शनिवार, 8 नवंबर 2014

कविता

          जब भी अपनी शख्शियत पर अहंकार हो,

एक फेरा शमशान का जरुर लगा लेना।
और....
जब भी अपने परमात्मा से प्यार हो,
किसी भूखे को अपने हाथों से खिला देना।
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जब भी अपनी ताक़त पर गुरुर हो,
एक फेरा वृद्धा आश्रम का लगा लेना।
और….
जब भी आपका सिर श्रद्धा से झुका हो,
अपने माँ बाप के पैर जरूर दबा देना।
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जब भी अपनी दौलत का अभिमान हो,
बाढ़ भूकम्प वाले क्षेत्र से होके आ जाना,
और….
जब भी आपको गरीबों पर दया आये,
इंसानियत का फ़र्ज़ जरूर निभा आना।
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जब अपने रंग-रूप पर बहुत नाज हो,
तो 60-70 की हीरोइनों से मिल आना।
और....
जब भी कभी बच्चों से प्यार हो,,
उन्हें उठाकर दिल से जरूर लगा लेना।
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जब भी अपने शरीर पर अभिमान हो,
एक फेरा अस्पताल का लगा आना,
और....
जब किसी अपाहिज को देखके दर्द हो,
उसे इंसानियत का अहसास जरूर करा देना।
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जब कभी अपने ज्ञान पर अभिमान हो,
एक बार मेन्टल अस्पताल होके आ जाना।
और....
जब भी आपको अपने ज्ञान का गुमान हो,
किसी अशिक्षित को मुफ्त में पड़ा देना।

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