बुधवार, 18 मार्च 2015

हनुमान जी के तीन विवाह

हनुमान महाऋषी गौतम की पुत्री अप्सरा पुंजिकस्थली अर्थात अंजनी के गर्भ से पैदा हुए। अंजनी के गर्भ के बारे में जब गौतम ऋषि को पता चला और यह भी पता चला की उस गर्भ का कारण राजा केसरी हैं तो उन्होंने अंजनी को पर्वतों में रहने के लिए भेज दिया। जहां वे केसरी से न मिल पाएं। हनुमानजी के जन्म उपरान्त जब माता अंजनी ने हनुमान नामक पुत्र वानर रूप में देखा तो उसे शिव के रूप से भिन्न जानकर वह पवन देव से रुष्ट हो गई। उन्होंने हनुमानजी को एक ऊंची चट्टान से नीचे छोड़ दिया। उनके गिरने से पर्वत चूर-चूर हो गया। पर्वत पर केसरी इंतज़ार कर रहे थे, और वायु मार्ग से आते हुए हनुमान को उन्होंने संभाल लिया।
 







इतिहासिक घटनाओं पर आधारित लोकजीवन में प्रचलित कथाओं के अनुसार हनुमान जी का जन्म विवादास्पद स्थिती में हुआ था। अतः माता अंजना व हनुमानजी को गौतम ऋषि का आश्रम छोडना पड़ा। हनुमानजी कभी भी केसरी राज्य के उत्तराधिकारी नहीं हो पाए। लोकमान्यता के अनुसार कुछ वर्षों के लिए माता अंजना व हनुमानजी को कपिस्थल कुरु साम्राज्य से दूर रहना पड़ा। शास्त्रों में ऐसा वर्णित है कि हनुमानजी को कभी भी पारिवारिक सुख नही मिल पाया उन्हें न कभी पूर्णतः से माता पिता का प्रेम मिल पाया ना ही कभी उनका गृहस्थ जीवन शुरू हो पाया।
          
शास्त्रों व लोकमान्यताओं के अनुसार हनुमान जी के तीन विवाह हुए थे। शास्त्र पाराशर संहिता के अनुसार सूर्यदेव से संपूर्ण ज्ञान प्राप्त करने हेतु हनुमान जी का पहला विवाह सूर्यपुत्री सुर्वचला से हुआ था। शास्त्र पउम चरित के अनुसार वरुण से रावण के युद्ध में रावण की ओर से हनुमान ने युद्ध किया तथा उसके समस्त पुत्रों को बंदी बना लिया। वरुण ने अपनी पुत्री सत्यवती का तथा रावण ने अपनी दुहिता अनंगकुसुमा का विवाह हनुमान जी से कर दिया। हनुमान पत्नी अनंगकुसुमा के सन्दर्भ में शास्त्र पउम चरित कुछ इस प्रकार बखान करता है कि "सीता-हरण के संदर्भ में खर दूषण-वध का समाचार लेकर राक्षस-दूत हनुमान की सभा में पहुंचा तो अंत:पुर में शोक छा गया। अनंगकुसुमा मूर्च्छित हो गई।"

            हनुमान जी सामान्य जीवन से कभी खुश नहीं थे। उनके जीवन का उद्देश मात्र परमार्थ कि प्राप्ति रहा। तीन विवाह होने के उपरांत भी वह सदैव ब्रह्मचारी ही रहे। हनुमान जी के जीवन का उद्देश प्रभु दासता और ईश्वरीय शक्ति की सत्यता को साधना ही रहा। धन्य है ऐसे हनुमान जो राज-पाठ, सुख-वैभव, भोग-विलासिता से दूर वनों में दुख व कष्ट सहकर राम नाम रमते रहे।//

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