सोमवार, 22 सितंबर 2014

नवरात्रि का उत्सव

दुर्गा सप्तशती के दुर्गा महात्‍म्य में लिखा है कि जब असुरों के अत्याचार बढ़ने लगे,तो उनसे छुटकारा पाने के लिए सभी देवताओं ने मां शक्ति की उपासना की। देवी ने प्रसन्न होकर चैत्र तथा आश्विन शुक्ल प्रतिपदा से दशमीपर्यंत देवी पूजन तथा व्रत का विधान बताया। उसी दिन से नवरात्रि का उत्सव मनाने की परंपरा का प्रचलन हुआ। नवरात्रि पूजन की शुरुआत किस प्रकार से करनी चाहिए, इसके क्या नियम हैं?
घट पूजन विधि -आश्विन शुक्ल प्रतिपदा को ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करना चाहिए।यदि ब्रह्म मुहूर्त में संभव न हो, तो यथासंभव प्रात:काल में स्नान करें। घर के ही किसी पवित्र स्थान पर मिट्टी से वेदी बनाएं। उस वेदी में जौ और गेहूं दोनों को मिलाकर बोना चाहिए। उसी वेदी पर या उसके समीप ही पृथ्वी का पूजन करें।शास्त्रों में कहा गया है कि इस पूजित स्थान पर सोने,\चांदी,\तांबे या मिट्टी का कलश स्थापित करना चाहिए।
कलश में रोली से स्‍वास्तिक का चिन्ह बनाएं और कलश के गले में मौलि लपेटें। कलश स्थापित किए जाने वाली भूमि अथवा चौकी पर रोली या हल्दी से अष्टदल कमल बनाएं। तत्पश्चात उस पर कलश स्थापित करें। कलश में जल भरें।जल में चंदन, पंच-पल्लव, दूर्वा, पंचामृत, सुपारी, साबुत हल्दी,कुश, गोशाला या तालाब की मिट्टी डालें। तत्पश्चात कलश को वस्त्र से अलंकृत करें। इसके बाद कलश पर चावल या जौ से भरे पात्रस्थापित करें। अब उस पर लाल वस्त्र लपेटे हुए नारियल को रखें।सामान्यतौर पर लोग कलश पर खड़े नारियल की स्थापना करते हैं, परंतु यहशास्त्रसम्मत नहीं है। इससे हमें पूर्णफल की प्राप्ति नहीं होती।
शास्त्रों में उल्लेख मिलता है: "अधोमुखं शत्रु विवर्धनाय,ऊर्ध्वस्य वस्त्रं बहुरोग वृध्यै। प्राचीमुखं वित विनाशनाय,तस्तमात् शुभं संमुख्यं नारीकेलं"।
अर्थात् नारियल का मुख नीचे की तरफ रखने से शत्रु में वृद्धि होती है।नारियल का मुख ऊपर की तरफ रखने से रोग बढ़ते हैं, जबकिपूर्व की तरफ नारियल का मुख रखने से धन का विनाश होता है।
इसलिए नारियल की स्थापना सदैव इस प्रकार करनी चाहिए कि उसका मुख साधक की तरफ रहे। ध्यान रहे कि नारियल का मुख उस सिरे पर होता है,जिस तरफ से वह पेड़ की टहनी से जुड़ा होता है।
अत:नारियल का मुख हमेशा अपनी तरफ रखकर ही उसकी स्थापना करनी चाहिए।कलश स्थापना के बाद गणेश पूजन करें। तत्पश्चात वेदी के किनारे पर देवी की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें। इसके लिए आपको चाहिए कि सबसे पहले आसन पर बैठकर निम्‍न मंत्र को `ॐ केशवाय नम:,ॐ माधवाय नम:,ॐ नारायणाय नम:बोलते हुए जल से तीन बार आचमन करें।फिर जल लेकर हाथ धो लें।
हाथ में चावल एवं फूल लेकर अंजुलि बांधकर देवी का ध्यान करें-आगच्छ त्वं महादेवि। स्थाने चात्र स्थिरा भव। यावत पूजां करिष्यामि तावत त्वं सन्निधौ भव।।' श्री जगदम्बे दुर्गा देव्यै नम:।' दुर्गादेवी-आवाहयामि! इसके बाद फूल और चावल चढ़ाएं।
'श्री जगदम्बे दुर्गा देव्यै नम:'आसनार्थे पुष्पानी समर्पयामि। मंत्र को बोलते हुए मां भगवती को आसन दें। श्री दुर्गा देव्यै नम:पाद्यम,अर्घ्य,आचमन,स्नानार्थ जलं समर्पयामि। बोलते हुए आचमन करें। इसके बाद `श्री दुर्गा देवी दुग्धं समर्पयामि।' मंत्र को बोलते हुए दूध चढ़ाएं। `श्री दुर्गा देवी दही समर्पयामि।' अब दही चढ़ाएं। `श्री दुर्गा देवी घृत समर्पयामि।'
अब घी चढ़ाएं। श्री दुर्गा देवी मधु समर्पयामि। शहद चढ़ाएं। श्री दुर्गा देवी शर्करा समर्पयामि। इसी तरह शक्‍कर, पंचामृत, गंधोदक, वस्‍त्र, सौभाग्य सूत्र, पुष्प, माला, नैवेद्यम, ताम्बूलं आदि जो भी चीजें हैं, उक्त मंत्र को बोलते हुए चढ़ाएं। इसके पश्चात् दुर्गासप्तशती अथवा रामायण का पाठ करें। पाठ करने के बाद देवी की आरती करके प्रसाद बांटें। फिर कन्या भोजन कराएं। इसके बाद स्वयं फलाहार ग्रहण करें।
                                                  घट स्थापन मुहूर्त प्रतिपदा को सूर्योदय से10घटी तक अथवा अभिजित मुहूर्त में घटस्थापन करने का विधान है।

इस वर्ष25 सितंबर 2014को प्रात: 6:14से07:14के मध्य घट स्थापन करें अथवा अभिजित मुहूर्त में घट स्थापना करें, जिसका समय मध्याह्न11:49से12:36 तक रहेगा।     इस साल नवरात्र का आरंभ 25 सितंबर से होने जा रहा है। कहीं भक्तगण माता के स्वागत के लिए पंडाल सजाने में लगे हैं तो कहीं घर की साफ सफाई में लगे हैं। लेकिन माता का आगमन इस साल ऐसे वाहन पर हो रहा है जो देश और दुनिया के लिए शुभ नहीं माना जा रहा है।इस साल मां दुर्गा डोली में सवार होकर आ रही हैं। मां का वाहन सिंह और जब मां सिंह पर सवार होकर आती हैं तो खुशहाली और समृद्घि लाती हैं लेकिन डोली में आना यह बाताता है कि इस साल महामारी और रोगों में वृद्घि होने वाली है।बीते साल मां दुर्गा घाड़े पर सवार होकर आई जिसका परिणाम यह हुआ कि देश में छत्रभंग हुआ, यानी सरकार बदल गई। राजनीति में खूब उठा पटक देखने को मिला। सीमा विवाद और विश्व के कई देशों में हुए युद्घ ने पूरी दुनिया को प्रभावित किया।ज्योतिषशास्त्री चन्द्रप्रभा बताती हैं कि, माता का वाहन यूं तो सिंह है लेकिन तिथि के अनुसार हर साल माता का वाहन अलग-अलग होता है। यानी माता सिंह की बजाय दूसरी सवारी पर सवार होकर भी पृथ्वी पर आती हैं। इस संदर्भ में शास्त्रों में कहा गया है कि 'शशिसूर्ये गजारूढ़ा शनिभौमे तुरंगमे। गुरौ शुक्रे च दोलायां बुधे नौका प्रकी‌र्त्तिता'

इसका अर्थ है सोमवार व रविवार को प्रथम पूजा यानी कलश स्थापन होने पर मां दुर्गा हाथी पर आती हैं। शनिवार तथा मंगलवार को कलश स्थापन होने पर माता का वाहन घोड़ा होता है।गुरुवार अथवा शुक्रवार के दिन कलश स्थापन होने पर माता डोली पर चढ़कर आती हैं। बुधवार के दिन कलश स्थापन होने पर माता नाव पर सावर होकर आती हैं।

माता का डोली में आना रोग और राजनीतिक उथल-पुथल के कारण देश दुनिया को प्रभावित करेगा लेकिन महिलाओं के हित में इस  वर्ष कुछ बड़े फैसले आ सकते हैं। इस साल महिलाओं के कारण देश का गौरव बढ़ेगा।इस साल दशहरा 3 अक्तूबर शुक्रवार को है। इसलिए इस साल माता अपने लोक को हाथी पर चढ़कर जाएंगी। हाथी और डोली दोनों ही ऐसी सवारी है जिनसे माता का आना और जाना शुभ नहीं माना जाता है।

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