हस्त रेखा

सामुद्रिक ज्योतिष को  बोलचाल की भाषा में हस्त रेखा विज्ञान के नाम से भी जाना जाता है, यह  अपने आप में समृद्ध ज्योतिषशास्त्र है। इसमें शरीर के अंग, त्वचा का रंग, हथेली पर फैली रेखाओं, चिन्हों एवं नाखूनों के साथ ही हथेली के आकार का भी अध्ययन होता है। सामु्द्रिक ज्योतिष के अनुसार हमारे  हाँथ  का आकार भी हमारे विषय में काफी कुछ अभिव्यक्त कर जाता  है।

सामुद्रिक ज्योतिष का जन्म आज से 5000 ई. पू. माना जाता है। सामुद्रिक ज्योतिष के सम्बन्ध में कहा जाता है कि शिव जी की प्रेरणा से कार्तिकेय ने इसकी रचना की, रचना के समय ही गणेश जी ने उसे उठाकर समुद्र में फेंक दिया फिर समु्द्र ने शिव जी के कहने से उसे वापस लौटा दिया इस तरह ज्योतिष की यह विधा सामुद्रिक ज्योतिष कहलायी। इस सदर्भ में यह भी कहा जाता है कि ऋषि समुद्र ने इसे पुष्पित और पल्लवित किया जिसके कारण भी यह सामुद्रिक ज्योतिष के नाम से विख्यात है।आर्य भट्ट ,वराहमिहिर ,श्रीपति मिश्र अदि ज्योतिषाचार्यों ने भारतीय ज्योतिष के उत्थान में महत्वपूर्ण योगदान दिया | वर्तमान में "किरो" ने हस्तरेखा विज्ञान का प्रचार प्रसार किया।
हस्तरेखा से जानिए भाग्य कैसा और क्या होगा..???
हाथों में दिखाई देने वाली रेखाएं और हमारे भविष्य का गहरा संबंध है। इन रेखाओं का अध्ययन किया जाए तो हमें भविष्य में होने वाली घटनाओं की भी जानकारी प्राप्त हो सकती है। वैसे तो हाथों की सभी रेखाओं का अलग-अलग महत्व होता है। किसी व्यक्ति को कितना मान-सम्मान और धन  मिलेगा यह भी रेखाओं से ज्ञात  हो जाता है।
हथेली के अलग-अलग क्षेत्र, जिन्हें हस्तरेखा शास्त्र में हथेली के पर्वत कहा जाता है, वे चुंबकीय केंद्र हैं। इन केंद्रों का मस्तिष्क के उन केंद्रों से संबंध है जो मानव के मनोभावों पर नियंत्रण करते हैं। हथेली के ये पर्वत मस्तिष्क में तैयार होने वाली विद्युत तरंगों को आकृष्ट करते हैं और हस्तरेखाएँ उन तरंगों के मार्ग हैं।
इसी बात को दूसरे शब्दों में हम यों कह सकते हैं कि जिस प्रकार ई.सी.जी. का ग्राफ हृदय की क्रियाशीलता के विषय में बताता है उसी प्रकार हथेली पर बना हुआ रेखाओं का ग्राफ मस्तिष्क की क्रियाशीलता के विषय में बताता है। रेखाओं के इस ग्राफ का अर्थ समझने की विद्या को हस्तरेखा ज्ञान या पामिस्ट्री कहते हैं। हस्तरेखा शास्त्र हथेली को सात भागों में बाँटता है। इन भागों के नाम ज्योतिष शास्त्र से लिए गए हैं।
मेरे निष्कर्ष के अनुसार मस्तिष्क का जो केंद्र व्यक्ति के अहं भाव का नियंत्रण करता है उसका हथेली के जिस भाग से संबंध है उसे गुरु पर्वत कहते हैं। मस्तिष्क का जो केंद्र व्यक्ति की अंतर्मुखता का नियंत्रक है, उसका संबंध हथेली के उस भाग से है जिसे हस्त विज्ञान में शनि पर्वत कहा जाता है। इसी प्रकार मस्तिष्क का जो केंद्र व्यक्ति की बहिर्मुखता का नियंत्रण करता है, हथेली में उस केंद्र से संबंधित भाग को सूर्य पर्वत कहते हैं। इसी प्रकार मस्तिष्क के अलग-अलग भावों से संबंधित हथेली के मार्ग को बुध, शुक्र, चंद्र तथा मंगल पर्वत कहा गया है।
जिन महिलाओं की उंगलियां छोटी होती हैं, वे जरूरत से ज्यादा खर्चीली होती हैं। दोनों हाथों की उंगलियों को जोड़ने पर उनके बीच यदि खाली जगह दिख रहे हैं तो इसका मतलब भी उनका खर्चीला होना ही है। ऐसी महिलाओं का भविष्य काफी कठिनाइयों से भरा होता है।
हाथ की उँगलियों के बारे में मेरा निष्कर्ष है कि उँगलियाँ मस्तिष्क में तैयार विद्युत तरंगों को व्यक्ति के शरीर से बाहर बिखेरने के लिए ट्रांसमीटर (प्रेषित करने) जैसा काम करती हैं और व्यक्ति के आसपास के वातावरण में फैली विद्युत तरंगों को मस्तिष्क तक पहुँचाने के लिए ये ही उँगलियाँ रिसीवर (ग्रहण करने) का काम भी करती है।
स्वभाव और भाग्य की दृष्टि से हाथों को छः सात भागों में बांटा गया। प्रत्येक वर्ग या विभाजन का अलग संकाय रखा गया। इस प्रकार हाथ की बनावट को देख लेने भर से ही जातक के स्वभाव का कच्चा चिट्ठा सामने आ जाता है। इसके साथ-साथ अंगुलियां, कर पृष्ठ (हथेली के पीछे का भाग), हाथों के रोएं या बाल, नाखून व अंगुलियों, अंगूठों के जोड़ आदि के संबंध में एक पूरा शास्त्र गढ़ दिया गया है।
हथेली पर ग्रहों की अवधारणा:- हथेली में  ग्रह अपने स्थान से उठ जाते हैं या खिसक जाते हैं अतः इनको एक नाम पर्वत भी दिया गया है। हथेली को छोटे-छोटे नौ हिस्सों (पर्वत या क्षेत्र) में विभाजित कर प्रत्येक हिस्से को एक पृथक व स्वतंत्र नाम दिया गया है व आसानी के लिए इनको सौर मंडल के ग्रहों के नाम पर इनका नामकरण कर दिया गया है। आयरलैंड के विश्व प्रसिद्ध हस्तरेखा शास्त्री श्री काऊंट लूइस हेमन (कीरो) भी यह मानते हैं कि इन नामों की स्थापना अटकल या कल्पना पर आधारित है।
कीरो ने स्वयं इन ग्रहों को ज्यादा महत्व नहीं दिया था। परंतु यह निश्चित है कि ग्रहों के हथेली पर उन्नत होने पर जीवन में भौतिक सुख की प्राप्ति होती है। यह एक संपूर्ण सत्य है। अगर ग्रह क्षेत्र उन्नत नहीं है तो जीवन में सफलता विशेष रूप से भौतिक सफलता कम ही मिलती है। धन की हमेशा परेशानी बनी रहती है। हथेली पर जिन नौ ग्रहों की स्थापना की गई है वे हैं- सूर्य, चंद्रमा, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि, राहु और केतु। इन सभी को अपना एक पृथक स्थान आवंटित है जैसा कि इस चित्र में दिखाया गया है। सबसे विशाल स्थान शुक्र और चंद्रमा को आमने-सामने दिया गया है। मंगल को दो क्षेत्रों का स्वामी बनाया गया है। अंगूठे के पास का मंगल स्थान नकारात्मक कहलाता है और चंद्रमा के ऊपर का मंगल सकारात्मक कहा गया है। हथेली के मध्य भाग को राहु का क्षेत्र कहा जाता है।
जन्मकालीन ग्रहों का प्रभाव हथेली के पर्वतों पर भी होता है। यदि जन्मकुंडली भाग्यशाली ग्रहों को दर्शाती है तो सभी ग्रह हथेली में अपने स्थानों पर उभर आते हैं। अक्सर यह भी देखने में आता है कि जन्म कुंडली में जो ग्रह अकारक हो वह भी हथेली में उन्नत ही दिखाई देता है। इस प्रकार वह अपने प्रभाव की बजाए अपने स्वभाव को दर्शाता है। हथेली में बृहस्पति का सीधा संबंध बुद्धि से है। जन्मकुंडली में वह चाहे किसी भी भावों का स्वामी क्यों न हो हथेली में जिन लोगों के गुरु क्षेत्र का अभाव है अर्थात बृहस्पति दबा हुआ है, ऐसे जातक अत्यंत सामान्य बुद्धि के होते हैं। और मात्र भोगी बन कर जीवन को नष्ट कर देते हैं। ये लोग श्रमशील जीवन बिताते हैं और बुद्धि को कम-से-कम उपयोग में लेते हैं।
अक्सर अविकसित बृहस्पति के जातक कुएं के मेंढ़क पाये जाते हैं। शोध के दौरान यह भी सामने आया कि अविकसित या अर्धविकसित गुरु के क्षेत्र के स्वामी धार्मिक प्रवृत्ति के पाये गए। दूसरी तरफ गुरु प्रधान या उन्नत और विकसित गुरु के स्वामी प्रखर बुद्धि वाले होते हैं। जीवन में मिली उपलब्धियों से संतुष्ट न होने वाले ये जातक इधर-उधर हाथ पांव मारते रहते हैं और 40 वर्ष की आयु के आते-आते समाज में एक निश्चित और प्रतिष्ठित स्थान बना लेते हैं। यदि बृहस्पति का पर्वत अन्य पर्वतों की तुलना में बहुत ज्यादा उभार लिए हो तो ऐसा जातक अभिमानी होता है। बृहस्पति ग्रह के पास व मध्यमा अंगुली के ठीक नीचे जो स्थान शनि अधिकृत है वह गुफा की तरह गंभीर प्रवृत्ति को व्यक्त करता है। बहुत अधिक हाथों में इसे अविकसित पाया गया। कुछ मामलों में यह बृहस्पति पर्वत से भी जा मिलता है।
जिन लोगों की हथेलियों में एक मात्र शनि ही विकसित हो वे आवश्यकता से ज्यादा गंभीर होते हैं। ये लोग एकांतवास पसंद करते हैं और कम से कम लोगों से मेल रखते हैं। प्रायः ये लोग निगूढ़ विद्याओं में कुछ असर रखते हैं। अनामिका के नीचे का क्षेत्र जिसको सूर्य का क्षेत्र कहते हैं, स्वतंत्र रूप से उठा हुआ नहीं देखा गया। जिन लोगों के हाथ में यह क्षेत्र गढे्दार है वे अपनी शिक्षा पूर्ण नहीं कर पाते। अच्छे और पूर्ण विकसित सूर्य क्षेत्र के स्वामी समाज में प्रतिष्ठित और धनिक होते हैं। ऊपर के चारों ग्रहों के समान ही सूर्य की भी स्थिति रहती है। यदि तीन अन्य ग्रह अविकसित हैं तो सूर्य भी प्रायः अविकसित ही होगा। अकेला गुरु प्रधान जातक मिल सकता है तथापि अकेला सूर्य प्रधान जातक बहुत कम देखने में आता है।
सूर्य प्रधान लोग समाज को नेतृत्व प्रदान करते हैं। यदि सूर्य रेखा भी बलवान हो तो जातक को राजनीति में सफलता प्राप्त होती है। कनिष्ठिका अंगुली के ठीक नीचे का स्थान जिन लोगों के उठावदार हों वे अधिकारी वर्ग के जातक होते हैं। यदि इस पर्वत पर दो चार खड़ी रेखाएं हो तो जातक जीवन में सफल रहता है। अच्छे बुध प्रधान जातक अपने आस-पास एक प्रतिष्ठा का घेरा बना कर रखते हैं। ये बहुत वाकपटु और चालाक होते हैं। उच्च पदस्थ अधिकारियों के हाथों में बुध की प्रधानता देखी गई है। वाणी पर इनका विशेष अधिकार होता है। जिस जातक का मंगल विकसित होता है वे परिवर्तनशील जीवन बिताते हैं। उनमें तुरंत शांत हो जाने वाले क्रोध की मात्रा अधिक होती है। ये लोग रोगों का शीघ्रता से शिकार बनते हैं। यह ग्रह स्थान अधिक आड़ी तिरछी रेखाओं के जाल से युक्त हो तो जातक का जीवन बहुत उतार-चढ़ाव पूर्ण रहेगा। प्रायः जीवन में संघर्ष रहेगा और लड़ाई झगड़े होते रहेंगे। बहुत सी बाधाएं आ कर जीवन में समस्याएं पैदा करती हैं।
दुःसाहसी लोगों के हाथों में मंगल को पूर्ण विकसित पाया गया है। मंगल आत्मविश्वास देता है परंतु व्यक्ति को जल्दबाज भी बनाता है। चंद्रमा का क्षेत्र कल्पनाशक्ति और बुद्धि का कारक है। कल्पनाशील व्यक्तियों के हाथों में इसे विकसित पाया गया है। जिन जातकों के हाथों में चंद्रमा का पर्वत अविकसित हो या इस पर आड़ी तिरछी रेखाओं का जाल हो तो ऐसा जातक पेट संबंधी रोगों से ग्रस्त रहता है। जीवन के आरम्भिक काल में इनको दुर्भाग्य का भी सामना करना पड़ सकता है। चंद्रमा के स्थान पर गहरा गड्ढा हो तो जातक मानसिक रूप से परेशान रह सकता है। ऐसे लोगों के पारिवारिक संबंधों में वैमनस्य और परस्पर सामंजस्य का अभाव होता है। राहु और केतु को हथेली में सर्वमान्य स्थान नहीं प्राप्त है। तथापि जैसा कि चित्र में दर्शाया है वे स्थान राहु और केतु के लिए वर्तमान में निर्धारित किये गये हैं।
यदि भाग्य रेखा राहु क्षेत्र से आरंभ हो तो वह अपने सही समय की बजाए देरी से फलित करती है। राहु के क्षेत्र अर्थात हथेली के मध्य में गहरापन हो तो भी जातक जीवन भर अभावग्रस्त ही रहता है। केतु के स्थान से जातक को अचानक मिलने वाली संपत्ति के बारे में पता लगाया जाता है। केतु का स्थान विकसित हो या इस स्थान पर कोई शुभ चिह्न हो तो जातक को धन का अभाव नहीं होता। शुक्र के क्षेत्र के संबंध में एक स्थूल तथ्य तो यह उभर कर सामने आया है कि जिन जातकों के हाथों में एक मात्र शुक्र का क्षेत्र ही विकसित हो और शेष ग्रह विकसित नहीं हो या अर्धविकसित हों तो ऐसा जातक बुद्धिहीन और स्थूल विचारों का होता है। इस श्रेणी के कुछ जातकों का दांपत्य जीवन भी उलझा हुआ मिला।
शुक्र से संबंधित जो तथ्य अब तक प्रचारित हैं वे सब शोध के निष्कर्ष में खरे नहीं उतरे। अधिकतर तथ्य तो विपरीत ही प्राप्त हुए हैं। जैसे शुक्र से संबंधित यह एक सर्वमान्य तथ्य है कि जिन जातकों के शुक्र का क्षेत्र पूर्ण विकसत हो वे लोग सौंदर्यप्रिय, जीवन शक्ति से ओत-प्रोत, कला पारखी और संगीत के शौकीन होते हैं। परंतु उपरोक्त उन्नत शुक्र का फलित सर्वदा विपरीत ही दिखाई देता है। बड़े-बड़े शुक्र के स्वामियों को सीधा-साधा जीवन जीते देखा गया है। वे कला, साहित्य व संगीत से परिचित ही नहीं न उनकी इनमें रूचि ही मिली। अच्छे शुक्र प्रधान व्यक्ति कला या सौंदर्य के क्षेत्र में भी काम करते नहीं पाये गये। वे सभी कठिन कार्य में रत मिले। अनुभव के आधार पर अकेला शुक्र यदि विकसित हो तो व्यक्ति मात्र भोगी ही होता है। लेकिन शुक्र के साथ यदि बृहस्पति, सूर्य और बुध भी पूर्ण विकसित हों तो ही व्यक्ति सफल जीवन जी सकता है। यह तथ्य तो अनुभव में अवश्य आता है कि यदि जन्मकुंडली में शुक्र अस्त हो तो उसका सीधा असर हथेली के शुक्र पर होता है। ऐसी अवस्था में शुक्र भली प्रकार से विकसित या कांतिपूर्ण नहीं रहता है। शुक्र क्षेत्र पर बनने वाला काला धब्बा या बड़ा तिल जातक की काम शक्ति को कम करता है।
हस्तरेखा विज्ञान के अन्तर्गत सिर्फ हाथ की रेखाएं ही नहीं बोलती हैं बल्कि नाखून, हथेली का रंग और हाथों का आकार भी काफी कुछ कहता है, हस्त ज्योतिष के इस सिद्धान्त को विज्ञान भी प्रमाणित करता है। आप खुद भी अपनी हथेली को देखकर अपने व्यक्तित्व की विशेषता को जान सकते हैं और दूसरों के व्यक्तित्व को समझ सकते हैं। लेकिन यह तभी संभव जब आप जानें कि हाथ कितने प्रकार के होते हैं और अलग अलग हाथों की क्या अलग अलग विशेषता होती है।

बहुत छोटी हथेली (Very small Palm):
सामुद्रिक ज्योतिष कहता है जिनकी हथेली बहुत छोटी होती है वे स्वार्थी स्वभाव के होते हैं, वे हर चीज़ में पहले अपना फायदा देखते हैं लेकिन दूसरों के लिए मुश्किल से ही भला सोचते हैं। अपने छोटे से फायदे के लिए ये लड़ाई झगड़ा करने के लिए भी तैयार रहते हैं। परोपकार और सामाज सेवा के प्रति इनमें उदासीनता देखी जाती है। इनकी सोच निम्न स्तर की होती है और ये किसी पर भी भरोसा नही करते। 

छोटी हथेली ( Small Palm)
हस्तरेखा विज्ञान के अनुसार छोटी हथेली को भी अच्छा नहीं माना जाता है। जिनकी हथेली छोटी होती है उनके विषय में सामुद्रिक ज्योतिष कहता है कि ये व्यक्ति ख्याली पुलाव पकाने वाले होते हैं, हलांकि इनमें काफी गुण और क्षमता होती है परंतु ये अपनी क्षमता का सही उपयोग नहीं कर पाते हैं। इस तरह की हथेली वाले व्यक्ति स्वभाव से आलसी होते हैं अपने आलसपन के कारण अपने सपनो को साकार करने की दिशा में कदम नहीं बढ़ा पाते हैं। इन्हें डींगे मारने में भी काफी मज़ा आता है यानी माया के जहान में खुद भी सैर करते हैं और दूसरों को भी सैर करते हैं। अपने इस अव्यवहारिक स्वभाव के कारण जीवन के अंतिम दिनों में अफसोस के सिवा इनके पास कुछ भी नहीं रहता है।

बड़ी हथेली (Long Palm):
जिनकी हथेली बड़ी होती है उनके विषय मे यह माना जाता है कि ये अपने काम में व्यवहारिक होते हैं और अपना काम ये लगन पूर्वक करते हैं। इन्हें चतुर भी कहा जाता है क्योंकि ये होशियारी से अपना काम निकाल लेते हैं। इस तरह की हथेली वाले व्यक्ति भी भरोसा किया जा सकता है। इनमें एक यह खूबी होती है कि ये समस्या का हल ढूंढना जानते क्योंकि समस्या का कारण क्या है यह उसे पहचाना जानते हैं। समाज में ये सक्रिय रहते हैं। सामाजिक कार्यों में इनकी प्रत्यक्ष भूमिका रहती है।

बहुत बड़ी हथेली: (Very Long Palm)
यहां "अति सर्वत्र वर्जयेत" वाली कहावत चरितार्थ होती है। लम्बा हाथ होना अच्छा है लेकिन बहुत होने पर व्यक्ति में साहस की कमी होती है, इनके सामने जैसे ही कठिन स्थिति आती है ये घबरा जाते हैं और चिंता में डूब जाते हैं। किसी भी प्रकार की चुनौती आने पर ये अपने आपको लाचार स्थिति में पाते हैं। इस तरह की हथेली वाले व्यक्ति में भावुकता अधिक देखी जाती है। ये कल्पना के सागर में डूबते उतरते रहते हैं।

सामान्य हथेली (Common Palm) 
सामान्य हथेली वालों के लिए हस्तरेखीय ज्योतिष कहता है कि ये सामाजिक तौर पर काफी व्यवहारिक होते हैं। ये लोगों के साथ बात चीत एवं व्यवहार का तरीका बखूबी जानते हैं। जीवन में इन्हें हलांकि काफी संघर्ष करना पड़ता है परंतु ये संघर्ष से पीछे नहीं हटते और अपनी मेहनत व क्षमताओ से कठिनाईयों पर विजय प्राप्त कर परिस्थितियों को अपनी ओर मोर लेते हैं।

चौकोर हथेली (Square Palm):
हथेली का एक प्रकार यह भी है। इस प्रकार की हथेली देखने में मुलायम और कोमल नज़र आती है लेकिन इनमें काफी गांठें होती है। दोनों हाथ में अगर समानता नहीं होती है तो इस प्रकार के हाथ वाले व्यक्ति पैसों को अहमियत नहीं देते। ये ज्ञान और बुद्धि को सबसे अधिक तरजीह देते हैं। ये सामाजिक तौर पर काफी आदरणीय होते हैं और समाज की अगुआई करते हैं। आपकी हथेली भी इस तरह की है तो आप दर्शनिक, कलाकार या मनोचिकित्सक बन सकते हैं।

मुख्य हथेली (Primary palm):
मांसल, भारी और रूखे ये मुख्य रूप से पाये जाने वाले हाथ हैं। इस तरह की हथेली वालों की दोनों हथेली में समानता नहीं रहती है। इनकी दोनो हाथों की उंगली में अंतर पाया जाता है। इस तरह के हथेली जिनकी होती है वे सभ्रांत होते हैं परंतु उनमें धन के प्रति बहुत अधिक लगाव देखा जाता है। ये काफी परिश्रमी होते हैं मेहनत में काफी पीछे नहीं हटते। इनके लिए जीवन मूल्य सिर्फ भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति होती है। ये जीवन को खाना, पीना, मस्त रहना समझते हैं। परिस्थिति अनुकूल नहीं होने पर अपनी चाहतों को पूरा करने के लिए ये अपराध जगत से भी जुड़ सकते हैं।  

परिश्रमी हथेली (Labourious Palm)
परिश्रमी हाथ देखने में काफी चौड़ा होता है। इस तरह की हथेली काफी भारी होती है व इनकी हथेली पर पर्वत काफी सख्त होते हैं। इस तरह की हथेली वाले व्यक्ति खाली बैठना पसंद नहीं करते हैं। इनकी जिन्दगी में कामयाबी इनकी मेहनत के बदौलत आती है। आपकी हथेली भी इस तरह की है तो अपने अन्दर के गुण को पहचानिये और जुट जाइये मेहनत के साथ आप निश्चय ही मंजिल को पाएंगे और कामयाबी भरी जिन्दगी का लुत्फ लेंगे।

कलाकार हथेली (Philospher Palm)
कलाकार हाथ कलाकार की तरह ही नाजुक, कोमल और उनकी कला की तरह खूबसूरत होते हैं। इनकी हथेली का रंग गुलाबी होता है और उंगली के सभी पोर्स बराबार होते हैं। इनकी उंगली लम्बी और पतली होती है। इस तरह की हथेली वाले व्यक्ति कला और सौन्दर्य के दीवाने होते हैं। ये कला जगत में तो काफी प्रसिद्धि प्राप्त करते हैं परंतु दुनियांदारी के मामले में पीछे रह जाते हैं।
आइये जाने कितनी महत्वपूर्ण है हस्तरेखा विज्ञान में मणिबंध रेखा
कलाई पर मौजूद आड़ी रेखाएं मणिबंध रेखाएं कहलाती है। हस्तरेखा विज्ञान के अनुसार कलाई पर दिखाई देने वाली इन रेखाओं से व्यक्ति के जीवन और भाग्य की जानकारी प्राप्त की जा सकती है। इन रेखाओं के आधार पर व्यक्ति की आयु का भी आकलन किया जा सकता है। हर व्यक्ति की कलाई में मणिबंध रेखा की संख्या अलग-अलग होती है।
ज्योतिषशास्त्र की मान्यता जिस व्यक्ति की कलाई पर चार मणिबंध रेखाएं बनती हैं उनकी आयु सौ वर्ष हो सकती है। जिसकी कलाई में तीन मणिबंध रेखाएं होती है। उनकी आयु 75 वर्ष की होती है। दो रेखाएं होने पर 50 वर्ष और एक मणिबंध होने पर आयु 25 वर्ष मानी जाती है। यानी एक मणिबंध रेखा लगभग 25 वर्ष के अंतराल को दर्शाती है।
यदि मणिबंध रेखाएं टूटी हुई हों या छिन्न-भिन्न हो तो उस व्यक्ति के जीवन में बराबर बाधाएं आती रहती है। मणिबंध रेखा जंजीरदार होने पर व्यक्ति को जीवन में बहुत सारी उलझनों का सामना करना पड़ता है। इसके विपरित यदि ये रेखाएं निर्दोष और स्पष्ट हो तो प्रबल भाग्योदय होता है। मणिबंध पर यव यानी गेहूं की आकृति के समान चिन्ह हो तो यह चिन्ह सौभाग्य सूचक माना जाता है।
मणिबंध रेखा पर द्वीप का चिन्ह होना जीवन में अनेक दुर्घटनाओं का संकेत देता है। दो मणिबंध रेखाओं का आपस में मिल जाना दुर्भाग्यशाली माना जाता है। इससे दुर्घटना में शरीर के किसी अंग की विशेष क्षति का संकेत मिलता है। मणिबंध की रेखाएं जितनी अधिक स्पष्ट और गहरी होती है। उतनी ही ज्यादा अच्छी मानी जाती है।
हस्त रेखा विज्ञान के अनुसार मणिबंध से कोई रेखा निकलकर ऊपर की ओर जाती है तो ऐसे व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूरी होती है। यदि मणिबंध से कोई रेखा निकलकर चन्द्र पर्वत पर जाए तो ऐसा व्यक्ति जीवन में कई विदेश यात्राएं करता है।
भविष्य से जुड़े सभी प्रश्नों के सटीक उत्तर ज्योतिष शास्त्र के अनुसार प्राप्त किए जा सकते हैं। यदि किसी व्यक्ति को ज्योतिष में महारत हासिल हो तो वह आने वाले कल में होने वाली घटनाओं की जानकारी दे सकता है। भविष्य जानने की कई विद्याएं प्रचलित हैं, इन्हीं में से एक विद्या है हस्तरेखा ज्योतिष। यहां जानिए हस्तरेखा से जुड़ी खास बातें, जिनसे आप भी समझ सकते हैं भविष्य
हमारे जीवन से जुड़ी हर छोटी-बड़ी घटना का संकेत हमारे हाथों की रेखाओं में छिपा होता है। इन रेखाओं के सही अध्ययन से मालुम किया जा सकता है कि कोई व्यक्ति जीवन में कितनी उन्नति करेगा? कितनी सफलताएं या असफलताएं प्राप्त करेगा? व्यक्ति का स्वास्थ्य कैसा रहेगा या उसका विवाहित जीवन कैसा होगा?
हस्तरेखा ज्योतिष के अनुसार कुछ महत्वपूर्ण रेखाएं बताई गई हैं, इन्हीं रेखाओं की स्थिति के आधार पर व्यक्ति के जीवन की भविष्यवाणी की जा सकती है। ये रेखाएं इस प्रकार हैं-
जीवन रेखा: जीवन रेखा शुक्र क्षेत्र (अंगूठे के नीचे वाला भाग) को घेरे रहती है। यह रेखा तर्जनी (इंडेक्स फिंगर) और अंगूठे के मध्य से शुरू होती है और मणिबंध तक जाती है। इस रेखा के आधार पर व्यक्ति की आयु एवं दुर्घटना आदि बातों पर विचार किया जाता है।
मस्तिष्क रेखा: यह रेखा हथेली के मध्य भाग में आड़ी स्थिति में रहती है। मस्तिष्क रेखा जीवन रेखा के प्रारंभिक स्थान के पास से ही शुरू होती है। यहां प्रारंभ होकर मस्तिष्क रेखा हथेली के दूसरी ओर जाती है। इस रेखा से व्यक्ति की बौद्धिक क्षमता पर विचार किया जाता है।
हृदय रेखा: यह रेखा मस्तिष्क रेखा के समानांतर चलती है। हृदय रेखा की शुरूआत हथेली पर बुध क्षेत्र (सबसे छोटी अंगुली के नीचे वाला भाग) के नीचे से आरंभ होकर गुरु क्षेत्र (इंडेक्स फिंगर के नीचे वाले भाग को गुरु पर्वत कहते हैं।) की ओर जाती है। इस रेखा से व्यक्ति की बौद्धिक क्षमता, आचार-विचार आदि बातों पर विचार किया जाता है।
सूर्य रेखा: यह रेखा सामान्यत: हथेली के मध्यभाग में रहती हैं। सूर्य रेखा मणिबंध (हथेली के अंतिम छोर के नीचे आड़ी रेखाओं को मणिबंध कहते हैं।) से ऊपर रिंग फिंगर के नीचे वाले सूर्य पर्वत की ओर जाती है। वैसे यह रेखा सभी लोगों के हाथों में नहीं होती है। इस रेखा से यह मालूम होता है कि व्यक्ति को मान-सम्मान और पैसों की कितनी प्राप्ति होगी।
भाग्य रेखा: यह हथेली के मध्यभाग में रहती है तथा मणिबंध अथवा उसी के आसपास से आरंभ होकर शनि क्षेत्र (मिडिल फिंगल यानी मध्यमा अंगुली के नीचे वाले भाग को शनि क्षेत्र कहते हैं।) को जाती है। इस रेखा से व्यक्ति की किस्मत पर विचार किया जाता है।
स्वास्थ्य रेखा: यह बुध क्षेत्र (सबसे छोटी अंगुली के नीचे वाले भाग को बुध पर्वत कहते हैं।) से आरंभ होकर शुक्र पर्वत (अंगूठे के नीचे वाले भाग को शुक्र पर्वत कहते हैं) की ओर जाती है। इस रेखा से व्यक्ति की स्वास्थ्य संबंधी बातों पर विचार किया जाता है।
विवाह रेखा: यह बुध क्षेत्र (सबसे छोटी अंगुली के नीचे वाले भाग को बुध क्षेत्र कहते हैं।) पर आड़ी रेखा के रूप में रहती है। यह रेखा एक से अधिक भी हो सकती है। इस रेखा से व्यक्ति के विवाह और वैवाहिक जीवन पर विचार किया जाता है।
संतान रेखा: यह बुध क्षेत्र (सबसे छोटी अंगुली के नीचे वाले भाग को बुध क्षेत्र कहते हैं।) पर खड़ी रेखा के रूप में रहती है। यह रेखा एक से अधिक भी हो सकती है। इस रेखा से मालूम होता है कि व्यक्ति की कितनी संतान होंगी। संतान रेखा से यह भी मालूम हो जाता है कि व्यक्ति को संतान के रूप में कितनी लड़कियां और कितने लड़के प्राप्त होंगे।

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