रविवार, 28 जनवरी 2018

चंद्र-ग्रहण इन राशियों पर पड़ेगा विशेष प्रभाव

*31 जनवरी बुधवार को पड रहा है चंद्र-ग्रहण इन राशियों पर पड़ेगा विशेष प्रभाव*


चंद्रग्रहण जहाँ खगोलीय दृष्टि से एक महत्वपूर्ण घटना होती है तो ज्योतिषीय दृष्टि से भी यह एक बहुत विशेष समय होता है जो सम्पूर्ण प्रकृति और व्यक्तिगत रूप से भी प्रत्येक जीव को प्रभावित करता है खगोलीय दृष्टि से अपने पथ पर जब पृथ्वी सूर्य और चन्द्रमाँ के बीच आ जाती है तब चंद्र ग्रहण की स्थिति बनती है..... अब ज्योतिषीय दृष्टि से देखें तो चंद्रग्रहण की स्थिति हमेशा पूर्णिमा तिथि को ही बनती है जब सूर्य और चन्द्रमाँ एक दूसरे से 180 डिग्री पर होते हैं और ये ज्योतिषीय गणनाओं में एक बहुत विशेष घटना होती है जिससे सभी व्यक्ति प्रभावित होते हैं, चन्द्रमाँ को प्रकृति का मन माना गया है और ज्योतिष में चन्द्रमाँ ही हमारे मन और भावनात्मक गतिविधियों को नियंत्रित करता है इसलिए चंद्र ग्रहण का विशेष प्रभाव मानसिक समस्याओं को बढ़ाने वाला ही होता है, चंद्र ग्रहण के समय समाज में मानसिक समस्याएं इरिटेशन व्यर्थ के विवाद की स्थिति बढ़ती है और अधिकांश लोगों में घबराहट और डिप्रेशन की समस्या बढ़ने लगती है, प्राकृतिक रूप से भी यह समय उठा पटक कराने वाला ही होता है

आने वाली 31 जनवरी 2018 बुधवार माघी पूर्णिमा के दिन चंद्र ग्रहण पड रहा है, *31 जनवरी को शाम 5 बजकर 18 मिंट पर चंद्र ग्रहण शुरू होगा शाम 7 बजे ग्रहण का मध्यकाल होगा और रात्रि 8 बजकर 41 मिन्ट पर ग्रहण का मोक्ष होगा, तो शाम 5:18 से रात 8:41 के बीच लगभग साडे तीन घंटो का यह ग्रहण होगा*.........यह चंद्र-ग्रहण "कर्क राशि" और अश्लेषा नक्षत्र में होगा इसलिए विशेष रूप से कर्क राशि पर इस ग्रहण का विशेष प्रभाव होगा इसके अलावा यह चंद्र ग्रहण जल तत्व राशि में बन रहा है जिससे 31 जनवरी को यह ग्रहण पड़ने के बाद जल से जुडी प्राकृतिक समस्याएं सामने आएँगी जैसे अति वर्षा जल त्रासदी आंधी तूफ़ान आदि की स्थिति बनेगी और ग्रहण पड़ने पर लगभग दो माह तक उसका प्रभाव प्रकृति पर रहता है इसलिए अगले डेढ़ दो माह प्राकृतिक रूप से भी उठा पटक कराने वाले होंग, इस चंद्रग्रहण के प्रभाव स्वरुप असामाजिक तत्वों द्वारा देश के संवेदनशील क्षेत्रों (कश्मीर आदि) में अराजकता फ़ैलाने और उठा पटक की सम्भावना होगी इसलिए संवेदनशील क्षेत्रों में सावधानी बरतनी होगी।

*इन लोगों पर होगा ग्रहण का विशेष प्रभाव*

यह चंद्र ग्रहण "कर्क राशि" में पड़ रहा है इसलिए इस ग्रहण का सबसे ज्यादा प्रभाव तो कर्क राशि के लोगों पर ही पड़ेगा और कर्क राशि के व्यक्तियों के लिए यह संघर्ष और मानसिक तनाव बढ़ाने वाला समय होगा पर इसके अलावा मेष, सिंह और धनु राशि पर भी इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा इसलिए इन राशि के व्यक्तियों को भी आगे आने वाले समय में जीवन में संघर्ष और व्यर्थ के तनाव का सामना करना होगा, इसके अलावा जिन लोगों का जन्म कर्क लग्न में हुआ है जिन लोगों की कुंडली में चन्द्रमाँ की दशा चल रही है और जिन लोगों की कुंडली में चन्द्रमाँ कमजोर है उन्हें भी इस चंद्र ग्रहण के कारण भारी मानसिक दबाव घुटन और डिप्रेशन की समस्या का सामना होगा इसलिए आगे आने वाले समय विशेषकर अगले एक महीने तक आपको नकारात्मक विचार और डिप्रेशन से बचे का प्रयास करना होगा और घर परिवार में भी छोटी मोटी नोक झोंक को अनदेखा करना होगा वरना विवाद बढ़ेंगे।
 
*बारह राशियों पर चंद्र ग्रहण का प्रभाव*

मेष राशि - पारिवारिक विवाद बढ़ेंगे आर्ग्युमेंट्स से बचें, माता के स्वास्थ के उतार चढाव आएंगे, प्रॉपर्टी से जुड़े मामलों में सावधानी बरतें।

वृष राशि - मध्यम है छोटे भाई बहनो से आर्ग्युमेंट्स न करें।

मिथुन राशि - मध्यम है पर आपकी वाणी में क्रोध बढ़ेगा जिससे समस्याएं हो सकती है अतः अपनी वाणी पर संयम रखें।

कर्क राशि - संघर्षकारी है, मानसिक तनाव बढ़ेगा, स्वास्थ में उतार चढाव आएगा, माता के स्वास्थ लिए भी बाधक है, नकारात्मक विचारों से बचें।

सिंह राशि - धन खर्च बढ़ेगा और आर्थिक की सम्भावना बनेगी अतः आर्थिक लेनदेन में सावधानी रखें।

कन्या राशि - समान्य स्थिति रहेगी, बड़े भाई बहनो से आर्ग्युमेंट्स हो सकते हैं।

तुला राशि - प्रोफेशनल लाईफ को लेकर मानसिक दबाव बढ़ेगा, बॉस और सीनियर्स के साथ आर्ग्युमेंट्स से बचें वरना विवाद बढ़ेंगे।

वृश्चिक - अपने कार्यों की सफलता के लिए अधिक प्रयास करने होंगे बाधा के बाद काम पूरे होंगे।

धनु राशि - संघर्ष बढ़ेगा, स्वास्थ में उतार चढाव आएगा स्वाथ के प्रति सचेत रहें, वाहन चलाने में सावधानी रखें और व्यर्थ के विवादों से दूर रहें।

मकर राशि - वैवाहिक जीवन में आर्ग्युमेंट्स होंगे इसलिए अपने व्यव्हार को संयमित रखें, जीवन साथी के स्वास्थ में उतार चढाव भी संभव है।

कुम्भ राशि - मध्यम है केवल बेकार के विवादों से बचें और आर्ग्युमेंट्स न करें।

मीन राशि - पेट से जुडी समस्याएं सामने आएंगी, संतान की और से कुछ समस्याएं होंगी।
 
*इस चंद्र ग्रहण के दुष्प्रभाव से बचने के लिए ये उपाय करें।*

1. कुछ दिन नियमित रूप से गरीब व्यक्ति को दूध दान करें।

2. ॐ सोम सोमाय नमः का नियमित जाप करें।

3. महामृत्युंजय मंत्र का सामर्थ्यानुसार जाप करें

4. हनुमान चालीसा का नियमित पाठ करें

।। श्री हनुमते नमः।।//

सोमवार, 22 जनवरी 2018

"RAMNAGARIA"..THE FUTURE HERITAGE OF FARRUKHABAD

"RAMNAGARIA"..THE FUTURE HERITAGE OF FARRUKHABAD:preserve it..! कभी ऋषि मुनि,साधू महात्मा गंगा किनारे वसी प्राचीन नगरी कम्पिल में बनी गुफाओं में सिद्धि साधना हेतु कल्पवास के लिये आते थे।यह क्षेत्र अनेकों पौराणिक गाथाओं की कहानी अपने में समेटे हुऐ है।पवित्र गंगा नदी के किनारे ऐसे कल्पवास होते रहे है।हमारे शहर में ऐसा ही एक मेला था "मेला टोका घाट"।शहर से सबसे नजदीक होने के कारण सैकड़ों नगरवासी गंगास्नान हेतु रोजाना यहाँ आया करते थे।हर कार्तिक पूर्णिमा,ज्येष्ठ दशहरा व ग्रहण पर यहाँ "मेला टोका घाट"।पूर्व मे कन्नौज,पश्चिम में कम्पिल व दक्षिण में शीर्ष संखिसा उत्तर मे पवित्र गंगा नदी का त्रिकोण इस क्षेत्र को विशिष्ट बनाता है।इसी विशिष्टता के कारण यह क्षेत्र ऋषि मुनियों की तपस्थली था।
चीनी यात्री ह्वेन त्यांग उत्तरी भारत के महान सम्राट हर्षवर्धन (606-647 ई.)की राजधानी कन्नौच पहुँचा।उसने गंगा नदी के किनारे बसे ब्राह्मण व छत्रियों व अन्य जातियो के साथ गंगा नदी की पवित्रता,सम्बंधित सांस्कृतिक व धार्मिक प्रवर्तियों का विस्तृत वर्णन किया। सम्राट हर्ष के समय इन घाटों का बहुत महत्व था।यह सम्राट हर्ष ही थे जिन्होंने इलाहाबाद संगम स्थल पर महा कुम्भ मेला शुरु कराया।जहाँ रिटायरमेंट के बाद अथवा वृद्धावस्था में शान्ति प्राप्ति के उद्देश्य से दूर दूर से साम्राज्य के लोग कल्पवास हेतु यहाँ आते..कल्पवासी भजन,कीर्तन व संगति में प्रवचन सुन आत्मशुद्धि कर अपने परिवार के अच्छे भविष्य की कामना करते है।
पूर्व मध्यकालीन भारत के समाज और संस्कृति के विषयों में हमें सर्वप्रथम अरब व्यापारियों एवं लेखकों से विवरण प्राप्त होता।वो भारत की यात्रा पर 1017-20 के मध्य आया था । ग़ज़नी के महमूद,जिसने भारत पर कई बार आक्रमण किये,के कई अभियानों में वो सुल्तान के साथ था । अलबरुनी को भारतीय इतिहास का पहला जानकार कहा जाता है।भारत में रहते हुए उसने भारतीय भाषाओं का अध्ययन किया और 1030 में तारीख़-अल-हिन्द (भारत के दिन) नामक क़िताब लिखी।इस पुस्तक में अलबेरुनी ने कन्नौज में गंगा नदी के किनारे बसे लोगों की आदतों,रहन सहन,खानपीन,सांस्कृतिक व धार्मिक विचारों की विस्तृत व्याख्या की..इलाहाबाद में गंगा,जमुना व सरस्वती के संगम का जिक्र भी किया है।
गंगा नदी की धारा टोका घाट से काफी दूर हो चुकी थी।अत:1950 में घटिया घाट पर मेला रामनगरिया प्रारम्भ किया गया।तब से आज तक"मेला रामनगरिया प्रदेश के प्रसिद्ध मेलों में से एक महत्त्वपूर्ण मेला माना जाता है।आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों व शहरों से नागरिक सपरिवार यहाँ एक माह के प्रवास हेतु आते है व गंगा किनारे तम्वू लगा कल्पवास करते है।ऐसा माना जाता है कि कल्पवास करने से वस्तुतः साधक का कायाकल्प हो जाता है। मनसा, वाचा, कर्मणा व पवित्रता के बिना कल्पवास निश्फल हो जाता है। इसीलिए कल्पवास के लिए 21 कठोर नियम बताए गये है। जिनमें झूठ न बोलना, हिंसा क्रोध न करना, दया-दान करना, नशा न करना, सूर्योदय से पूर्व उठना, नित्य प्रात: गंगा स्नान, तीन समय संध्यापूजन, हरिकथा श्रवण व एक समय भोजन व भूमि पर शयन मुख्य है।
एक अनुमान के अनुसार लगभग 20 हजार लोग कल्पवास के लिये यहाँ आते है।कम स कम पाँच लाख लोग विभिन्न गंगा स्नानों में डुबकी लगाने आते है।बच्चों के मनोरंजन के लिये सर्कस,नौटंकी,रास लीलाऐ,मौत का कुआँ,चरखा आदि अनेकों खेल आकर्षण का केंद्र होते है।ग्रामीण बाजार लगाया जाता है जिसमें हर आवश्यक वस्तु मिलती है।रात में सांस्कृतिक कार्यक्रम के लिये स्टेज वनाई जाती है जिसमें विभिन्न सरकारी व गैर सरकारी संस्थागत कार्यक्रम संचालित होते है।अखिल भारतीय कवि सम्मेलन व मुशायरा होता है।Image may contain: 2 people
कुम्भ की तरह यहाँ भी साधू संत अपने अखाड़ो के साथ आते है।पंडाल लगते है जिनमें धार्मिक प्रवचन सुन श्रोता भाव विभोर हो जाते है।गत वर्षों से स्वयं सेवी संस्थाऐ गंगा सफाई अभियान हेतु स्वेछा से श्रमदान करती आ रही है।सरकारी ईलाज की फ्री व्यवस्था के साथ सरकारी राशन की दूकानों पर अनाज आदि बाँटने की समुचित व्यवस्था होती है।सम्पूर्ण सरकारी संरक्षण की स्थिति में "मेला रामनगरिया"भविष्य में फर्रुखाबाद की सांस्कृतिक धरोहर सावित हो सकता है।
कितना अच्छा होता यदि मेला रामनगरिया गंगा किनारे विश्राँतों तक बड़ाया जाये।विश्रातें हमारी धरोहर है।ऐसा करने से विश्रातें पुन:जीवित की जा सकेंगी।

"जम्बूद्वीप में नौ वर्ष हैं

नारायण कहते हैं- "जम्बूद्वीप में नौ वर्ष हैं। उन नावों वर्षों में आदिपुरुष नारायण सम्पूर्ण लोकों पर अनुग्रह करने की दृष्टि से देवी सहित निवास करते हैं। इलावृतवर्ष में भगवान श्रीहरि रुद्र रूप में विराजमान हैं। ब्रह्मा के नेत्र से इनका पदुर्भाव हुआ है। इनकी प्रेयसी प्रिय सदा साथ रहती हैं। उनके क्षेत्र में दूसरा पुरुष नहीं जा सकता और न घूम ही सकता है। यदि कोई पुरुष वहाँ चला भी जाये तो तुरंत भवानी के श्राप से स्त्री रूप प्राप्त कर लेता है। यहाँ भगवान रुद्र नित्य संकर्षण की उपासना करते हैं। इन संकर्षण को भगवान विष्णु की तामस प्रकृति वाली चौथी मूर्ति कहा जाता है। ये रुद्रदेव अजन्मा हैं तथा इनका मन सदैव शांत रहता है।
ऐसे ही भद्राश्ववर्ष में भद्रश्रवा अपने कुल के प्रधान प्रधान सेवकों के साथ भगवान विष्णु के हयग्रीव स्वरूप की आराधना करते हैं।
हरिवर्ष में भगवान विष्णु नृसिंह रूप से रहते हैं। पापों को नष्ट कर देना इनका स्वभाव है। भक्तों पर ये अहेतुक कृपा रखते हैं। इस प्रदेश में दावनश्रेष्ठ प्रहलाद सदा उनकी आराधना और वंदना करते हैं।
केतुमालवर्ष में भगवान श्रीहरि कामदेव रूप से विराजते हैं। वहाँ के अधिकारी पुरुष इन्हें सदा सम्मान देते हैं। इस वर्ष की अधीश्वरी समुद्रतनया लक्ष्मी हैं। ये भगवती लक्ष्मी उत्तम स्त्रोतों से सदा श्रीहरि की उपासना करती हैं।
रम्यकवर्ष में भगवान विष्णु मत्स्य रूप से रहते हैं। उनका यह स्वरूप देवताओं द्वारा वंदित है। यहाँ मनुजी निरंतर उनका स्तवन करते हैं।
हिरण्यमयवर्ष में योगेश्वर भगवान विष्णु कश्यप रूप धारण करके विराजते हैं। अर्यमा के द्वारा इनकी स्तुति व उपासना होती है।
उत्तरकुरुवर्ष में भगवान विष्णु बारह रूप धरकर विराजते हैं। इन भगवान बारह की पृथ्वी देवी निरंतर सेवा करती हैं।
किमपुरुषवर्ष में भगवान दशरथनंदन राम के रूप में विराजमान होते है। वे सदा सीता के साथ वहाँ निवास करते हैं। जहाँ भक्तश्रेष्ठ हनुमान उनकी उपासना करते हैं।
इस भारतवर्ष में मैं आदिपुरुष हूँ और तुम (नारद) मेरी उपासना करते हो।
-देवीभागवत पुराण, अष्टमस्कन्ध


सरस्वती का धरती पर आगमन-




सरस्वती देवी की महिमा-

परमब्रह्म परमात्मा से संबंध रखने वाली वाणी, विद्या, बुद्धि, ज्ञान की जो व्यवस्था करती हैं उन्हें सरस्वती कहा जाता है। सम्पूर्ण ज्ञान विज्ञान इनका ही स्वरूप है। स्वर, संगीत और ताल इनके ही रूप हैं। ये विषय, ज्ञान और वाणीमई हैं। वे परम प्रसिद्ध, वाद विवाद की अधिष्ठात्री एवं शान्तमूर्ति हैं। ये हाथ में वीणा और पुस्तक लिए रहती हैं। इनका विग्रह शुद्ध सत्वमय है। ये सदाचार परायण एवं भगवान श्रीहरि की पत्नी हैं।

सरस्वती देवी आख्यान-

देवी सरस्वती पांचों प्रकृतियों में कृष्ण द्वारा सबसे पहले पूजित हैं। कृष्ण ने सबसे पहले सरस्वती की पूजा की, जिनकी कृपा से मूर्ख व्यक्ति भी पंडित बन जाता है। तब इन कामस्वरूपिणी देवी ने भगवान कृष्ण से विवाह की इच्छा व्यक्त की। सर्वज्ञ भगवान इनका अभिप्राय समझकर सत्य, हितकर एवम सुखदायक वचन बोले- " हे साध्वी! तुम विष्णु के साथ जाओ। वे मेरे ही स्वरूप हैं। उनकी चार भजाएँ हैं। मेरे ही समान उन्हें सभी सद्गुण वर्तमान हैं। वे सदैव तरुण, अनेकों कामदेवों के समान सुंदर और सर्वसमर्थ हैं। भद्रे! तुम बैकुंठ पधारो। तुम्हारे लिए वहीं रहना हितकर होगा। वहाँ विष्णु को पति बनाकर तुम सदा के लिए सुखपूर्वक रहना। विष्णु की पत्नी लक्ष्मी हैं जिनके काम, क्रोध, लोभ, मोह जैसे अवगुण लेशमात्र को भी नहीं हैं। वो तुम्हारा सम्मान करेंगी और विष्णु तुम दोनों से समान प्रेम करेंगे।"

फिर भगवान आगे बोले- "प्रत्येक ब्रह्मांड में माघ शुक्ल पंचमी के दिन विद्यारम्भ के समय तुम्हारी भव्य पूजा होगी। मेरे वर अनुसार कल्प कल्पान्तर तक सदा सर्वदा मनुष्य, मनुगण, योगी, सिद्ध, तपस्वी तुम्हारी सोलह उपचारों से भक्तिपूर्वक पूजा करेंगे। इस प्रकार कहकर स्वयम भगवान कृष्ण ने उनकी पूजा की। उसके बाद तो शिव, ब्रह्मा, धर्म, इंद्र आदि देवताओं के द्वारा सदा ही उनकी पूजा होने लगी।"

सरस्वती का धरती पर आगमन-


लक्ष्मी, सरस्वती और गंगा ये तीन भगवान विष्णु की पत्नी हुई। एक बार सरस्वती को गंगा से ईर्ष्या हो गयी सो उन्होंने गंगा से कड़े शब्द कहे। तब शांतिस्वरूपा और परमदयालु लक्ष्मी जी ने उन्हें टोका जिस कारण सरस्वती को लगा कि लक्ष्मी गंगा का पक्ष ले रही हैं। इसलिए क्रोध से कंपती हुई सरस्वती ने कहा- "लक्ष्मी तुम गंगा का पक्ष ले रही हो। तुम बृक्ष और जल हो जाओ।" लेकिन बदले में सरस्वती को श्राप तो दूर लक्ष्मी क्रोधित भी नहीं हुईं। ये बात गंगा से नहीं देखी गयी और उन्होंने कहा- "सरस्वती तुमने निर्दोष और धीरमती लक्ष्मी को श्राप दिया है। तुम भी जल रूप होकर मतर्यलोक जाने के योग्य हो जहाँ पापी मनुष्य रहते हैं।" सरस्वती ने भी कहा- "तो तुम भी जल रूप हो जाओ और उन सभी पापियों के पापों को अंगीकार करती रहो।"

तभी वहाँ भगवान विष्णु पधारे। देवियों की कलह सुनकर वे आसन पर बैठ गए और देवियों को अपने समीप बिठाकर बोले- "लक्ष्मी! भद्रे! तुम अपनी कला से धर्मध्वज की पुत्री के रूप में भोलोक पर जाओ। वहाँ तुम अयोनिजा जन्म लेना। वहीं तुम कालांतर में वृक्ष रूप हो जाओगी। लोग तुम्हें त्रिलोक पावनी तुलसी के नाम से जानेंगे। अपनी एक कला से तुम जल रूप होकर पद्मावती नदी बन जाओ।"

फिर गंगा से कहा- "तुम अपनी कला के अंश से जल रूप होकर शिव की जटाओं में निवास करोगी। भारत में बहते हुए तुम संसार के कलुशों को धोती रहोगी। वहाँ सागर मेरी कला का अंश है जिसकी तुम भार्या बनोगी। अपने सम्पूर्ण अंश से तुम यहीं बैकुंठ में रहोगी।"

फिर सरस्वती से कहा- "तुम अपनी कला से सरस्वती नामक नदी बनकर बहो जो परमपवित्र और संसार के दुखों से मुक्त करने वाली होगी।"

भारत में पधारने से उनका नाम भारती हुआ, ब्रह्मा पर अनुग्रह करने के कारण वे ब्राह्मी कहलाई और वचनों की अधिठात्री होने से वाणी नाम से विख्यात हुई। भगवान विष्णु का एक नाम सरस्वान है, उनकी पत्नी होने के कारण ही उनका नाम सरस्वती हुआ। नदी रूप पधारकर वे देवी परम पवित्र तीर्थ बन गयीं।

- देवी भागवत पूराण, नवम स्कंध

शनिवार, 6 जनवरी 2018

ज्योतिषीय उपाय और उनका आधार



ज्योतिषीय उपाय और उनका आधार

मित्रों हर रोज जब भी कोई पोस्ट करता हूँ तो कुछ ऐसे मित्र होते है की वो कहते है की मेरा अमुक ग्रह इस भाव में है इसके क्या उपाय करूं | लेकिन किसी एक ग्रह के आधार पर कभी भी उपाय लाभदायक सिद्ध नही होते | उपाय करते समय हमे लग्न कुंडली में ग्रहों की सिथ्ती के साथ वर्षफल और दशा कर्म का ध्यान रखना पड़ता है | इसिलिय आज उपाय के उपर ये मेरी एक पुरानी पोस्ट में कुछ नया जोड़ते हुवे दोबारा कर रहा हूँ ताकि आप समझ सके की उपाय ऐसे ही नही होते उनके पीछे छुपे हुवे रहस्य को जानकार किये जाने पर ही लाभ मिल पाता है | 

लाल किताब के कुछ उपाय जितने लाभदायक होते है उतने ही वो नुकसानदायक भी सिद्ध हो सकते है यदि उनको सही न किया जाए तो और इसमें वर्षफल में ग्रहों की सिथ्ति काफी अहम भूमिका निभाती है | कोई भी उपाय करने से पहले आपको ये पता होना चाहिए की आप ये उपाय किसलिय कर रहे है और इसके क्या लाभ और नुक्सान हो सकते है |
आप जब भी कोई उपाय करते है तो उस उपाय के पीछे कोई न कोई लोजिक अवस्य अवस्य होता है हालाँकि बहुत से लोग से ही कंही से भी पढकर उपाय करना सुरु कर देते है और फिर बोलते है की मै इतने उपाय कर चूका हूँ मुझे कोई फायदा नही हुआ |  
 
उपाय के रूप में जो मुख्य रूप से किये जाते है उनमे किसी भी ग्रह से सम्बन्धित वस्तु को जल में बहाना , या उसे जमीन में दबाना या उसका दान करना , सम्बन्धित ग्रह के मन्त्र जप करना , सम्बन्धित ग्रह के रत्न धारण करना , उस ग्रह से सम्बन्धित जानवर को उस ग्रह से सम्बन्धित वस्तु खिलाना , उस से सम्बन्धित रिश्तेदार जानवर, पेड़ पोधों की सेवा करना और उस से सम्बन्धित वस्तु को घर में कायम करना |
यदि आप कोई भी उपाय करते है तो उसके पीछे छिपे हुवे रहस्य को आपको अवस्य समझना चाहिए इसिलिय आज उन रहस्यों को खोल रहा हूँ |
जब भी आप किसी ग्रह की वस्तु को जल प्रवाह करते है या जमीन में दबाते है तो उस साल के लिय आप उस ग्रह के प्रभाव को खत्म कर रहे होते है ऐसे में आपको ये विशेष ध्यान रखना होता है की ऐसे उपाय से उस ग्रह के कारक रिश्तेदार को नुक्सान होने की पूरी सम्भवना बन जाती है जैसे की एक उपाय है की मंगल अस्ठ्म में हो तो शहद का बर्तन जमीन में दबाना होता है ऐसे में जैसे की मंगल भाई का कारक ग्रह होता है और तीसरा भाव भाई को दर्शाता है ऐसे में यदि तीसरा भाव पाप प्रभाव में हो तो ऐसे उपाय से ये सम्भव है की आपके भाई को उस साल कोई मुसीबत का सामना करना पड़ जाए | इसी तरह से शनी जो की मजदूर वर्ग का प्रतिनिधित्व करता है और आप के निचे मजदूर कार्य करते है और वर्षफल में और लग्न कुंडली में शनी अच्छे भाव में आया हुआ है और आप शनी से सम्बन्धित वस्तु जल प्रवाह कर देते है तो आपको अपने व्यवसाय में नुक्सान होना सम्भव हो जाता है | साथ ही इस बात का ध्यान रखे की यदि चन्द्र के दुश्मन ग्रह की वस्तु आप जल प्रवाह कर रहे है तो आप अपने चन्द्र को कमजोर कर रहे है ऐसे में आपको कुंडली में चन्द्र की सिथ्ती का विशेष ध्यान रखना आवश्यक हो जाता है |
किसी भी ग्रह के मन्त्र जप आप उस सिथ्ती में करे जब कुंडली में वो ग्रह कारक होकर कमजोर हो रहा हो तो उस ग्रह के मन्त्र जप करने से उसका रत्न धारण कर उसे मजबूत करके उसके शुभ फलों में बढ़ोतरी की जा सकती है \ लेकिन यदि आप किसी बिज मन्त्र का जप करते है और उस मन्त्र का पहला अक्सर आपकी कुंडली में त्रिक भाव में पड़ने वाली राशि में आता है तो फिर आपको लाभ की जगह नुक्सान होने की पूरी सम्भावना रहती है |
यदि कोई ग्रह कुंडली में अशुभफल देने वाला सिद्ध हो रहा है तो आप उसके दान कर सकते है | लेकिन यदि आप किसी अच्छे फल देने वाले ग्रह का दान करते है तो उसमे आपको हानि होने की पूरी सम्भवना रहती है |
एक उपाय है की ग्रह से सम्बन्धित वस्तु उसी के जानवर को खिलाना जैसे की हम किसी ग्रह को नस्ट नही सकते तो ऐसे में उस ग्रह को काबू करने के लिय हम उसी ग्रह की वस्तु को उसी से सम्बन्धित जानवर को खिला देते है जैसे की यदि शुक्र अशुभ फल देने वाला सिद्ध हो रहा है तो हम शुक्र की गाय को शुक्र की ज्वार को खिला देते है और शुक्र खुद उसे खाकर नस्ट करके गोबर में तब्दील कर देता है और हमे शुक्र से सम्बन्धित अशुभ फलों में कमी हो जाती है | ऐसे ही यदि सूर्य अशुभ फल दे रहा है तो तो हम भूरी चीटियों को गुड डालकर उसके अशुभ प्रभाव में कमी करते है |

इसी तरह किसी ग्रह से सम्बन्धित वस्तु को घर में कायम किया जा सकता है जैसे की दुसरे भाव में चन्द्र उंच होता है कालपुरुष की कुंडली में ऐसे में इस भाव के चन्द्र के शुभ फलों में बढ़ोतरी के लिय चन्द्र माता से चावल चन्द्र लेकर अपने कमरे में कायम करे तो ऐसे में ये चावल जैसे जैसे पुराने होते जाते है चन्द्र के शुभ फल में बडोतरी होती जाती है |

एक ख़ास बात की लाल किताब में हर भाव के हिसाब से ग्रह के उपाय बदलते है और यदि किसी अन्य ग्रह के साथ युति हो तो उसका उपाय अलग होता है इसिलिय इस बात का विशेष ध्यान आपको रखना होता है |



यदि किसी ग्रह से सम्बन्धित रिश्तेदार या जानवर की हम सेवा करते है तो उसका १००% हमे फल मिलता है जैसे चन्द्र के लिय माँ बुद्ध के लिय बहन बुआ बेटी आदि और यदि उस से सम्बन्धित पेड़ आदि की सेवा करते है तो पचास प्रतिसत फल मिल जाता है जैसे शनी के लिए किक्र गुरु के लिय पीपल आदि | यदि किसी पथर रत्न को धारण करते है तो 25% तक उस ग्रह के हमे फले मिलते है हालाँकि रत्न के बारे में अलग अलग विद्वानों के अलग अलग मत है लेकिन मेरी नजर में जितने भी श्रेष्ठ ज्योत्षी है उनका ये ही मत है की रत्न का ज्यादा प्रभाव न होकर यदि आप उस ग्रह के मन्त्र जप करते है उस से सम्बन्धित रिश्तेदारों ककी सेवा करते है तो उसका पूर्ण प्रभाव आपको मिलता है| रत्न को यदि प्राण प्र्तिस्ठित करवा करे धारण करते है तो फिर इसमें कोई स हक नही की उसका प्रभाव बहुत ज्यादा बढ़ जाता है |
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जय श्री राम///