शनिवार, 6 जुलाई 2013

* वैदिक हिन्दू राष्ट्र गीत *

आ ब्रम्हन ब्राम्ह्नो ब्रह्म वर्चसी जायतामा राष्ट्रे रा जन्यः शुर इषव्यो s तिव्याधी महारथो जायताम दोग्ध्री धेनुर्वोधानाद्वानाशु; सप्ति पुरंधिर्योषा जिसनू रथेष्ठा;सभेयो युवास्य यजमानस्य वीरो जायताम निकामे निकामे न; पर्जन्यो वर्षतु फलवत्यो न ओषधयः पच्य्न्ताम योगक्षेमो न; कल्पताम !!

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                                        -  काव्य अनुबाद --

भारतवर्ष   हमारा   प्यारा  अखिल  विश्व  से  न्यारा ! सव  साधन  से  रहे  समुन्नत भगवन  हे! देश  हमारा !
हो  ब्राह्मण  विद्वान्  राष्ट्र   में  ब्रम्ह तेज  व्रत धारी !   महारथी    हो  शुर  धनुर्धर  क्षत्रिय  लक्ष्य  प्रहारी   !
गौवे  भी  अति  मधुर   दुग्ध  की  रहे   वहाती   धारा ! भारत  में  बलवान   वृषभ   हों  बोझ    उठाये  भारी  !  अश्व  आशुगामी   हो दुर्गम  पथ  में  विचरणकारी  !   जिनकी गति अवलोक लजाकर हो   समीर भी हा रा !महिलाये   हों सती  सुन्दरी   सद्गुन् वती  सयानी  !   रथारूढ़   भारत     वीरो   की   करें  विजय  अगवानी !  जिनकी गुण गाथा से गुंजित दिग दिगंत   हों सारा ! यज्ञ  निरत भारत  के  सूत  हों शुर  सुकृत    अवतारी !युवक यहाँ के सभ्य सुशिक्षित  सौम्य  सरल सुविचारी !जो होंगे इस धन्य राष्ट्र का भावी     सुद्रढ़   सहारा !    समय समय पर आवश्यकतावस रस धन बरसाए !अन्नौष्ध   में  लगे   प्रचुर   फल   और   पक      जाये !    योग  हमारा  क्षेम  हमारा  स्वत; सिद्ध  हो    सारा !भारत वर्ष   हमारा  प्यारा  अखिल  विश्व  से   न्यारा  !!  

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