शुक्रवार, 27 मई 2016

शिव पूजा विधि



शिव पूजा विधि
भगवान शिव ने भगवती के आग्रह पर अपने लिए सोने कीलंका का निर्माण किया था । गृहप्रवेश से पूर्व पूजन के लिएउन्होने अपने असुर शिष्य व प्रकाण्ड विद्वान रावण कोआमंत्रित किया था । दक्षिणा के समय रावण ने वह लंका हीदक्षिणा में मांग ली और भगवान शिव ने सहजता से लंकारावण को दान में दे दी तथा वापस कैलाश लौट आए । ऐसीसहजता के कारण ही वे ÷भोलेनाथ' कहलाते हैं । ऐसे भोलेभंडारी की कृपा प्राप्ति के लिए प्रयत्नशील होने के लिएशिवरात्रि सबसे महत्वपूर्ण पर्व है।
भगवान शिव का स्वरुप अन्य देवी देवताओं सेबिल्कुल अलग है।जहां अन्य देवी-देवताओं को वस्त्रालंकारों सेसुसज्जित और सिंहासन पर विराजमान माना जाता है,वहांठीक इसके विपरीत शिव पूर्ण दिगंबर हैं,अलंकारों के रुप मेंसर्प धारण करते हैं और श्मशान भूमि पर सहज भाव सेअवस्थित हैं। उनकी मुद्रा में चिंतन है, तो निर्विकार भाव भी है!आनंद भी है और लास्य भी। भगवान शिव को सभी विद्याओंका जनक भी माना जाता है। वे तंत्र से लेकर मंत्र तक और योगसे लेकर समाधि तक प्रत्येक क्षेत्र के आदि हैं और अंत भी।यही नही वे संगीत के आदिसृजनकर्ता भी हैं, और नटराज केरुप में कलाकारों के आराध्य भी हैं। वास्तव में भगवान शिवदेवताओं में सबसे अद्भुत देवता हैं । वे देवों के भी देव होने केकारण ÷महादेव' हैं तो, काल अर्थात समय से परे होने के कारण÷महाकाल' भी हैं । वे देवताओं के गुरू हैं तो, दानवों के भी गुरूहैं । देवताओं में प्रथमाराध्य, विनों के कारक व निवारणकर्ता,भगवान गणपति के पिता हैं तो, जगद्जननी मां जगदम्बा केपति भी हैं । वे कामदेव को भस्म करने वाले हैं तो, ÷कामेश्वर'भी हैं । तंत्र साधनाओं के जनक हैं तो संगीत के आदिगुरू भी हैं। उनका स्वरुप इतना विस्तृत है कि उसके वर्णन का सामर्थ्यशब्दों में भी नही है।सिर्फ इतना कहकर ऋषि भी मौन हो जातेहैं किः-
असित गिरिसमम स्याद कज्जलम सिंधु पात्रे, सुरतरुवर शाखालेखनी पत्रमुर्वी ।
लिखति यदि गृहीत्वा शारदासर्वकालम, तदपि तव गुणानाम ईशपारम न याति॥
अर्थात यदि समस्त पर्वतों को, समस्त समुद्रों के जल में पीसकरउसकी स्याही बनाइ जाये, और संपूर्ण वनों के वृक्षों को काटकरउसको कलम या पेन बनाया जाये और स्वयं साक्षात, विद्या कीअधिष्ठात्री, देवी सरस्वती उनके गुणों को लिखने के लियेअनंतकाल तक बैठी रहें तो भी उनके गुणों का वर्णन कर पानासंभव नही होगा। वह समस्त लेखनी घिस जायेगी! पूरी स्याहीसूख जायेगी मगर उनका गुण वर्णन समाप्त नही होगा। ऐसेभगवान शिव का पूजन अर्चन करना मानव जीवन का सौभाग्यहै ।
भगवान शिव के पूजन की अनेकानेक विधियां हैं।इनमेंसे प्रत्येक अपने आप में पूर्ण है और आप अपनी इच्छानुसारकिसी भी विधि से पूजन या साधना कर सकते हैं।भगवान शिवक्षिप्रप्रसादी देवता हैं,अर्थात सहजता से वे प्रसन्न हो जाते हैंऔर अभीप्सित कामना की पूर्ति कर देते हैं। भगवान शिव केपूजन की कुछ सहज विधियां प्रस्तुत कर रहा हूं।इन विधियों सेप्रत्येक आयु, लिंग, धर्म या जाति का व्यक्ति पूजन कर सकता हैऔर भगवान शिव की यथा सामर्थ्य कृपा भी प्राप्त कर सकताहै।

भगवान शिव पंचाक्षरी मंत्रः-
॥ ऊं नमः शिवाय ॥
यह भगवान शिव का पंचाक्षरी मंत्र है। इस मंत्र का जाप आपचलते फिरते भी कर सकते हैं। अनुष्ठान के रूप में इसका जापग्यारह लाख मंत्रों का किया जाता है । विविध कामनाओं केलिये इस मंत्र का जाप किया जाता है।
बीजमंत्र संपुटित महामृत्युंजय शिव मंत्रः-
॥ ऊं हौं ऊं जूं ऊं सः ऊं भूर्भुवः ऊंस्वः ऊं त्रयंबकं यजामहे सुगंधिमपुष्टि वर्धनम, उर्वारुकमिव बंधनातमृत्युर्मुक्षीय मामृतात ऊं स्वः ऊंभूर्भुवः ऊं सः ऊं जूं ऊं हौं ऊं ॥
भगवान शिव का एक अन्य नाम महामृत्युंजय भी है।जिसका अर्थ है, ऐसा देवता जो मृत्यु पर विजय प्राप्त कर चुकाहो। यह मंत्र रोग और अकाल मृत्यु के निवारण के लिये सर्वश्रेष्ठमाना गया है। इसका जाप यदि रोगी स्वयं करे तो सर्वश्रेष्ठ होताहै। यदि रोगी जप करने की सामर्थ्य से हीन हो तो, परिवार काकोई सदस्य या फिर कोई ब्राह्‌मण रोगी के नाम से मंत्र जापकर सकता है। इसके लिये संकल्प इस प्रकार लें, ÷÷मैं(अपनानाम) महामृत्युंजय मंत्र का जाप, (रोगी का नाम) के रोगनिवारण के निमित्त कर रहा हॅूं, भगवान महामृत्युंजय उसे पूर्णस्वास्थ्य लाभ प्रदान करें''। इस मंत्र के जाप के लिये सफेद वस्त्रतथा आसन का प्रयोग ज्यादा श्रेष्ठ माना गया है।रुद्राक्ष कीमाला से मंत्र जाप करें।
शिवलिंग की महिमा
भगवान शिव के पूजन मे शिवलिंग का प्रयोग होता है।शिवलिंग के निर्माण के लिये स्वर्णादि विविध धातुओं, मणियों,रत्नों, तथा पत्थरों से लेकर मिटृी तक का उपयोग होता है।इसके अलावा रस अर्थात पारे को विविध क्रियाओं से ठोसबनाकर भी लिंग निर्माण किया जाता है, इसके बारे में कहा गयाहै कि,
मृदः कोटि गुणं स्वर्णम, स्वर्णात्कोटि गुणं मणिः, मणेः कोटि गुणंबाणो,
बाणात्कोटि गुणं रसः रसात्परतरं लिंगं न भूतो न भविष्यति ॥
अर्थात मिटृी से बने शिवलिंग से करोड गुणा ज्यादा फल सोनेसे बने शिवलिंग के पूजन से, स्वर्ण से करोड गुणा ज्यादा फलमणि से बने शिवलिंग के पूजन से, मणि से करोड गुणा ज्यादाफल बाणलिंग से तथा बाणलिंग से करोड गुणा ज्यादा फल रसअर्थात पारे से बने शिवलिंग के पूजन से प्राप्त होता है। आजतक पारे से बने शिवलिंग से श्रेष्ठ शिवलिंग न तो बना है और नही बन सकता है।
शिवलिंगों में नर्मदा नदी से प्राप्त होने वाले नर्मदेश्वर शिवलिंगभी अत्यंत लाभप्रद तथा शिवकृपा प्रदान करने वाले माने गयेहैं। यदि आपके पास शिवलिंग न हो तो अपने बांये हाथ केअंगूठे को शिवलिंग मानकर भी पूजन कर सकते हैं । शिवलिंगकोई भी हो जब तक भक्त की भावना का संयोजन नही होतातब तक शिवकृपा नही मिल सकती।
शिवलिंग पर अभिषेक या धारा
भगवान शिव अत्यंत ही सहजता से अपने भक्तों कीमनोकामना की पूर्ति करने के लिए तत्पर रहते है। भक्तों केकष्टों का निवारण करने में वे अद्वितीय हैं। समुद्र मंथन के समयसारे के सारे देवता अमृत के आकांक्षी थे लेकिन भगवान शिवके हिस्से में भयंकर हलाहल विष आया। उन्होने बडी सहजतासे सारे संसार को समाप्त करने में सक्षम उस विष को अपनेकण्ठ में धारण किया तथा ÷नीलकण्ठ' कहलाए। भगवान शिवको सबसे ज्यादा प्रिय मानी जाने वाली क्रिया है ÷अभिषेक'।अभिषेक का शाब्दिक तात्पर्य होता है श्रृंगार करना तथाशिवपूजन के संदर्भ में इसका तात्पर्य होता है किसी पदार्थ सेशिवलिंग को पूर्णतः आच्ठादित कर देना। समुद्र मंथन के समयनिकला विष ग्रहण करने के कारण भगवान शिव के शरीर कादाह बढ गया। उस दाह के शमन के लिए शिवलिंग पर जलचढाने की परंपरा प्रारंभ हुयी। जो आज भी चली आ रही है ।इससे प्रसन्न होकर वे अपने भक्तों का हित करते हैं इसलिएशिवलिंग पर विविध पदार्थों का अभिषेक किया जाता है।
शिव पूजन में सामान्यतः प्रत्येक व्यक्ति शिवलिंग पर जल यादूध चढाता है । शिवलिंग पर इस प्रकार द्रवों का अभिषेक÷धारा' कहलाता है । जल तथा दूध की धारा भगवान शिव कोअत्यंत प्रिय है ।
पंचामृतेन वा गंगोदकेन वा अभावे गोक्षीर युक्त कूपोदकेन चकारयेत
अर्थात पंचामृत से या फिर गंगा जल से भगवान शिव को धाराका अर्पण किया जाना चाहिये इन दोनों के अभाव में गाय केदूध को कूंए के जल के साथ मिश्रित कर के लिंग का अभिषेककरना चाहिये ।
हमारे शास्त्रों तथा पौराणिक ग्रंथों में प्रत्येक पूजनक्रिया को एक विशिष्ठ मंत्र के साथ करने की व्यवस्था है, इससेपूजन का महत्व कई गुना बढ जाता है । शिवलिंग पर अभिषेकया धारा के लिए जिस मंत्र का प्रयोग किया जा सकता है वहहैः-
1 । ऊं हृौं हृीं जूं सः पशुपतये नमः ।
२ । ऊं नमः शंभवाय च मयोभवाय च नमः शंकराय, चमयस्कराय च नमः शिवाय च शिवतराय च।
इन मंत्रों का सौ बार जाप करके जल चढाना शतधारातथा एक हजार बार जल चढाना सहस्रधारा कहलाता है ।जलधारा चढाने के लिए विविध मंत्रों का प्रयोग किया जासकता है । इसके अलावा आप चाहें तो भगवान शिव केपंचाक्षरी मंत्र का प्रयोग भी कर सकते हैं। पंचाक्षरी मंत्र कातात्पर्य है ÷ ऊं नमः शिवाय ' मंत्र ।

विविध कार्यों के लिए विविध सामग्रियों या द्रव्यों कीधाराओं का शिवलिंग पर अर्पण किया जाता है । तंत्र में सकामअर्थात किसी कामना की पूर्ति की इच्ठा के साथ पूजन के लिएविशेष सामग्रियों का उपयोग करने का प्रावधान रखा गया है ।इनमें से कुछ का वर्णन आगे प्रस्तुत हैः-
सहस्रधाराः-
जल की सहस्रधारा सर्वसुख प्रदायक होती है ।
घी की सहस्रधारा से वंश का विस्तार होता है ।
दूध की सहस्रधारा गृहकलह की शांति के लिए देना चाहिए ।
दूध में शक्कर मिलाकर सहस्रधारा देने से बुद्धि का विकासहोता है ।
गंगाजल की सहस्रधारा को पुत्रप्रदायक माना गया है ।
सरसों के तेल की सहस्रधारा से शत्रु का विनाश होता है ।
सुगंधित द्रव्यों यथा इत्र, सुगंधित तेल की सहस्रधारा से विविधभोगों की प्राप्ति होती है ।
इसके अलावा कइ अन्य पदार्थ भी शिवलिंग पर चढाये जाते हैं,जिनमें से कुछ के विषय में निम्नानुसार मान्यतायें हैं:-
सहस्राभिषेक
एक हजार कनेर के पुष्प चढाने से रोगमुक्ति होती है ।
एक हजार धतूरे के पुष्प चढाने से पुत्रप्रदायक माना गया है ।
एक हजार आक या मदार के पुष्प चढाने से प्रताप या प्रसिद्धिबढती है ।
एक हजार चमेली के पुष्प चढाने से वाहन सुख प्राप्त होता है ।
एक हजार अलसी के पुष्प चढाने से विष्णुभक्ति व विष्णुकृपाप्राप्त होती है ।
एक हजार जूही के पुष्प चढाने से समृद्धि प्राप्त होती है ।
एक हजार सरसों के फूल चढाने से शत्रु की पराजय होती है ।
लक्षाभिषेक
एक लाख बेलपत्र चढाने से कुबेरवत संपत्ति मिलती है ।
एक लाख कमलपुष्प चढाने से लक्ष्मी प्राप्ति होती है ।
एक लाख आक या मदार के पत्ते चढाने से भोग व मोक्ष दोनोंकी प्राप्ति होती है ।
एक लाख अक्षत या बिना टूटे चावल चढाने से लक्ष्मी प्राप्तिहोती है ।
एक लाख उडद के दाने चढाने से स्वास्थ्य लाभ होता है ।
एक लाख दूब चढाने से आयुवृद्धि होती है ।
एक लाख तुलसीदल चढाने से भोग व मोक्ष दोनों की प्राप्तिहोती है ।
एक लाख पीले सरसों के दाने चढाने से शत्रु का विनाश होता है।
बेलपत्र
शिवलिंग पर अभिषेक या धारा के साथ साथ बेलपत्र चढाने काभी विशेष महत्व है। बेलपत्र तीन-तीन के समूह में लगते हैं। इन्हेएक साथ ही चढाया जाता है।अच्छे पत्तों के अभाव में टूटे फूटेपत्र भी ग्रहण योग्य माने गये हैं।इन्हे उलटकर अर्थात चिकनेभाग को लिंग की ओर रखकर चढाया जाता है।इसके लियेजिस श्लोक का प्रयोग किया जाता है वह है,
त्रिदलं त्रिगुणाकारम त्रिनेत्रम च त्रिधायुधम।
त्रिजन्म पाप संहारकम एक बिल्वपत्रं शिवार्पणम॥
उपरोक्त मंत्र का उच्चारण करते हुए शिवलिंग पर बेलपत्र कोसमर्पित करना चाहिए ।
शिवपूजन में निम्न बातों का विशेष ध्यान रखना चाहियेः-
पूजन स्नान करके स्वच्छ वस्त्र पहनकर करें।
माता पार्वती का पूजन अनिवार्य रुप से करना चाहिये अन्यथापूजन अधूरा रह जायेगा।
रुद्राक्ष की माला हो तो धारण करें।
भस्म से तीन आडी लकीरों वाला तिलक लगाकर बैठें।
शिवलिंग पर चढाया हुआ प्रसाद ग्रहण नही किया जाता, सामनेरखा गया प्रसाद अवश्य ले सकते हैं।
शिवमंदिर की आधी परिक्रमा ही की जाती है।
केवडा तथा चम्पा के फूल न चढायें।
पूजन काल में सात्विक आहार विचार तथा व्यवहार रखें।


भगवान शंकर कल्याणकारी हैं। उनकी पूजा,अराधना समस्त मनोरथ को पूर्ण करती है। हिंदू धर्मशास्त्रों के मुताबिक भगवान सदाशिव का विभिन्न प्रकार से पूजन करने से विशिष्ठ लाभ की प्राप्ति होती हैं। यजुर्वेद में बताये गये विधि से रुद्राभिषेक करना अत्यंत लाभप्रद माना गया हैं। लेकिन जो व्यक्ति इस पूर्ण विधि-विधान से पूजन को करने में असमर्थ हैं अथवा इस विधान से परिचित नहीं हैं वे लोग केवल भगवान सदाशिव के षडाक्षरी मंत्र-- ॐ नम:शिवाय का जप करते हुए रुद्राभिषेक तथा शिव-पूजन कर सकते हैं, जो बिलकुल ही आसान है।
महाशिवरात्रि पर शिव-आराधना करने से उनकी कृपा प्राप्त होती है। अधिकांश शिव भक्त इस दिन शिवजी का अभिषेक करते हैं। लेकिन बहुत कम ऐसे लोग है जो जानते हैं कि शिव का अभिषेक क्यों करते हैं?
अभिषेक शब्द का शाब्दिक अर्थ है स्नान करना या कराना। रुद्राभिषेक का मतलब है भगवान रुद्र का अभिषेक यानि कि शिवलिंग पर रुद्रमंत्रों के द्वारा अभिषेक करना। यह पवित्र-स्नान भगवान मृत्युंजय शिव को कराया जाता है। अभिषेक को आजकल रुद्राभिषेक के रुप में ही ज्यादातर जाना जाता है। अभिषेक के कई प्रकार तथा रुप होते हैं। रुद्राभिषेक करना शिव आराधना का सर्वश्रेष्ठ तरीका माना गया है। शास्त्रों में भगवान शिव को जलधाराप्रिय माना जाता है। रुद्राभिषेक मंत्रों का वर्णन ऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवेद में किया गया है। ज्योतिषाचार्य पंडित श्री रामगणेश पाण्डेय जी के मुताबिक रुद्राष्टाध्यायी में अन्य मंत्रों के साथ इस मंत्र का भी उल्लेख मिलता है। शिव और रुद्र परस्पर एक दूसरे के पर्यायवाची हैं। शिव को ही रुद्र कहा जाता है क्योंकि- रुतम्-दु:खम्, द्रावयति-नाशयतीतिरुद्र: यानि की भोले सभी दु:खों को नष्ट कर देते हैं। हमारे धर्मग्रंथों के अनुसार हमारे द्वारा किए गए पाप ही हमारे दु:खों के कारण हैं। रुद्रार्चन और रुद्राभिषेक से हमारे पटक-से पातक कर्म भी जलकर भस्म हो जाते हैं और साधक में शिवत्व का उदय होता है तथा भगवान शिव का शुभाशीर्वाद भक्त को प्राप्त होता है और उनके सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं। ऐसा कहा जाता है कि एकमात्र सदाशिव रुद्र के पूजन से सभी देवताओं की पूजा स्वत: हो जाती है।
रूद्रहृदयोपनिषद में शिव के बारे में कहा गया है कि- सर्वदेवात्मको रुद्र: सर्वे देवा: शिवात्मका: अर्थात् सभी देवताओं की आत्मा में रूद्र उपस्थित हैं और सभी देवता रूद्र की आत्मा हैं।
हमारे शास्त्रों में विविध कामनाओं की पूर्ति के लिए रुद्राभिषेक के पूजन के निमित्त अनेक द्रव्यों तथा पूजन सामग्री को बताया गया है। साधक रुद्राभिषेक पूजन विभिन्न विधि से तथा विविध मनोरथ को लेकर करते हैं। किसी खास मनोरथ की पूर्ति के लिये तदनुसार पूजन सामग्री तथा विधि से रुद्राभिषेक की जाती है।
रुद्राभिषेक के विभिन्न पूजन के लाभ इस प्रकार हैं-
जल से अभिषेक करने पर वर्षा होती है।
असाध्य रोगों को शांत करने के लिए कुशोदक से रुद्राभिषेक करें।
भवन-वाहन के लिए दही से रुद्राभिषेक करें।
लक्ष्मी प्राप्ति के लिये गन्ने के रस से रुद्राभिषेक करें।
धन-वृद्धि के लिए शहद एवं घी से अभिषेक करें।
तीर्थ के जल से अभिषेक करने पर मोक्ष की प्राप्ति होती है।
इत्र मिले जल से अभिषेक करने से बीमारी नष्ट होती है ।
पुत्र प्राप्ति के लिए दुग्ध से और यदि संतान उत्पन्न होकर मृत पैदा हो तो गोदुग्ध से रुद्राभिषेक करें।
रुद्राभिषेक से योग्य तथा विद्वान संतान की प्राप्ति होती है।
ज्वर की शांति हेतु शीतल जल/गंगाजल से रुद्राभिषेक करें।
सहस्रनाम-मंत्रों का उच्चारण करते हुए घृत की धारा से रुद्राभिषेक करने पर वंश का विस्तार होता है।
प्रमेह रोग की शांति भी दुग्धाभिषेक से हो जाती है।
शक्कर मिले दूध से अभिषेक करने पर जडबुद्धि वाला भी विद्वान हो जाता है।
सरसों के तेल से अभिषेक करने पर शत्रु पराजित होता है।
शहद के द्वारा अभिषेक करने पर यक्ष्मा (तपेदिक) दूर हो जाती है।
पातकों को नष्ट करने की कामना होने पर भी शहद से रुद्राभिषेक करें।
गो दुग्ध से तथा शुद्ध घी द्वारा अभिषेक करने से आरोग्यता प्राप्त होती है।
पुत्र की कामनावाले व्यक्ति शक्कर मिश्रित जल से अभिषेक करें।

ऐसे तो अभिषेक साधारण रूप से जल से ही होता है। परन्तु विशेष अवसर पर या सोमवार, प्रदोष और शिवरात्रि आदि पर्व के दिनों मंत्र गोदुग्ध या अन्य दूध मिला कर अथवा केवल दूध से भी अभिषेक किया जाता है। विशेष पूजा में दूध, दही, घृत, शहद और चीनी से अलग-अलग अथवा सब को मिला कर पंचामृत से भी अभिषेक किया जाता है। तंत्रों में रोग निवारण हेतु अन्य विभिन्न वस्तुओं से भी अभिषेक करने का विधान है। इस प्रकार विविध द्रव्यों से शिवलिंग का विधिवत् अभिषेक करने पर अभीष्ट कामना की पूर्ति होती है।
इसमें कोई संदेह नहीं कि किसी भी पुराने नियमित रूप से पूजे जाने वाले शिवलिंग का अभिषेक बहुत ही उत्तम फल देता है। किन्तु यदि पारद के शिवलिंग का अभिषेक किया जाय तो बहुत ही शीघ्र चमत्कारिक शुभ परिणाम मिलता है।
रुद्राभिषेक का फल बहुत ही शीघ्र प्राप्त होता है। वेदों में विद्वानों ने इसकी भूरि भूरि प्रशंसा की गयी है। पुराणों में तो इससे सम्बंधित अनेक कथाओं का विवरण प्राप्त होता है।
वेदों और पुराणों में रुद्राभिषेक के बारे में तो बताया गया है कि रावण ने अपने दसों सिरों को काट कर उसके रक्त से शिवलिंग का अभिषेक किया था तथा सिरों को हवन की अग्नि को अर्पित कर दिया था। जिससे वो त्रिलोकजयी हो गया। भष्मासुर ने शिव लिंग का अभिषेक अपनी आंखों के आंसुओ से किया तो वह भी भगवान के वरदान का पात्र बन गया।
रुद्राभिषेक करने की तिथियां
कृष्णपक्ष की प्रतिपदा, चतुर्थी, पंचमी, अष्टमी, एकादशी, द्वादशी, अमावस्या, शुक्लपक्ष की द्वितीया, पंचमी, षष्ठी, नवमी, द्वादशी, त्रयोदशी तिथियों में अभिषेक करने से सुख-समृद्धि संतान प्राप्ति एवं ऐश्वर्य प्राप्त होता है।
कालसर्प योग, गृहकलेश, व्यापार में नुकसान, शिक्षा में रुकावट सभी कार्यो की बाधाओं को दूर करने के लिए रुद्राभिषेक आपके अभीष्ट सिद्धि के लिए फलदायक है।
किसी कामना से किए जाने वाले रुद्राभिषेक में शिव-वास का विचार करने पर अनुष्ठान अवश्य सफल होता है और मनोवांछित फल प्राप्त होता है। प्रत्येक मास के कृष्णपक्ष की प्रतिपदा, अष्टमी, अमावस्या तथा शुक्लपक्ष की द्वितीया व नवमी के दिन भगवान शिव माता गौरी के साथ होते हैं, इस तिथि में रुद्राभिषेक करने से सुख-समृद्धि उपलब्ध होती है।
कृष्णपक्ष की चतुर्थी, एकादशी तथा शुक्लपक्ष की पंचमी व द्वादशी तिथियों में भगवान शंकर कैलाश पर्वत पर होते हैं और उनकी अनुकंपा से परिवार में आनंद-मंगल होता है।
कृष्णपक्ष की पंचमी, द्वादशी तथा शुक्लपक्ष की षष्ठी व त्रयोदशी तिथियों में महादेव नंदी पर सवार होकर संपूर्ण विश्व में भ्रमण करते है। अत: इन तिथियों में रुद्राभिषेक करने पर अभीष्ट सिद्ध होता है।
कृष्णपक्ष की सप्तमी, चतुर्दशी तथा शुक्लपक्ष की प्रतिपदा, अष्टमी, पूर्णिमा में भगवान महाकाल श्मशान में समाधिस्थ रहते हैं। अतएव इन तिथियों में किसी कामना की पूर्ति के लिए किए जाने वाले रुद्राभिषेक में आवाहन करने पर उनकी साधना भंग होती है जिससे अभिषेककर्ता पर विपत्ति आ सकती है।
कृष्णपक्ष की द्वितीया, नवमी तथा शुक्लपक्ष की तृतीया व दशमी में महादेव देवताओं की सभा में उनकी समस्याएं सुनते हैं। इन तिथियों में सकाम अनुष्ठान करने पर संताप या दुख मिलता है।
कृष्णपक्ष की तृतीया, दशमी तथा शुक्लपक्ष की चतुर्थी व एकादशी में सदाशिव क्रीडारत रहते हैं। इन तिथियों में सकाम रुद्रार्चन संतान को कष्ट प्रदान करते है।
कृष्णपक्ष की षष्ठी, त्रयोदशी तथा शुक्लपक्ष की सप्तमी व चतुर्दशी में रुद्रदेव भोजन करते हैं। इन तिथियों में सांसारिक कामना से किया गया रुद्राभिषेक पीडा देते हैं।
ज्योर्तिलिंग-क्षेत्र एवं तीर्थस्थान में तथा शिवरात्रि-प्रदोष, श्रावण के सोमवार आदि पर्वो में शिव-वास का विचार किए बिना भी रुद्राभिषेक किया जा सकता है। वस्तुत: शिवलिंग का अभिषेक आशुतोष शिव को शीघ्र प्रसन्न करके साधक को उनका कृपापात्र बना देता है और उनकी सारी समस्याएं स्वत: समाप्त हो जाती हैं। अतः हम यह कह सकते हैं कि रुद्राभिषेक से मनुष्य के सारे पाप-ताप धुल जाते हैं। स्वयं श्रृष्टि कर्ता ब्रह्मा ने भी कहा है की जब हम अभिषेक करते है तो स्वयं महादेव साक्षात् उस अभिषेक को ग्रहण करते है। संसार में ऐसी कोई वस्तु, वैभव, सुख नही है जो हमें रुद्राभिषेक से प्राप्त न हो सके।

सुख-शांति-वैभव और मोक्ष का प्रतीक महाशिवरात्रि
साथ ही महाशिवरात्रि पूजन का प्रभाव हमारे जीवन पर बड़ा ही व्यापक रूप से पड़ता है। सदाशिव प्रसन्न होकर हमें धन-धान्य, सुख-समृधि, यश तथा वृद्धि देते हैं। महाशिवरात्रि पूजन को विधिवत करने से हमें सदाशिव का सानिध्य प्राप्त होता है और उनकी महती कृपा से हमारा कल्याण होता है।
शिवपुराण की कोटिरुद्रसंहिता में बताया गया है कि शिवरात्रि व्रत करने से व्यक्ति को भोग एवं मोक्ष दोनों ही प्राप्त होते हैं। देवताओं के पूछने पर भगवान सदाशिव ने बताया कि शिवरात्रि व्रत करने से महान पुण्य की प्राप्ति तथा मोक्ष की प्राप्ति होती है। महाशिवरात्रि परम कल्याणकारी व्रत है जिसके विधिपूर्वक करने से व्यक्ति के दुःख, पीड़ाओं का अंत होता है और उसे इच्छित फल की प्राप्ति होती है।
पति-पत्नी, पुत्र-पुत्री, धन, सौभाग्य, समृद्धि व आरोग्यता प्राप्त होती है। पूजन करने वाला अपने तप-साधना के बल पर मोक्ष की प्राप्ति करता है। परम कल्याणकारी व्रत महाशिवरात्रि के व्रत को विधि-पूर्वक करने से व्यक्ति के दुःख, पीड़ाओं का अंत होता है और उसे इच्छित फल-प्राप्ति, पति, पत्नी, पुत्र, धन, सौभाग्य, समृद्धि व आरोग्यता प्राप्त होती है तथा वह जीवन में गति और मोक्ष को प्राप्त करते हैं और चिरंतर-काल तक शिव-स्नेही बने रहते हैं और शिव-आशीष प्राप्त करते हुए जीवन व्यतीत करते हैं।
परोपकार करने के लिए महाशिवरात्रि का दिवस होना भी आवश्यक नहीं है। पुराण में चार प्रकार के शिवरात्रि पूजन का वर्णन है। मासिक शिवरात्रि, प्रथम आदि शिवरात्रि, तथा महाशिवरात्रि। पुराण वर्णित अंतिम शिवरात्रि है-नित्य शिवरात्रि। वस्तुत: प्रत्येक रात्रि ही `शिवरात्रि` है अगर हम उन परम कल्याणकारी आशुतोष भगवान में स्वयं को लीन कर दें तथा कल्याण मार्ग का अनुसरण करें, वही शिवरात्रि का सच्चा व्रत है।
महाशिवरात्रि का व्रत मनोवांछित अभिलाषाओं को पूर्ण करनेवाली तथा परम कल्याणकारी है। देवों-के-देव महादेव की प्रसन्नता की कामना लिये हुए जो मनुष्य इस व्रत को करते हैं उनका अभीष्ट मनोरथ पूर्ण होता है तथा वे हमेशा-हमेशा के लिया शिव-सानिध्यता को प्राप्त कर

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