मंगलवार, 14 अप्रैल 2015

/शनि साढेसाती के तीन चरण :-

दामपत्य जीवन पर शनि देव की नजर होती है अब यदि 7वें भाव मे वो खुद विराजमान हो तो भई जीवन साथी के होते हुए भी लगाव नी होने देता और पहले शादी टलती जाती है एक उम्र भी लग जाती है रिश्ते आते है लेकिन बात नी बनती एक कारण ऐ भी है की जातक काम की वजह से परेशान रहता है अब सप्तम भाव विवाह एवं जीवनसाथी का घर माना जाता है.इस भाव शनि का होना विवाह और वैवाहिक जीवन के लिए शुभ संकेत नहीं माना जाता है.इस भाव में शनि होने पर व्यक्ति की शादी सामान्य आयु से विलम्ब से होती है.सप्तम भाव में शनि अगर नीच का होता है तब यह संभावना रहती है कि व्यक्ति काम पीड़ित होकर किसी ऐसे व्यक्ति से विवाह करता है जो उम्र में उससे काफी बड़ा होता है.शनि के साथ सूर्य की युति अगर सप्तम भाव में हो तो विवाह देर से होता है एवं कलह से घर अशांत रहता है .चन्द्रमा के साथ शनि की युति होने पर व्यक्ति अपने जीवनसाथी के प्रति प्रेम नहीं रखता एवं किसी अन्य के प्रेम में गृह कलह को जन्म देता है.ज्योतिषशास्त्र के अनुसार सप्तम शनि एवं उससे युति बनाने वाले ग्रह विवाह एवं गृहस्थी के लिए सुखकारक नहीं होते हैं.अब केतू महाराज लगन मे हो या पाचवे भाव मे शुक्र भी पाप पिडित हो तो सतांन भी नही होती है होके मर भी जाती है या एक होगी तो दूसरी होती नी या मान लो शादी 30-36 मे हुई सतांन सुख उम्र के 42-48 के बीच देता है पहली हो भी गयी तो उसे कोई न कोई तकलीफ जरूर होती है और गुरू राहु भी एक साथ हो या आपस मे देखते हो तो विवाह सुख भोग ही नी पाते ऐ भी देखा गया है एक सतांन हुयी खासतर बेटी तो उसे पिता सुख नी मिल पाता ।/
शनि साढेसाती के तीन चरण :-

शनि साढेसाती (Shani Sade Sati) में शनि तीन राशियों पर गोचर करते है. तीन राशियों पर शनि के गोचर को साढेसाती (Shani Sade Sati) के तीन चरण के नाम से भी जाना जाता है. अलग- अलग राशियों के लिये शनि के ये तीन चरण अलग - अलग फल देते है. शनि कि साढेसाती के नाम से ही लोग भयभीत रहते है.
जिस व्यक्ति को यह मालूम हो जाये की उसकी शनि की साढेसाती चल रही है, वह सुनकर ही व्यक्ति मानसिक दबाव में आ जाता है. आने वाले समय में होने वाली घटनाओं को लेकर तरह-तरह के विचार उसके मन में आने लगते है.
शनि की साढेसाती को लेकर जिस प्रकार के भ्रम देखे जाते है. वास्तव में साढेसाती का रुप वैसा बिल्कुल नहीं है. आईये शनि के चरणों को समझने का प्रयास करते है-
साढेसाती चरण-फल विभिन्न राशियों के लिये
साढेसाती का प्रथम चरण (first step of Shani Sade Sati) - वृ्षभ, सिंह, धनु राशियों के लिये कष्टकारी होता है. द्वितीय चरण या मध्य चरण- मेष, कर्क, सिंह, वृ्श्चिक, मकर राशियों के लिये अनुकुल नहीं माना जाता है. व अन्तिम चरण- मिथुन, कर्क, तुला, वृ्श्चिक, मीन राशि के लिये कष्टकारी माना जाता है.
इसके अतिरिक्त तीनों चरणों के लिये शनि की साढेसाती निम्न रुप से प्रभाव डाल सकती है-
प्रथम चरण :-
इस चरणावधि में व्यक्ति की आर्थिक स्थिति प्रभावित होती है. आय की तुलना में व्यय अधिक होते है. विचारें गये कार्य बिना बाधाओं के पूरे नहीं होते है. धन विषयों के कारण अनेक योजनाएं आरम्भ नहीं हो पाती है. अचानक से धन हानि होती है. व्यक्ति को निद्रा में कमी का रोग हो सकता है. स्वास्थय में कमी के योग भी बनते है. विदेश भ्रमण के कार्यक्रम बनकर -बिगडते रह्ते है. यह अवधि व्यक्ति की दादी के लिये विशेष कष्टकारी सिद्ध होती है. मानसिक चिन्ताओं में वृ्द्धि होना सामान्य बात हो जाती है. दांम्पय जीवन में बहुत से कठिनाई आती है. मेहनत के अनुसार लाभ नहीं मिल पाते है.
द्वितीय चरण :-
व्यक्ति को शनि साढेसाती की इस अवधि में पारिवारिक तथा व्यवसायिक जीवन में अनेक उतार-चढाव आते है. उसे संबन्धियों से भी कष्ट होते है. व्यक्ति को अपने संबन्धियों से कष्ट प्राप्त होते है. उसे लम्बी यात्राओं पर जाना पड सकता है. घर -परिवार से दूर रहना पड सकता है. व्यक्ति के रोगों में वृ्द्धि हो सकती है. संपति से संम्बन्धित मामले परेशान कर सकते है.
मित्रों का सहयोग समय पर नहीं मिल पाता है. कार्यो के बार-बार बाधित होने के कारण व्यक्ति के मन में निराशा के भाव आते है. कार्यो को पूर्ण करने के लिये सामान्य से अधिक प्रयास करने पडते है. आर्थिक परेशानियां भी बनी रह सकती है.
तीसरा चरण :-
शनि साढेसाती के तीसरे चरण में व्यक्ति के भौतिक सुखों में कमी होती है. उसके अधिकारों में कमी होती है. आय की तुलना में व्यय अधिक होते है. स्वास्थय संबन्धी परेशानियां आती है. परिवार में शुभ कार्यो बाधित होकर पूरे होते है. वाद-विवाद के योग बनते है. संतान से विचारों में मतभेद उत्पन्न होते है. संक्षेप में यह अवधि व्यक्ति के लिये कल्याण कारी नहीं रह्ती है. जिस व्यक्ति की जन्म राशि पर शनि की साढेसाती का तीसरा चरण चल रहा हों, उस व्यक्ति को वाद-विवादों से बचके रहना चाहिए.

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