तांत्रिक
समाज---सम्पूर्ण रक्षा विधान--1
साधना में रक्षा का अत्यधिक महत्व होता है ।
रक्षाविहीन देह से इतर योनिआँ बड़ी सरलता से सम्पर्क कर लेती हैं और साधना के
दौरान हमारी साधनात्मक उर्जा को आत्मसात कर लेती हैं । इसके परिणाम स्वरूप हमार मन
उस इतर योनि के साथ जुड़ जाने के कारण विक्षिप्त हो जाता है और हमारा साधना में मन
नहीं लगता । कभी हम बिमार पड़ जाते हैं ,तो कभी सर घूमने लग जाता है। हर एक
साधक के अपने - अपने अनुभव हैं। एक साधक को शुद्ध एवं प्रमाणिक रक्षा मंत्र का
ज्ञान अवश्य होना चाहिए क्योंकि जहाँ रक्षा मंत्र साधना के समय होने वाले अनिष्ट
से हमें बचाता है , वहीं दूसरी ओर उस मंत्र के प्रमुख देवी / देवता
को हमारे साथ रहने के लिए विवश कर देता है । अरे भाई !!!!! मंत्र के देवता साथ
होंगे तभी तो वह रक्षा करेंगे !! जिसका सीधा सा अर्थ है कि आपको उस देवी / देवता
का सान्निध्य प्राप्त होगा!!
यहाँ एक बात और कहना चाहूंगा कि मैं जो साधनाएँ
एवं प्रयोग यहाँ देता हूँ वो पूरी तरह परख कर ही देता हूँ । मैं कोई आसमान से नहीं
गिरा हूँ । अपने आप को बस एक साधारण साधक समझता हूँ और वही बने रहना चाहता हूँ ।
कई साधक मुझसे एसी साधनाएँ माँग लेते हैं जो मैंने की ही नहीं होती हैं तो मैं Direct
उन्हें
मना कर देता हूँ , क्योंकि मैं आपके कीमती समय का महत्व समझता हूँ
। आपको एसे ही कहीं से भी उठाकर साधना नहीं दे सकता जो आपका समय एवं धन नष्ट करे ।
मित्रों !!! मैंने भी एक साधारण साधक की तरह तंत्र का यह ज्ञान तंत्र की किताबों ,
तंत्र
Websites एवं कई तांत्रिको से प्राप्त किया है । लेकिन आपको प्रदान करने से
पहले खुद परखा !!! दूध रिड़क कर जो माखन निकला सिर्फ वोही आपके सामने है। मेरा
उद्देश्य मात्र आपके जीवन को आनंदमय बनाना है और जब तक जिंदा हूँ एसा करता रहूँगा
॥
प्रस्तुत प्रयोग आपकी पूरी तरह रक्षा करने में
समर्थ है । कभी - कभी भूत बाधा से ग्रसित व्यक्ति का भूत!! झाड़ने वाले पर ही
आक्रमण कर देता है एसी स्थिति में यदि उस तांत्रिक ने अपनी पहले से रक्षा नहीं की
हो , तो उसे बहुत भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है । कई बार साधक के मन में
यह डर रहता है कि कहीं जो साधना वो कर रहा है वो गलत होने पर कोई विपरीत प्रभाव ना
डाल दे तो वो साधक भी इस प्रयोग को कर सकता है ।
साधक
को इसका प्रयोग श्मशान साधना के समय अवश्य करना चाहिए क्योंकि यह एक स्वयं सिद्ध
रक्षा मंत्र है जो साधक की चारों ओर से रक्षा करता है ।
॥ प्रयोग विधि ॥
इस प्रयोग को करने के लिए साधक को चाहिए कि वो
पीले वस्त्र एवं आसन का उपयोग करे तथा आसन पर वीरासन में बैठ जाए । फिर सरसों के
दाने मुट्ठी में लेकर दसों दिशाओं में फेंकते हुए निम्न मंत्र का उच्चारण पाँच बार
करे ।
॥ मन्त्र ॥
॥ हूं हूं ह्रीं ह्रीं कालिके घोर
दंष्ट्रे प्रचंड चंडनायिके दानवान दारय हन हन शरीरे महाविघ्न छेदय छेदय स्वाहा हूं
फट् ॥
( HOOM HOOM HREEM
HREEM KALIKE GHOR DANSHTRE PARCHAND CHANDNAYIKE DAANVAAN DARYA HAN HAN
SHARIRE MAHAVIGHAN SHEDYA SHEDYA SWAHA HOOM PHAT )
इस मंत्र को आप अपने नित्य पूजन के समय कर सकते
हैं । इस मंत्र के प्रभाव से भगवान भैरव सारा दिन साधक की रक्षा करते हैं । इस
मंत्र का सबसे बड़ा लाभ ही यह है कि रक्षा और दिग्बंधन एक साथ हो जाता है आपको अलग
से कोई मंत्र पड़ने की आवश्यकता नहीं है । अगर साधक वैसे भी इसका 5
बार रोज़ उच्चारण करता रहे तब भी भगवान भैरव साधक को रक्षा प्रदान करते हैं ।
लेकिन यह तो आप भी जानते हैं कि विशिष्ट साधना एवं प्रयोग पद्धति का महत्व भी
विशिष्ट होता है ।
॥ मेरा अनुभव ॥
मैं इस मंत्र का नित्य 5 बार जप करता
हूँ । इस मंत्र से मन का सारा भय समाप्त हो जाता है और मुझे हमेशा अपने इर्दगिर्द
एक सुरक्षा घेरा सा महसूस होता है ॥
jai gurudev
जवाब देंहटाएंiska video mil Sakta hai kya.nahi toh audio chalega
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