शनिवार, 31 दिसंबर 2016

जगजननी माँ कौन



, सीता माँ को साष्टांग वन्दन करके हनुमान जी ने कहा ऐसी दया तो मैंने श्री रामजी में भी देखि नहीं, श्री राम दयालु है, यह बात सत्य है, परन्तु ऐसी दया मैंने जगत में कही देखी नहीं, जगजननी! आपमें ही यह दया मैंने देखी , माँ! तुम जगन्माता हो, इसलिए तुमको सब पर दया आती है .
श्री सीता जी दया की , प्रेम की मूर्ति है, उनका वर्णन कौन कर सकता है, उनको तो सब पर दया आती है, वे जगत की माँ है
रामजी की माँ तो कौशल्या हो सकती है, परन्तु सीताजी की माँ कौन हो सकती है, श्री सीताजी की तो कोई माँ नहीं, इनका कोई पिता भी नहीं, यह सबकी माँ है, सर्वेश्वरी , सर्वश्रेष्ट है.
जगजननी की माँ कौन हो सकती है? उनकी माँ कोई हो सकती नहीं, श्री सीता जी का जनम दिव्या है, लय दिव्या है, श्री सीता माँ धरती से बाहर प्रकटी और धरती में ही लीन हो गई,  बोलिए सीता माता की जय---बोलिए मेरी माँ वैष्णो रानी की जय,,बोलिए मेरी माँ राज रानी की जय,जय माता दी,जय श्री राम.जय श्री हनुमान ,,



पूजन श्री अंजनी कुमार का !
शिवस्वरूप मारुतनंदन केसरी सुअन कलियुग कुठार का |पूजन श्री अंजनी कुमार का !
हिय में राम सीय नित राखत ,मुख सों राम नाम गुण भाखत |
सुमधुर भक्ति प्रेम रस चाखत मंगलकर मंगलाकार का ||पूजन श्री अंजनी कुमार का !
अतुलित बल,विस्मृत बल पौरुष, दहन दनुज वन,हित दावानल |
ज्ञान मुकुट मणि,सकल पूर्ण गुण ,मंजु भूमि ,शुभ सदाचार का ||पूजन श्री अंजनी कुमार का !
मन इन्द्रिय विजयी ,विशालमति,कला निधान , निपुण गायक अति |
छंद व्याकरण शास्त्र अमित गति,राम भक्त अतिशय उदार का ||पूजन श्री अंजनी कुमार का !
पावन परम सुभक्ति प्रदायक ,शरणागत को सब सुख दायक |
विजयीवानर सेना नायक ,सुगति पोत के कर्णधार का ||पूजन श्री अंजनी कुमार का !!!
जय जय हनुमान ….
दुनियां में देव हजारों है, बजरंग बली का क्या कहना,
इनकी शक्ति का क्या कहना, इनकी भक्ति का क्या कहना, जय जय हनुमान
ये सात समुन्दर लाँघ गये, ये गढ़ लंका में कूद गये, जय हनुमान ..जय जय हनुमान ….
रावण को डराना क्या कहना, लंका को जलाना क्या कहना,जय हनुमान जय जय हनुमान
जब लक्ष्मण जी बेहोश हुए, संजीवन बूंटी लाने गये,जय हनुमान जय जय हनुमान ….
पर्वत को उठाना क्या कहना, लक्ष्मण को जिलाना क्या कहना,जय हनुमान जय जय हनुमान …..

 
मन्त्रात्मकं श्रीमारुतिस्तोत्रं

ॐ नमो वायुपुत्राय भीमरूपाय धीमते |
नमस्ते रामदूताय कामरूपाय श्रीमते ||
मोहशोकविनाशाय सीताशोकविनाशिने |
भग्नाशोकवनायास्तु दग्धलङ्काय वाग्मिने ||
गतिनिर्जितवाताय लक्ष्मणप्राणदाय च |
वनौकसां वरिष्ठाय वशिने वनवासिने ||
तत्वज्ञानसुधासिन्धुनिमग्नाय महीयसे|
आञ्जनेयाय शूराय सुग्रीवसचिवाय ते ||
जन्ममृत्युभयघ्नाय सर्वक्लेशहराय च |
नेदिष्ठाय प्रेतभूतपिशाचभयहारिणे ||
यातनानाशनायास्तु नमो मर्कटरूपिणे|
यक्षराक्षसशार्दूलसर्पवृश्चिकभीहते ||
महाबलाय वीराय चिरंजीविन उद्धते |
हारिणे वज्र देहाय चोल्लन्घितमहाब्धये ॥७
बलिनामग्रगण्याय नमो नः पाहि मारुते |
लाभदोऽसि तवमेवाशु हनुमन राक्षसान्तक ॥८
यशो जयं च मे देहि शत्रून नाशय नाशय |
स्वाश्रिता नाम भयदं य एवं स्तौति मारुतिं ॥
हानिः कुतौ भवेत्तस्य सर्वत्र विजयी भवेत् ॥9
 
हनुमान जी द्वारा माँ सीता की स्तुति :-

जानकि त्वाम् नमस्यामि सर्वपापप्रणाशिनीम् ॥
दारिद्र्यरणसन्हर्त्री भक्तानामिष्टदायिनीम् ॥
विदेहराजतनयां राघवानन्दकारिणीम ॥
भूमेर्दुहितरं विद्यां नमामि प्रकृतिं शिवाम् ॥
पौलस्त्यैश्वर्यसन्हर्त्री भक्ताभीष्टाम् सरस्वतीम् ॥
पतिव्रताधुरीणां त्वाम् नमामि जनकात्मजां ॥
अनुग्रहपरामृद्धिमनघां हरिवल्लभाम ॥
आत्मविद्यां त्रयीरूपामुमारूपां नमाम्यहं ॥
प्रसादाभिमुखीम् लक्ष्मीं क्षीराब्धितनयां शुभां ॥
नमामि चन्द्रभगिनीम् सीताम् सर्वाङ्गसुन्दरीम् ॥
नमामि धर्मनिलयां करुणां वेदमातरं ॥
पद्मालयां पद्महस्तां विष्णु वक्षः स्थलालयां ॥
नमामि चन्द्रनिलयां सीतां चन्द्रनिभाननां ॥
आल्हादरूपिणीम् सिद्धिं शिवाम् शिवकरीं सतीम् ॥
नमामि विश्वजननीम् रामचन्द्रेष्टवल्लभां ॥
सीतां सर्वानवद्यान्गीम् भजामि सततं हृदा ॥ (स्कन्द पुराण ४६/५०-५७)
जो मनुष्य वायुपुत्र हनुमान द्वारा वर्णित श्री राम और सीताजी के इन पाप नाशक स्तोत्रों का प्रतिदिन पाठ करता है , वह सदा मनोवांछित महान एश्वर्य का उपभोग करता है |
श्री सीता माता प्रेम की मूर्ति है. दया की समुंदर है. रामायण के अरण्यकांड में जयंत का प्रसंग आता है. जयंत ने अपराध श्री सीता माँ का ही किया परन्तु माताजी को उस पर दया आई, संत एसा मानते है की जयंत का अपराध अक्षम्य है, क्षमा करने लायक नहीं.
रामजी जयंत को मारने के लिए तैयार हुए परन्तु सीताजी को दया आई, माताजी उसको क्षमा कर देती है. इतना ही नहीं रामजी से विनती करती है के इसे क्षमा करो

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