शुक्रवार, 26 सितंबर 2014

स्वास्तिक चक्र"

हमारे हिन्दू सनातन धर्म में परम पवित्र ॐ के बाद ..... "स्वास्तिक चक्र" दूसरा सबसे पवित्र प्रतीक चिन्ह है...!

मुख्यत: स्वस्तिक की चारों भुजाएं चार दिशाओं, चार युगों, चार वेदों, चार वर्णों, चार आश्रमों, चार पुरुषार्थों, ब्रह्माजी के चार मुखों और हाथों समेत चार नक्षत्रों आदि की प्रतीक मानी जाती है।
स्वास्तिक , मानव जाति की सबसे प्राचीनतम धार्मिक प्रतीक चिन्हों में से एक है... और, यह सिर्फ हमारे हिंदुस्तान या हिन्दू धर्म में ही नहीं बल्कि.... मिस्र, बेबीलोन, ट्रॉय , सिन्धु घाटी और माया ... जैसी प्राचीनतम सभ्यताओं में भी इस्तेमाल किया जाता था.....!
चौंकाने वाले पुख्ता सबूत मौजूद हैं कि.... भारत की सभ्यता ...... मिस्र, बेबीलोन और माया सहित सभी प्राचीन सभ्यता से भी अधिक प्राचीनतम है ..... और, वास्तव में, अन्य सभी सभ्यताओं की जड़ में हिंदू सनातन धर्म ही है...!
असल में..... स्वास्तिक...... संस्कृत शब्द........ "" स्वस्तिका"" शब्द से निकला है..... जिसका अर्थ .... शुभ या भाग्यशाली वस्तु है.... और, इसे अच्छी किस्मत सूचित करने के लिए एक निशान के रूप में प्रयोग किया जाता है...!
अगर हम शब्दों की बात करें तो..... स्वास्तिका..... . तीन संस्कृत शब्दों के संयोजन के द्वारा बनी है ..... सु + अस्ति+का ....
इसमें ..."" सु "" का अर्थ होता है ...... अच्छा...
अस्ति का अर्थ होता है..... वर्तमान में ...
और, का का अर्थ होता है..... भविष्य में भी....!

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