बुधवार, 27 अगस्त 2014

*श्री राधा चालीसा*




   *श्री राधा चालीसा*



श्री राधे वृषभानुजाभक्तिन प्राणाधार।
वृन्दाविपिन विहारिणीप्रणवौं बारंबार॥
जैसो तैसो रावरौकृष्ण प्रिया सुखधाम।
चरण शरण निज दीजियेसुन्दर सुखद ललाम॥
॥ चौपाई ॥
जय वृषभानु कुँवरि श्री श्यामाकीरति नंदिनी शोभा धामा॥ (१)
नित्य बिहारिनि श्याम अधाराअमित मोद मंगल दातारा॥ (२)
रास विलासिनि रस विस्तारिनिसहचरि सुभग यूथ मन भावनि॥ (३)
नित्य किशोरी राधा गोरीश्याम प्राण धन अति जिय भोरी॥ (४)
करुणा सागर हिय उमंगिनिललितादिक सखियन की संगिनी॥ (५)
दिनकर कन्या कूल विहारिनिकृष्ण प्राण प्रिय हिय हुलसावनि॥ (६)
नित्य श्याम तुमरौ गुण गावैंराधा राधा कहि हरषावैं॥ (७)
मुरली में नित नाम उचारेंतुम कारण लीला वपु धारें॥ (८)
प्रेम स्वरूपिणि अति सुकुमारीश्याम प्रिया वृषभानु दुलारी॥ (९)
नवल किशोरी अति छवि धामाधुति लघु लगै कोटि रति कामा॥ (१०)
गोरांगी शशि निंदक बदनासुभग चपल अनियारे नयना॥ (११)
जावक युत युग पंकज चरनानुपूर धुनि प्रीतम मन हरना॥ (१२)
संतत सहचरि सेवा करहींमहा मोद मंगल मन भरहीं॥ (१३)
रसिकन जीवन प्राण अधाराराधा नाम सकल सुख सारा॥ (१४)
अगम अगोचर नित्य स्वरूपाध्यान धरत निशिदिन ब्रज भूपा॥ (१५)
उपजेउ जासु अंश गुण खानीकोटिन उमा रमा ब्रह्मानी॥ (१६)
नित्य धाम गौलोक विहारिनिजन रक्षक दुख दोष नसावनि॥ (१७)
शिव अज मुनि सनकादिक नारदपार न पायँ शेष अरु शारद॥ (१८)
राधा शुभ गुण रूप उजारीनिरखि प्रसन्न होत बनवारी॥ (१९)
ब्रज जीवन धन राधा रानीमहिमा अमित न जाय बखानी॥ (२०)
प्रीतम संग देइ गलबाँहीबिहरत नित्य वृन्दावन माँही॥ (२१)
राधा कृष्ण कृष्ण कहैं राधाएक रूप दोउ प्रीत अगाधा॥ (२२)
श्री राधा मोहन मन हरनीजन सुख दायक प्रफ़ुलित बदनी॥ (२३)
कोटिक रूप धरें नंद नंन्दादर्श करन हित गोकुल चन्दा॥ (२४)
रास केलि करि तुम्हें रिझावेंमान करौ जब अति दुख पावें॥ (२५)
प्रफ़ुलित होत दर्श जब पावेंविविध भाँति नित विनय सुनावें॥ (२६)
वृन्दारण्य विहारिनि श्यामानाम लेत पूरण सब कामा॥ (२७)
कोटिन यज्ञ तपस्या करहूविविध नेम ब्रत हिय में धरहू॥ (२८)
तऊ न श्याम भक्तहिं अपनावेंजब लगि राधा नाम न गावें॥ (२९)
वृन्दाविपिन स्वामिनि राधालीला वपु तब अमित अगाधा॥ (३०)
स्वयं कृष्ण पावैं नहिं पाराऔर तुम्हैं को जानन हारा॥ (३१)
श्री राधा रस प्रीति अभेदासादर गान करत नित वेदा॥ (३२)
राधा त्यागि कृष्ण को भजि हैंते सपनेहुं जग जलधि न तरि हैं॥ (३३)
कीरति कुँवरि लाड़िली राधासुमिरत सकल मिटहिं भव बाधा॥ (३४)
नाम अमंगल मूल नसावनत्रिविध ताप हर हरि मनभावन॥ (३५)
राधा नाम लेय जो कोईसहजहिं दामोदर बस होई॥ (३६)
राधा नाम परम सुखदाईभजतहिं कृपा करहिं यदुराई॥ (३७)
यशुमति नन्दन पीछे फ़िरिहैंजो कोउ राधा नाम सुमिरिहैं॥ (३८)
रास विहारिनि श्यामा प्यारीकरहु कृपा बरसाने वारी॥ (३९)
वृन्दावन है शरण तिहारीजय जय जय वृषभानु दुलारी॥ (४०)
॥ दोहा ॥
श्री राधा सर्वेश्वरीरसिकेश्वर घनश्याम।
करहुँ निरन्तर वास मैंश्री वृन्दावन धाम॥

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