सोमवार, 22 जनवरी 2018

"RAMNAGARIA"..THE FUTURE HERITAGE OF FARRUKHABAD

"RAMNAGARIA"..THE FUTURE HERITAGE OF FARRUKHABAD:preserve it..! कभी ऋषि मुनि,साधू महात्मा गंगा किनारे वसी प्राचीन नगरी कम्पिल में बनी गुफाओं में सिद्धि साधना हेतु कल्पवास के लिये आते थे।यह क्षेत्र अनेकों पौराणिक गाथाओं की कहानी अपने में समेटे हुऐ है।पवित्र गंगा नदी के किनारे ऐसे कल्पवास होते रहे है।हमारे शहर में ऐसा ही एक मेला था "मेला टोका घाट"।शहर से सबसे नजदीक होने के कारण सैकड़ों नगरवासी गंगास्नान हेतु रोजाना यहाँ आया करते थे।हर कार्तिक पूर्णिमा,ज्येष्ठ दशहरा व ग्रहण पर यहाँ "मेला टोका घाट"।पूर्व मे कन्नौज,पश्चिम में कम्पिल व दक्षिण में शीर्ष संखिसा उत्तर मे पवित्र गंगा नदी का त्रिकोण इस क्षेत्र को विशिष्ट बनाता है।इसी विशिष्टता के कारण यह क्षेत्र ऋषि मुनियों की तपस्थली था।
चीनी यात्री ह्वेन त्यांग उत्तरी भारत के महान सम्राट हर्षवर्धन (606-647 ई.)की राजधानी कन्नौच पहुँचा।उसने गंगा नदी के किनारे बसे ब्राह्मण व छत्रियों व अन्य जातियो के साथ गंगा नदी की पवित्रता,सम्बंधित सांस्कृतिक व धार्मिक प्रवर्तियों का विस्तृत वर्णन किया। सम्राट हर्ष के समय इन घाटों का बहुत महत्व था।यह सम्राट हर्ष ही थे जिन्होंने इलाहाबाद संगम स्थल पर महा कुम्भ मेला शुरु कराया।जहाँ रिटायरमेंट के बाद अथवा वृद्धावस्था में शान्ति प्राप्ति के उद्देश्य से दूर दूर से साम्राज्य के लोग कल्पवास हेतु यहाँ आते..कल्पवासी भजन,कीर्तन व संगति में प्रवचन सुन आत्मशुद्धि कर अपने परिवार के अच्छे भविष्य की कामना करते है।
पूर्व मध्यकालीन भारत के समाज और संस्कृति के विषयों में हमें सर्वप्रथम अरब व्यापारियों एवं लेखकों से विवरण प्राप्त होता।वो भारत की यात्रा पर 1017-20 के मध्य आया था । ग़ज़नी के महमूद,जिसने भारत पर कई बार आक्रमण किये,के कई अभियानों में वो सुल्तान के साथ था । अलबरुनी को भारतीय इतिहास का पहला जानकार कहा जाता है।भारत में रहते हुए उसने भारतीय भाषाओं का अध्ययन किया और 1030 में तारीख़-अल-हिन्द (भारत के दिन) नामक क़िताब लिखी।इस पुस्तक में अलबेरुनी ने कन्नौज में गंगा नदी के किनारे बसे लोगों की आदतों,रहन सहन,खानपीन,सांस्कृतिक व धार्मिक विचारों की विस्तृत व्याख्या की..इलाहाबाद में गंगा,जमुना व सरस्वती के संगम का जिक्र भी किया है।
गंगा नदी की धारा टोका घाट से काफी दूर हो चुकी थी।अत:1950 में घटिया घाट पर मेला रामनगरिया प्रारम्भ किया गया।तब से आज तक"मेला रामनगरिया प्रदेश के प्रसिद्ध मेलों में से एक महत्त्वपूर्ण मेला माना जाता है।आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों व शहरों से नागरिक सपरिवार यहाँ एक माह के प्रवास हेतु आते है व गंगा किनारे तम्वू लगा कल्पवास करते है।ऐसा माना जाता है कि कल्पवास करने से वस्तुतः साधक का कायाकल्प हो जाता है। मनसा, वाचा, कर्मणा व पवित्रता के बिना कल्पवास निश्फल हो जाता है। इसीलिए कल्पवास के लिए 21 कठोर नियम बताए गये है। जिनमें झूठ न बोलना, हिंसा क्रोध न करना, दया-दान करना, नशा न करना, सूर्योदय से पूर्व उठना, नित्य प्रात: गंगा स्नान, तीन समय संध्यापूजन, हरिकथा श्रवण व एक समय भोजन व भूमि पर शयन मुख्य है।
एक अनुमान के अनुसार लगभग 20 हजार लोग कल्पवास के लिये यहाँ आते है।कम स कम पाँच लाख लोग विभिन्न गंगा स्नानों में डुबकी लगाने आते है।बच्चों के मनोरंजन के लिये सर्कस,नौटंकी,रास लीलाऐ,मौत का कुआँ,चरखा आदि अनेकों खेल आकर्षण का केंद्र होते है।ग्रामीण बाजार लगाया जाता है जिसमें हर आवश्यक वस्तु मिलती है।रात में सांस्कृतिक कार्यक्रम के लिये स्टेज वनाई जाती है जिसमें विभिन्न सरकारी व गैर सरकारी संस्थागत कार्यक्रम संचालित होते है।अखिल भारतीय कवि सम्मेलन व मुशायरा होता है।Image may contain: 2 people
कुम्भ की तरह यहाँ भी साधू संत अपने अखाड़ो के साथ आते है।पंडाल लगते है जिनमें धार्मिक प्रवचन सुन श्रोता भाव विभोर हो जाते है।गत वर्षों से स्वयं सेवी संस्थाऐ गंगा सफाई अभियान हेतु स्वेछा से श्रमदान करती आ रही है।सरकारी ईलाज की फ्री व्यवस्था के साथ सरकारी राशन की दूकानों पर अनाज आदि बाँटने की समुचित व्यवस्था होती है।सम्पूर्ण सरकारी संरक्षण की स्थिति में "मेला रामनगरिया"भविष्य में फर्रुखाबाद की सांस्कृतिक धरोहर सावित हो सकता है।
कितना अच्छा होता यदि मेला रामनगरिया गंगा किनारे विश्राँतों तक बड़ाया जाये।विश्रातें हमारी धरोहर है।ऐसा करने से विश्रातें पुन:जीवित की जा सकेंगी।

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