बुधवार, 12 जुलाई 2017

प्रदोष व्रत उद्यापन विधि:-

प्रदोष व्रत
यह व्रत तेरहवें दिन यानी त्रयोदशी को होता है। त्रयोदशी अथवा प्रदोष व्रत हर महीने में दो बार आता है- एक शुक्ल पक्ष और दूसरा कृष्ण पक्ष । इस व्रत में भगवान महादेव की पूजा की जाती है। यह प्रदोष व्रत करने से मनुष्य के सभी पाप धुल जाते है और उन्हें शिव धाम की प्राप्ति होती है।
त्रयोदशी अर्थात् प्रदोष का व्रत करने वाला मनुष्य सदा सुखी रहता है। उसके सम्पूर्ण पापों का नाश इस व्रत से हो जाता है। इस व्रत के करने से विधवा स्त्री को अधर्म से ग्लानि होती है और सुहागन नारियों का सुहाग सदा अटल रहता है, बंदी कारागार से छूट जाता है। जो स्त्री पुरुष जिस कामना को लेकर इस व्रत को करते हैं, उनकी सभी कामनाएं कैलाशपति शंकर जी पूरी करते हैं। सूत जी कहते हैं- त्रयोदशी व्रत करने वाले को सौ गऊ दान का फल प्राप्त होता है। इस व्रत को जो विधि विधान और तन, मन, धन से करता है उसके सभी दु:ख दूर हो जाते हैं।

प्रदोष व्रत उद्यापन विधि:-
कोई भी व्रत बिना उद्यापन के पूर्ण नहीं माना जाता। प्रत्येक व्रत का समापन उद्यापन के द्वारा करने से हीं व्रत पूर्ण माना जाता है। ऐसे तो प्रदोष व्रत का उद्यापन ग्यारह त्रयोदशी अथवा २६ त्रयोदशी के व्रत के उपरांत उद्यापन करना चाहिये। कार्तिक मास आनेपर शनिवार के दिन यदि पूरी त्रयोदशी हो तो वह प्रदोष व्रत के उद्यापन के लिये अति उत्तम मानी गयी है।
 पूजन सामग्री:-
∗ चांदी का वृषभ(नंदी)- , ∗ शिव-पार्वती का विग्रह (स्वर्ण की अथवा सामर्थ्यानुसार), ∗ ताँबे का पात्र (सिंहासन के रूप में), ∗ अक्षत – ५० ग्राम, ∗ पान (डंडी सहित)- ५, ∗ सुपारी- २, ऋतुफल, ∗ यज्ञोपवीत -१ जोड़ा (हल्दी से रंगा हुआ), ∗ रोली- १पैकेट, ∗ मौली- १, ∗ धूप- १ पैकेट, ∗ कपूर-१ पैकेट, ∗ रूई- बत्ती के लिये, ∗ वदूध (कच्चा दूध- गाय का)- ∗ ५० ग्राम, दही (गाय का)- ∗ ५० ग्राम, ∗ घी (गाय का)- १ किलो, ∗ शहद (मधु)- ५० ग्राम, ∗ शर्करा (मिश्री)- ५० ग्राम, ∗ छोटी इलायची- ५ ग्राम, ∗ लौंग- ५ ग्राम, ∗ पुष्पमाला, ∗ चंदन- ५० ग्राम, ∗ गंगाजल, ∗ कटोरी, वस्त्र (धोती) ∗ १ जोड़ा, ∗ वस्त्र- सफेद, ∗ पंचपात्र, ∗ पुष्प, ∗ बिल्वपत्र, ∗ आचमनी, ∗ लोटा, ∗ नैवेद्य, आरती के लिये थाली, ∗ मिट्टी का दीपक-५, ∗ कुशासन- २, ∗ खुल्ले रुपये, ∗ चौकी या लकड़ी का पटरा
प्रदोष व्रत उद्यापन पूजन विधि:-
उद्यापन के दिन प्रात:काल उठकर नित्य कर्म कर स्नान कर नित्य पूजा करें। प्रदोष काल के पहले दुबारा स्नान करें, स्वच्छ वस्त्र धारण करें। पूजा स्थल को स्वच्छ कर पवित्र कर लें। सभी पूजन सामग्री एकत्रित कर लें। उद्यापन के लिये चाँदी का वृषभ बनवायें। भगवान के तीन नेत्र, पाँच मुख और दस भुजाएँ हों, जिसमें आधे अंग में सती-साध्वी पार्वती का निवास हो। इस प्रकार उमा और महेश्वर की सुवर्णमयी प्रतिमा बनवानी चाहिये। शिव-पार्वती का विग्रह स्वर्ण का हो तो अति उत्तम । पूजा गृह या पूजा स्थान पर चँदोवा लगाकर मण्डप तैयार करें।
पूर्वाभिमुख होकर आसन पर पत्नी सहित बैठ जायें। चौकी पर वृषभ को रखें । वृषभ के पीठ पर ताँबे का पात्र सिंहासन के रूप में रखें। ताँबे के पात्र को सफेद वस्त्र से ढ़ँक कर उस पर भगवान शिव को स्थापित करें।
आचमन:-
अब आचमन करें
पुष्प, चम्मच या अंजुलि से एक बूंद पानी अपने मुंह में छोड़िए और बोलिए-
ॐ केशवाय नमः
और फिर एक बूंद पानी अपने मुंह में छोड़िए और बोलिए-
ॐ नारायणाय नमः
फिर एक तीसरी बूंद पानी की मुंह में छोड़िए और बोलिए-
ॐ वासुदेवाय नमः
फिर ॐ हृषिकेशाय नमः कहते हुए हाथों को खोलें और अंगूठे के मूल से होंठों को पोंछकर हाथों को धो लें। आचमन करने से विद्या तत्व, आत्म तत्व और बुद्धि तत्व का शोधन हो जाता है और मनुष्य पूजा के लिए पवित्र हो जाता है।
गणेश पूजन:-
सबसे पहले गणेश जी गौरी जी व नन्दी  नागराज जी का पूजन पंचोपचार विधि से करें। चौकी के पास हीं किसी पात्र में गणेश जी के विग्रह को रखकर पूजन करें। यदि गणेश जी की मूर्ति उपलब्ध न हो तो सुपारी पर मौली लपेट कर गणेशजी बनायें।
संकल्प विधि -
अक्षत (चावल), पुष्प, जल, पान का पत्ता, सुपारी और अपने सामर्थ्य के अनुसार कुछ सिक्के हाथ में लेकर संकल्प मंत्र को बोलते हुए संकल्प करें
पाद्य-मंत्र:-
चम्मच में जल लेकर मंत्र के द्वारा पाद्य धोने के लिये जल अर्पित करें।
अर्घ्य- मंत्र
ताम्बे के पात्र में जल लेकर मंत्र के द्वारा अर्घ्य के लिये जल अर्पित करें।
आचमन- मंत्र
चम्मच में जल लेकर मंत्र के द्वारा आचमन के लिये जल अर्पित करें।
पंचामृत स्नान:-
दुग्ध- स्नान
दधि-स्नान
घृत-स्नान -
मधु-स्नान-
शर्करा-स्नान –
शुद्धोदक स्नान-
अर्घ्य- मंत्र
इस प्रकार पंचामृत द्वारा भगवान् वृषभध्वज को स्नान करायें तत्पश्चात ताँबे के अर्घ्यपात्र द्वारा अर्घ्य प्रदान करें-
यज्ञोपवीत-मंत्र –
हाथ में यज्ञोपवीत लेकर मंत्र के द्वारा भोलेनाथ को यज्ञोपवीत अर्पित करें।।
वस्त्र- मंत्र
हाथ में जोड़ा धोती और चादर लेकर मंत्र के द्वारा महादेव को वस्त्र अर्पित करें।
अक्षत:-
हाथ में अक्षत और पुष्प लेकर मंत्र के द्वारा शिवजी को अक्षत अर्पित करें।
चन्दन- मंत्र
पुष्प से चंदन लेकर मंत्र के द्वारा शम्भु को चंदन अर्पित करें।
पुष्प एवं पुष्पमाला:-
मंत्र के द्वारा भोलेनाथ को पुष्प एवं पुष्पमाला अर्पित करें
धूप- मंत्र
धूप –पात्र में धूप लेकर मंत्र के द्वारा भोलेनाथ को धूप दिखायें।
दीप- मंत्र –
घी का दीपक जलाकर मंत्र के द्वारा महादेव को दीप अर्पित करें।-
नैवेद्य :-
एक पात्र या थाली में सभी नैवेद्य एवं फल रखकर मंत्र के द्वारा शंकर जी को नैवेद्य अर्पित करें-
ताम्बुलम्:-
पान को पलट कर उस लौंग, इलायची, सुपारी, कुछ मीठा रखकर ताम्बूल बनायें। श्री भोलेनाथ को मंत्र के द्वारा ताम्बूल अर्पित करें-
द्रव्य-दक्षिणा-
सामर्थ्यानुसार हाथ में दक्षिणा लेकर मंत्र के द्वारा शिवजी को दक्षिणा अर्पित करें-
आरती- मंत्र
एक थाली या आरती के पात्र में दीपक तथा कपूर प्रज्वलित कर शिवजी की आरती करें- ।
पुष्पाञ्जलि :-
अब दोनों हाथों में पुष्प लेकर खड़े हो जायें और प्रार्थना करें:‌-
‘कल्याणकारी शिव! मैंने अनजाने में अथवा जानबूझकर जो जप-पूजा आदि सत्कर्म किये हों, वे आपकी कृपा से सफल हों। मूड! मैं आपका हूँ, मेरे प्राण सदा आप में लगे हुए हैं, मेरा चित्त सदा आपका ही चिंतन करता है- ऐसा जानकर हे गौरीनाथ! भूतनाथ! आप मुझपर प्रसन्न होइये । प्रभो धरती पर जिनके पैर लड़खड़ा जातें हैं, उनके लिये भूमि ही सहारा है; उसी प्रकार जिन्होंने आपके प्रति अपराध किये हैं उनके लिये आप ही शरणदाता हैं । ’
इस प्रकार बहुत-बहुत प्रार्थना करने के पश्चात् पुन: भगवान को नमस्कार करें और पुष्प अर्पित करें।
विसर्जन:‌-
हाथ में अक्षत , पुष्प और जल लेकर मंत्र के द्वारा विसर्जन करें-
स्वस्थानं गच्छ द्वेश परिवारयुत: प्रभो ।
पूजाकाले पुनर्नाथ त्वग्राऽऽगन्तव्यमादरात्॥
‘देवेश्वर प्रभो! अब आप परिवारसहित अपने स्थान पर पधारें। नाथ! जब पूजा का समय हो, तब पुन: आप यहाँ सादर पदार्पण करें।’
इस प्रकार भक्तवत्सल शंकर जी के बारम्बार प्रार्थना करके उनका विसर्जन करे और उस जल को अपने हृदय में लगाये तथा मस्तकपर चढ़ाये।
सभी चढ़ाये हुये सामग्री को दक्षिणा और वस्त्र सहित किसी ब्राह्मण को दान कर दें।यथासम्भव ब्राह्मणों को भोजन करवायें।
विधिवत पूजन करने के बाद बंधुओं सहित रात्रि जागरण करें। शिव जी के गाने, कथा, महात्म्य को सुनते और सुनाते हुये पूरी रात व्यतीत करें।
॥ इति प्रदोष व्रत उद्यापन विधि ॥

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