शुक्रवार, 26 सितंबर 2014

नवरात्रि का त्योहार नौ दिनों तक चलता है।

                         नवरात्रि का त्योहार नौ दिनों तक चलता है।
इन नौ दिनों में तीन देवियों पार्वती, लक्ष्मी और सरस्वती के नौ स्वरुपों की पूजा की जाती है।
पहले तीन दिन पार्वती के तीन स्वरुपों (कुमार, पार्वती और काली),
अगले तीन दिन लक्ष्मी माता के स्वरुपों और
आखिरी के तीन दिन सरस्वती माता के स्वरुपों की पूजा करते हैं।
नवरात्रि के नौ दिनों में आदिशक्ति माता दुर्गा के उन नौ रूपों का भी पूजन किया जाता है।
माता के इन नौ रूपों को नवदुर्गा के नाम से भी जाना जाता है।
== =मैया की आँखों से काम लेते हैं, मैया के दामन को थाम लेते है |
दूर होती हैं सारी मुश्किलें, जब मैया का दिल से नाम लेते हैं |
नवरात्रि के इन्हीं नौ दिनों पर मां दुर्गा के जिन नौ रूपों का पूजन किया जाता है वे हैं
पहला शैलपुत्री, दूसरा ब्रह्माचारिणी, तीसरा चन्द्रघन्टा, चौथा कूष्माण्डा, पाँचवा स्कन्द माता,
छठा कात्यायिनी, सातवाँ कालरात्रि, आठवाँ महागौरी, नौवां सिद्धिदात्री !!!
===ॐ शैलपुत्री मैया रक्षा करो
ॐ जगजननि देवी रक्षा करो
ॐ नव दुर्गा नमः
ॐ जगजननी नमः ब्रह्मचारिणी : मां दुर्गा का दूसरा स्वरूप:-
भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की थी। इस कठिन तपस्या के कारण इस देवी को तपश्चारिणी अर्थात् ब्रह्मचारिणी नाम से अभिहित किया।
मांदुर्गा की नवशक्ति का दूसरा स्वरूप ब्रह्मचारिणी का है। यहां ब्रह्म का अर्थ तपस्या से है। मां दुर्गा का यह स्वरूप भक्तों और सिद्धों को अनंत फल देने वाला है। इनकी उपासना से तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार और संयम की वृद्धि होती है। ब्रह्मचारिणी का अर्थ तप की चारिणी यानी तप का आचरण करने वाली। देवी का यह रूप पूर्ण ज्योतिर्मय और अत्यंत भव्य है। इस देवी के दाएं हाथ में जप की माला है और बाएं हाथ में यह कमण्डल धारण किए हैं।
पूर्वजन्म में इस देवी ने हिमालय के घर पुत्री रूप में जन्म लिया था और नारदजी के उपदेश से भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की थी। इस कठिन तपस्या के कारण इन्हें तपश्चारिणी अर्थात् ब्रह्मचारिणी नाम से अभिहित किया गया। एक हजार वर्ष तक इन्होंने केवल फल-फूल खाकर बिताए और सौ वर्षों तक केवल जमीन पर रहकर शाक पर निर्वाह किया।
कुछ दिनों तक कठिन उपवास रखे और खुले आकाश के नीचे वर्षा और धूप के घोर कष्ट सहे। तीन हजार वर्षों तक टूटे हुए बिल्व पत्र खाए और भगवान शंकर की आराधना करती रहीं। इसके बाद तो उन्होंने सूखे बिल्व पत्र खाना भी छोड़ दिए। कई हजार वर्षों तक निर्जल और निराहार रह कर तपस्या करती रहीं। पत्तों को खाना छोड़ देने के कारण ही इनका नाम अपर्णा नाम पड़ गया।
कठिन तपस्या के कारण देवी का शरीर एकदम क्षीण हो गया। देवता, ऋषि, सिद्धगण, मुनि सभी ने ब्रह्मचारिणी की तपस्या को अभूतपूर्व पुण्य कृत्य बताया, सराहना की और कहा -हे देवी आज तक किसी ने इस तरह की कठोर तपस्या नहीं की। यह तुम्हीं से ही संभव थी। तुम्हारी मनोकामना परिपूर्ण होगी और भगवान चंद्रमौलि शिवजी तुम्हें पति रूप में प्राप्त होंगे। अब तपस्या छोड़कर घर लौट जाओ। जल्द ही तुम्हारे पिता तुम्हें बुलाने आ रहे हैं।
मां ब्रह्मचारिणी देवी की कृपा से सर्वसिद्धि प्राप्त होती है। दुर्गा पूजा के दूसरे दिन देवी के इसी स्वरूप की उपासना की जाती है। इस देवी की कथा का सार यह है कि जीवन के कठिन संघर्षों में भी मन विचलित नहीं होना चाहिए।
दधाना करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलू।
देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा॥दुर्गा >>>
दुर्गा दैत्ये महाविघ्ने भवबन्धे कुकर्मणि ।
शोके दुःखे च नरके यम दण्डे च जन्मनि ।।
महाभये रोगे च शब्दोऽयं हन्तृवाचकः ।
--> राक्षसी भय मेँ , सांसारिक मोहमाया मेँ , कुत्सित कर्म मेँ शोक ,दुःख , नरक , यमराज द्वारा निर्धारित दण्ड मेँ , जन्म ,मरण , महाभय मेँ तथा रोगो मेँ दुर्गा शब्द के स्मरण मात्र से मुक्ति मिल जाती है ।
>>> द - दैत्य नाशार्थ वचनोँदकारः परिकीर्तितः ,
उ - उकारो विघ्ननाशस्य वाचको वेद सम्मतः ,
रः -रेफो रोगन्ध वचनोँ ,
ग - गश्च पापन्धः वाचकः
आ - भय शत्रुघ्न वचनश्चाकारः परिकीर्तितः ।
द -> दैत्यो का नाश करना ।
उ -> विघ्नो का नाश करने वाला ।
रः -> रोंगो का नाश करने वाला ।
ग -> पापो का नाश करने वाला ।
अ -> भय और शत्रुओँ का नाश करने वाले पञ्चाक्षर अलग अलग कार्यो को करते हैँ ।
इनके सम्मेलन से ही " दुर्गा " शब्द बना है ।
अतः हर प्रकार के क्लेशोँ को नाश करने वाला तथा सकल सुख सम्पत्ति प्रदान करने वाला यह नाम विश्व के प्राणियोँ का कल्याण करने वाला है ।
दुर्गा तो जगत माता हैँ ।
" पुत्र कुपुत्र जायते माता कुमाता न भवति । "
अतः माँ अपने पुत्रो का सदैव कल्याण ही करती है ।।
जगतजननी पराम्बा माँ दुर्गा की जय !!!
इन नौ दिनों में तीन देवियों पार्वती, लक्ष्मी और सरस्वती के नौ स्वरुपों की पूजा की जाती है।
पहले तीन दिन पार्वती के तीन स्वरुपों (कुमार, पार्वती और काली),
अगले तीन दिन लक्ष्मी माता के स्वरुपों और
आखिरी के तीन दिन सरस्वती माता के स्वरुपों की पूजा करते हैं।
नवरात्रि के नौ दिनों में आदिशक्ति माता दुर्गा के उन नौ रूपों का भी पूजन किया जाता है।
माता के इन नौ रूपों को नवदुर्गा के नाम से भी जाना जाता है।
== =मैया की आँखों से काम लेते हैं, मैया के दामन को थाम लेते है |
दूर होती हैं सारी मुश्किलें, जब मैया का दिल से नाम लेते हैं |
नवरात्रि के इन्हीं नौ दिनों पर मां दुर्गा के जिन नौ रूपों का पूजन किया जाता है वे हैं
पहला शैलपुत्री, दूसरा ब्रह्माचारिणी, तीसरा चन्द्रघन्टा, चौथा कूष्माण्डा, पाँचवा स्कन्द माता,
छठा कात्यायिनी, सातवाँ कालरात्रि, आठवाँ महागौरी, नौवां सिद्धिदात्री !!!

===ॐ शैलपुत्री मैया रक्षा करो
ॐ जगजननि देवी रक्षा करो
ॐ नव दुर्गा नमः
ॐ जगजननी नमः ब्रह्मचारिणी : मां दुर्गा का दूसरा स्वरूप:-
भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की थी। इस कठिन तपस्या के कारण इस देवी को तपश्चारिणी अर्थात् ब्रह्मचारिणी नाम से अभिहित किया।
मांदुर्गा की नवशक्ति का दूसरा स्वरूप ब्रह्मचारिणी का है। यहां ब्रह्म का अर्थ तपस्या से है। मां दुर्गा का यह स्वरूप भक्तों और सिद्धों को अनंत फल देने वाला है। इनकी उपासना से तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार और संयम की वृद्धि होती है। ब्रह्मचारिणी का अर्थ तप की चारिणी यानी तप का आचरण करने वाली। देवी का यह रूप पूर्ण ज्योतिर्मय और अत्यंत भव्य है। इस देवी के दाएं हाथ में जप की माला है और बाएं हाथ में यह कमण्डल धारण किए हैं।
पूर्वजन्म में इस देवी ने हिमालय के घर पुत्री रूप में जन्म लिया था और नारदजी के उपदेश से भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की थी। इस कठिन तपस्या के कारण इन्हें तपश्चारिणी अर्थात् ब्रह्मचारिणी नाम से अभिहित किया गया। एक हजार वर्ष तक इन्होंने केवल फल-फूल खाकर बिताए और सौ वर्षों तक केवल जमीन पर रहकर शाक पर निर्वाह किया।
कुछ दिनों तक कठिन उपवास रखे और खुले आकाश के नीचे वर्षा और धूप के घोर कष्ट सहे। तीन हजार वर्षों तक टूटे हुए बिल्व पत्र खाए और भगवान शंकर की आराधना करती रहीं। इसके बाद तो उन्होंने सूखे बिल्व पत्र खाना भी छोड़ दिए। कई हजार वर्षों तक निर्जल और निराहार रह कर तपस्या करती रहीं। पत्तों को खाना छोड़ देने के कारण ही इनका नाम अपर्णा नाम पड़ गया।
कठिन तपस्या के कारण देवी का शरीर एकदम क्षीण हो गया। देवता, ऋषि, सिद्धगण, मुनि सभी ने ब्रह्मचारिणी की तपस्या को अभूतपूर्व पुण्य कृत्य बताया, सराहना की और कहा -हे देवी आज तक किसी ने इस तरह की कठोर तपस्या नहीं की। यह तुम्हीं से ही संभव थी। तुम्हारी मनोकामना परिपूर्ण होगी और भगवान चंद्रमौलि शिवजी तुम्हें पति रूप में प्राप्त होंगे। अब तपस्या छोड़कर घर लौट जाओ। जल्द ही तुम्हारे पिता तुम्हें बुलाने आ रहे हैं।
मां ब्रह्मचारिणी देवी की कृपा से सर्वसिद्धि प्राप्त होती है। दुर्गा पूजा के दूसरे दिन देवी के इसी स्वरूप की उपासना की जाती है। इस देवी की कथा का सार यह है कि जीवन के कठिन संघर्षों में भी मन विचलित नहीं होना चाहिए।
दधाना करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलू।
देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा॥दुर्गा >>>
दुर्गा दैत्ये महाविघ्ने भवबन्धे कुकर्मणि ।
शोके दुःखे च नरके यम दण्डे च जन्मनि ।।
महाभये रोगे च शब्दोऽयं हन्तृवाचकः ।

--> राक्षसी भय मेँ , सांसारिक मोहमाया मेँ , कुत्सित कर्म मेँ शोक ,दुःख , नरक , यमराज द्वारा निर्धारित दण्ड मेँ , जन्म ,मरण , महाभय मेँ तथा रोगो मेँ दुर्गा शब्द के स्मरण मात्र से मुक्ति मिल जाती है ।
>>> द - दैत्य नाशार्थ वचनोँदकारः परिकीर्तितः ,
उ - उकारो विघ्ननाशस्य वाचको वेद सम्मतः ,
रः -रेफो रोगन्ध वचनोँ ,
ग - गश्च पापन्धः वाचकः
आ - भय शत्रुघ्न वचनश्चाकारः परिकीर्तितः ।
द -> दैत्यो का नाश करना ।
उ -> विघ्नो का नाश करने वाला ।
रः -> रोंगो का नाश करने वाला ।
ग -> पापो का नाश करने वाला ।
अ -> भय और शत्रुओँ का नाश करने वाले पञ्चाक्षर अलग अलग कार्यो को करते हैँ ।
इनके सम्मेलन से ही " दुर्गा " शब्द बना है ।
अतः हर प्रकार के क्लेशोँ को नाश करने वाला तथा सकल सुख सम्पत्ति प्रदान करने वाला यह नाम विश्व के प्राणियोँ का कल्याण करने वाला है ।
दुर्गा तो जगत माता हैँ ।
" पुत्र कुपुत्र जायते माता कुमाता न भवति । "
अतः माँ अपने पुत्रो का सदैव कल्याण ही करती है ।।

जगतजननी पराम्बा माँ दुर्गा की जय !!!

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