शनिवार, 11 जुलाई 2015

शरीर के लिए आवश्यक और महत्वपूर्ण विटामिन “बी1”/आवश्यक है - विटामिन डी :

शरीर के लिए आवश्यक और महत्वपूर्ण विटामिन “बी1” - (थायमिन हाइड्रोक्लोराइड) - Vitamin B1 (Thiamine) :
(A SEPARATE UPDATE has been posted in English, which IS NOT A TRANSLATION of this. Those, who know BOTH HINDI & ENGLISH, should better READ BOTH UPDATES)

विटामिन की खोज बेरी -बेरी रोग के उपचार ढूँढ़ते समय हुई। नेवी के यात्रियों को यह रोग बहुत होता था क्योकिं उनके आहार में शाक -सब्जियों का अभाव होता था।

“बी-1” (थायमिन)के कार्य :


- यह विटामिन कार्बोहाइड्रेट के चयापचय में सहायक होता है। कार्बोहाइट्रेट से ऊर्जा का निर्माण होते समय मध्यवर्ती पदार्थ पिरूबिक एसिड बनता है। यह पिरूबिक एसिड को एसीटेट में परिवर्तित कर देता है तथा आगे की क्रिया में कार्बन डाई-ऑक्साइड का निर्माण करता है।
- पाचन संस्थान की माँसपेशियों की गति को सामान्य रखता है जिससे भूख सामान्य रहती है।
- तन्त्रिका तन्त्र के भली-भाँति कार्य करने में इसकी उपस्थिति अनिवार्य है।
- आयु बढ़ाने के लिए विटामिन “बी1” का महत्वपूर्ण योगदान होता है।
- विटामिन “बी1” निशास्ता युक्त (wheat starch) भोजन को पचाने मे सहयोग करता है।
- आंतड़ियों की मांसपेशियों को शक्तिशाली बनाने में इस विटामिन का विशेष योगदान रहता है।
- विटामिन बी1 की पर्याप्त मात्रा शरीर में रहने पर मांसपेशियांपुष्ट रहती हैं।
- विटामिन बी1 की पर्याप्त मात्रा से आंतों के संक्रमण की सुरक्षा बनी रहती है। - इससे आंतों की झिल्ली मजबूत बनी रहती है। इसी मजबूती के कारण इस पर कीटाणु हमला नहीं कर पाते हैं।
- यह विटामिन यकृत की कार्य प्रणाली को स्वस्थ रखता है।
- मस्तिष्कतथा तंत्रिका संस्थान के सूत्रों को स्वस्थ रखना इसी विटामिन के जिम्मे होते हैं।
- यह विटामिन मानव रक्त के तरल भाग में प्रोटीनको यथाचित मात्रा में संतुलित रखता है।

शरीर मे विटामिन “बी1” की कमी से होने वाली बीमारियाँ :

- विटामिन बी1 की कमी से बेरी-बेरी रोग हो जाता है।
- यदि भोजन में विटामिन बी1 की कमी हो जाए तो शरीर कार्बोहाइड्रेटसतथा फास्फोरसका सम्पूर्ण प्रयोग कर पाने में समर्थ नहीं हो पाता। इससे शरीर में एक विषैला एसिड जमा होकर रक्तमें मिल जाता है और मस्तिष्क के तंत्रिका संस्थान को हानि पहुंचाने लगता है।
- विटामिन बी1 की कमी से होने वाले बेरी-बेरी रोग में रोगी की मांसपेशियों को जहां भी छुआ जाए वहां वेदना होती है तथा उसके पश्चात स्पर्श शून्यता का आभास होता है।
- विटामिन-बी1 की कमी से बेरी-बेरी रोग का रोगी इतना शक्तिहीन हो चुका होता है कि वह जहां एक बार बैठ जाता है दुबारा उठने का साहस अपने अन्दर नहीं संजो पाता है।
- रोगी थोड़ा सा काम करके थक जाता है।
- विटामिन “बी1” की कमी का रोगी अक्सर अजीर्ण का रोगी रहता है।
- भूख न लगना, स्मृण शक्ति कम हो जाना, दिल की कमजोरी, सांस लेने मे कठिनाई पैरो मे जलन, अमाशय-आंतड़ियो के रोग.
- सामान्य मनुष्यों की अपेक्षा कठोर परिश्रम करने वाले लोगों को विटामिन बी1 की अधिक मात्रा की आवश्यकता होती है।
बेरी-बेरी रोग दो प्रकार के होते है पहला शुष्क तथा दूसरा आर्द्र।
- आर्द्र बेरी-बेरी रोग के रोगियों की नाड़ी तीव्र गति से चलती है तथा उनका हृदय कमजोर हो जाता है।
- शुष्क बेरी-बेरी का रोगी दिन प्रतिदिन कमजोर, असहाय, दुर्बल और असमर्थ होता चला जाता है।
- किसी-किसी रोगी में शुष्क और आर्द्र दोनों प्रकार के बेरी-बेरी के लक्षण मिलते हैं।
- शुष्क एवं आर्द्र लक्षणयुक्त रोगी को हृदय सम्बंधी अनेक विकार होते हैं। उनका हृदय जांच करने पर फुटबाल के ब्लैडर जैसा फैला हुआ अनुभव होता है।
- शुष्क एवं आर्द्र बेरी-बेरी के लक्षण यदि किसी रोगी में एक साथ दिखे तो उसकी चिकित्सा जितनी जल्दी हो सके आरम्भ कर देनी चाहिए। लापरवाही और गैर जिम्मेदारी जान का खतरा पैदा कर सकती है।
- विटामिन बी1 की कमी से वात संस्थान पर असर पड़ता है और इसीलिए वात नाड़ियों में वेदना होती है।
- गर्भावस्था की वमन (उल्टी) विटामिन बी1 की कमी का सूचक कहा जा सकता है।
- गर्भावस्था की विषममयता विटामिन बी1 की कमी से होती है अत: विटामिन बी1 की पूर्ति हो जाने पर गर्भावस्था की विषमयता नष्ट हो जाती है।
- बहुत से चर्म रोगविटामिन बी1 की कमी की वजह से भोगने पड़ते हैं।
- विटामिन बी1 की कमी का प्रथम लक्षण बिना किसी कारण के भूख लगना बन्द हो जाना है।
- पीलिया रोगके पीछे भी विटामिन बी1 की कमी होती है।
- विटामिन बी1 की कमी से रोगी को पानी की तरह पतली उल्टी तथा जी मिचलाना जैसे रोग हो जाते हैं।
- मोटे व्यक्तियों को विटामिन बी1 की अधिक आवश्यकता होती है।
- विटामिन बी1 की कमी से हृदय बड़ा हो जाना रोगी के लिए बहुत ही खतरनाक साबित हो सकता है।
- विटामिन बी1 की कमी से फेफड़ों की झिल्ली में तरल पदार्थ जमा हो जाता है। इसकी कमी से अण्डकोषों में भी तरल पदार्थ जमा हो जाता है।
सांस लेने में कठिनाई, पैरों में जलन।
- आमाशय-आंतड़ियों के रोग।
- कब्ज होना,पेट में वायु (गैस) उत्पन्न होना,पाचन क्रिया के दोष होना।

आवश्यक मात्रा :

वयस्कों को प्रतिदिन विटामिन बी1 की एक मिलीग्राम मात्रा आवश्यक होती है।
गर्भवती स्त्रियों को अपने पूरे गर्भावस्थाके समय तक विटामिन बी1 की 5 मिलीग्राम मात्रा आवश्यक होती है।
शरीर में विटामिन बी1 जरूरत से ज्यादा हो जाने पर पेशाब के साथ बाहर निकल जाता है।

विटामिन 'बी' के स्रोत-
ओटमील (जई का अंटा), ब्राउन राइस (चावल), विभिन्न अनाज, दालों के बीजांकुर (germ), खमीर व सूखे मेवे आलू, और ताजी हरी सब्जियां दूध, फल - वनस्पतियों, पत्तेदार शाक. खमीर में विटामिन बी1 अधिक मात्रा में विद्यमान रहता है। मटर में विटामिन बी1 सबसे कम होता है।
मॉस (लीवर), मछली, अंडे, अण्डे की जर्दी, जिगर ,गुर्दे,

                                    आवश्यक है - विटामिन डी :
विटामिन-डी शरीर के विकास, हड्डियों के विकास और स्वास्थ्य के लिए बहुत जरूरी है। धूप के संपर्क में आने पर त्वचा इसका निर्माण करने लगती है। सिर्फ यह एक ऐसा विटामिन है, जो हमें मुफ्त में उपलब्ध है। विटामिन डी का सबसे अच्छा स्त्रोत सूर्य की किरणें हैं।
यह शरीर में कैल्शियम के स्तर को नियंत्रित करता है, जो तंत्रिका तंत्र की कार्य प्रणाली और हड्डियों की मजबूती के लिए जरूरी है। यह शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है। शरीर में विटामिन डी की उचित मात्रा उच्च रक्तचाप के खतरे को कम करता है।
हालांकि यह विटामिन खाने की कुछ चीजों से भी प्राप्त होता है, लेकिन इनमें यह बहुत ही कम मात्रा में होता है। केवल इनसे विटामिन-डी की जरूरत पूरी नहीं हो जाती है। नए अध्ययनों से सामने आया है कि विटामिन डी की कमी से दिल संबंधी बीमारियां होने का खतरा है और अन्य कई गंभीर बीमारियां हो सकती है। विटामिन डी शरीर के कई महत्वपूर्ण अंगों को ठीक तरह से संचालित करने में मदद करता है। इसकी कमी से कई गंभीर विकार जैसे कि इम्यूनिटी, ऑटो इम्यूनिटी का बढऩा, मायोपेथी, डायबिटीज मैलीटिस और कोलन, स्तन व प्रोस्टेट कैंसर हो सकते है।
महिलाओं के लिए बहुत आवश्यक :
विटामिन डी की कमी महिलाओं में उन दिनों में काफी परेशान करता है। इसलिए इसकी पूर्ति से महिलाओं को उन दिनों के दौरान होने वाले प्रीमेन्सट्रअल सिंड्रोम में भी सहायता मिलती है। जिन औरतों में विटामिन डी की कमी होती है, उनके बच्चों को विटामिन डी और कम मात्रा में मिल पाता है। ऐसे में बच्चे में रिकेट्स होने का खतरा बढ़ जाता है। इसलिए महिलाओं को स्तनपान के दौरान शुरुआती तीन माह में विटामिन डी के सप्लीमेंट्स सावधानीपूर्वक लेने चाहिए, क्योंकि इससे यूरेनरी ट्रैक्ट इंफेक्शन का खतरा बढ़ सकता है। इसकी कमी से मेनोपॉज के बाद महिलाओं में आस्टियोपोरेसिस का खतरा बढ़ जाता है।
कमी के लक्षण -
दर्द या तेज दर्द, कमजोरी एवं ओस्टियोमेलेशिया और हड्डियों का दर्द (आमतौर पर कूल्हों, पसलियों और पैरों आदि की हड्डियों में) साथ ही खून में विटामिन-डी की कमी होने पर कार्डियोवेस्क्युलर रोगों से मृत्यु, याददाश्त कमजोर होना आदि की आशंकाएं प्रबल होती हैं।
स्त्रोत :
विटामिन डी का सबसे अच्छा स्त्रोत सूर्य की किरणें हैं। जब हमारे शरीर की खुली त्वचा सूरज की अल्ट्रावायलेट किरणों के संपर्क में आती है तो ये किरणें त्वचा में अवशोषित होकर विटामिन डी का निर्माण करती हैं।
अगर सप्ताह में दो बार दस से पंद्रह मिनट तक शरीर की खुली त्वचा पर सूर्य की अल्ट्रा वायलेट किरणें पड़ती हैं तो शरीर की विटामिन डी की 80-90 प्रतिशत तक आवश्यकता पूरी हो जाती है। सूर्य की किरणों के बाद काड लीवर ऑयल विटामिन डी का सबसे अच्छा स्त्रोत है। इसके अलावा दूध, अंडे, चिकन, मछलियां , भी विटामिन डी के अच्छे स्त्रोत हैं। विटामिन डी को सप्लीमेंट के रूप में भी लिया जा सकता है। विशेषज्ञों के अनुसार ज्यादातर भारतीयों की डाइट में विटामिन डी की कमी ही पाई गई है क्योंकि खाने के स्त्रोत कम है, लोग शाकाहारी है। बहुत कम लोगों को विटामिन डी से होने वाले फायदों की जानकारी है। विटामिन डी केवल प्राणिज्य पदार्थों में ही पाया जाता है। वनस्पति जगत में यह बिल्कुल नहीं प्राप्त होता है। इसके मुख्य स्राोत मछली का तेल, वेसीय मछली, अण्डा, मक्खन पनीर, वसायुक्त दूध तथा घी हैं।
विटामिन डी के स्तर को जानने के लिए रूटीन सीरम काफी महंगा है, इसलिए सभी को कराने का परामर्श नहीं दिया जाता लेकिन विटामिन डी की कमी के बढ़ते मामलों को देखते हुए समय रहते टेस्ट करवा लेना चाहिए।

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