रविवार, 3 जुलाई 2016

========= हिन्दू मंदिर में जाने के नियम =



                                               ========= हिन्दू मंदिर में जाने के नियम =



मंदिर समय := हिन्दू मंदिर में जाने का समय होता है। सूर्य और तारों से रहित दिन-रात की संधि को तत्वदर्शी मुनियों ने संध्याकाल माना है। संध्या वंदन को संध्योपासना भी कहते हैं। संधिकाल में ही संध्या वंदना की जाती है। वैसे संधि 5 वक्त (समय) की होती है, लेकिन प्रात:काल और संध्याकाल- उक्त 2 समय की संधि प्रमुख है अर्थात सूर्य उदय और अस्त के समय। इस समय मंदिर या एकांत में शौच, आचमन, प्राणायामादि कर गायत्री छंद से निराकार ईश्वर की प्रार्थना की जाती है।

दोपहर 12 से अपराह्न 4 बजे तक मंदिर में जाना, पूजा, आरती और प्रार्थना आदि करना निषेध माना गया है अर्थात प्रात:काल से 11 बजे के पूर्व मंदिर होकर आ जाएं या फिर अपराह्नकाल में 4 बजे के बाद मंदिर जाएं।
धरती के दो छोर हैं- एक उत्तरी ध्रुव और दूसरा दक्षिणी ध्रुव। उत्तर में मुख करके पूजा या प्रार्थना की जाती है इसलिए प्राचीन मंदिर सभी मंदिरों के द्वार उत्तर में होते थे। हमारे प्राचीन मंदिर वास्तुशास्त्रियों ने ढूंढ-ढूंढकर धरती पर ऊर्जा के सकारात्मक केंद्र ढूंढे और वहां मंदिर बनाए।

मंदिर में शिखर होते हैं। शिखर की भीतरी सतह से टकराकर ऊर्जा तरंगें व ध्वनि तरंगें व्यक्ति के ऊपर पड़ती हैं। ये परावर्तित किरण तरंगें मानव शरीर आवृत्ति बनाए रखने में सहायक होती हैं। व्यक्ति का शरीर इस तरह से धीरे-धीरे मंदिर के भीतरी वातावरण से सामंजस्य स्थापित कर लेता है। इस तरह मनुष्य असीम सुख का अनुभव करता है।
पुराने मंदिर सभी धरती के धनात्मक (पॉजीटिव) ऊर्जा के केंद्र हैं। ये मंदिर आकाशीय ऊर्जा के केंद्र में स्थित हैं। 

उदाहरणार्थ. . . . .
उज्जैन का महाकाल मंदिर कर्क पर स्थित है। ऐसे धनात्मक ऊर्जा के केंद्र पर जब व्यक्ति मंदिर में नंगे पैर जाता है तो इससे उसका शरीर अर्थ हो जाता है और उसमें एक ऊर्जा प्रवाह दौड़ने लगता है। वह व्यक्ति जब मूर्ति के जब हाथ जोड़ता है तो शरीर का ऊर्जा चक्र चलने लगता है। जब वह व्यक्ति सिर झुकाता है तो मूर्ति से परावर्तित होने वाली पृथ्वी और आकाशीय तरंगें मस्तक पर पड़ती हैं और मस्तिष्क पर मौजूद आज्ञा चक्र पर असर डालती हैं। इससे शांति मिलती है तथा सकारात्मक विचार आते हैं जिससे दुख-दर्द कम होते हैं और भविष्य उज्ज्वल होता

 
                                        =======ग्रह-नक्षत्र बाधा :
 किसी को राहु परेशान करता है तो कोई शनि से पीड़ित है, जबकि असल में कुंडली बनती है पूर्व जन्म के कर्मों अनुसार। फिर उसका संचालन होता है इस जन्म के कर्मों अनुसार। कर्म के सिद्धांत को समझना बहुत ही कठिन होता है।
कोई ग्रह या नक्षत्र किसी व्यक्ति विशेष पर उतना प्रभाव नहीं डालता जितना कि वह स्थान विशेष पर डालता है। हालांकि व्यक्ति 27 में से जिस नक्षत्र में जन्म लेता है, उसकी वैसी प्रकृति होती है। कोई व्यक्ति क्यों किसी विशेष और कोई क्यों किसी निम्नतम नक्षत्र में जन्म लेता है? इसका कारण है व्यक्ति के पूर्व जन्मों की गति इसीलिए नक्षत्रों का समाधान जरूरी है।

निवारण : इसका सिम्पल सा उपाय यह है कि आप अपने शरीर और कर्म को पवित्र बनाकर रखें। पांचों इंद्रियां साफ-सुथरी और पवित्र रखें। आहार और विहार के नियम समझें। ग्रहों का सबसे पहला प्रभाव शरीर और मन पर ही पड़ता है। अपना आहार, आचरण और चलन बदलें। उचित भोजन का सेवन करें और भोजन के हिन्दू नियमों को मानेंगे तो ग्रह बाधा से दूर रहेंगे।

जिस तरह वास्तु अनुरूप घर ही उत्तम फलदायी होता है, उसी तरह योग या व्यायाम से शरीर का वास्तु भी सुधारें। शरीर को हमेशा सुगंधित और साफ-सुथरा बनाए रखें। व्यवहार भी शरीर की प्रकृति है, उसे उत्तम बनाएं। अनुचित व्यवहार से दूर रहें। इसके अलावा एक छोटा-सा स्टोन, नग या मणि आपके जीवन से ग्रह बाधा को दूर कर सकता है या नहीं, इसका निर्णय कुंडली देखकर ही होता है। हालांकि पंचस्नान से भी यह बाधा दूर होती है और घर का वास्तु सुधारने से भी। *घर के प्रवेश द्वार पर हमेशा पर्याप्त रोशनी होनी चाहिए और प्रवेश द्वार सदैव साफ रखना चाहिए। ऐसा करने पर घर में सदैव सकारात्मक ऊर्जा आती है। यदि संभव हो तो प्रवेश द्वार पर लकड़ी की थोड़ी ऊंची दहलीज बनवाएं जिससे कि बाहर का कचरा अंदर न आ सके। कचरा भी वास्तु दोष बढ़ाता है।

*पुराने भवन के भीतर कमरों की दीवारों पर सीलन पैदा होने से बनी भद्दी आकृतियां भी नकारात्मक ऊर्जा का सूचक होती हैं। घर का प्लास्टर उखड़ा हुआ न हो। यदि कहीं से थोड़ा-सा भी प्लास्टर उखड़ जाए, तो तुरंत उसे दुरुस्त करवाएं। घर को कलर करवाते समय इस बात का ध्यान रखें कि पेंट एक-सा हो। शेड एक से अधिक हो सकते हैं लेकिन शेड्स का तालमेल ठीक होना चाहिए।

*घर के नैऋत्य कोण (दक्षिण-पश्चिम क्षेत्र) में अंधेरा न रखें तथा वायव्य कोण (उत्तर-पश्चिम क्षेत्र) में तेज रोशनी का बल्ब न लगाएं। घर में तुलसी का पौधा रहता है, तो कई प्रकार के वास्तु दोष दूर रहते हैं। तुलसी के पौधे के पास रोज शाम को दीपक भी लगाना चाहिए।
 

========1- यदि आपके व्यवसाय में निरन्तर गिरावट आ रही है, तो शुक्ल पक्ष के प्रथम गुरूवार को पीले कपड़े में काली हल्दी, 11 अभिमंत्रित गोमती चक्र, चांदी का सिक्का व 11 अभिमंत्रित धनदायक कौड़ियां बांधकर 108 बार ऊँ नमो भगवते वासुदेव नमः का जाप कर धन रखने के स्थान पर रखने से व्यवसाय में प्रगतिशीलता आ जाती है। 
 2- यदि आपका व्यवसाय मशीनों से सम्बन्धित है, और आये दिन कोई मॅहगी मशीन आपकी खराब हो जाती है, तो आप काली हल्दी को पीसकर केशर व गंगा जल मिलाकर प्रथम बुधवार को उस मशीन पर स्वास्तिक बना दें। यह उपाय करने से मशीन जल्दी खराब नहीं होगी।
 3- दीपावली के दिन पीले वस्त्रों में काली हल्दी के साथ एक चांदी का सिक्का रखकर धन रखने के स्थान पर रख देने से वर्ष भर मां लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है। 
 4- यदि कोई व्यक्ति मिर्गी या पागलपन से पीडि़त हो तो किसी अच्छे मूहूर्त में काली हल्दी को कटोरी में रखकर लोबान की धूप दिखाकर शुद्ध करें। तत्पश्चात एक टुकड़ें में छेद कर धागे की मद्द से उसके गले में पहना दें और नियमित रूप से कटोरी की थोड़ी सी हल्दी का चूर्ण ताजे पानी से सेंवन कराते रहें।

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