जय माँ !
सर्वपल्ली राधाकृष्णन :-
नारी नर की सहचरी, उसके
धर्म की रक्षक,उसकी गृहलक्ष्मी तथा देवत्व तक पहुँचानेवाली साधिका है।
बेकन :-
नारी यौवनकाल में गृहदेवी,मध्यकाल
में सच्ची साथी और वृद्धावस्था में परिचारिका का काम करती है।
मार्कण्डेय पुराण :--
नारी में सरस्वती होती है,नारी
में लक्ष्मी होती है और नारी में ही दुर्गा होती है।
प्लूटो :-
सबसे सुगंध वाली नारी वही है, जिसकी
गंध किसीको नहीं मिलती। नारी का प्यार एक ऐसा भंवर है, जिस
में फंसकर इंसान निकल नहीं पाता।
शेक्सपीयर :--
वह इंसान भाग्यशाली है, जिसका
ख्याल कोई नारी करें।
विनीस :--
नारी के नयनों में परमात्मा ने दो
दीपक रख दिये हैं, जिनके प्रकाश से संसार के भूले-भटके लोग खोया मार्ग पा सकें।
जयशंर प्रसाद :--
नारी का अश्रुबल अपनी एक-एक बूंद में
एक-एक बाढ़ लिए होता है।
नारी बड़े से बड़ा दु:ख भी होंठों पर
मुस्कराहट लेकर सह लेती है।
महादेवी वर्मा :--
पुरुष विजय का भूखा है,नारी
समर्पण की।पुरुष लूटना जानता है,नारी लूट जाना।
नीरो :--
बदला लेने और प्रेम करने में नारी
पुरुष से अधिक निर्दयी है।
महात्मा गांधीजी :--
बल का अर्थ अगर पशुबल से किया जाए तो
सचमुच स्त्री में पुरुष की अपेक्षा कम पशुबल है, पर बल का अर्थ नैतिक बल हो तो उसमें
पुरुष से स्त्री काफी श्रेष्ठ है।
स्त्री सहनशक्ति की साक्षात
प्रतिमूर्ति है, धैर्य का अवतार है।
स्त्री पुरुष की गुलाम नहीं, सहधर्मिनी,अर्द्धांगिनी
और मित्र है।
मनुस्मृति :--
जहाँ नारी की पूजा होती है,वहाँ
देवता निवास करते हैं।जहाँ इनकी पूजा नहीं होती, वहाँ सब क्रियाएँ निष्फल होती है।
स्त्रियों घर की लक्ष्मी कही गई
हैं।ये अत्यंत सौभाग्यशालिनी, आदर योग्य,पवित्र
और घर की शोभा हैं, अतः उनकी विशेष रुपसे रक्षा करनी चाहिए।
कबीर :--
पतिव्रता नारी चाहे मैली-कुचैली और
कुरुपा ही क्यों ना हो,लेकिन उसके पतिव्रता गुण पर सारी
सुंदरता न्यौछावर हो जाती है।
वाल्मीकि (रामायण):--
नारी के लिए वास्तव में उसका पति ही
सम्पूर्ण आभूषणों में सर्वश्रेष्ठ आभूषण है।उससे पृथक रहकर वह कितनी भी सुंदर
क्यों ना हो,सुशोभित नहीं होती।
खलील जिब्रान :--
जो इंसान नारी को क्षमा नहीं कर सकता, उसे
उसके महान गुणों का उपयोग का अवसर कभी प्राप्त न होगा।
शरत् चंद्र :-
अपने हाथ से अपने आदमी की सेवा और
यत्न करने में कितनी तृप्ति होती है,कितना आनन्द मिलता है, यह
स्त्री जाति के सिवाय और कोई नहीं समझ सकता।
प्रेमचंद (गोदान) :--
स्त्री पुरुष से उतनी ही श्रेष्ठ है, जितना
प्रकाश अंधेरे से।मनुष्य के लिए क्षमा,त्याग और अहिंसा जीवन के उच्चतम
आदर्श हैं। नारी इस आदर्श को प्राप्त कर चुकी है।
निष्कर्ष :--
सर्वोपरि नारी माँ है, बहन
है,बेटी है, दोस्त है --जो ममता की देवी है, स्नेह का भंडार है और त्याग-दया की
स्वामिनी है।
शुभम् अस्तु।
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