* व्रतोत्सव पर्व *
१ -नियम संयम का पालन
२ -देवाराधन
३ -लक्ष्य के प्रति एकाग्रता
व्रत के मूलतः दो भेद हैं -१ -उपवास व्रत , २ -संकल्पिक नियम संयम व्रत !
उपवास -जिसके अंतर्गत व्यक्ति निराहार या फलाहार रह कर देवाराधन करते हुए अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए प्रयत्नशील रहता है !
संकल्पिक व्रत -इस प्रकार के व्रत के अंतर्गत कायिक ,वाचिक ,मानसिक अपराधों का त्याग करते हुए अपने इष्ट का ध्यान करके लक्ष्य प्राप्ति के लिए प्रयास किया जाता है !
दोनों ही प्रकार के व्रत सकाम अर्थात कामना सहित अथवा निष्काम अर्थात कामना रहित हो सकते है !व्रत के प्रभाव से चतुर्वर्ग के फल अर्थात धर्म ,अर्थ ,कम ,मोक्ष को प्राप्त किया जा सकता है !प्रत्येक व्रत का एक प्रथक नियम -विधि होती है जिसके अनुसार व्रती को व्रत पूर्ण करना होता है तदनन्तर कामना पूर्ण होने पर व्रत का उद्द्यापन किया जाता है !कुछ प्रमुख व्रत निम्न लिखित है -एकादशी व्रत ,प्रदोष व्रत ,पूर्णिमा व्रत ,नवरात्र व्रत नवग्रह शांति हेतु नवग्रह व्रत ,महाशिवरात्रि व्रत ,हरतालिका व्रत ,करवाचौथ इत्यादि !
भारतीय संस्कृति में पर्व और उत्सवों का महत्वपूर्ण स्थान है यह हमारी संस्कृति और जीवन के अभिन्न अंग है जो हमारे जीवन को प्रसन्नता ,आनन्द व उल्लास से परिपूर्ण करते है ! पर्व का अर्थ गाँठ या संधिकाल से है |हिन्दू पर्व मूलतः संधि काल में ही पड़ते है |पूर्णिमा ,अमावस्या तथा संक्रांति आदि को शास्त्रों में पर्व कहा गया है |शुक्ल पक्ष एवं कृष्ण पक्ष की संधि बेलाओं में पूर्णिमा तथा अमावस्या पर्व होते है |सूर्य संक्रमण में परिवर्तन होने से संक्रांति भी पर्व है | दैनिक जीवन में प्रातः ,मध्यान्ह तथा सायंकाल -त्रिकाल की संध्या भी संधि काल में होने के कारण पर्व के रूप में अभिहित है |
पर्व को मुख्यतः तीन रूपों में वर्गीकृत किया जाता है -१-नित्य पर्व ,२-नैमित्तिक पर्व ,३- काम्य पर्व
कुछ पर्व ऐसे होते हैजिनका समय निश्चित है संध्यादी से लेकर एकादशी ,प्रदोष ,दीपावली ,होली आदि ऐसे ही पर्व है जो "नित्य पर्व "श्रेणी में गिने जाते है ! वे पर्व नैमित्तिक पर्व कहलाते है जो किसी घटना विशेष या ग्रह नक्षत्र के योग विशेष के पड़ने से होते है जैसे -ग्रहण ,कुम्भ ,पुत्र जन्मोत्सव आदि !वे पर्व काम्य पर्व कहे जाते है जो ग्रह शांति या किसी विशेष कामना की पूर्ति हेतु व्रत ,पूजन ,उत्सव इत्यादि किये जाते है ! पर्वों के एक अन्य द्रष्टिकोण से निम्नलिखित भेद भी बताये गए है -
दिव्य पर्व ,देव पर्व ,पितृ पर्व ,काल पर्व ,जयन्ती पर्व ,प्राणी पर्व, वनस्पति पर्व ,मानव पर्व ,तीर्थ पर्व !
पर्व विशेष में कुछ विशेष कृत्य किये जाते है जिनमे कुछ कर्म विशेष की प्रधानता होती है जैसे -उपासना प्रधान ,यज्ञ प्रधान ,स्नान प्रधान ,अनुष्ठान प्रधान ,महोत्सव प्रधान आदि |कुछ पर्व वर्ण प्रधान भी होते है जैसे -ब्राह्मण , क्षत्रिय , वैश्य ,शूद्र केलिए क्रमशः रक्षाबंधन ,विजयादशमी ,दीपावली और होली है !किन्तु जप ,दान,पूजन तथा कीर्तन सभी में किया जा सकता है !
उत्सव से हमारा अभिप्राय उन सभी क्रियाकलापों से है जिससे हमे आमोद -प्रमोद ,हर्ष ,सुख ,प्रसन्नता ,आनन्द ,सम्प्राप्ति ,उन्नति ,प्रकाश ,त्योहार ,चहल -पहल इत्यादि के द्वारा पारवारिक और सामाजिक रूप से संतुष्टि प्राप्त होती है और साथ ही साथ प्रेम सौहार्द और जनकल्याण से मानव जाति का परम कल्याण होता है !सूर्य की बारह संक्रांतियां ,बारह अमावस्यायें ,बारह पूर्णिमायें ,बारह शुक्ल और कृष्ण अष्टमीयां ये ६० सार्वजानिक उत्सव है राजसत्ता केलिए युद्ध उत्सव ही है !हिन्दू सनातन धर्म में विक्रमी सम्वत्सर के प्रारम्भ से वर्ष पर्यन्त विभिन्न पर्वों पर सामूहिक उत्सव या त्यौहारों के रूप में ही भव्य आयोजन किये जाते है !जब कोई उत्सव किसी वर्ग या क्षेत्र विशेष तक सीमित न होकर व्यापक हो जाता है तब वह महोत्सव कहलाता है जैसे -श्री कृष्ण जन्म महोत्सव ,श्री राधा जन्म महोत्सव ,श्री राम जन्म महोत्सव ,श्री गणेश चतुर्थी महोत्सव इत्यादि !इसी प्रकार गंगा दशहरा ,मकर संक्रांति ,कुम्भ महापर्वों की श्रेणी में शामिल किये जाते है !
तो फिर आइये रंग जाएँ भारतीय संस्कृति के अनूठे रंग में !!!!!!!!!!!!!!!!!!
भारतीय संस्कृति विशेषतः हिन्दू सनातन धर्म में व्रत ,पर्व और उत्सव लौकिक एवम आध्यात्मिक उन्नति के सशक्त साधन है इनसे हर्षोल्लास के साथ आदर्श जीवन जीने की प्रेरणा प्राप्त होती है !इससे मनुष्य दुःख, भय ,शोक ,मोह और अज्ञान से मुक्त हो कर अलौकिक अखण्ड आनन्द की अनुभूति करता है !
मनुष्यों को व्रताचरण से उन्नत जीवन की योग्यता प्राप्त होती है !व्रत के तीन मूल सिद्धांत है -१ -नियम संयम का पालन
२ -देवाराधन
३ -लक्ष्य के प्रति एकाग्रता
व्रत के मूलतः दो भेद हैं -१ -उपवास व्रत , २ -संकल्पिक नियम संयम व्रत !
उपवास -जिसके अंतर्गत व्यक्ति निराहार या फलाहार रह कर देवाराधन करते हुए अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए प्रयत्नशील रहता है !
संकल्पिक व्रत -इस प्रकार के व्रत के अंतर्गत कायिक ,वाचिक ,मानसिक अपराधों का त्याग करते हुए अपने इष्ट का ध्यान करके लक्ष्य प्राप्ति के लिए प्रयास किया जाता है !
दोनों ही प्रकार के व्रत सकाम अर्थात कामना सहित अथवा निष्काम अर्थात कामना रहित हो सकते है !व्रत के प्रभाव से चतुर्वर्ग के फल अर्थात धर्म ,अर्थ ,कम ,मोक्ष को प्राप्त किया जा सकता है !प्रत्येक व्रत का एक प्रथक नियम -विधि होती है जिसके अनुसार व्रती को व्रत पूर्ण करना होता है तदनन्तर कामना पूर्ण होने पर व्रत का उद्द्यापन किया जाता है !कुछ प्रमुख व्रत निम्न लिखित है -एकादशी व्रत ,प्रदोष व्रत ,पूर्णिमा व्रत ,नवरात्र व्रत नवग्रह शांति हेतु नवग्रह व्रत ,महाशिवरात्रि व्रत ,हरतालिका व्रत ,करवाचौथ इत्यादि !
भारतीय संस्कृति में पर्व और उत्सवों का महत्वपूर्ण स्थान है यह हमारी संस्कृति और जीवन के अभिन्न अंग है जो हमारे जीवन को प्रसन्नता ,आनन्द व उल्लास से परिपूर्ण करते है ! पर्व का अर्थ गाँठ या संधिकाल से है |हिन्दू पर्व मूलतः संधि काल में ही पड़ते है |पूर्णिमा ,अमावस्या तथा संक्रांति आदि को शास्त्रों में पर्व कहा गया है |शुक्ल पक्ष एवं कृष्ण पक्ष की संधि बेलाओं में पूर्णिमा तथा अमावस्या पर्व होते है |सूर्य संक्रमण में परिवर्तन होने से संक्रांति भी पर्व है | दैनिक जीवन में प्रातः ,मध्यान्ह तथा सायंकाल -त्रिकाल की संध्या भी संधि काल में होने के कारण पर्व के रूप में अभिहित है |
पर्व को मुख्यतः तीन रूपों में वर्गीकृत किया जाता है -१-नित्य पर्व ,२-नैमित्तिक पर्व ,३- काम्य पर्व
कुछ पर्व ऐसे होते हैजिनका समय निश्चित है संध्यादी से लेकर एकादशी ,प्रदोष ,दीपावली ,होली आदि ऐसे ही पर्व है जो "नित्य पर्व "श्रेणी में गिने जाते है ! वे पर्व नैमित्तिक पर्व कहलाते है जो किसी घटना विशेष या ग्रह नक्षत्र के योग विशेष के पड़ने से होते है जैसे -ग्रहण ,कुम्भ ,पुत्र जन्मोत्सव आदि !वे पर्व काम्य पर्व कहे जाते है जो ग्रह शांति या किसी विशेष कामना की पूर्ति हेतु व्रत ,पूजन ,उत्सव इत्यादि किये जाते है ! पर्वों के एक अन्य द्रष्टिकोण से निम्नलिखित भेद भी बताये गए है -
दिव्य पर्व ,देव पर्व ,पितृ पर्व ,काल पर्व ,जयन्ती पर्व ,प्राणी पर्व, वनस्पति पर्व ,मानव पर्व ,तीर्थ पर्व !
पर्व विशेष में कुछ विशेष कृत्य किये जाते है जिनमे कुछ कर्म विशेष की प्रधानता होती है जैसे -उपासना प्रधान ,यज्ञ प्रधान ,स्नान प्रधान ,अनुष्ठान प्रधान ,महोत्सव प्रधान आदि |कुछ पर्व वर्ण प्रधान भी होते है जैसे -ब्राह्मण , क्षत्रिय , वैश्य ,शूद्र केलिए क्रमशः रक्षाबंधन ,विजयादशमी ,दीपावली और होली है !किन्तु जप ,दान,पूजन तथा कीर्तन सभी में किया जा सकता है !
उत्सव से हमारा अभिप्राय उन सभी क्रियाकलापों से है जिससे हमे आमोद -प्रमोद ,हर्ष ,सुख ,प्रसन्नता ,आनन्द ,सम्प्राप्ति ,उन्नति ,प्रकाश ,त्योहार ,चहल -पहल इत्यादि के द्वारा पारवारिक और सामाजिक रूप से संतुष्टि प्राप्त होती है और साथ ही साथ प्रेम सौहार्द और जनकल्याण से मानव जाति का परम कल्याण होता है !सूर्य की बारह संक्रांतियां ,बारह अमावस्यायें ,बारह पूर्णिमायें ,बारह शुक्ल और कृष्ण अष्टमीयां ये ६० सार्वजानिक उत्सव है राजसत्ता केलिए युद्ध उत्सव ही है !हिन्दू सनातन धर्म में विक्रमी सम्वत्सर के प्रारम्भ से वर्ष पर्यन्त विभिन्न पर्वों पर सामूहिक उत्सव या त्यौहारों के रूप में ही भव्य आयोजन किये जाते है !जब कोई उत्सव किसी वर्ग या क्षेत्र विशेष तक सीमित न होकर व्यापक हो जाता है तब वह महोत्सव कहलाता है जैसे -श्री कृष्ण जन्म महोत्सव ,श्री राधा जन्म महोत्सव ,श्री राम जन्म महोत्सव ,श्री गणेश चतुर्थी महोत्सव इत्यादि !इसी प्रकार गंगा दशहरा ,मकर संक्रांति ,कुम्भ महापर्वों की श्रेणी में शामिल किये जाते है !
तो फिर आइये रंग जाएँ भारतीय संस्कृति के अनूठे रंग में !!!!!!!!!!!!!!!!!!
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