रविवार, 31 दिसंबर 2017

विषम परिस्थितियों में,,🌹



विषम परिस्थितियों में,,🌹
प्रतिभाएं बिखरती नहीं निखरकर प्रेरणा कि स्रोत बन जाया करती हैं | जिनके संस्मरणों को स्मरण कर लोगों में नयी चेतना, नयी उर्जा, सकारात्मक सोच का संचार होेने लगता है ||🌴
ऊर्जावान पवित्र लक्ष्य वाले महापुरुष, और मातायें विषमता में भी संघर्ष के जज्बे से सफलता की आकाशीय गंगा में सूर्य और चंद्रमा की भांति चमका करती हैं ||🌹
सीता सती,
अनुसुइया, सावित्री, अपाला, गार्गी, घोषा, रानी लक्ष्मीबाई, ध्रुव, प्रहलाद, हरिश्चंद्र, सूर कबीर, तुलसी, मीरा, रंतिदेव, महात्मा, गांधी, लाल बहादुर शास्त्री ,विवेकानंद, कलाम साहब🌺 जिन्होंने देश दुनिया को एक अद्भुत संदेश दिया की यदि🌿
हृदय में संघर्ष का सरोवर हो तो एक ना एक दिन प्रतिभा का सूर्य हर परिस्थितियों को दरकिनार कर, चमकने लगता है ||
महापुरुषों के अवर्णनीय संघर्ष हमारी प्रेरणा उर्जा के केंद्र होने चाहिए | सफलता जीवन का परम लक्ष्य || जन जन को सुख देना ही हर जीव की श्रेष्ठ उपासना और साधना बन जानी चाहिये ||शायद यही सच्चे जीवन की नीव है || और गीता रामायण का संघर्ष से सफलता हासिल करने का संदेश भी 


ऐसा व्यक्ति जो वेद, शास्त्र, ईश्वर, माता, पिता, गुरु, मानवता, राष्ट्र, त्याग, स्वाध्याय, सेवा व धर्म में पूर्ण निष्ठा रखता हो, तथा अत्यंत सहजता पूर्वक इन सब की अवस्थाओं का पालन व सेवा करने में सक्षम हो, वह व्यक्ति श्रेष्ठ शिष्य व साधक बन सकता हैअगर कोई व्यक्ति अपने अल्पज्ञान और स्वःअनुभव से कहता है कि ----
""जो सभी नारियों के साथ-साथ #भोग्या को भी अपने अंतर्मन से #मां मानकर सहर्ष स्वीकार करके संसार में विचरण करता है, उसे #भैरव कहते हैं ।""
उस व्यक्ति का यह विचार/ज्ञान आप ज्ञानीजन/अनुभवी महात्माओं के अनुसार सत्य के कितना करीब माना जा सकता है ??
अगर त्रुटि हो तो और किस तरह से उक्त विचार को रखना चाहेंगे आप सभी । कृपया साधारण भाषा में ही विचार रखें ।
· रश्मि की ओढनी के तले कालिमा...
नव युवा आज फिर साधना हो गयी...
प्रेम की बूँद में डूब कर जन्मों की-
वासना आज आराधना हो गयी

पुराणों में परमेश्वरी(शक्ति) से परब्रह्म को अभिन्न माना गया है। शाक्त संप्रदाय में भी यही मान्यता है। दोनों का सिद्धांत लगभग एक ही है। वास्तव में शक्ति ही समस्त ब्रह्माण्ड में व्याप्त है--
शक्तिरूपजगत्सर्वं
यो न जानाति नारकी।
आराध्या परमाशक्तिर
यया सर्वमिदं ततम्।।
यह समस्त जगत शक्तिरूप है-इस बात को न जानने वाला मनुष्य नारकी है। जिस शक्ति से सबकुछ ही सृजित हुआ है,वह आराध्य है। जिस प्रकार शक्ति ब्रह्माण्ड में व्याप्त है, उसी प्रकार मानव शरीर के रोम रोम में व्याप्त है। इसीलिए शरीर को बहुत महत्व दिया गया है।
जैसे भूमंडल का आधार मेरु पर्वत है,उसी प्रकार मानव शरीर का आधार मेरुदंड(रीढ़ की हड्डी) है। इस मेरुदंड मे 33 अस्थिखंड हैं। इन 33 अस्थिखंडों का सम्बन्ध 33 कोटि देवताओं से है। यहाँ यह बतलाना आवश्यक है कि कोटि से आशय 'प्रकार' से है,न कि करोड़ से। अर्थात 33 प्रकार के देवता।
रीढ़ की हड्डी का यह भाग अंदर से खोखला होता है। इसके निचले सिरे के पास वाले स्थान को 'कंद' कहते हैं। इसी कंद में ब्रह्माण्ड में व्याप्त शक्ति की प्रतिमूर्ति निवास करती है।
शरीर की मुख्य 14 नाड़ियों में से केवल तीन नाड़ियों का तंत्र में बड़ा महत्व है। ये नाड़ियाँ हैं-- इड़ा, पिंगला और सुषुम्ना। मेरुदंड के ऊपर दोनों ओर से इड़ा और पिंगला नाड़ी लिपट कर ऊपर को चलती हैं। सुषुम्ना नाड़ी मेरुदण्ड के भीतर रहती है। इन तीनों नाड़ियों का आरम्भ कंदभाग से होकर समाप्ति कपाल स्थित हज़ार दल वाले कमल में होती है जिसे सहस्रार कहते हैं। सुषम्ना के अंदर क्रमशः बज्रा, चित्रिणी तथा ब्रह्म नाड़ी नामक तीन और सूक्ष्म नाड़ियाँ हैं जहाँ से सुषुम्ना वापस लौटती है,वही स्थान 'ब्रह्मरंध्र' है।
कंद में जो शक्ति निवास करती है, उसे कुण्डलिनी शक्ति कहते हैं। मेरुदंड के नीचे के सिरे पर कंद और ऊपर के सिरे पर सहस्रार चक्र है। यहीं पर परम शिव का वास है। परम शिव से कुण्डलिनी शक्ति का संयोग लययोग का पूर्ण ध्येय है। विषय अति गूढ़ है। पर सारांश यह है कि नश्वर पृथ्वी,जल,अग्नि,वायु और आकाश तथा बुद्धि तत्वों को क्रमशः एक दूसरे में लीन करके अंततः अद्वैत रूप का अनुभव करना साधक का एकमात्र उद्देश्य होता है। जैसे गंध(पृथ्वी), नैवेद्य(जल), दीप(अग्नि), धूप(वायु) और पुष्प(आकाश)। इनका समर्पण पाँचौ तत्वों के लय के समान है। इसके अतिरिक्त पृथ्वी से लेकर आकाश तक सभी तत्व क्रमशः एक दूसरे से सूक्ष्मतर हैं। इनका भी स्थूल से सूक्ष्म और सूक्ष्मतर में लय निश्चित होता है।

 

क्योंकि मन को साध लिया तो प्रथम बाधा पार कर लिया समझो।
फिर स्व का भान होते ही आगे का मार्ग स्वयं ही परिलक्षित होने लगता है, परन्तु चलना बहुत सम्भाल कर होता है।
क्यूंकि बाकी तो माई महामाई की इच्छा ही निर्धारित करती है कि आगे आपको कहाँ तक जाना है और किस मार्ग से जाना है।
वो मार्ग कंटकाकीर्ण भी हो सकता है और पुष्पाच्छादित भी।

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