//शिवलिंग: ----
सबसे पहली बात संस्कृत में "लिंग" का
अर्थ होता है प्रतीक।
जननेंद्रिय (sex organ) के लिए संस्कृत
में एक दूसरा शब्द है - "शिश्न".
√ पुरुष लिंग यानि पुरुष का प्रतिक,
√ स्त्री लिंग यानि स्त्री का प्रतिक,
√ शिवलिंग यानि शिव का प्रतिक।।
# अगर लिंग का अर्थ पुरुष जननेंद्रिय होता तो:-
● स्त्रीलिंग शब्द के अनुसार स्त्री में भी पुरुष
का जननेंद्रिय होता।
● और पुरुष लिंग का अर्थ होता पुरुष का
जननेंद्रिय।
इसके अनुसार अगर मै पुरुष लिंग हूँ ,
तो इसका मतलब मै पुरुष का जननेंद्रिय हूँ।
।
शिवलिंग के नीचे का जो गोल हिस्सा होता है उसे
योनि या पीठ कहते है।
योनि का अर्थ प्रकटीकरण या origin होता
है।
here origin of shivling ,
शिवलिंग का प्रकटीकरण।।
● योनि इसलिए बनाया जाता है ताकी शिवलिंग पर
चढ़ाया हुआ सारा जल एकत्रित होकर केवल एक दिशा उत्तर में जाये क्यों की उत्तर की
दिशा में गंगा प्रवाहित हुई है।
इसलिए सारा शिवलिंग केवल उत्तर दिशा में ही
स्थापित होता है।
√ मनुष्य योनि
√ पशु योनि
√ वृक्ष योनि
√ पुरुष योनि
√ स्त्री योनि
पुरुषयोनि के शब्द के अनुसार पुरुष में भी
स्त्री का जननेंद्रिय होता।
● और इस अनुसार अगर मै स्त्रीलिंग हूँ तो इसका
मतलब मै स्त्री की जननेंद्रिय हूँ।
फिर योनि को पीठ कहना संभव नहीं होता।
●●) शिवलिंग भगवान शिव के निर्गुण-निराकार रूप का
प्रतीक है और ब्रह्मा,विष्णु,महेश तीनो का मेल है ;
अतः यह शरीर का कोई हिस्सा नहीं हो सकता।
# ब्रह्मा,विष्णु,महेश
एक ही निराकार शक्ति शिव के तीन रूप है।
शिवलिंग में ऊपर के भाग में शंकर जी का स्थान
है। बीच में विष्णु जी का और सतह में ब्रह्मा जी का।
अतः शिवलिंग की पूजा से भगवान के तीनो रूप की
पूजा हो जाती है।
शिव जी का स्थान ऊपर के भाग में होने के कारन
श्रृंगार में उसपर शिव जी का मुख बनता है।
● इसलिए यदि शिवलिंग शिव जी का जनेन्द्रिय होता
तो कभी भी उसपर भगवान का मुख नहीं बनता।
!!! पुराणों के अनुसार शिवलिंग से ही हमारे सृष्टी
का निर्माण हुआ !!!
● विज्ञान और हमारे शास्त्र दोनों के अनुसार ठीक 3456 करोड़
वर्ष ( एक महायुग ) में big bang ( उर्जा का महाविस्फोट ) होता है तब
श्रृष्टि (ब्रह्माण्ड में जो भी है ) का निर्माण होता है।
big bang के समय विस्फोट से जो महाउर्जा प्रकट हुआ वह
अंडा (egg shape ) के आकार में प्रकट हुआ और फिर पल भर में अनंत
आकार का रूप ले लिया जिसके छोर का न कोई आदि था और न अंत ।
( no starting and end point )
● यही ( egg shape )भगवान शिव के
निराकार रूप का सर्वप्रथम रूप शिवलिंग हुआ जिसके कारन शिवलिंग को भगवान शिव के
निराकार रूप का प्रतिक माना गया है।
फिर शिवलिंग से ही भगवान के रूप ब्रह्मा और
विष्णु प्रकट हुए।
फिर इन दोनों ने शिवलिंग को देखा और ब्रह्मा जी
शिवलिंग के नीचे का अंत खोजने चले और विष्णु जी ऊपर का।
पर इन्हें उसका अंत नहीं मिला।
तब जाकर शिव जी अर्धनारीश्वर ( शिव + शक्ति )
के रूप में प्रकट हुए। उसके बाद शिव और शक्ति अलग हुए।
अतः ब्रह्मा + विष्णु + महेश के मेल के कारन भी
इसे निराकार रूप का प्रतिक माना गया है क्यों की ये तीनो एक निराकार के ही तीन रूप
हैं।
आकाशं लिंगमित्याहु: पृथ्वी तस्य पीठिका।
आलय: सर्व देवानां लयनार्लिंगमुच्यते ॥
(स्कन्द पुराण)
अर्थात : 'आकाश स्वयं लिंग
है। धरती उसका पीठ या आधार है और सृष्टी के अंत में संसार लिंग में समाहित होता
है।'
इसी कारण लिंग को कई अन्य नामो से भी संबोधित
किया गया है जैसे : प्रकाश स्तंभ/लिंग, अग्नि स्तंभ/लिंग, उर्जा
स्तंभ/लिंग, ब्रह्माण्डीय स्तंभ/लिंग (cosmic
pillar/lingam)
शिव और शक्ति दोनों के मेल से की संसार बना
है।इसलिय लिंग को शिव और योनि को शक्ति माना गया है।
ब्रह्माण्ड में दो ही चीजे है : ऊर्जा और
प्रदार्थ | हमारा शरीर प्रदार्थ से निर्मित है और आत्मा
ऊर्जा है|
इसी प्रकार शिव पदार्थ और शक्ति ऊर्जा का
प्रतीक बन कर शिवलिंग कहलाते है |
ब्रह्मांड में उपस्थित समस्त ठोस तथा उर्जा
शिवलिंग में निहित है।
शिवलिंग भगवान शिव और देवी शक्ति का आदि-अनादी
एकल रूप है तथा पुरुष और प्रकृति की समानता का प्रतिक भी अर्थात इस संसार में न
केवल पुरुष का और न केवल प्रकृति (स्त्री) का वर्चस्व है अर्थात दोनों सामान है |इसलिए
शिव पुरुष है और शक्ति प्रकृति है।
अब जरा आईसटीन का सूत्र देखिये जिस के आधार पर
परमाणु बम बनाया गया, परमाणु के अन्दर छिपी अनंत ऊर्जा की एक झलक
दिखाई जो कितनी विध्वंसक थी सब जानते है |
e / c = m c {e=mc^2}
इसके अनुसार पदार्थ को पूर्णतयः ऊर्जा में बदला
जा सकता है अर्थात दो नही एक ही है पर वो दो हो कर श्रृष्टि
का निर्माण करता है . हमारे ऋषियो ने ये रहस्य
हजारो साल पहले ही ख़ोज लिया था.
हमारे संतों/ऋषियों ने जो हमें वेदों और
उपनिषदों का ज्ञान लिखित रूप में प्रदान किया है उन्होंने कभी यह दावा नहीं किया
कि यह उनका काम है. वे हर काम के अंत में स्वीकार किया कि वे हमें बता रहे हैं जो
उन्हें अपने पूर्वजों द्वारा कहा गया है. यह सार्वभौमिक ज्ञान लगभग १३.७ खरब वर्ष
पुराना हमें संस्कृत जैसी महान भाषा में उपलब्ध होता है . यह किसी अन्य भाषा में
पूर्णतया (exact) अनुवाद नही किया जा सकता । कम से कम अंग्रेजी
जैसी कमजोर भाषा में तो बिलकुल नही । जैसे एक छोटा सा उदहारण देता हूँ : आज गूगल
ट्रांसलेटर http://translate.google.com/ में लगभग सभी भाषाओँ का समावेश है
किन्तु संस्कृत का नही । क्योकि संस्कृत का व्याकरण विशाल तथा दुर्लभ है ।
आप कहेंगे की संस्कृत इतनी इम्पोर्टेन्ट नही
इसलिए नही होगी , यदि इम्पोर्टेन्ट नही तो नासा संस्कृत क्यों
अपनाना चाहती है । और अपने नवयुवकों को संस्कृत सिखने पर जोर क्यू दे रही है ?
हम अपने देनिक जीवन में भी देख सकते है की जब
भी किसी स्थान पर अकस्मात् उर्जा का उत्सर्जन होता है तो उर्जा का फैलाव अपने मूल
स्थान के चारों ओर एक वृताकार पथ में तथा उपर व निचे की ओर अग्रसर होता है अर्थात
दशोदिशाओं (आठों दिशों की प्रत्येक डिग्री (360 डिग्री)+ऊपर व
निचे ) होता है, फलस्वरूप एक क्षणिक शिवलिंग आकृति की प्राप्ति
होती है जैसे बम विस्फोट से प्राप्त उर्जा का प्रतिरूप , शांत जल में
कंकर फेंकने पर प्राप्त तरंग (उर्जा) का प्रतिरूप आदि ।
पुराणो में साफ़ लिखा है
की प्रत्येक महायुग के पश्चात समस्त संसार इसी शिवलिंग में समाहित (लय) होता है
तथा इसी से पुनः सृजन होता है।
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