता है।
स्वयं का पिण्डदान करने के बाद ही उस महापुरुष का सन्यास जीवन में प्रवेश होता है और तब वह सन्यासी कहलाता है। इसके पश्चात उस व्यक्ति के लौकिक जगत के सभी बंधन समाप्त माने जाते हैं |
यह सन्यास का पहला चरण है, इसके पश्चात अपनी - अपनी इच्छा, सामर्थ्य, गुरु कृपा एवं भगवत कृपा के अनुरूप सन्यासी विभिन्न कठिन चरणों को पार करते हैं |
जिसने यह प्रक्रिया पूरी की हो वही सन्यासी कहलाने का अधिकारी है |
ऐसे किसी सन्यासी ने आज तक कोई पंथ नहीं चलाया है |
ऐसे सन्यासी न तो वेद निंदा करते हैं न ही किसी को चमत्कार का प्रलोभन देते हैं, न ही सड़कों पर कभी अराजकता फैलाते हैं | इनके पास एक से बढ़कर एक सिद्धियाँ मिल जाएंगीं पर ये लोग उसका उपयोग अपने चेले बढ़ाने और डेरा बनाने में नहीं करते |
अब प्रश्न यह है कि ओशो से लेकर आशाराम ....और राम - रहीम तक किस अखाड़े में दीक्षित हैं | कौन है इनका गुरु ..किसने इन्हें मर्यादा का ज्ञान दिया |
इन्होने विरक्ति और ब्रह्मचर्य की कौन सी परीक्षा पास की है | उत्तर सब जानते हैं ...
तब इन्हें किस अधिकार से सन्यासी , बाबा या साधू महराज कहा जाता है ?
स्पष्ट है कि ऐ लोग सन्यासी के पाँव की धूलि भी नहीं हैं |
फिर दोष तो उनका है जो इन आडम्बर झंडाधारियों को बाबा, साधू और सन्यासी की उपमा देते हैं |
दोष उस मानसिकता का है जो कर्म के सिद्धांत को न मानकर किसी ढोंगी में चमत्कार खोजती फिरती है |
यह समाज में विद्यमान तमाम ढोंगी चालबाजों के लिए सुनहरा अवसर होता है | इन लोगों को चमत्कार चटनी के दोनो से लेकर राधे अम्माँ की गोद तक में मिलने लगता है |
इन्हें सम्भोग में समाधि के दर्शन होने लगते हैं | इनको बंगाली बाबा से पुत्ररत्न मिलने लगता है और इन्हें राम - रहीम की चिलम में ईश्वर के साक्षात दर्शन होते हैं |
ऐसे चमत्कार लोलुप लोग पाला बदलने में भी समय नहीं लगाते ..
मुर्दों की कब्र यानी कि दरगाहों पर माथा रगड़ते भी यही मिलेंगे हैं | टेरेसा के एजेंडे को ऐसे ही लोगों की मानसिकता खाद पानी देती है |
चमत्कार के झांसे में ऐसे ही लोगों के घर की इज्जत नीलाम होती है |
आर्यपुत्र इस चमत्कार लोलुप मानसिकता को त्याग गीता वर्णित कर्म के सिद्धांत का अनुपालन करो, यह संसार चमत्कारों की चमक से नहीं भुजदंडों के कौशल से चलता है !!
आपका अपना ही !

शनिवार, 19 अगस्त 2017

यह है नक्षत्र वाणी


यह है नक्षत्र वाणी



पुष्य नक्षत्र वेद मंत्र :👇
जब किसी व्यक्ति को विशेष कष्ट हो तब निदान हेतु जन्म नक्षत्र के मंत्र का जप करना या कराना चाहिए |मंत्र नीचे दे रहा हूँ :-
वैदिक ज्योतिष में महत्वपूर्ण माने जाने वाले 27 नक्षत्रों के वेद मंत्र निम्नलिखित हैं
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अश्विनी नक्षत्र वेद मंत्र:👇
ॐ अश्विनौ तेजसाचक्षु: प्राणेन सरस्वती वीर्य्यम वाचेन्द्रो बलेनेन्द्राय दधुरिन्द्रियम । ॐ अश्विनी कुमाराभ्यो नम: ।
भरणी नक्षत्र वेद मंत्र:👇
ॐ यमायत्वा मखायत्वा सूर्य्यस्यत्वा तपसे देवस्यत्वा सवितामध्वा नक्तु पृथ्विया स गवं स्पृशस्पाहिअर्चिरसि शोचिरसि तपोसी।
कृतिका नक्षत्र वेद मंत्र:👇
ॐ अयमग्नि सहत्रिणो वाजस्य शांति गवं वनस्पति: मूर्द्धा कबोरीणाम । ॐ अग्नये नम: ।
रोहिणी नक्षत्र वेद मंत्र:👇
ॐ ब्रहमजज्ञानं प्रथमं पुरस्ताद्विसीमत: सूरुचोवेन आव: सबुधन्या उपमा अस्यविष्टा: स्तश्चयोनिम मतश्चविवाह ( सतश्चयोनिमस्तश्चविध: ) ॐ ब्रहमणे नम: ।
मृगशिरा नक्षत्र वेद मंत्र:👇
ॐ सोमधेनु गवं सोमाअवन्तुमाशु गवं सोमोवीर: कर्मणयन्ददाति यदत्यविदध्य गवं सभेयम्पितृ श्रवणयोम । ॐ चन्द्रमसे नम: ।
आर्द्रा नक्षत्र वेद मंत्र👇
ॐ नमस्ते रूद्र मन्यवSउतोत इषवे नम: बाहुभ्यां मुतते नम: । ॐ रुद्राय नम: ।

पुनर्वसु नक्षत्र वेद मंत्र :👇
ॐ अदितिद्योरदितिरन्तरिक्षमदिति र्माता: स पिता स पुत्र: विश्वेदेवा अदिति: पंचजना अदितिजातम अदितिर्रजनित्वम । ॐ आदित्याय नम: ।
ॐ बृहस्पते अतियदर्यौ अर्हाद दुमद्विभाति क्रतमज्जनेषु । यददीदयच्छवस ॠतप्रजात तदस्मासु द्रविण धेहि चित्रम । ॐ बृहस्पतये नम: ।
अश्लेषा नक्षत्र वेद मंत्र :👇
ॐ नमोSस्तु सर्पेभ्योये के च पृथ्विमनु:। ये अन्तरिक्षे यो देवितेभ्य: सर्पेभ्यो नम: । ॐ सर्पेभ्यो नम:।
मघा नक्षत्र वेद मंत्र :👇
ॐ पितृभ्य: स्वधायिभ्य स्वाधानम: पितामहेभ्य: स्वधायिभ्य: स्वधानम: । प्रपितामहेभ्य स्वधायिभ्य स्वधानम: अक्षन्न पितरोSमीमदन्त: पितरोतितृपन्त पितर:शुन्धव्म । ॐ पितरेभ्ये नम: ।
पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र वेद मंत्र👇
ॐ भगप्रणेतर्भगसत्यराधो भगे मां धियमुदवाददन्न: । भगप्रजाननाय गोभिरश्वैर्भगप्रणेतृभिर्नुवन्त: स्याम: । ॐ भगाय नम: ।
उत्तराफालगुनी नक्षत्र वेद मंत्र:👇
ॐ दैव्या वद्धर्व्यू च आगत गवं रथेन सूर्य्यतव्चा । मध्वायज्ञ गवं समञ्जायतं प्रत्नया यं वेनश्चित्रं देवानाम ।
ॐ अर्यमणे नम: ।
हस्त नक्षत्र वेद मंत्र :👇

ॐ विभ्राडवृहन्पिवतु सोम्यं मध्वार्य्युदधज्ञ पत्त व विहुतम वातजूतोयो अभि रक्षतित्मना प्रजा पुपोष: पुरुधाविराजति । ॐ सावित्रे नम: ।
चित्रा नक्षत्र वेद मंत्र:👇
ॐ त्वष्टातुरीयो अद्धुत इन्द्रागी पुष्टिवर्द्धनम । द्विपदापदाया: च्छ्न्द इन्द्रियमुक्षा गौत्र वयोदधु: । त्वष्द्रेनम: । ॐ विश्वकर्मणे नम: ।
स्वाती नक्षत्र वेद मंत्र :👇
ॐ वायरन्नरदि बुध: सुमेध श्वेत सिशिक्तिनो युतामभि श्री तं वायवे सुमनसा वितस्थुर्विश्वेनर: स्वपत्थ्या निचक्रु:। ॐ वायव नम: ।
विशाखा नक्षत्र वेद मंत्र :👇

ॐ इन्द्रान्गी आगत गवं सुतं गार्भिर्नमो वरेण्यम । अस्य पात घियोषिता । ॐ इन्द्रान्गीभ्यां नम: !
अनुराधा नक्षत्र वेद मंत्र:👇
ॐ नमो मित्रस्यवरुणस्य चक्षसे महो देवाय तदृत गवं सपर्यत दूरंदृशे देव जाताय केतवे दिवस्पुत्राय सूर्योयश गवं सत । ॐ मित्राय नम: ।
ज्येष्ठा नक्षत्र वेद मंत्र:👇
ॐ त्राताभिंद्रमबितारमिंद्र गवं हवेसुहव गवं शूरमिंद्रम वहयामि शक्रं पुरुहूतभिंद्र गवं स्वास्ति नो मधवा धात्विन्द्र: । ॐ इन्द्राय नम: ।
मूल नक्षत्र वेद मंत्र:👇
ॐ मातेवपुत्रम पृथिवी पुरीष्यमग्नि गवं स्वयोनावभारुषा तां विश्वेदैवॠतुभि: संविदान: प्रजापति विश्वकर्मा विमुञ्च्त । ॐ निॠतये नम: ।
पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र वेद मंत्र :👇
ॐ अपाघ मम कील्वषम पकृल्यामपोरप: अपामार्गत्वमस्मद यदु: स्वपन्य-सुव: । ॐ अदुभ्यो नम: ।
उत्तराषाढ़ा नक्षत्र वेद मंत्र :👇
ॐ विश्वे अद्य मरुत विश्वSउतो विश्वे भवत्यग्नय: समिद्धा: विश्वेनोदेवा अवसागमन्तु विश्वेमस्तु द्रविणं बाजो अस्मै ।
श्रवण नक्षत्र वेद मंत्र:👇
ॐ विष्णोरराटमसि विष्णो श्नपत्रेस्थो विष्णो स्युरसिविष्णो धुर्वोसि वैष्णवमसि विष्नवेत्वा ।
ॐ विष्णवे नम: ।
धनिष्ठा नक्षत्र वेद मंत्र :👇
ॐ वसो:पवित्रमसि शतधारंवसो: पवित्रमसि सहत्रधारम । देवस्त्वासविता पुनातुवसो: पवित्रेणशतधारेण सुप्वाकामधुक्ष: । ॐ वसुभ्यो नम:।
शतभिषा नक्षत्र वेद मंत्र :👇

ॐ वरुणस्योत्त्मभनमसिवरुणस्यस्कुं मसर्जनी स्थो वरुणस्य ॠतसदन्य सि वरुण स्यॠतमदन ससि वरुणस्यॠतसदनमसि । ॐ वरुणाय नम: ।
पूर्वभाद्रपद नक्षत्र वेद मंत्र:👇
ॐ उतनाहिर्वुधन्य: श्रृणोत्वज एकपापृथिवी समुद्र: विश्वेदेवा ॠता वृधो हुवाना स्तुतामंत्रा कविशस्ता अवन्तु । ॐ अजैकपदे नम:।
उत्तरभाद्रपद नक्षत्र वेद मंत्र:👇
ॐ शिवोनामासिस्वधितिस्तो पिता नमस्तेSस्तुमामाहि गवं सो निर्वत्तयाम्यायुषेSत्राद्याय प्रजननायर रायपोषाय ( सुप्रजास्वाय ) ।
ॐ अहिर्बुधाय नम: ।
रेवती नक्षत्र वेद मंत्र :👇
ॐ पूषन तव व्रते वय नरिषेभ्य कदाचन । स्तोतारस्तेइहस्मसि । ॐ पूषणे नम: ।