गुरुवार, 6 नवंबर 2014

श्री गुरु नानक देव जी का जन्म

श्री गुरु नानक देव जी का जन्म राय भोए की तलवंडी (अब पाकिस्तान में ननकाना साहिब)में 1469 ई. को मेहता कालू जी के घर माता तृप्ता जी की कोख से हुआ। बचपन से ही आपका मन प्रभु की भक्ति में लीन रहता था तथा जरूरतमंद लोगों की मदद करना आपकी आदत बन गई थी। पिता मेहता कालू जी ने आपको पढऩे के लिए पंडित जी तथा मौलवी के पास भेजा, ताकि आप वैदिक, धार्मिक, गणित और फारसी तथा इस्लामिक साहित्य का अध्ययन कर सकें।
गुरु जी बचपन से ही संत महापुरुषों की संगत करते रहते थे। 9 वर्ष की आयु में जब गुरु जी को जनेऊ पहनने को कहा गया तो आपने यह पवित्र जनेऊ पहनने से यह कहकर मना कर दिया कि उन्हें तो ऐसा जनेऊ पहनाया जाए, जो न तो कभी टूट सके तथा न ही गंदा हो सके और न ही अग्नि उसे जला सके। यह सुनकर सभी दंग रह गए।

इसके बाद जब गुरु जी कुछ और बड़े हुए तो उन्हें कारोबार सिखाने के उद्देश्य से 20 रुपए देकर कुछ सामान खरीदने के लिए भेजा गया ताकि उस सामान को बेचकर मुनाफा कमाया जा सके, परंतु गुरु जी ने गांव चूहड़काना में कई दिनों से भूखे-प्यासे बैठे संत महापुरुषों को इन 20 रुपयों का भोजन खिलाया तथा कहा कि यह सच्चा सौदा है। जब गुरु जी घर पहुंचे तो उनके पिता जी उन पर बहुत नाराज हुए परंतु गुरु जी की बहन बीबी नानकी जी ने अपने पिता जी को समझाया कि गुरु जी कोई साधारण पुरुष नहीं, बल्कि भगवान ने उन्हें किसी विशेष कार्य के लिए भेजा है।
गुरु नानक देव जी की बड़ी बहन बीबी नानकी जी का ससुराल सुल्तानपुर लोधी में था। वह उन्हें अपने पास सुल्तानपुर ही ले आईं, ताकि उन्हें पिता जी के गुस्से से बचाया जा सके। यहां गुरु जी को मोदी खाने में नौकरी मिल गई, परंतु गुरु जी का ध्यान यहां भी प्रभु भक्ति में लगा रहता। जो भी जरूरतमंद आप जी के पास आता आप उसे भोजन या राशन दे देते थे।
गुरु नानक देव जी इस धरती पर भूले-भटके लोगों को सत्य का मार्ग दिखलाने आए थे। अपने मिशन को वह पूरे देश-विदेश का भ्रमण करके ही पूरा कर सकते थे। इसी आशा को लेकर आप नित्य की तरह सुल्तानपुर के निकट से बहती बेईं नदी में स्नान करने गए और तीन दिन तक बाहर न आए। लोगों ने सोचा कि गुरु नानक देव जी नदी में डूब गए हैं, परंतु तीसरे दिन आप जी जब नदी से बाहर निकले तो आपने कहा कि न कोई हिन्दू न मुसलमान। इस पर विवाद खड़ा हो गया, परंतु गुरु जी ने सभी को समझाया कि मनुष्य को इंसान बनना है, इंसानियत ही सबसे बड़ा धर्म है।
अपने मिशन को पूरा करने के लिए गुरु जी ने चारों दिशाओं में चार लंबी यात्राएं कीं, जिन्हें चार उदासियांकहा जाता है। इन चार यात्राओं में गुरु जी ने देश-विदेश का भ्रमण किया तथा लोगों को सत्य के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया। कौडा राक्षस तथा सज्जण ठग जैसे गुरु जी की प्रेरणा से सत्यवादी बने। गुरु जी ने पहाड़ों में बैठे योगियों तथा सिद्धों के साथ भी वार्ताएं कीं तथा उन्हें दुनिया में जाकर लोगों को परमात्मा के साथ जुडऩे के लिए प्रेरित करने को कहा। आप जी ने गृहस्थ मार्ग को सर्वोत्तम माना तथा स्वयं भी गृहस्थ जीवन व्यतीत किया।
भाई गुरदास जी के अनुसार गुरु नानक देव जी अपनी यात्राएं (उदासियां)पूरी करने के बाद करतारपुर साहिब आ गए। उन्होंने उदासी साधुओं का भेस उतारकर संसारी वस्त्र धारण कर लिए। सत्संग प्रतिदिन होने लगा। गुरु जी स्वयं खेतीबाड़ी का काम करने लगे तथा दूर-दूर से लोग गुरु जी के पास धर्म कल्याण के लिए आने लगे। यहां पर भाई लहणा जी गुरु जी के दर्शनों के लिए आए तथा सदैव के लिए गुरु जी के ही होकर रह गए।
आप जी ने अपने पुत्रों को गुरु गद्दी नहीं दी, बल्कि त्याग, आज्ञाकारिता एवं सेवा की मूर्त भाई लहणा जी की कई कठिन परीक्षाएं लेेने के बाद हर तरह से उन्हें गुरु गद्दी के योग्य पाकर उन्हें गुरु गद्दी सौंप दी और उनका नाम गुरु अंगद देव जी रखा।

गुरु नानक देव जी 1539 ई. में करतारपुर साहिब में ज्योति-जोत समा गए। गुरु जी ने विश्व को यही संदेश दिया कि भगवान एक ही है। मनुष्य संसार में सचियार चनने के लिए आता है। सचियार चनना ही परमात्मा को पाना है। यदि मनुष्य अपनी चतुराई को छोड़ कर खुद को प्रभु को समर्पित कर दे तथा उसके हुक्म में चले तो यह झूठ की दीवार टूट सकती है और मनुष्य सचियार बन सकता है। गुरु जी ने लोगों को उपदेश दिया कि भगवान को पाने के लिए जंगल में जाने की कोई आवश्यकता नहीं। संसार में रह कर ही मानवता की सेवा करते हुए प्रभु को पाया जा सकता है।

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