तिथि – कार्तिक – चैत के नवरात्रा का समय तो होती
ही है। प्रत्येक पंचमी, अष्टमी, नवमी, चतुर्दशी चाहे कृष्ण
पक्ष की हो या शुक्ल पक्ष की पूजा करके साधना कार्य प्रारंभ करने के लिए उत्तम
होता है।
दिशा
– ईशान कोण की ओर मुख करके या यहीं इसी
कोण पर पूर्व – उत्तर की ओर मुख करके। (इनकी विशेष
साधनाएं दक्षिण एवं पश्चिम, अग्नि- वायु – नै ऋत्य कोण में भी की जाती है।
यंत्र
– चक्र में बना दुर्गा जी के सिद्ध
यंत्र। मन्त्र के सामने पिंडी।
समय
– काल-रात्रि (9 से 1); ब्रह्म मुहूर्त (संशोधित)
वस्त्र
– आसन – सूती सिंदूरी।
माला
– रुद्राक्ष (उद्देश्य से भिन्न-भी)
आचार-व्यवहार
दुर्गा जी की तांत्रिक तामसी साधनाएं अधिकतर
कृष्ण पक्ष में की जाती हैं। तन्त्र साधनाओं में चाहे वह शैवमार्ग हो, देवी
मार्ग हो, भैरवी मार्ग हो या अघोर मार्ग देवी की पूजा-अर्चना मदिरा , मॉस
, मच्छली, भात , खीर, आदि से की जाती
है ।पुआ आदि भी। इन मार्गों में उपवास करके देवी की पूजा का विधान नहीं है।
दुर्गा जी की सात्विक साधनाएं हमेशा शुक्ल पक्ष
में की जाती है। यह पूजा उपवास करके की जाती है और जो नहीं करते, वे
पूजा के बाद फल-दोद्ध आदि का सेवन करते है।
लोग पूछने लगती है कि दोनों में क्या अन्तर है?
हमारा
उत्तर है। बाघ में दुर्गा का रूप शिकार करने का है और खरगोश में दौड़ने का। वैसे
दुर्गा जी तन्त्र मार्ग की ही देवी है। ये वैदिक देवी नहीं । इन्हें आत्मासत किया
गया है । सम्भवतः शिव प्रजापति युद्ध के बाद ।
र्सव सिद्धि प्रदायक प्रत्यक्ष दुर्गा सिद्धि
प्रयोग
॥र्सव सिद्धि प्रदायक प्रत्यक्ष दुर्गा सिद्धि
प्रयोग॥
Rsava accomplishment of Durga namely direct suppliers
यह प्रयोग किसी भी दिन सम्पन्न किया जा सकता है,
दुर्गा
पूजा के लिए किसी भी प्रकार के मुहूर्त की आवश्यकता नहीँ रहती, देवी
रहस्य तन्त्र के अनुसार-दुर्गा पूजा मेँ न तो कोई विशेष विधान है, न
विध्न है और न कठिन आचार।
प्रातः र्सूयोदय से र्पुव उठ कर साधक स्नान कर
शुद्ध पीले वस्त्र धारण कर अपने पूजा स्थान को स्वच्छ करेँ, जल से धोकर
स्थान शुद्धि और भूमि शुद्धि कर अपना आसन बिछाएं, आसन पर बैठ कर
ध्यान करेँ , अपने चित को एकाग्र करेँ, कार्य
सिद्धि साधना के संबंध मेँ पूरे विश्वाश के आधार पर कार्य करते हुए, संकल्प
लेँ ।
अपने सामने सिँह पर स्थित देवी का एक चित्र
स्थापित करेँ, और "श्री गणेशाय नमः" बोले फिर एक ओर
घी का दीपक तथा दूसरी ओर धूप अगरबत्ती इत्यादि जयाएं ।
अब बाएं हाथ मे जल लेकर दाएं हाथ से अपने मुख,
शरीर
इत्यादि पर छिडकते हुए निम्न मंत्रों के उच्चारण के साथ तत्व - न्यास सम्पन्न करते
हुए, थोडा जल दोनो आखो मे लगा कर भूमि पर छोड देँ ।
ॐ आत्म तत्वाय नमः ।
ॐ ह्रीँ विद्या तत्वाय नमः ।
ॐ दुं शिव तत्वाय नमः ।
ॐ गुं गुरु तत्वाय नमः ।
ॐ ह्रीं शक्ति तत्वाय नमः ।
ॐ श्रीँ शक्ति तत्वाय नमः ।
सामने चौकी पर पीला वस्त्र बिछा कर उस पर पुष्प
की पंखुडियोँ का आसन बनाएं, तथा दुर्गा यंत्र को दुग्ध धारा से फिर
जल धारा से धो कर , साफ कपडे से पोछ कर--
ॐ ह्रीँ वज्रनख दंष्ट्रायुधाय महासिँहाय फट् ।
इस मंत्र का उच्चारण करते हुए दुर्गा यंत्र को
पुष्प के आसन पर स्थापित कर अबीर, गुलाल , कुंकुंम ,
केशर
, मौली , सिंन्दूर अर्पित करेँ , इसके पश्चात् एक
पुष्प माला देवी के चित्र पर चढाए तथा दूसरी माला इस इस देवी यंत्र के सामने रख
देँ ।
अब दुर्गा की शक्तियो का पूजन कार्य सम्पन्न
करेँ, सामने दुर्गा यंत्र के आगे 9 गोमती चक्र स्थापित करेँ, (गोमती
चक्र के आभाव मे यंत्र पे ही) प्रत्येक चक्र के नीचे पुष्प की एक एक पंखुडी रखे,
तथा
चावल को कुंकुंम से रंग कर मंत्र जप करते हुए इन 9 शक्तियो का जप
करेँ ।
ॐ प्रभायै नमः ।
ॐ जयायै नमः ।
ॐ विशुद्धाय नमः ।
ॐ सुप्रभायै नमः
ॐ मायायै नमः ।
ॐ सूक्ष्मायै नमः ।
ॐ नन्दिन्यै नमः ।
ॐ विजयायै नमः ।
ॐ र्सव सिद्धिदायै नमः ।
अब गणेश पूजन कर देवी का पूजन सम्पन्न करेँ,
अपने
हाथ मे धूप लेकर 21 बार धूप करेँ , फिर दुर्गा
अष्टाक्षर मंत्र का जप प्रारम्भ करेँ ।
प्रत्यक्ष
दुर्गा सिद्धि अष्टाक्षर मंत्र--॥ ॐ ह्रीँ दुं दुर्गायै नमः ॥
शारदा तिलक मे लिखा है कि शान्त ह्रदय से चित्त
मे शान्ति तथा एकाग्रता रखते हुए, साधक इस मंत्र की रोज 51
माला का जप 121 दिन उसी स्थान पर बैठ कर करेँ तो उसे साक्षात
स्वरुप मेँ प्रगट हो कर माँ अष्ट सिद्धि वरदान देती है. साधक को जो वर प्राप्त
होता है, उस से साधक भैरव के समान हो जाता है, उसे अभय का वह
स्वरुप प्राप्त हो जाता है कि उसके मन से भय डर पूण रुप से समाप्त हो जाता है.
शरीर की व्याधियो का निवारण तथा दीर्धायु प्राप्ति के लिए भी यही र्सवश्रेष्ठ
विधान है ।
प्रतिदिन पूजा के पश्चात साधक देवी की आरती तथा
ताम्र पात्र मे जल को आचमनी मे ले कर ग्रहण करेँ तो उसके भीतर शक्ति का
प्रादुर्भाव होता है ।
दुर्गा सप्तशती यंत्र साधना.
दुर्गा सप्तशती के बारे मे तो बहोत से साधक
जानते है,आज आपको "दुर्गा सप्तशती यंत्र" साधना मंत्र के साथ दे रहा
हूं। साधना प्रचण्ड है और जिन्हे मातारानी पर पुर्ण विश्वास हो वही लोग यह साधना
करे क्युके ये साधना बेकार (time pass करने वाले बेकार) लोगो के लिये नही है।
बहोत से लोग आजमाने के लिये मंत्र-तंत्र मे आये,उन्होने कुछ
मंत्र साधना करके भी देखा ।इसमे किसीको अच्छे परिणाम (अनुभव) प्राप्त हुए तो
किसीको कोइ परिणाम देखने नही मिला होगा,परंतु इस साधना मे परिणाम देखने मिलते
है।
इस साधना मे नियमों का पालन करना अत्यंत आवश्यक
है अन्यथा हानी हो सकती है। मै बहोत से लोगो से यह साधना करवाया है और सभी को
मातारनी के आशिर्वाद से अनुभव प्राप्त हुए है।
साधना विधि और नियम:-
ब्रह्मचैर्यत्व जरुरी है,झुट नही बोलना,बाल
नही कटवाने है,साधना काल मे दिर्घशंका आये तो स्नान करे,घी
का दिपक,गुलाब के सुगंध का धूप,वस्त्र-आसान लाल रंग के हो,मा
दुर्गाजी का कोइ भी दिव्य चित्र जरुरी है,मुख पुर्व के तरफ करके मंत्र जाप करना
है,माला रुद्राक्ष का हो,भोग मे रोज़ सुखा मेवा चढाया जाता है,साधना
रात्री मे 9 बजे के बाद किसी भी माह के कृष्ण पक्ष अष्टमी
से अमावस्या तक करना है और आखरी दिन हवन मे काले तिल और घी से दशान्श आहूति देना
है। हवन के बाद अनार का बलि देना है और श्रुंगार का सामग्री चढाया जाता है,रोज
गुलाब का ही फुल अर्पित करें। मंत्र जाप से पुर्व और आखिर मे सप्तश्लोकी दुर्गा का
पाठ करे,रोज 11 माला मंत्र जाप करे। दुर्गासप्तशति यंत्र का
चित्र दे रहा हू और यह यंत्र साधना से पुर्व ही अष्टगंध के स्याही से बनाना है,अनार
का कलम इस्तेमाल करें,यंत्र भोजपत्र पर ही बनाना है।
1.इस मंत्री का ध्यान और विनियोग क्या है?
जवाब देंहटाएं2.11या 21 दिन मे क्या साधना पूर्ण किया जा सकता है?
Bhut badiya sadhna h .anubhav hote h mene kiye h
जवाब देंहटाएंKripa kar k y bataye ki maa k ashtakshari jaap ko kis time karna h mrng m ya eve m 9 pm aur last day me havan karna h to kaise kare
जवाब देंहटाएंmostly posts are copied from any other sites.
जवाब देंहटाएंGuruji pranam me mata Durga ki ye sadhna karna chahtahun. Ap ke ashirbad se. Me Devi Prasad Mishra kouchasya gotra. Odisha jeypore se hun.
जवाब देंहटाएंThe Durga Bisa yantra bestows wealth and property.
जवाब देंहटाएंMaiya ko man se kehe he mai tumne kalidas,ramkrishna ,bamakhepa ,dhyanu ko banaya me tera putra maiya teri mamta na pa saku tum to jag janni ho mai tum jewan man tan me ho me tum me hu mai,me tumhara putra maiya tumhae yad nahi mateswari....tum jano maiya..
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