जगन्नाथपुरी धाम में आपका हार्दिक स्वागत है
जगन्नाथपुरी धाम
हिन्दुओं के चार धामों में से एक गिने जाने वाला यह तीर्थ पुरी, ओड़िसा में स्थित है। यह भगवान विष्णु के अवतार श्री कृष्ण को समर्पित है। रथ यात्रा यहाँ का प्रमुख और प्रसिद्ध उत्सव है। यह मन्दिर वैष्णव परंपराओं और संत रामानन्द से जुड़ा हुआ है। गोड़ीय वैष्णव संप्रदाय के संस्थापक चैतन्य महाप्रभु कई वर्श तक भगवान श्रीकृष्ण की इस नगरी में रहे थे।
कथाओं के अनुसार भगवान की मूर्ति अंजीर वृक्ष के नीचे मिली थी। भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा इस मंदिर के मुख्य देव हैं जिन्हे अति भव्य और विशाल रथों में सुसज्जित करके यात्रा पर निकालते हैं। यह यात्रा रथ यात्रा के नाम से जानी जाती है जो कि आषाढ़ शुक्ल पक्ष की द्वितीय को आयोजित की जाती है। रथ यात्रा का उत्सव भारत के अनेकों वैष्णव कृष्ण मन्दिरों में भी बड़ी धूम धाम से मनाया जाता है एवं भगवान की शोभा यात्रा पूरे हर्ष उल्लास एवं भक्ति भाव से निकाली जाती है।
जगन्नाथ मंदिर वास्तव में एक बहुत बड़े परिसर का हिस्सा है जो लगभग 40000 वर्ग फिट में फैला हुआ है, मुख्य मन्दिर के शिखर पर भगवान विष्णु का श्री चक्र स्थापित है इस आठ कोणों के चक्र को “नीलचक्र” भी कहतें है जो अष्टधातु का बना है। यह मन्दिर अपने उच्च कोटि के षिल्प एवं अदभुत उड़िया स्थापत्यकला के कारण भारत के भव्यतम मन्दिरों में गिना जाता है। मुख्य मंदिर के चारों ओर परिसर में करीब 30 छोटे-छोटे मंदिर हैं, जिनमें विभिन्न देवी-देवता विराजमान हैं। और वे अलग-अलग समय में बने है।
मंदिर के बारे में एक रोचक तथ्य यह भी है कि यहाँ विश्व का सबसे बड़ा रसोई घर है जहाँ भगवान को अर्पण करने के लिये भोग तैयार किया जाता है जिसे 500 रसोईये तथा उनके 300 सहयोगी पूर्ण मनोयोग से तैयार करते हैं। खास बात यह भी है की इस भोग को तैयार करने में किसी धातु पात्र का प्रयोग नहीं होता है वरन् मिट्टी के पात्रों में ही सामग्री पकाई जाती है।
यूं तो शास्त्रों में खंडित प्रतिमाओं की पूजा निषिद्ध बताई गई है परन्तु जगन्नाथपुरी में असंपूर्ण विग्रह की सेवापूजा व दर्शन होते है।
यहाँ पर भगवान जगन्नाथ, भगवान बलभद्र एवं देवी सुभद्रा की मुर्तियाँ एक रत्न मण्डित पाषाण चबूतरे पर गर्भ गृह में स्थापित है। इतिहास के अनुसार इन मूर्तियों की अर्चना मंदिर निर्माण के कही पहले से ही की जाती रही है।
इस मन्दिर के महत्व का पता इस बात से ही चलता है कि महान सिक्ख सम्राट महाराजा रंणजीत सिंह जी ने स्वंर्ण मन्दिर से भी ज्यादा सोना इस मन्दिर को दान दिया था। आज भी विश्व के कोने कोने से हिन्दु श्रद्धालु लाखों की संख्या में यहाँ आकर भगवान के दर्शन कर बड़ी मात्रा में चढ़ावा चढ़ाते है।
द्वारिका धाम में आपका हार्दिक स्वागत है
द्वारिका धाम
द्वारिका हिन्दुओं का प्रमुख तीर्थ स्थान है। द्वारिका भारत के पश्चिम में समुद के किनारे सौराष्ट्र प्रान्त में बसी है। यह चारों धामों में एक है। आज से हजारों वर्ष पूर्व भगवान श्री कृष्ण ने इसे बसाया था। भगवान श्रीकृष्ण का जन्म मथुरा में हुआ, गोकुल में वह पले बड़े परन्तु शासन उन्होंने द्वारिका में ही किया, पहले मथुरा ही श्रीकृष्ण की राजधानी थी परन्तु कालान्तर में उन्होंने मथुरा को छोड़कर द्वारिका को अपनी राजधानी बनाया। यही से उन्होंने सारे देश की बागडोर संभाली, धर्म की रक्षा की, अधर्म का नाश किया, पापियों को दंडित किया।
द्वारिका एक छोटा कस्बा है, कस्बे के एक हिस्से में चहारदीवारी के अन्दर बड़े बड़े दिव्य मंदिर है। द्वारिका की सुन्दरता अद्वितीय है। द्वारिका के बारे में कहा जाता है कि इस नगर की स्थापना स्वयं विश्वकर्मा देव ने अपने हाथों से की थी तथा उन्ही के कहने पर श्रीकृष्ण जी ने तप करके समुद्रदेव से भूमि के लिये प्रार्थना की थी तथा प्रसन्न होकर समुद्रदेव ने उन्हें बीस योजन भूमि प्रदान की थी। यहाँ भगवान श्रीकृष्ण का द्वारिकाधीश मंदिर सुन्दरता एवं वास्तुकला का अदभुत उदाहरण है। चूँकि भगवान श्रीकृष्ण को सम्पूर्ण जगत का स्वामी माना गया है इसलिये द्वारिकाधीश मंदिर को जगत मंदिर भी कहते है।
यह मंदिर लगभग 2500 वर्ष पुराना है तथा इसके गर्भगृह में भगवान द्वारिकाधीश की स्थापना है। यहाँ उनका काले रंग का विगृह चर्तुभुज विष्णु का रूप है। इस भव्य मंदिर का भवन पाँच मंजिला है तथा यह भवन 72 खम्बों पर टिका है, यह मंदिर लगभग 80 किट ऊँचा है। गुम्बद पर सूर्य एवं चन्द्रमा के चित्र अंकित लम्बी पताका लहराती रहती है। यह अति सुन्दर मंदिर आशचर्यजनक रूप से गोमती नदी एवं अरब सागर के संगम स्थल पर स्थित है।
इस मंदिर में एक बहुत ऊँचा शानदार दुर्ग और श्रद्धालुओं के लिये एक विशाल भवन भी बना है। मंदिर में दो खूबसूरत प्रवेशद्वार बने है। इसके मुख्य द्वार को मोक्ष द्वार तथा दक्षिणी द्वार को स्वर्ग द्वार कहते है।
यहाँ से मात्र 12 कि0मी0 की दूरी पर नागेश्वर महादेव जी का मंदिर है जो भगवान शिव के 12 ज्योतिलिंगों में एक माना जाता है। इसके अतिरिक्त गोपि तालाब, रूकमणि मंदिर, निश्पाप कुण्ड, रणछोड़ जी मंदिर दुर्वासा और त्रिविक्रम मंदिर, कशेश्रर मंदिर, शरदा मठ, चक्र तीर्थ, भेट द्वारिका, कैलाश कुण्ड, शेख तालाब आदि अति पर्वित्र एवं दर्शनीय स्थल है।
बद्रीनाथ धाम में आपका हार्दिक स्वागत है
बद्रीनाथ धाम
बद्रीनाथ मन्दिर भारत के उत्तराखण्ड राज्य में स्थित है, यह पवित्र तीर्थ स्थल हिन्दुओं के चारों धाम में एक है। भगवान बद्रीनाथ धाम में विष्णू भगवान का मन्दिर है। बद्रीनाथ धाम चारों ओर से बर्फ से ढ़की पर्वत श्रंखलाओं से घिरा है। इस धाम का हिन्दु धर्मशास्त्रों, पुराणों में कई स्थान पर उल्लेख हुआ है।
यह इतना पवित्र धाम है कि यह मान्यता है कि स्वयं भगवान ब्रह्या ने यहां पर मानव एवं देवताओं के लिये पूजा का समय निर्धारित किया है। यहां पर देवता वैषाख माह के प्रारम्भ होने पर मनुष्यों को पूजा का भार सौंपकर अपने स्थान पर चले जाते है फिर कार्तिक माह में मनुष्यों से पूजा का भार पुनः ग्रहण करते है। यह मन्दिर अप्रैल में खुलकर नवम्बर में बन्द हो जाता है क्योंकि तब यहां पर सिर्फ बर्फ ही बर्फ जमी रहती है।
हिन्दु धर्म की मान्यता के अनुसार मन्दिर का पट बन्द होने से पूर्व यहां पर 6 महीने के लिये नहाने, खाने एवं भगवान बद्रीनाथ के लिये दातून की व्यवस्था की जाती है तथा 6 माह के लिये अखण्ड दीपक प्रज्जवलित किया जाता है जो 6 माह के बाद भी यहां पर जलता हुआ मिलता है।
भगवान बद्रीनाथ की मूर्ति को जगत गुरू शंकराचार्य ने 11 वर्ष की उम्र में नारद कुण्ड से निकालकर उसे स्थापित किया था। यह दिव्य मूर्ति एक मीटर लम्बी है, यह अद्भुत मूर्ति स्वयं निर्मित है इसे किसी ने भी नही बनाया है। वर्तमान में नम्बूरीपाद एवं डिमरी ब्राह्यणों द्वारा भगवान बद्रीनाथ की पूजा अर्चना की जाती है। मन्दिर के कपाट खुलने के बाद हर वर्ष लाखों लोग विश्व के कोने-कोने से अपने अराध्य देव के दर्शनों के लिये यहां आते है तथा अपनी समस्त इच्छाओं की पूर्ति की कामना के लिये प्रार्थना करते है।
बद्रीनाथ के निकट ब्रह्म कपाल, संतोपथ सरोवर, चरण पादुका, शेषनेत्र, व्यास गुफा, भविष्य बदरी, आदि बदरी आदि अन्य पवित्र एवं अति दर्शनीय स्थल है।
रामेश्वरम धाम में आपका हार्दिक स्वागत है
रामेश्वरम धाम
रामेश्वर हिन्दुओं का एक अत्यन्त पवित्र तीर्थ है जो भारत के तमिलनाडु के रामनाथपुरम जिले में स्थित है। रामेश्वरम नाम से ही पता लगता है कि यह कितनी पवित्र जगह होगी। रामेश्वरम अर्थात (राम + ईश्वर) कहते है कि भगवान राम ने लंका विजय के बाद अनगिनत योद्धाओं के मारे जाने एवं रावण जैसे चारों वेदों के ज्ञाता एवं शिव भक्त की मृत्यु से लगे ब्रहम हत्या का पाप धोने के लिये यहाँ पर शिवलिंग की स्थापना की थी। स्वयं भगवान राम द्वारा यह शिवलिंग स्थापित करने के कारण यह स्थान अत्यन्त पवित्र एवं मनुष्यों के सभी पापों का नाश करने वाला है। यहाँ स्थापित शिवलिंग 12 ज्योर्तिलिंगों में एक माना जाता है तथा रामेश्वर धाम की गणना हिन्दुओं के पवित्रतम चारो धामों में की जाती है। कहते है जिस प्रकार उत्तर में पवित्र नगरी काशी का स्थान है वही मान्यता दक्षिण में इस अति पूजनीय तीर्थ को प्राप्त है।
रामेश्वर धाम चेन्नई से दक्षिण-पूर्व में लगभग 425 मील की दूरी पर स्थित है। यह शंख के आकार का अति सुन्दर द्वीप है जो हिन्द महासागर तथा बंगाल की खाड़ी से चारों ओर से घिरा है। प्राचीन काल में यह भारत की मुख्य भूमि से जुड़ा था लेकिन धीरे-धीरे समुद्र की लहरों ने इसे काट दिया और यह एक टापू बन गया। यही पर भगवान राम ने नल नील तथा वानर सेना के सहयोग से एक पुल बनाया था जिस पर चड़कर लंका पर विजय प्राप्त की थी परन्तु बाद में यह पुल धनुषकोटि नामक स्थान पर विभिषण के कहने पर तोड़ दिया गया था। आज भी इस पुल के अवशेष सागर में दिखायी देते है।
रामेश्वर का मंदिर अत्यन्त भव्य सुन्दर एवं विशाल है। यह मंदिर भारतीय वास्तु एवं शिल्प कला का उत्कर्ष नमूना है यह मंदिर 6 हेक्टेयर में फैला है, इसके प्रवेशद्वार का गोपुरम अत्यन्त भव्य एवं विशाल है तथा यह 38.4 मीटर ऊँचा है मंदिर के अन्दर और प्राकार में सैकड़ो विशाल खम्भें है जिन पर अलग-अलग अति सुन्दर बेल-बूटे उकेरे गये है। इस मंदिर का गलियारा विश्व का सबसे बड़ा गलियारा माना जाता है। इस मंदिर में कई लाख टन पत्थर लगे है मंदिर के अन्दर भीतरी भाग में चिकना काला पत्थर लगा हैं कहते है यह पत्थर लंका से नावों पर लादकर लाये गये थे।
रामेश्वरम से लगभग 33 मील दूर रामनाथपुरम नामक स्थान है। कहते है मंदिर को बनाने एवं इसकी रक्षा करने में यहाँ के राजाओं का प्रमुख योगदान रहा है। यहाँ के राजभवन में एक काला पत्थर रखा हुआ है मान्यता है कि यह पत्थर भगवान राम ने केवटराज के राजतिलक में उसके चिन्ह के रूप में प्रदान किया था इस लिये श्रद्धालु इस पत्थर के दर्शन के लिये यहाँ जरूर आते है।
यहाँ पर इसके अतिरिक्त विल्लीरणि तीर्थ, सेतू माधव, बाइस कुण्ड, एकांत राम, सीता कुण्ड, आदि सेतु, राम पादुका मंदिर, कोदण्ड स्वामी मंदिर आदि प्रमुख एतिहासिक, पवित्र एवं दर्शनीय स्थल है।
जगन्नाथपुरी धाम
हिन्दुओं के चार धामों में से एक गिने जाने वाला यह तीर्थ पुरी, ओड़िसा में स्थित है। यह भगवान विष्णु के अवतार श्री कृष्ण को समर्पित है। रथ यात्रा यहाँ का प्रमुख और प्रसिद्ध उत्सव है। यह मन्दिर वैष्णव परंपराओं और संत रामानन्द से जुड़ा हुआ है। गोड़ीय वैष्णव संप्रदाय के संस्थापक चैतन्य महाप्रभु कई वर्श तक भगवान श्रीकृष्ण की इस नगरी में रहे थे।
कथाओं के अनुसार भगवान की मूर्ति अंजीर वृक्ष के नीचे मिली थी। भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा इस मंदिर के मुख्य देव हैं जिन्हे अति भव्य और विशाल रथों में सुसज्जित करके यात्रा पर निकालते हैं। यह यात्रा रथ यात्रा के नाम से जानी जाती है जो कि आषाढ़ शुक्ल पक्ष की द्वितीय को आयोजित की जाती है। रथ यात्रा का उत्सव भारत के अनेकों वैष्णव कृष्ण मन्दिरों में भी बड़ी धूम धाम से मनाया जाता है एवं भगवान की शोभा यात्रा पूरे हर्ष उल्लास एवं भक्ति भाव से निकाली जाती है।
जगन्नाथ मंदिर वास्तव में एक बहुत बड़े परिसर का हिस्सा है जो लगभग 40000 वर्ग फिट में फैला हुआ है, मुख्य मन्दिर के शिखर पर भगवान विष्णु का श्री चक्र स्थापित है इस आठ कोणों के चक्र को “नीलचक्र” भी कहतें है जो अष्टधातु का बना है। यह मन्दिर अपने उच्च कोटि के षिल्प एवं अदभुत उड़िया स्थापत्यकला के कारण भारत के भव्यतम मन्दिरों में गिना जाता है। मुख्य मंदिर के चारों ओर परिसर में करीब 30 छोटे-छोटे मंदिर हैं, जिनमें विभिन्न देवी-देवता विराजमान हैं। और वे अलग-अलग समय में बने है।
मंदिर के बारे में एक रोचक तथ्य यह भी है कि यहाँ विश्व का सबसे बड़ा रसोई घर है जहाँ भगवान को अर्पण करने के लिये भोग तैयार किया जाता है जिसे 500 रसोईये तथा उनके 300 सहयोगी पूर्ण मनोयोग से तैयार करते हैं। खास बात यह भी है की इस भोग को तैयार करने में किसी धातु पात्र का प्रयोग नहीं होता है वरन् मिट्टी के पात्रों में ही सामग्री पकाई जाती है।
यूं तो शास्त्रों में खंडित प्रतिमाओं की पूजा निषिद्ध बताई गई है परन्तु जगन्नाथपुरी में असंपूर्ण विग्रह की सेवापूजा व दर्शन होते है।
यहाँ पर भगवान जगन्नाथ, भगवान बलभद्र एवं देवी सुभद्रा की मुर्तियाँ एक रत्न मण्डित पाषाण चबूतरे पर गर्भ गृह में स्थापित है। इतिहास के अनुसार इन मूर्तियों की अर्चना मंदिर निर्माण के कही पहले से ही की जाती रही है।
इस मन्दिर के महत्व का पता इस बात से ही चलता है कि महान सिक्ख सम्राट महाराजा रंणजीत सिंह जी ने स्वंर्ण मन्दिर से भी ज्यादा सोना इस मन्दिर को दान दिया था। आज भी विश्व के कोने कोने से हिन्दु श्रद्धालु लाखों की संख्या में यहाँ आकर भगवान के दर्शन कर बड़ी मात्रा में चढ़ावा चढ़ाते है।
द्वारिका धाम में आपका हार्दिक स्वागत है
द्वारिका धाम
द्वारिका हिन्दुओं का प्रमुख तीर्थ स्थान है। द्वारिका भारत के पश्चिम में समुद के किनारे सौराष्ट्र प्रान्त में बसी है। यह चारों धामों में एक है। आज से हजारों वर्ष पूर्व भगवान श्री कृष्ण ने इसे बसाया था। भगवान श्रीकृष्ण का जन्म मथुरा में हुआ, गोकुल में वह पले बड़े परन्तु शासन उन्होंने द्वारिका में ही किया, पहले मथुरा ही श्रीकृष्ण की राजधानी थी परन्तु कालान्तर में उन्होंने मथुरा को छोड़कर द्वारिका को अपनी राजधानी बनाया। यही से उन्होंने सारे देश की बागडोर संभाली, धर्म की रक्षा की, अधर्म का नाश किया, पापियों को दंडित किया।
द्वारिका एक छोटा कस्बा है, कस्बे के एक हिस्से में चहारदीवारी के अन्दर बड़े बड़े दिव्य मंदिर है। द्वारिका की सुन्दरता अद्वितीय है। द्वारिका के बारे में कहा जाता है कि इस नगर की स्थापना स्वयं विश्वकर्मा देव ने अपने हाथों से की थी तथा उन्ही के कहने पर श्रीकृष्ण जी ने तप करके समुद्रदेव से भूमि के लिये प्रार्थना की थी तथा प्रसन्न होकर समुद्रदेव ने उन्हें बीस योजन भूमि प्रदान की थी। यहाँ भगवान श्रीकृष्ण का द्वारिकाधीश मंदिर सुन्दरता एवं वास्तुकला का अदभुत उदाहरण है। चूँकि भगवान श्रीकृष्ण को सम्पूर्ण जगत का स्वामी माना गया है इसलिये द्वारिकाधीश मंदिर को जगत मंदिर भी कहते है।
यह मंदिर लगभग 2500 वर्ष पुराना है तथा इसके गर्भगृह में भगवान द्वारिकाधीश की स्थापना है। यहाँ उनका काले रंग का विगृह चर्तुभुज विष्णु का रूप है। इस भव्य मंदिर का भवन पाँच मंजिला है तथा यह भवन 72 खम्बों पर टिका है, यह मंदिर लगभग 80 किट ऊँचा है। गुम्बद पर सूर्य एवं चन्द्रमा के चित्र अंकित लम्बी पताका लहराती रहती है। यह अति सुन्दर मंदिर आशचर्यजनक रूप से गोमती नदी एवं अरब सागर के संगम स्थल पर स्थित है।
इस मंदिर में एक बहुत ऊँचा शानदार दुर्ग और श्रद्धालुओं के लिये एक विशाल भवन भी बना है। मंदिर में दो खूबसूरत प्रवेशद्वार बने है। इसके मुख्य द्वार को मोक्ष द्वार तथा दक्षिणी द्वार को स्वर्ग द्वार कहते है।
यहाँ से मात्र 12 कि0मी0 की दूरी पर नागेश्वर महादेव जी का मंदिर है जो भगवान शिव के 12 ज्योतिलिंगों में एक माना जाता है। इसके अतिरिक्त गोपि तालाब, रूकमणि मंदिर, निश्पाप कुण्ड, रणछोड़ जी मंदिर दुर्वासा और त्रिविक्रम मंदिर, कशेश्रर मंदिर, शरदा मठ, चक्र तीर्थ, भेट द्वारिका, कैलाश कुण्ड, शेख तालाब आदि अति पर्वित्र एवं दर्शनीय स्थल है।
बद्रीनाथ धाम में आपका हार्दिक स्वागत है
बद्रीनाथ धाम
बद्रीनाथ मन्दिर भारत के उत्तराखण्ड राज्य में स्थित है, यह पवित्र तीर्थ स्थल हिन्दुओं के चारों धाम में एक है। भगवान बद्रीनाथ धाम में विष्णू भगवान का मन्दिर है। बद्रीनाथ धाम चारों ओर से बर्फ से ढ़की पर्वत श्रंखलाओं से घिरा है। इस धाम का हिन्दु धर्मशास्त्रों, पुराणों में कई स्थान पर उल्लेख हुआ है।
यह इतना पवित्र धाम है कि यह मान्यता है कि स्वयं भगवान ब्रह्या ने यहां पर मानव एवं देवताओं के लिये पूजा का समय निर्धारित किया है। यहां पर देवता वैषाख माह के प्रारम्भ होने पर मनुष्यों को पूजा का भार सौंपकर अपने स्थान पर चले जाते है फिर कार्तिक माह में मनुष्यों से पूजा का भार पुनः ग्रहण करते है। यह मन्दिर अप्रैल में खुलकर नवम्बर में बन्द हो जाता है क्योंकि तब यहां पर सिर्फ बर्फ ही बर्फ जमी रहती है।
हिन्दु धर्म की मान्यता के अनुसार मन्दिर का पट बन्द होने से पूर्व यहां पर 6 महीने के लिये नहाने, खाने एवं भगवान बद्रीनाथ के लिये दातून की व्यवस्था की जाती है तथा 6 माह के लिये अखण्ड दीपक प्रज्जवलित किया जाता है जो 6 माह के बाद भी यहां पर जलता हुआ मिलता है।
भगवान बद्रीनाथ की मूर्ति को जगत गुरू शंकराचार्य ने 11 वर्ष की उम्र में नारद कुण्ड से निकालकर उसे स्थापित किया था। यह दिव्य मूर्ति एक मीटर लम्बी है, यह अद्भुत मूर्ति स्वयं निर्मित है इसे किसी ने भी नही बनाया है। वर्तमान में नम्बूरीपाद एवं डिमरी ब्राह्यणों द्वारा भगवान बद्रीनाथ की पूजा अर्चना की जाती है। मन्दिर के कपाट खुलने के बाद हर वर्ष लाखों लोग विश्व के कोने-कोने से अपने अराध्य देव के दर्शनों के लिये यहां आते है तथा अपनी समस्त इच्छाओं की पूर्ति की कामना के लिये प्रार्थना करते है।
बद्रीनाथ के निकट ब्रह्म कपाल, संतोपथ सरोवर, चरण पादुका, शेषनेत्र, व्यास गुफा, भविष्य बदरी, आदि बदरी आदि अन्य पवित्र एवं अति दर्शनीय स्थल है।
रामेश्वरम धाम में आपका हार्दिक स्वागत है
रामेश्वरम धाम
रामेश्वर हिन्दुओं का एक अत्यन्त पवित्र तीर्थ है जो भारत के तमिलनाडु के रामनाथपुरम जिले में स्थित है। रामेश्वरम नाम से ही पता लगता है कि यह कितनी पवित्र जगह होगी। रामेश्वरम अर्थात (राम + ईश्वर) कहते है कि भगवान राम ने लंका विजय के बाद अनगिनत योद्धाओं के मारे जाने एवं रावण जैसे चारों वेदों के ज्ञाता एवं शिव भक्त की मृत्यु से लगे ब्रहम हत्या का पाप धोने के लिये यहाँ पर शिवलिंग की स्थापना की थी। स्वयं भगवान राम द्वारा यह शिवलिंग स्थापित करने के कारण यह स्थान अत्यन्त पवित्र एवं मनुष्यों के सभी पापों का नाश करने वाला है। यहाँ स्थापित शिवलिंग 12 ज्योर्तिलिंगों में एक माना जाता है तथा रामेश्वर धाम की गणना हिन्दुओं के पवित्रतम चारो धामों में की जाती है। कहते है जिस प्रकार उत्तर में पवित्र नगरी काशी का स्थान है वही मान्यता दक्षिण में इस अति पूजनीय तीर्थ को प्राप्त है।
रामेश्वर धाम चेन्नई से दक्षिण-पूर्व में लगभग 425 मील की दूरी पर स्थित है। यह शंख के आकार का अति सुन्दर द्वीप है जो हिन्द महासागर तथा बंगाल की खाड़ी से चारों ओर से घिरा है। प्राचीन काल में यह भारत की मुख्य भूमि से जुड़ा था लेकिन धीरे-धीरे समुद्र की लहरों ने इसे काट दिया और यह एक टापू बन गया। यही पर भगवान राम ने नल नील तथा वानर सेना के सहयोग से एक पुल बनाया था जिस पर चड़कर लंका पर विजय प्राप्त की थी परन्तु बाद में यह पुल धनुषकोटि नामक स्थान पर विभिषण के कहने पर तोड़ दिया गया था। आज भी इस पुल के अवशेष सागर में दिखायी देते है।
रामेश्वर का मंदिर अत्यन्त भव्य सुन्दर एवं विशाल है। यह मंदिर भारतीय वास्तु एवं शिल्प कला का उत्कर्ष नमूना है यह मंदिर 6 हेक्टेयर में फैला है, इसके प्रवेशद्वार का गोपुरम अत्यन्त भव्य एवं विशाल है तथा यह 38.4 मीटर ऊँचा है मंदिर के अन्दर और प्राकार में सैकड़ो विशाल खम्भें है जिन पर अलग-अलग अति सुन्दर बेल-बूटे उकेरे गये है। इस मंदिर का गलियारा विश्व का सबसे बड़ा गलियारा माना जाता है। इस मंदिर में कई लाख टन पत्थर लगे है मंदिर के अन्दर भीतरी भाग में चिकना काला पत्थर लगा हैं कहते है यह पत्थर लंका से नावों पर लादकर लाये गये थे।
रामेश्वरम से लगभग 33 मील दूर रामनाथपुरम नामक स्थान है। कहते है मंदिर को बनाने एवं इसकी रक्षा करने में यहाँ के राजाओं का प्रमुख योगदान रहा है। यहाँ के राजभवन में एक काला पत्थर रखा हुआ है मान्यता है कि यह पत्थर भगवान राम ने केवटराज के राजतिलक में उसके चिन्ह के रूप में प्रदान किया था इस लिये श्रद्धालु इस पत्थर के दर्शन के लिये यहाँ जरूर आते है।
यहाँ पर इसके अतिरिक्त विल्लीरणि तीर्थ, सेतू माधव, बाइस कुण्ड, एकांत राम, सीता कुण्ड, आदि सेतु, राम पादुका मंदिर, कोदण्ड स्वामी मंदिर आदि प्रमुख एतिहासिक, पवित्र एवं दर्शनीय स्थल है।
मुझे यह लेख पढ़कर मेरे अध्ययन को एक नया मोड़ मिला है। आपकी गहराई और समझदारी के लिए आभार। मेरा यह लेख भी पढ़ें बद्रीनाथ मंदिर का इतिहास
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