गुरुवार, 9 मई 2019

गंगा_अवतरण

।। हर हर महादेव शम्भो काशी विश्वनाथ वन्दे ।।
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#गंगा_अवतरण_का_पौराणिक_विवरण --
🔸काल गणना के अनुसार गंगा अवतरण वैशाख मास में शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को गंगा जयंती यानि गंगा सप्तमी के रूप में मनाया जाता है।
🔸इस दिन पर गंगा स्नान और दान-पुण्य का विशेष महत्व होता है।
🔸गंगा सप्तमी के दिन माता गंगा की उत्पति हुई। शास्त्रों में गंगा की उत्पत्ति के बारे में कई मान्यताएं है।
🔸 एक कथा के अनुसार मां गंगा का जन्म भगवान विष्णु के पैर के पसीनें की बूंदों से हुआ है। जिसको
वहीं दूसरी मान्यता है भगवान ब्रह्रा ने कमंडल मे भर लिया था वही सबसे प्रचलित कथा के अनुसार, भगीरथ ने पृथ्वी पर कपिल मुनी के श्राप से ग्रसित राजा सगर के 60,000 पुत्रों की अस्थियों के उद्धार और समस्त प्राणियों के जीवन की रक्षा के लिए घोर तपस्या करके मां गंगा को धरती पर लेकर आए। इसी दिन भगवान शिव ने मां गंगा को स्वर्ग से पृथ्वीलोक लाने के लिए उनके वेग को अपनी जटाओं में संभालते हुए पृथ्वी पर अवतरित किया ।
🔸पौराणिक मान्यतानुसार विष्णु पद से अवतरित होने के कारण रण सबसे पहले इसका नाम विष्णुपदी हुआ ।
वह धारा हजारों युग बीतने पर स्वर्ग के शिसरोभाग में स्थित ध्रुवलोक में उतरी ,जिसे विष्णुपदलोक भी कहते हैं। वहां से करोड़ों विमानों से घिरे हुए आकाश मे होकर उतरती हैं और चंद्रमंडल को आप्लावित करती हुई मेरु शिखर पर ब्रम्हपुरी में गिरती हैं । #तत्पश्चात्--
. वहां से सीता, अलकनंदा, चक्षु, और भद्रा नाम से चार धाराओं में विभक्त हो जाती हैं तथा अलग-अलग चारों दिशाओं में बहती हुई अंत में नद नदियों के अधीश्वर समद्र में गंगासागर में ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष दशमी तिथि को मिल जाती हैं ।
🔸जहाँ पर आज भी गंगादशहरा महोत्सव मनाया जाता है ।करोड़ों नर नारी देवी देवता स्नान और दर्शन करते हैं।

१- इसमें गंगा की सीता नामक धारा ब्रम्हपुरी से केसर के पहाडों के सर्वोच्च शिखरों में होकर नीचे की ओर बहती हुई गंधमादन के शिखरों पर गिरती हैं और भद्राश्व वर्ष को आप्लावित पूर्व की ओर खारेसमुद्र में मिल जाती हैं ।
२- इसी प्रकार चक्षुमाल्यवान् के शिखर पर पहुँच कर वहां से बेरोंकटोक केतु माल वर्ष में बहती हुई पश्चिम की ओर क्षार समुद्र में जा मिलती हैं ।
३- भद्रा नामक धारा मेरु पर्वत के शिखर से उत्तर की तरफ गिरती है तथा एक पर्वत से दूसरे पर्वतों पर जाती हुई अंत में श्रंगवान्केशिखर से गिरकर उत्तर की कुरुदेश में हो कर उत्तर की ओर बहती हुई समुद्र में जा मिलती हैं ।
४- अलकनन्दा ब्रम्हपुरी से दक्षिण की ओर गिरकर अनेकों गिरि शिखरों को पार करती हुई हेमकूट पर्वत पर पहुँचती है, वहां से अत्यंत तीव्रवेग से हिमालय के शिखरों को चीरती हुई भारतवर्ष में आती हैं ,तत्पश्चात् दक्षिण की ओर समुद्र में जा मिलती हैं ।
🔸इसी स्थान को गंगा सगर के नाम से जाना जाता है । जहाँ पर स्नान करने से अश्वमेध और राजसूय यज्ञोंसे भी अधिक फल मिलता है ।
#विशेष ---पतित पावनी मां गंगा अनेक स्थानों पर चमत्कार करती हुई अनेक नामों से जानी जाती हैं। और पूजी जाती हैं।
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गंगा सामाजिक धार्मिक आर्थिक राजनीतिक तथा वैज्ञानिक दृष्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण है । इसीलिए इसे मोक्षदायिनी पापनाशिनी रोगनाशिनी तापनिवारिणी शान्ति प्रदायिनी भव बाधानिवारिणी कल्याण दायिनी भुक्तिमुक्ति प्रदायिनी मां गंगे के रूप दैवी शक्ति रूपिणी कहा जाता है।
#उक्तञ्च --
गंगागंगेति यो ब्रूयात् योजनानांशतादपि।
मुच्यते सर्व पापेभ्यो विष्णु लोकं स गच्छति ।।
#अर्थात सौ कोस दूर से जो गंगा गंगा कहता है वह मुक् हैक विष्ण लोक को प्राप्त होता है । इसी से कहा गया है --
गंगे तव दर्शनात् मुक्ति : इत्यादि ।
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हर हर महादेव शम्भो काशी विश्वनाथ वन्दे ।
हर हर गंंगे पार्वती । पाप न होवे एको रती।।
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