कालसर्प योग : कितना सच, कितना झूठ :---जन्म कुंडली
में कालसर्प योग :
जब जन्म कुंडली में सारे ग्रह राहु और केतु के
बीच अवस्थित रहते हैं तो उससे ज्योतिष विद्या मर्मज्ञ व्यक्ति यह फलादेश आसानी से
निकाल लेते हैं कि संबंधित जातक पर आने वाली उक्त प्रकार की परेशानियाँ कालसर्प
योग की वजह से हो रही हैं। परंतु याद रहे, कालसर्प योग वाले सभी जातकों पर इस योग
का समान प्रभाव नहीं पड़ता। किस भाव में कौन सी राशि अवस्थित है और उसमें कौन-कौन
ग्रह कहां बैठे हैं और उनका बलाबल कितना है - इन सब बातों का भी संबंधित जातक पर
भरपूर असर पड़ता है।
इसलिए मात्र कालसर्प योग सुनकर भयभीत हो जाने
की जरूरत नहीं बल्कि उसका ज्योतिषीय विश्लेषण करवाकर उसके प्रभावों की विस्तृत
जानकारी हासिल कर लेना ही बुद्धिमत्ता कही जायेगी।
पूर्ण कालसर्प योग :
किसी भी तरह का कालसर्प योग जो राहु से आरम्भ
हो रहा हो त वह बहुत अधिक कष्टकारी होता है, किन्तु केतु से
लेकर राहु तक बनने वाला कालसर्प योग ज्यादा कष्टकारी नहीं होता। यह बात सदैव ध्यान
रखें कि कालयर्प येाग सन्तान के लिए मुख्य रूप से तभी बाधा पैदा करता है जब
पंचमस्थ राहु से बनता है। जन्मकुण्डली में जब सभी ग्रह राहु-केतु के मध्य कैद हो
जाते है तब पूर्ण कालसर्प योग बनता है। इस स्थिति में जिस स्थान पर राहु होगा,
उस
भाव से सम्बन्धित समस्यायें जीवन में दुःख देती है।
कालसर्प योग के नाम (Types of Kal sarpa
Dosh)
ज्योतिष शास्त्र में प्रत्येक भाव के लिए अलग
अलग कालसर्प योग के नाम दिये गये हैं. इन काल सर्प योगों के प्रभाव में भी काफी
कुछ अंतर पाया जाता है जैसे प्रथम भाव में कालसर्प योग होने पर अनन्त काल सर्प योग
बनता है.
अनन्त कालसर्प योग (Anant KalsarpaDosh)
जब प्रथम भाव में राहु और सप्तम भाव में केतु
होता है तब यह योग बनता है. इस योग से प्रभावित होने पर व्यक्ति को शारीरिक और,
मानसिक
परेशानी उठानी पड़ती है साथ ही सरकारी व अदालती मामलों में उलझना पड़ता है. इस योग
में अच्छी बात यह है कि इससे प्रभावित व्यक्ति साहसी, निडर, स्वतंत्र
विचारों वाला एवं स्वाभिमानी होता है.
कुलिक काल सर्प योग (Kulik Kalsarpa
Dosh)
द्वितीय भाव में जब राहु होता है और आठवें घर
में केतु तब कुलिक नामक कालसर्प योग बनता है. इस कालसर्प योग से पीड़ित व्यक्ति को
आर्थिक काष्ट भोगना होता है. इनकी पारिवारिक स्थिति भी संघर्षमय और कलह पूर्ण होती
है. सामाजिक तौर पर भी इनकी स्थिति बहुत अच्छी नहीं रहती.
वासुकि कालसर्प योग (Vasuki Kalsarp
Dosh)
जन्म कुण्डली में जब तृतीय भाव में राहु होता
है और नवम भाव में केतु तब वासुकि कालसर्प योग बनता है. इस कालसर्प योग से पीड़ित
होने पर व्यक्ति का जीवन संघर्षमय रहता है और नौकरी व्यवसाय में परेशानी बनी रहती
है. इन्हें भाग्य का साथ नहीं मिल पाता है व परिजनों एवं मित्रों से धोखा मिलने की
संभावना रहती है. शंखपाल कालसर्प योग (Shankhpal Kalsarp Yoga) राहु
जब कुण्डली में चतुर्थ स्थान पर हो और केतु दशम भाव में तब यह योग बनता है. इस
कालसर्प से पीड़ित होने पर व्यक्ति को आंर्थिक तंगी का सामना करना होता है. इन्हें
मानसिक तनाव का सामना करना होता है. इन्हें अपनी मां, ज़मीन, परिजनों
के मामले में कष्ट भोगना होता है.
पद्म कालसर्प योग (Padma Kalsarp Dosh)
पंचम भाव में राहु और एकादश भाव में केतु होने
पर यह कालसर्प योग बनता है. इस योग में व्यक्ति को अपयश मिलने की संभावना रहती है.
व्यक्ति को यौन रोग के कारण संतान सुख मिलना कठिन होता है. उच्च शिक्षा में बाधा,
धन
लाभ में रूकावट व वृद्धावस्था में सन्यास की प्रवृत होने भी इस योग का प्रभाव होता
है.
महापद्म कालसर्प योग (Mahapadma Kalsarp
Dosh)
जिस व्यक्ति की कुण्डली में छठे भाव में राहु
और बारहवें भाव में केतु होता है वह महापद्म कालसर्प योग से प्रभावित होता है. इस
योग से प्रभावित व्यक्ति मामा की ओर से कष्ट पाता है एवं निराशा के कारण व्यस्नों
का शिकार हो जाता है. इन्हें काफी समय तक शारीरिक कष्ट भोगना पड़ता है. प्रेम के
ममलें में ये दुर्भाग्यशाली होते हैं.
तक्षक कालसर्प योग (Takshak Kalsarp
Dosh)
तक्षक कालसर्प योग की स्थिति अनन्त कालसर्प योग
के ठीक विपरीत होती है. इस योग में केतु लग्न में होता है और राहु सप्तम में. इस
योग में वैवाहिक जीवन में अशांति रहती है. कारोबार में साझेदारी लाभप्रद नहीं होती
और मानसिक परेशानी देती है.
शंखचूड़ कालसर्प योग (Shankhchooda
Kalsarp Dosh)
तृतीय भाव में केतु और नवम भाव में राहु होने
पर यह योग बनता है. इस योग से प्रभावित व्यक्ति जीवन में सुखों को भोग नहीं पाता
है. इन्हें पिता का सुख नहीं मिलता है. इन्हें अपने कारोबार में अक्सर नुकसान
उठाना पड़ता है.
घातक कालसर्प योग (Ghatak Kalsarp Dosh)
कुण्डली के चतुर्थ भाव में केतु और दशम भाव में
राहु के होने से घातक कालसर्प योग बनता है. इस योग से गृहस्थी में कलह और अशांति
बनी रहती है. नौकरी एवं रोजगार के क्षेत्र में कठिनाईयों का सामना करना होता है.
विषधर कालसर्प योग (Vishdhar Kalsarp
Dosh)
केतु जब पंचम भाव में होता है और राहु एकादश
में तब यह योग बनता है. इस योग से प्रभावित व्यक्ति को अपनी संतान से कष्ट होता
है. इन्हें नेत्र एवं हृदय में परेशानियों का सामना करना होता है. इनकी स्मरण
शक्ति अच्छी नहीं होती. उच्च शिक्षा में रूकावट एवं सामाजिक मान प्रतिष्ठा में कमी
भी इस योग के लक्षण हैं.
शेषनाग कालसर्प योग (Sheshnag Kalsarp
Dosh)
व्यक्ति की कुण्डली में जब छठे भाव में केतु
आता है तथा बारहवें स्थान पर राहु तब यह योग बनता है. इस योग में व्यक्ति के कई
गुप्त शत्रु होते हैं जो इनके विरूद्ध षड्यंत्र करते हैं. इन्हें अदालती मामलो में
उलझना पड़ता है. मानसिक अशांति और बदनामी भी इस योग में सहनी पड़ती है. इस योग में
एक अच्छी बात यह है कि मृत्यु के बाद इनकी ख्याति फैलती है. अगर आपकी कुण्डली में
है तो इसके लिए अधिक परेशान होने की आवश्यक्ता नहीं है. काल सर्प योग के साथ
कुण्डली में उपस्थित अन्य ग्रहों के योग का भी काफी महत्व होता है. आपकी कुण्डली
में मौजूद अन्य ग्रह योग उत्तम हैं तो संभव है कि आपको इसका दुखद प्रभाव अधिक नहीं
भोगना पड़े और आपके साथ सब कुछ अच्छा हो.
कालसर्प योग के दुष्परिणाम संक्षेप में
* विभिन्न प्रकार के दैहिक व मानसिक कष्ट भोगने
पड़ते हैं। स्वास्थ्य प्राय: बिगड़ा रहता है।
* पैतृक संपत्ति उसके जीवन में नष्ट हो जाती है या
पैतृक संपत्ति उसे नहीं मिलती। मिलती भी है तो आधी-अधूरी।
* भाइयों का जातक को सुख नहीं मिलता।
कार्य-व्यवसाय में भाई-बंधु धोखा देते हैं।
* जन्म स्थान से दूर जाकर जीविकोपार्जन करता है।
भूमि-भवन का सुख नहीं मिलता है।
* शिक्षा भरपूर लेकर भी उसका जीवन में उपयोग नहीं
होता।
* संतान से कष्ट पाता है। संतान निकम्मी व
चरित्रहीन होती है।
* आजीवन जातक संघर्ष करता रहता है। शत्रु भय
निरंतर बना रहता है।
* गृहस्थ जीवन सुखी नहीं रहता। गृहकलह पीड़ा देता
है। पत्नी मनोनुकूल नहीं मिलती।
* भाग्य कभी साथ नहीं देता।
* दु:स्वप्न वशात् अनिद्रा का रोग पाल लेता है।
* कोर्ट-कचहरी, दावे-थाने के
चक्कर लगाने पड़ते हैं। धन का नाश होता है।
कालसर्प योग बुरा ही नहीं :
उक्त लक्षणों का उल्लेख इस दृष्टि से किया गया
है ताकि सामान्य पाठकों को कालसर्प योग के बुरे प्रभावों की पर्याप्त जानकारी
हासिल हो सके। किंतु ऐसा नहीं है कि कालसर्प योग सभी जातकों के लिए बुरा ही होता
है। विविध लग्नों व राशियों में अवस्थित ग्रह जन्म-कुंडली के किस भाव में हैं,
इसके
आधार पर ही कोई अंतिम निर्णय किया जा सकता है। कालसर्प योग वाले बहुत से ऐसे
व्यक्ति हो चुके हैं, जो अनेक कठिनाइयों को झेलते हुए भी ऊंचे पदों
पर पहुंचे। जिनमें भारत के प्रथम प्रधानमंत्री स्व॰ पं॰ जवाहर लाल नेहरू का नाम
लिया जा सकता है। स्व॰ मोरारजी भाई देसाई व श्री चंद्रशेखर सिंह भी कालसर्प आदि
योग से ग्रसित थे। किंतु वे भी भारत के प्रधानमंत्री पद को सुशोभित कर चुके हैं।
बहुत विद्वान इस योग के प्रभाव को नहीं मानते :
बीएचयू के संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय
के संकाय प्रमुख प्रो.चंद्रमा पांडेय का कहना है कि ज्योतिष शास्त्र में कालसर्प
नामक कहीं कोई अवधारणा नहीं है। इस संबंध में काशी के कई ज्योतिष शास्त्रियों ने अपने
मंतव्य भी जाहिर किए हैं। यही नहीं कालसर्प योग के अस्तित्व को नकारते हुए काशी
हिंदू विश्वविद्यालय स्थित संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय में ज्योतिष विभाग
के असिस्टेंट प्रोफेसर डा.विनय कुमार पांडेय ने तो शोध पत्र ही लिख दिया है।
उनका शोध पत्र अंतरराष्ट्रीय शोधपत्रिका 'नैसर्गिकी'
में
प्रकाशित हो चुका है। डा.पांडेय के अनुसार दिल्ली संस्कृत अकादमी की ओर से आयोजित
संगोष्ठी में विद्वानों ने कालसर्प योग के वजूद को सिरे से खारिज किया था। कालसर्प
नकारने वाले विद्वानों में यहीं से सेवानिवृत्त प्रो.रामचंद्र पांडेय, विभागाध्यक्ष
प्रो.चंद्रमौलि उपाध्याय सहित अनेक विद्वान शामिल हैं।
कालसर्प योग शांति के उपाय :
कालसर्प योग से मुक्ति के लिए बारह
ज्योतिर्लिंग के अभिषेक एवं शांति का विधान बताया गया है। यदि द्वादश ज्योतिर्लिंग
में से केवल एक नासिक स्थित त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग का नागपंचमी के दिन अभिषेक,
पूजा
की जाए तो इस दोष से हमेशा के लिए मुक्ति मिलती है।
जो इसे न कर पाएं वह यह उपाय अवश्य करें :
1. 108 राहु यंत्रों को जल में प्रवाहित करें।
2 सवा महीने जौ के दाने पक्षियों को खिलाएं।
3 शुभ मुहूर्त में मुख्य द्वार पर अष्टधातु या
चांदी का स्वस्तिक लगाएं और उसके दोनों ओर धातु निर्मित नाग.।
4 अमावस्या के दिन पितरों को शान्त कराने हेतु
दान आदि करें तथा कालसर्प योग शान्ति पाठ कराये।
5 शुभ मुहूर्त में नागपाश यंत्रा अभिमंत्रित कर
धारण करें और शयन कक्ष में बेडशीट व पर्दे लाल रंग के प्रयोग में लायें।
6. हनुमान चालीसा का 108 बार पाठ करें
और मंगलवार के दिन हनुमान पर सिंदूर, चमेली का तेल व बताशा चढ़ाएं।.
7 शनिवार को पीपल पर शिवलिंग चढ़ाये व मंत्र जाप
करें (ग्यारह शनिवार )
8 सवा महीने देवदारु, सरसों तथा
लोहवान - इन तीनों को जल में उबालकर उस जल से स्नान करें।
9 काल सर्प दोष निवारण यंत्रा घर में स्थापित
करके उसकी नित्य प्रति पूजा करें ।
10 सोमवार को शिव मंदिर में चांदी के नाग की पूजा
करें, पितरों का स्मरण करें तथा श्रध्दापूर्वक बहते पानी में नागदेवता का
विसर्जन करें।
11 श्रावण मास में 30 दिनों तक
महादेव का अभिषेक करें।
12 प्रत्येक सोमवार को दही से भगवान शंकर पर - हर
हर महादेव' कहते हुए अभिषेक करें। हर रोज श्रावण के महिने
में करें।
13. सरल उपाय- कालसर्प योग वाला युवा श्रावण मास
में प्रतिदिन रूद्र-अभिषेक कराए एवं महामृत्युंजय मंत्र की एक माला रोज करें।
14 यदि रोजगार में तकलीफ आ रही है अथवा रोजगार
प्राप्त नहीं हो रहा है तो पलाश के फूल गोमूत्र में डूबाकर उसको बारीक करें। फिर
छाँव में रखकर सुखाएँ। उसका चूर्ण बनाकर चंदन के पावडर में मिलाकर शिवलिंग पर
त्रिपुण्ड बनाएँ। 41 दिन दिन में नौकरी अवश्य मिलेगी।.
15 शिवलिंग पर प्रतिदिन मीठा दूध उसी में भाँग
डाल दें, फिर चढ़ाएँ इससे गुस्सा शांत होता है, साथ ही सफलता
तेजी से मिलने लगती है।
16 किसी शुभ मुहूर्त में ओउम् नम: शिवाय' की 21
माला जाप करने के उपरांत शिवलिंग का गाय के दूध से अभिषेक करें और शिव को प्रिय
बेलपत्रा आदि श्रध्दापूर्वक अर्पित करें। साथ ही तांबे का बना सर्प शिवलिंग पर
समर्पित करें।
17 मंगलवार एवं शनिवार को रामचरितमानस के
सुंदरकाण्ड का 108 बार पाठ श्रध्दापूर्वक करें।
18 महामृत्युंजय कवच का नित्य पाठ करें और श्रावण
महीने के हर सोमवार का व्रत रखते हुए शिव का रुद्राभिषेक करें।
19. कालसर्प योग शांति के लिए नागपंचमी के दिन व्रत
करें।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें