बुधवार, 26 सितंबर 2018

*ब्राह्मणों ने समाज को तोड़ा नही अपितु जोडा.

सकारात्मक सोच


 मै ब्राम्हणों का बहुत सम्मान करता हूँ इसलिए इस पोस्ट को शेयर करने से अपने आप को रोक नहीं पाया।
*ब्राह्मणों ने समाज को तोड़ा नही अपितु जोडा है।*
🤷‍♂🤝ब्राम्हणों ने विवाह के समय समाज के सबसे निचले पायदान पर खड़े *दलित* को जोड़ते हुये अनिवार्य किया कि *दलित* स्त्री द्वारा बनाये गये चुल्हे पर ही सभी शुभाशुभ कार्य होगें। इस तरह सबसे पहले *दलित* को जोडा गया ।
🤷‍♂🤝 *धोबी* के द्वारा दिये गये जल से ही कन्या सुहागन रहेगी इस तरह धोबी को जोड़ा।
🤷‍♂🤝 *कुम्हार* द्वारा दिये गये मिट्टी के कलश पर ही देवताओ के पुजन होगें यह कहते हुये कुम्हार को जोडा।
🤷‍♂🤝 *मुसहर जाति* जो वृक्ष के पत्तों से पत्तल/दोनिया बनाते है यह कहते हुये जोड़ा कि इन्हीं के बनाए गये पत्तल/दोनीयों से देवताओं का पूजन सम्पन्न होंगे।

🤷‍♂🤝 *कहार* जो जल भरते थे यह कहते हुए जोड़ा कि इन्हीं के द्वारा दिये गये जल से देवताओं के पुजन होगें।
🤷‍♂🤝 *बिश्वकर्मा* जो लकड़ी के कार्य करते थे यह कहते हुये जोड़ा कि इनके द्वारा बनाये गये आसन/चौकी पर ही बैठकर वर-वधू देवताओं का पुजन करेंगे।
🤷‍♂🤝 फिर वह *हिन्दु* जो किन्हीं कारणों से *मुसलमान* बन गये थे उन्हें जोड़ते हुये कहा गया कि इनके द्वारा सिले हुये वस्त्रों (जामे-जोड़े) को ही पहनकर विवाह सम्पन्न होगें।
🤷‍♂🤝फिर उस *हिन्दु से मुस्लिम बनीं औरतों* को यह कहते हुये जोड़ा गया कि इनके द्वारा पहनाई गयी चूडियां ही बधू को सौभाग्यवती बनायेगी।
🤷‍♂🤝 *धारीकार* जो डाल और मौरी को दुल्हे के सर पर रख कर द्वारचार कराया जाता है,को यह कहते हुये जोड़ा गया कि इनके द्वारा बनाये गये उपहारों के बिना देवताओं का आशीर्वाद नहीं मिल सकता।
🤷‍♂🤝 *डोम* जो गंदगी साफ और मैला ढोने का काम किया करते थे उन्हें यह कहकर जोड़ा गया कि *मरणोंपरांत* इनके द्वारा ही प्रथम मुखाग्नि दिया जायेगा....
👉इस तरह समाज के सभी वर्ग जब आते थे तो घर कि महिलायें मंगल गीत का गायन करते हुये उनका स्वागत करती है।

और पुरस्कार सहित दक्षिणा देकर विदा करती थी...,
*ब्राह्मणों का दोष कहाँ है*?...हाँ *ब्राह्मणों* का दोष है कि इन्होंने अपने ऊपर लगाये गये निराधार आरोपों का कभी *खंडन* नहीं किया, जो *ब्राह्मणों* के अपमान का कारण बन गया। इस तरह जब समाज के हर वर्ग की उपस्थिति हो जाने के बाद ब्राह्मण *नाई* से पुछता था कि क्या सभी वर्गो कि उपस्थिति हो गयी है...?
🤙 *नाई* के हाँ कहने के बाद ही *ब्राह्मण* मंगल-पाठ प्रारम्भ किया करते हैं।
*ब्राह्मणों* द्वारा जोड़ने कि क्रिया को छोड़वाया कुछ *ब्राह्मण विरोधी* लोगों ने और दोष ब्राह्मणों पर लगा दिया।
🙏 *ब्राह्मणों* को यदि अपना खोया हुआ वह सम्मान प्राप्त करना है तो इन बेकार वक्ताओं के वक्तव्यों का कड़ा विरोध कर रोक लगानी होगी।......
देश में फैले हुये समाज विरोधी *साधुओं* और *ब्राह्मण विरोधी* ताकतों का विरोध करना होगा जो अपनी अज्ञानता को छिपाने के लिये *वेद और ब्राह्मण* कि निन्दा करतेे हुये पूर्ण भौतिकता का आनन्द ले रहे हैं।......
💪याद रखो *ब्राह्मण* वो पण्डे नहीं जो मंदिर को दुकान बनाते हैं, ये ज्ञान के भण्डार हैं जिनसे इस श्रृष्टि की रचना हुई।.....

इस पोस्ट का मेरे *ब्राह्मण* होने से नही मनुवादी बिचारधारा क्या है बताना है।

शुक्रवार, 14 सितंबर 2018

॥ एकाक्षरगणपतिकवचम् ॥*


॥ एकाक्षरगणपतिकवचम् ॥*
🌹 *श्रीगणेशाय नमः* 🌹
नमस्तस्मै गणेशाय सर्वविघ्नविनाशिने ।
कार्यारम्भेषु सर्वेषु पूजितो यः सुरैरपि ॥ १॥ *पार्वत्युवाच*
भगवन् देवदेवेश लोकानुग्रहकारकः ।
इदानी श्रोतृमिच्छामि कवचं यत्प्रकाशितम् ॥ २॥
एकाक्षरस्य मन्त्रस्य त्वया प्रीतेन चेतसा ।
वदैतद्विधिवद्देव यदि ते वल्लभास्म्यहम् ॥ ३॥
*ईश्वर उवाच*
श्रृणु देवि प्रवक्ष्यामि नाख्येयमपि ते ध्रुवम् ।
एकाक्षरस्य मन्त्रस्य कवचं सर्वकामदम् ॥ ४॥
यस्य स्मरणमात्रेण न विघ्नाः प्रभवन्ति हि ।
त्रिकालमेककालं वा ये पठन्ति सदा नराः ॥ ५॥
तेषां क्वापि भयं नास्ति सङ्ग्रामे सङ्कटे गिरौ ।
भूतवेतालरक्षोभिर्ग्रहैश्चापि न बाध्यते ॥ ६॥
इदं कवचमज्ञात्वा यो जपेद् गणनायकम् ।
न च सिद्धिमाप्नोति मूढो वर्षशतैरपि ॥ ७॥
अघोरो मे यथा मन्त्रो मन्त्राणामुत्तमोत्तमः ।
तथेदं कवचं देवि दुर्लभं भुवि मानवैः ॥ ८॥
गोपनीयं प्रयत्नेन नाज्येयं यस्य कस्यचित् ।
तव प्रीत्या महेशानि कवचं कथ्यतेऽद्भुतम् ॥ ९॥
एकाक्षरस्य मन्त्रस्य गणकश्चर्षिरीरितः ।
त्रिष्टुप् छन्दस्तु विघ्नेशो देवता परिकीर्तिता ॥ १०॥
गँ बीजं शक्तिरोङ्कारः सर्वकामार्थसिद्धये ।
सर्वविघ्नविनाशाय विनियोगस्तु कीर्तितः ॥ ११॥
*ध्यानम्*
रक्ताम्भोजस्वरूपं लसदरुणसरोजाधिरूढं त्रिनेत्रं
पाशं चैवाङ्कुशं वा वरदमभयदं बाहुभिर्धारयन्तम् ।
शक्त्या युक्तं गजास्यं पृथुतरजठरं नागयज्ञोपवीतं
देवं चन्द्रार्धचूडं सकलभयहरं विघ्नराजं नमामि ॥ १२॥
*कवचम्*
गणेशो मे शिरः पातु भालं पातु गजाननः ।
नेत्रे गणपतिः पातु गजकर्णः श्रुती मम ॥ १३॥
कपोलौ गणनाथस्तु घ्राणं गन्धर्वपूजितः ।
मुखं मे सुमुखः पातु चिबुकं गिरिजासुतः ॥ १४॥
जिह्वां पातु गणक्रीडो दन्तान् रक्षतु दुर्मुखः ।
वाचं विनायकः पातु कष्टं पातु महोत्कटः ॥ १५॥
स्कन्धौ पातु गजस्कन्धो बाहू मे विघ्ननाशनः ।
हस्तौ रक्षतु हेरम्बो वक्षः पातु महाबलः ॥ १६॥
हृदयं मे गणपतिरुदरं मे महोदरः ।
नाभि गम्भीरहृदयः पृष्ठं पातु सुरप्रियः ॥ १७॥
कटिं मे विकटः पातु गुह्यं मे गुहपूजितः ।
ऊरु मे पातु कौमारं जानुनी च गणाधिपः ॥ १८॥
जङ्घे गजप्रदः पातु गुल्फौ मे धूर्जटिप्रियः ।
चरणौ दुर्जयः पातुर्साङ्गं गणनायकः ॥ १९॥
आमोदो मेऽग्रतः पातु प्रमोदः पातु पृष्ठतः ।
दक्षिणे पातु सिद्धिशो वामे विघ्नधरार्चितः ॥ २०॥
प्राच्यां रक्षतु मां नित्यं चिन्तामणिविनायकः ।
आग्नेयां वक्रतुण्डो मे दक्षिणस्यामुमासुतः ॥ २१॥
नैऋत्यां सर्वविघ्नेशः पातु नित्यं गणेश्वरः ।
प्रतीच्यां सिद्धिदः पातु वायव्यां गजकर्णकः ॥ २२॥
कौबेर्यां सर्वसिद्धिशः ईशान्यामीशनन्दनः ।
ऊर्ध्वं विनायकः पातु अधो मूषकवाहनः ॥ २३॥
दिवा गोक्षीरधवलः पातु नित्यं गजाननः ।
रात्रौ पातु गणक्रीडः सन्ध्योः सुरवन्दितः ॥ २४॥
पाशाङ्कुशाभयकरः सर्वतः पातु मां सदा ।
ग्रहभूतपिशाचेभ्यः पातु नित्यं गजाननः ॥ २५॥
सत्वं रजस्तमो वाचं बुद्धिं ज्ञानं स्मृतिं दयाम् ।
धर्मचतुर्विधं लक्ष्मीं लज्जां कीर्तिं कुलं वपुः ॥ २६॥
धनं धान्यं गृहं दारान् पौत्रान् सखींस्तथा ।
एकदन्तोऽवतु श्रीमान् सर्वतः शङ्करात्मजः ॥ २७॥
सिद्धिदं कीर्तिदं देवि प्रपठेन्नियतः शुचिः ।
एककालं द्विकालं वापि भक्तिमान् ॥ २८॥
न तस्य दुर्लभं किञ्चित् त्रिषु लोकेषु विद्यते ।
सर्वपापविनिर्मुक्तो जायते भुवि मानवः ॥ २९॥
यं यं कामयते नित्यं सुदुर्लभमनोरथम् ।
तं तं प्राप्नोति सकलं षण्मासान्नात्र संशयः ॥ ३०॥
मोहनस्तम्भनाकर्षमारणोच्चाटनं वशम् ।
स्मरणादेव जायन्ते नात्र कार्या विचारणा ॥ ३१॥
सर्वविघ्नहरं देवं ग्रहपीडानिवारणम् ।
सर्वशत्रुक्षयकरं सर्वापत्तिनिवारणम् ॥ ३२॥
धृत्वेदं कवचं देवि यो जपेन्मन्त्रमुत्तमम् ।
न वाच्यते स विघ्नौघैः कदाचिदपि कुत्रचित् ॥ ३३॥
भूर्जे लिखित्वा विधिवद्धारयेद्यो नरः शुचिः ।
एकबाहो शिरः कण्ठे पूजयित्वा गणाधिपम् ॥ ३४॥
एकाक्षरस्य मन्त्रस्य कवचं देवि दुर्लभम् ।
यो धारयेन्महेशानि न विघ्नैरभिभूयते ॥ ३५॥
गणेशहृदयं नाम कवचं सर्वसिद्धिदम् ।
पठेद्वा पाठयेद्वापि तस्य सिद्धिः करे स्थिता ॥ ३६॥
न प्रकाश्यं महेशानि कवचं यत्र कुत्रचित् ।
दातव्यं भक्तियुक्ताय गुरुदेवपराय च ॥ ३७॥


 ॥ इति श्रीरुद्रयामले एकाक्षरगणपतिकवचं सम्पूर्णम् ॥

रविवार, 26 अगस्त 2018

कुम्भ विवाह लड़की के लिए विवाह से पूर्व कराना अति आवश्य्क


क्यों ज़रूरी होता है ! विवाह से पूर्व कुम्भ और अर्क विवाह करना यदि वर या कन्या की कुंडली में बारहवाँ अथवा सातवां भाव क्रूर ग्रहो से पीड़ित नजर आता हो तो अथवा सूर्य और शुक्र द्वादशेस या सप्तमेश शनि से पीड़ित हो रहे हो अथवा कुंडली मंगल दोष से मुक्त हो अर्थात लड़के या लड़की की कुंडली में 1 ,4 ,7 ,8 ,12 इन भावो में मंगल की युति हो रही हो तो दांपत्य जीवन में सुख की कमी विवाह में विलम्भ होना,बार-2 विवाह का टूटना आदि समस्याऐ आती है ! ऐसी समस्याओ के लिए धरम सिंध ग्रन्थ के अनुसार अर्क विवाह लड़के के लिए और कुम्भ विवाह लड़की के लिए विवाह से पूर्व कराना अति आवश्य्क है ! कुम्भ विवाह के लिए चन्द्रमा की अनुकूलता देखना चाहिए ! एवम अर्क विवाह को सनिवार ,रविवार या हस्त नक्षत्र में ही कराना चाहिए ऐसा करने से कुंडली में बन रहे कुयोग विधवा योग जीवन साथी में से किसी एक की मृत्यु ,दाम्पत्य सुख में कमी ,जीवन साथी का अत्याधिेक क्रोधी स्वाभाव का होना आदि दोष दूर हो जाते है ! जो युवक - युवती अपना मनपसंद जीवन साथी चुनना चाहते है {लव मैरिज } और उनकी कुंडली में ऐसे योग भी है तो उनको इन दोषो से मुक्ति प्राप्त होती है और मनपसंद जीवन साथी मिलता है कई विद्वानो के मत अनुसार कन्या का विवाह विष्णु प्रतिमा , पीपल के पेड़ आदि से कराना बताया गया है ! किन्तु कुम्भ विवाह कराने से भी वही फल मिलता है !भागवान कृष्ण ने गीता में भी कहा है की बृक्षयो में पीपल में ही हूँ ! और कुम्भ विवाह में कलश पर भागवान बिष्णु का ही आवाहन किया जाता है ! सोने की प्रतिमा से विवाह करने के लिए अग्नि उत्तारण आदि विधि अति आवस्यक है तभी प्राण प्रतिष्ठा का विधान बतलाया है ! किन्तु कलश कुम्भ विवाह में इन सभी की आवश्कयता नहीं है ! यह एक शास्त्र मत है इसके आलावा कतिपय जोय्तिषी बेर के पेड़ , केले के पेड़ ,तुलसी के पेड़ या शालिग्राम से विवाह करने की सलाह देते है जो की किसी भी तरह उचित नहीं है अतः इसके लिए उचित आचार्ये का होना अति आवस्यक है यह विधि विवाह से पूर्व एक ही बार संम्पन कराई जाती है ! अतः किसी सुयोग्य अनुभवी आचर्ये से ही यह विधि संपन्न कराये ! अधिक जानकारी और कुम्भ,अर्क विवाह कराने के लिए सम्पर्क करे !

हिन्दू धर्म में सोलह संस्कारो में से एक विवाह (पाणिग्रहण ) संस्कार कहलाता है जैसे कोई बालक जन्म लेकर इस सृष्टि का अवलोकन करता है ठीक उसी प्रकार नव युगल विवाह संस्कार के बंधन में बंध कर जीवन के वास्तबिक सत्य व रहस्यों का अवलोकन करते है परन्तु आज के समय में सही उम्र में विवाह हो जाना एवं मन के अनुकल जीवन साथी का मिलना एक अत्यंत चुनौती पूर्ण कार्य है आज के माता पिता एवं नवयुगल की इस चिंता को ध्यान में रखते हुए अचूक तंत्र ज्योतिष प्रयोगो की इस श्रेणी में शीघ्र विवाह के लिए उपयोगी कुछ तंत्र ज्योतिष प्रयोग नीचे दिए जा रहे है आशा करते है हमारे मित्रगण , युवा बर्ग की इस जटिल समस्या को समझते हुए अधिक से अधिक लाईक और शेयर करके ज्यादा से ज्यादा लोगो तक पहुचाएंगे -
प्रयोग (१ ) - विवाह के योग्य हो जाने पर भी किसी कन्या का विवाह न हो रहा हो तो वह किसी कन्या के विवाह में जाकर उसके हाथ में लगायी जा रही मेहंदी को अपने हाथो में भी लगवाये इससे शीघ्र विवाह का योग बनता है |
प्रयोग (२ ) - सफ़ेद खरगोश घर में होने से घर के बच्चो का विवाह शीघ्र होता है |
प्रयोग (३) - जन्म कुंडली में मंगलदोष होने पर सुन्दरकाण्ड का पाठ मंगलदोष शांति बिधि कराने से शीघ्र विवाह एवं अनुकूल जीवनसाथी प्राप्त होता है |
प्रयोग (४) -विवाह योग्य कन्या को हल्दी युक्त जल से नहाना चाईए इससे विवाह के योग शीघ्र बनने लगते है |
प्रयोग (५) - कन्या के लिए वर की तलाश में जाते समय यदि कन्या अपने माता - पिता को खुले वालो में खड़े होकर मिष्ठान्न खिलाये तो सम्बन्ध अस्वीकार की सम्भावनाये कम हो जाती है |
प्रयोग (६) - जिसका विवाह हो रहा हो उसके वस्त्र पहनने से भी विवाह की रुकावटे काम हो जाती है |
प्रयोग (७) -शुक्रवार की रात आठ छुआरे जल में उवाल कर जल सहित सोते समय रात्रि में अपने पास रखे एवं शनिवार की सुबह उन्हें बहते जल में प्रबाहित करे शीघ्र विवाह के लिए यह एक विशेष प्रयोग है |

हस्ताक्षर का सही तालमेल


आज के इस भौतिक युग में माननीय हस्ताक्षर की योग्यता मानव से भी कहीं बडी और विषाल नजर आने लगी है। हस्ताक्षर का सही तालमेल न होना हमे कई संकटो में डाल सकता है क्योंकि कही-कहीं हस्ताक्षर ही हमारा संपूर्ण स्वरूप प्रकट करते है। आर्थिक स्थिति हो या सामाजिक स्थिति सभी में हस्ताक्षरो की भूमिका अहम मानी जाती है और हस्ताक्षरो का हर बार अलग-अलग होना अथवा बार-बार हस्ताक्षरो का बदलना आपके जीवन के लिए उपयोगी महत्वपूर्ण कार्यो को रोक भी सकता है आइऐं जानते है कि हमारे हस्ताक्षर किस प्रकार के हो जो हमारी आर्थिक,भौतिक,सामाजिक और अध्यात्मिक उन्नति कर सकें।


1 अस्पष्ट हस्ताक्षर आपको परेषानियों में डाल सकते है ऐसे हस्ताक्षर करने वाले लोगो का जीवन दुखमय एवं
धोखा देने वाला होता है।

2 छोटे-छोटे टुकउो में हस्ताक्षर करने से देखने वालो पर गलत प्रभाव पडता है ऐसे लोग अत्यंत चालाक होते है इन्हें अपनी महत्वूपर्ण रहस्यो के बारे में कभी नहीं बताना चाहिए अन्यथा ये नुकसान पहुंचा सकते है। 

3 हस्ताक्षर के नीचे जो लोग दो लाइने खीचते है ऐसे लोग सदा अपने आपको असुरक्षित महसूस करते रहते है इन्हे सदैव दूसरो पर ष्षक करने की आदत होती है और ये अत्यंत कंजूस होते है। 

4 जिन लोगो के हस्ताक्षर ऊपर से नीचे की ओर आते है वे लोग निराषा वादी होते है ऐसे लोगो को निराषा जल्दी पकडती है एवं उनका मानसिक संतुलन विगडता रहता है। 

5 जो लेाग हस्ताक्षर में अपना सरनेम नही लिखते वे लोग अत्यंत हठी प्रवृत्ति के होते है इन्हे हर काम अपनी मर्जी से करने की आदत होती है ये सुनते सबकी पर करते मन की है।
 
6 जो लोग हस्ताक्षर का पहला अक्षर बडा और सुन्दर लिखते है वे लोग अनेको प्रतिभाओ के धनी हो सकते है ऐसे लोग अपनी कार्य कुषलता के दम पर आगे बढते है और समाज में अपना एक अलग स्थान बनाते है ।
 
7 जो लोग अपना पूरा नाम सुस्पष्ट लिखते है ऐसे लोग ईष्वर में आस्था रखने वाले धार्मिक प्रवृत्ति के होते है और इन लोगो के पास सभी प्रकार की सुख - सुविधाअएॅ भी होती है।
 
8 जो लो हस्ताक्षरो को नीचे से ऊपर की ओर ले जाते है वे लोग परम आषावादी होते है इनका उददेष्य जीवन में सदा आगे बढने का होता है ऐसे लोग ईष्वर में आस्था रखते हुए आगे बढते है। 

9 जो लोग अपने हस्ताक्षरो के अंत में ऐ लम्बी लाइन खीचते है वे व्यक्ति सकारात्मक ऊर्जा से भरे हुये होते है ऐसे लोग दूसरो के लिए जीवन जीना चाहते है और दूसरो के सुख को ही अपना सुख मानते है।
 
10. जो लोग हस्ताक्षरो के अंत में अथवा नीचे बिन्दु लगाते है ऐसे लोग धनी होते है ऐसे लोग धनी होते हे ऐसे लोग जितने बिन्दु हस्ताक्षरो के बाद लगाते है उतने ही अधिक धनवान होते है।

षष्ठी देवी पूजा महत्व


षष्ठी देवी पूजा महत्व
भगवती षष्ठी देवी शिशुओं की अधिष्ठात्री देवी हैं. जिन्हें संतान नहीं होती, उन्हें यह संतान देती है, संतान को दीर्घायु प्रदान करती हैं. बच्चों की रक्षा करना भी इनका स्वाभाविक गुण धर्म है. मूल प्रकृति के छठे अंश से यह प्रकट हुई हैं तभी इनका नाम षष्ठी देवी पड़ा है. ये ब्रह्मा जी की मानसपुत्री हैं और कार्तिकेय की प्राणप्रिया हैं. ये देवसेना के नाम से भी जानी जाती हैं. इन्हें विष्णुमाया तथा बालदा अर्थात पुत्र देने वाली भी कहा गया है. भगवती षष्ठी देवी अपने योग के प्रभाव से शिशुओं के पास सदा वृद्धमाता के रुप में अप्रत्यक्ष रुप से विद्यमान रहती हैं. वह उनकी रक्षा करने के साथ उनका भरण-पोषण भी करती हैं. बच्चों को स्वप्न में कभी रुलाती हैं, कभी हंसाती हैं, कभी खिलाती हैं तो कभी दुलार करती हैं. कहा जाता है कि जन्म के छठे दिन जो छठी मनाई जाती हैं वो इन्हीं षष्ठी देवी की पूजा की जाती है. यह अपना अभूतपूर्व वात्सल्य छोटे बच्चों को प्रदान करती है.
षष्ठी देवी पूजा विधि
जिन दंपत्तियों को संतान प्राप्त होने में बाधा आती हो उन्हें रोज इस षष्ठी स्तोत्र का पाठ करना चाहिए. संतान के इच्छुक दंपत्ति को शालिग्राम शिला, कलश, वटवृक्ष का मूल अथवा दीवार पर लाल चंदन से षष्ठी देवी की आकृति बनाकर उनका पूजन नित्य प्रतिदिन करना चाहिए. सबसे पहले देवी का ध्यान निम्न मंत्र के द्वारा करे
षष्ठांशां प्रकृते: शुद्धां सुप्रतिष्ठाण्च सुव्रताम् ।
सुपुत्रदां च शुभदां दयारूपां जगत्प्रसूम् ।।
श्वेतचम्पकवर्णाभां रत्नभूषणभूषिताम् ।
पवित्ररुपां परमां देवसेनां परां भजे ।।
ध्यान के बाद ऊँ ह्रीं षष्ठीदेव्यै स्वाहाइस अष्टाक्षर मंत्र से आवाहन, पाद्य, अर्ध्य, आचमन, स्नान, वस्त्राभूषण, पुष्प, धूप, दीप, तथा नैवेद्यादि उपचारों से देवी का पूजन करना चाहिए. इसके साथ ही देवी के इस अष्टाक्षर मंत्र का यथाशक्ति जप करना चाहिए. देवी के पूजन तथा जप के बाद षष्ठीदेवी स्तोत्र का पाठ श्रद्धापूर्वक करना चाहिए. इसके पाठ से नि:संदेह संतान की प्राप्ति होगी.





षष्ठी देवी स्तोत्र

नमो देव्यै महादेव्यै सिद्ध्यै शान्त्यै नमो नम:।
शुभायै देवसेनायै षष्ठी देव्यै नमो नम: ।।
वरदायै पुत्रदायै धनदायै नमो नम:।
सुखदायै मोक्षदायै षष्ठी देव्यै नमो नम:।।
शक्ते: षष्ठांशरुपायै सिद्धायै च नमो नम: ।
मायायै सिद्धयोगिन्यै षष्ठी देव्यै नमो नम:।।
पारायै पारदायै च षष्ठी देव्यै नमो नम:।
सारायै सारदायै च पारायै सर्व कर्मणाम।।
बालाधिष्ठात्री देव्यै च षष्ठी देव्यै नमो नम:।
कल्याणदायै कल्याण्यै फलदायै च कर्मणाम।
प्रत्यक्षायै च भक्तानां षष्ठी देव्यै नमो नम:।।
पूज्यायै स्कन्दकांतायै सर्वेषां सर्वकर्मसु।
देवरक्षणकारिण्यै षष्ठी देव्यै नमो नम:।।
शुद्ध सत्त्व स्वरुपायै वन्दितायै नृणां सदा ।
हिंसा क्रोध वर्जितायै षष्ठी देव्यै नमो नम:।।
धनं देहि प्रियां देहि पुत्रं देहि सुरेश्वरि ।
धर्मं देहि यशो देहि षष्ठी देव्यै नमो नम:।।
भूमिं देहि प्रजां देहि देहि विद्यां सुपूजिते ।
कल्याणं च जयं देहि षष्ठी देव्यै नमो नम:।।