मंगलवार, 16 दिसंबर 2014

श्री रामचँद्र स्तुति

श्री रामचँद्र कृपालु भजु मन हरण भवभय दारुणम्।
नवकंज-लोचन, कंज-मुख, कर कंज, पद कंजारुणम्।।
कंदर्प अगणित अमित छबि, नवनील-नीरद सुंदरम्।
पट पीत मानहु तड़ित रुचि शुचि नौमि जनक-सुतावरम्।।
भजु दीनबंधु दिनेश दानव-दैत्य-वंश-निकंदनम्।
रघुनंद आनँदकंद कोशलचंद दशरथ-नंदनम्।।
सिर मुकुट कुंडल तिलक चारु उदारु अंग विभूषणम्।

आजानुभुज शर-चाप-धर, संग्राम-जित-खर-दूषणम्।।

 इति वदति तुलसीदास शंकर-शेष-मुनि-मन रंजनम्।

मम् हृदय-कंज-निवास कुरु, कामादि खल-दल-गंजनम्।।

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