ज्योतिष द्वारा जानिये कि पुनर्जन्म में
व्यक्ति क्या था
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हिंदू धर्म में पुनर्जन्म की मान्यता है। हिंदू
धर्म ग्रंथों के अनुसार प्राणी का केवल शरीर नष्ट होता है, आत्मा अमर है।
आत्मा एक शरीर के नष्ट हो जाने पर दूसरे शरीर में प्रवेश करती है, इसे
ही पुनर्जन्म कहते हैं। पुनर्जन्म के सिद्धांत को लेकर सभी के मन ये जानने की
जिज्ञासा अवश्य रहती है कि पूर्वजन्म में वे क्या थे। उसके अनुसार शिशु जिस समय
जन्म लेता है। उस समय, स्थान व तिथि को देखकर उसकी जन्म कुंडली बनाई
जाती है। उस समय के ग्रहों की स्थिति के अध्ययन के फलस्वरूप यह जाना जा सकता है कि
बालक किस योनि से आया है इस संबंध में कुछ विशेष योग बताए जा रहे हैं-
1- जिस व्यक्ति की कुंडली में चार या इससे अधिक
ग्रह उच्च राशि के अथवा स्व राशि के हों तो उस व्यक्ति ने उत्तम योनि भोगकर यहां
जन्म लिया है, ऐसा ज्योतिषियों का मानना है।
2- लग्न में उच्च राशि का चंद्रमा हो तो ऐसा
व्यक्ति पूर्वजन्म में सद्विवेकी वणिक था, ऐसा मानना चाहिए।
3- लग्नस्थ गुरु इस बात का सूचक है कि जन्म लेने
वाला पूर्वजन्म में वेदपाठी ब्राह्मण था। यदि जन्मकुंडली में कहीं भी उच्च का गुरु
होकर लग्न को देख रहा हो तो बालक पूर्वजन्म में धर्मात्मा, सद्गुणी एवं
विवेकशील साधु अथवा तपस्वी था, ऐसा मानना चाहिए।
4- यदि जन्म कुंडली में सूर्य छठे, आठवें
या बारहवें भाव में हो अथवा तुला राशि का हो तो व्यक्ति पूर्वजन्म में भ्रष्ट जीवन
व्यतीत करना वाला था, ऐसा मानना चाहिए।
5- लग्न या सप्तम भाव में यदि शुक्र हो तो जातक
पूर्वजन्म में राजा अथवा सेठ था व जीवन के सभी सुख भोगने वाला था, ऐसा
समझना चाहिए।
6- लग्न, एकादश, सप्तम या चौथे
भाव में शनि इस बात का सूचक है कि व्यक्ति पूर्वजन्म में शुद्र परिवार से संबंधित
था एवं पापपूर्ण कार्यों में लिप्त था।
7- यदि लग्न या सप्तम भाव में राहु हो तो व्यक्ति
की पूर्व मृत्यु स्वभाविक रूप से नहीं हुई, ऐसा ज्योतिषियों
का मत है।
8- चार या इससे अधिक ग्रह जन्म कुंडली में नीच
राशि के हों तो ऐसे व्यक्ति ने पूर्वजन्म में निश्चय ही आत्महत्या की होगी,
ऐसा
मानना चाहिए।
9- कुंडली में स्थित लग्नस्थ बुध स्पष्ट करता है
कि व्यक्ति पूर्वजन्म में वणिक पुत्र था एवं विविध क्लेशों से ग्रस्त रहता था।
10- सप्तम भाव, छठे भाव या दशम
भाव में मंगल की उपस्थिति यह स्पष्ट करती है कि यह व्यक्ति पूर्वजन्म में क्रोधी
स्वभाव का था तथा कई लोग इससे पीडि़त रहते थे।
11- गुरु शुभ ग्रहों से दृष्ट हो या पंचम या नवम
भाव में हो तो जातक पूर्वजन्म में संन्यासी था, ऐसा मानना
चाहिए।
श्री बटुक भैरव अष्टोत्तर शतनाम सहार क्रम स्तोत्र का हिंदी अनुवाद भेजें
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