शनिवार, 11 जुलाई 2015

परिजात (हरसिंगार )

परिजात (हरसिंगार ) है गठिया की रामबाण दवा...!
पारिजात के फूल की कथा :-
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*'हरिवंशपुराण' में एक ऐसे वृक्ष का उल्लेख मिलता है, जिसको छूने से देव नर्तकी उर्वशी की थकान मिट जाती थी। एक बार नारद मुनि इस वृक्ष से कुछ फूल इन्द्र लोक से लेकर कृष्ण के पास आये। कृष्ण ने वे फूल लेकर पास बैठी अपनी पत्नी रुक्मणी को दे दिये। इसके बाद नारद कृष्ण की दूसरी पत्नी सत्यभामा के पास गए और उनसे यह सारी बात बतायी। सत्यभामा को नारद ने बताया कि इन्द्र लोक के दिव्य फूल कृष्ण ने रुक्मणी को दे दिए हैं। यह सुन कर सत्यभामा को क्रोध आ गया और उन्होंने ने कृष्ण के पास जा कर कहा कि उन्हें पारिजात का वृक्ष चाहिए। कृष्ण ने कहा कि वे इन्द्र से पारिजात का वृक्ष अवश्य लाकर सत्यभामा को देंगे।
* नारद जी ने इस तरह से झगड़ा लगा कर इन्द्र के पास आये और कहा कि स्वर्ग के दिव्य पारिजात को लेने के लिए कुछ लोग मृत्यु लोक से आने वाले हैं, पर पारिजात का वृक्ष तो इन्द्र लोक की शोभा है और इसे यहीं रहना चाहिए। जब कृष्ण सत्यभामा के साथ इन्द्र लोक आये तो इन्द्र ने पारिजात को देने का विरोध किया, पर कृष्ण के आगे वे कुछ न कर सके और पारिजात उन्हें देना ही पड़ा, लेकिन उन्होंने पारिजात वृक्ष को श्राप दे दिया कि इसका फूल दिन में नहीं खिलेगा। कृष्ण सत्यभामा की जिद के कारण पारिजात को लेकर आ गए और उसे सत्यभामा की वाटिका में लगा दिया गया। किंतु सत्यभामा को सीख देने के लिए ऐसा कर दिया कि वृक्ष तो सत्यभामा की वाटिका में था, लेकिन पारिजात के फूल रुक्मणी की वाटिका में गिरते थे। इस तरह सत्यभामा को वृक्ष तो मिला, किंतु फूल रुक्मणी के हिस्से आ गए। यही कारण है पारिजात के फूल हमेशा वृक्ष से कुछ दूर ही गिरते हैं।
* एक अन्य मान्यता यह भी है कि 'पारिजात' नाम की एक राजकुमारी हुआ करती थी, जिसे भगवान सूर्य से प्रेम हो गया था। लेकिन अथक प्रयास करने पर भी भगवान सूर्य ने पारिजात के प्रेम कों स्वीकार नहीं किया, जिससे खिन्न होकर राजकुमारी पारिजात ने आत्महत्या कर ली। जिस स्थान पर पारिजात की क़ब्र बनी, वहीं से पारिजात नामक वृक्ष ने जन्म लिया। इसी कारण पारिजात वृक्ष को रात में देखने से ऐसा लगता है, जैसे वह रो रहा हो। लेकिन सूर्य उदय के साथ ही पारिजात की टहनियाँ और पत्ते सूर्य को आगोष में लेने को आतुर दिखाई पडते हैं। ज्योतिष विज्ञान में भी पारिजात का विशेष महत्व बताया गया है।
बाराबंकी का पारिजात वृक्ष:-
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* पारिजात वृक्ष को लेकर गहन अध्ययन कर चुके रूड़की के कुंवर हरिसिंह के अनुसार यूँ तो परिजात वृक्ष की प्रजाति भारत में नहीं पाई जाती, लेकिन भारत में एक मात्र पारिजात वृक्ष आज भी उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जनपद के अंतर्गत रामनगर क्षेत्र के गाँव बोरोलिया में मौजूद है। लगभग 50 फीट तने व 45 फीट उँचाई के इस वृक्ष की अधिकांश शाखाएँ भूमि की ओर मुड़ जाती हैं और धरती को छुते ही सूख जाती हैं। एक साल में सिर्फ़ एक बार जून माह में सफ़ेद व पीले रंग के फूलों से सुसज्जित होने वाला यह वृक्ष न सिर्फ़ खुशबू बिखेरता है, बल्कि देखने में भी सुन्दर है। आयु की दृष्टि से एक हज़ार से पाँच हज़ार वर्ष तक जीवित रहने वाले इस वृक्ष को वनस्पति शास्त्री एडोसोनिया वर्ग का मानते हैं, जिसकी दुनिया भर में सिर्फ़ पाँच प्रजातियाँ पाई जाती हैं। इनमें से एक 'डिजाहाट' है। पारिजात वृक्ष इसी डिजाहाट प्रजाति का है।
बाराबंकी स्थित पारिजात वृक्ष:-
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* एक और मान्यता के अनुसार परिजात वृक्ष की उत्पत्ति समुद्र मंथन से हुई थी, जिसे इन्द्र ने अपनी वाटिका में रोप दिया था। कहा जाता है कि जब पांडव पुत्र माता कुन्ती के साथ अज्ञातवास व्यतीत कर रहे थे, तब उन्होंने ही सत्यभामा की वाटिका में से परिजात को लेकर बोरोलिया गाँव में रोपित कर दिया। तभी से परिजात गाँव बोरोलिया की शोभा बना हुआ है। देशभर से श्रद्धालु अपनी थकान मिटाने के लिए और मनौती आदि माँगने के लिए परिजात वृक्ष की पूजा-अर्चना करते है।इसे हिंदी में हरसिंगार कहते है..!
* इसे संस्कृत पे पारिजात कहते है, बंगला में शिउली कहते है , उस पेड़ पर छोटे छोटे सफ़ेद फूल आते है, और फूल की डंडी नारंगी रंग की होती है, और उसमे खुसबू बहुत आती है, रात को फूल खिलते है और सुबह जमीन में गिर जाते है।
* पारिजात पेड़ के पांच पत्ते तोड़ के पत्थर में पिस के चटनी बनाइये और एक ग्लास पानी में इतना गरम करो के पानी आधा हो जाये फिर इसको ठंडा करके पियो तो बीस बीस साल पुराना गठिया का दर्द इससे ठीक हो जाता है।
*और ये ही पत्ते को पीस के गरम पानी में डाल के पियो तो बुखार ठीक कर देता है और जो बुखार किसी दावा से ठीक नही होता वो इससे ठीक होता है; जैसे चिकनगुनिया का बुखार, डेंगू फीवर, Encephalitis , ब्रेन मलेरिया, ये सभी ठीक होते है।
* पारिजात बावासीर रोग के निदान के लिए रामबाण औषधी है। इसके एक बीज का सेवन प्रतिदिन किया जाये तो बवासीर रोग ठीक हो जाता है। पारिजात के बीज का लेप बनाकर गुदा पर लगाने से बवासीर के रोगी को राहत मिलती है।
* इसके फूल हृदय के लिए भी उत्तम औषधी माने जाते हैं। वर्ष में एक माह पारिजात पर फूल आने पर यदि इन फूलों का या फिर फूलों के रस का सेवन किया जाए तो हृदय रोग से बचा जा सकता है।
* इतना ही नहीं पारिजात की पत्तियों को पीस कर शहद में मिलाकर सेवन करने से सूखी खाँसी ठीक हो जाती है।
* इसी तरह पारिजात की पत्तियों को पीसकर त्वचा पर लगाने से त्वचा संबंधि रोग ठीक हो जाते हैं। पारिजात की पत्तियों से बने हर्बल तेल का भी त्वचा रोगों में भरपूर इस्तेमाल किया जाता है।

* पारिजात की कोंपल को यदि पाँच काली मिर्च के साथ महिलाएँ सेवन करें तो महिलाओं को स्त्री रोग में लाभ मिलता है। वहीं पारिजात के बीज जहाँ बालों के लिए शीरप का काम करते हैं तो इसकी पत्तियों का जूस क्रोनिक बुखार को ठीक कर देता है।

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