सोमवार, 18 मई 2015

ै, अप्सरा साधना यक्षिणी साधना



यह श्रष्टि पंच भौतिक तत्वो -प्रथ्वी ,जल,तेज,वायु व आकाश से निर्मित है देशकाल के आधार पर वही तत्व 

अधिकप्रतीत होता है जैसे भूमि पर मानव व आकाश मे रूहे[आत्मा]! 

 भारत मे प्राचीन काल से अनेक साधनाये प्रचलित है जैसे







अप्सरा,यक्षिणी,योगिनी,भूत प्रेत,यक्ष,गण,गंधर्व,पितृ,विद्याधर,किन्नर,नागनागिनी,मशानी 

आदि ये निम्न कोटि के देव साधना के अंतर्गत आती है व काली,दुर्गा,भैरव,शिव,हनुमान, आदि

देव उच्च कोटि के  देव हैं । ये सभी प्रत्यक्ष दर्शन साधनाऐ है, अप्सरा साधना से विपरीत अन्य सभी साधनाओ मे भूल होने पर प्राण जाने का या पागल होने का पूर्ण भय होता है। क्योकि इनके आगमन से पूर्व आपार भय दिया जाता है।

आइये जानतें हैं यक्षिणी और योगिनी के संवंध में यक्षिणियाँ यक्षों की पत्नियाँ है जो यक्ष लोक की वासिनी हैं,यक्ष व

यक्षिणियाँ जल युक्त व धन युक्त स्थानो की अधिष्ठाता होते है,भगवान कुबेर जी इनके राजा हैं।सिध्द होने पर ये खुद का जीवन संकट मे डालकर भी साधक का हर कार्य सिध्द कराती हैं। जिस रूप में बुलाया जाता है,उस से संबंधित व्यक्ति को 
जीवित नहीं छोड़ती ,भूल हुई तो साधक की भी यही दशा होती है।

जब महाकली माँ घोर नामक दैत्य का वध कर रही थीं तब उनके शरीर के पसीने की बूंद से अरबो उनही के समान तेज व कोप वाली योगिनियो की उत्पत्ति हुई।काली माँ के शरीर सेउत्पन्न होने के कारण ये भी उन्ही के समान तेजवान हैं।इनकि सिध्दि की विद्या परम गोपनीय व देवदुर्लभ है इस साधना से ही
कुबेर जी को धनाधिपति का पद मिला था।


यक्षिणी,योगिनी,किन्नरी आदि की सहभागिनी के रूप मे सिध्द किया जाये तो किसी अन्य स्त्रियो से शारीरिक संपर्क रखना अपराध हो जाता है इसपर यें कुपित हो साधक का नाश कर देतीं हैं इनकि साधना को वे हि साधक करें जो इनके नियमों को मान सके
 १साधना काल में साधक को कोई अन्य स्पर्श न करें

२स्वयं का काम स्वयं ही करें ३सात्विकता का अनुसरण करें

४माँस,मद,तंबाकू,पान,नशा व स्त्री गमन आदि व्यसन त्यागना चाहिये

५अन्य किसी को साधना स्थल में प्रवेश वर्जित होता है,

६नित्य कन्यापूजन सिध्दि कि शक्ति वढ़ाने हेतू अच्छा विकल्प है,

७पूर्व मे ही गुरू ,गणपति,शिव,कुबेर, नवग्रह, मृत्युंजय आनुष्ठान सफल करना होता है

८ये अत्याधिक विस्मयकारी व भयावन रूप धारण कर साधक को डरातीं हैं भयभीत

होने पर पागल कर देती है या मार देती है

९साधना के अन्य सभी नियमों का पालन भी कठोरता से पालन करना अनिवार्य है

१०साधक किसी भी साधना की अवधी में हविष्याई,जितेन्द्रीय हो, व लोभ

,मोह,क्रोध,बैर,काम,उन्माद आदि का त्याग करें

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साधना क्षेत्र से जुड़े लोग अच्छी तरह जानते हैं की कोई भी साधना सरल नहीं होती |साधना करें और सफलता भी अवश्य मिले ऐसा बहुत कम मामलों में होता है ,कारण साधना के कुछ ऐसे गोपनीय तथ्य होते हैं ,विशेष तकनीकियाँ होती हैं ,जिनका सही उपयोग किया जाए तभी सफलता हासिल की जा सकती है |फेसबुक जैसे सामाजिक माध्यमों पर साधनाएं रोज प्रकाशित हो रही हैं एक से बढ़कर एक ,पर सफलता कितनी मिलेगी कहा नहीं जा सकता |इसका कारण है की सीढ़ी साधना देने से और करने से ,एक निश्चित संख्या में जप -हवन कर देने मात्र से सफलता नहीं मिलती ,इसके लिए विशेषज्ञ मार्गदर्शन आवश्यक होता है ,सामयिक तकनीकियों की जानकारी समय समय पर मिलती रहनी चाहिए |समय समय पर होने वाली अनुभूतियों -कठिनाइयों का सामयिक निराकरण होते रहना चाहिए |गोपनीय तथ्यों की जानकारी होते रहना चाहिए जो यहाँ नहीं बताया जाता है ,तभी सफलता मिलती है |

सौंदर्य साधना में अत्यधिक नियम -शर्त का बंधन तो नहीं रहता पर यहाँ सबसे अधिक आवश्यकता तकनिकी जानकारी की होती है |सौंदर्य साधना जैसे अप्सरा /परी ,यक्षिणी आदि अधिकांशतः शुभ मुहूर्त के ऊपर आधारित होती हैं और इस तरह की साधनाओं को संपन्न करने के लिए अधिकाँश साधक लालायित भी रहते हैं ,कारण की यह भौतिक उपलब्धियां देती हैं ,सुख-सुविधा बढ़ा देती हैं |भौतिक जीवन में पूर्णता लाती हैं |पर इनका दुरुपयोग भी होता है ,जिसका अंत बहुत बुरा होता है और भारी हानि की संभावना भी बनती है |सौंदर्य साधना का एक प्रकार शाहतूर परी की साधना भी है |यह अप्सरा साधना ही है जिसे मुस्लिम धर्म में परी कहा जाता है |

शाहतूर की परि जब प्रकट होती है तो ऐसा लगता है ,जैसे किसी शीतल मंद एवं सुगन्धित हवा के झोंके को किसी नारी का आकार दे दिया गया हो |इस परी का आकार बहुत ही मनोरम है |इसके पास से आती हिना की महक से ही साधक मदहोश होने लगता है |उसका गोरा बदन ,झीनी कंचुकी में बंधा उन्मुक्त यौवन मष्तिष्क को विचलित करता है |यहाँ संयम और शुद्धता की अत्यंत आवश्यकता होती है ,तभी साधक इस साधना में सफलता प्राप्त कर सकता है |अन्यथा साधक साधना में सफलता के इतने निकट पहुच जाने के बावजूद भी ,एक छलावे की तरह धोखा खा जाता है और उसकी सारी मेहनत मिटटी में मिल जाती है |इस साधना में परी साधक की साधना को भंग करने की कोसिस करती है ,क्योकि कोई भी शक्ति कभी किसी के नियंत्रण में नहीं आना चाहती |अतः विभिन्न प्रलोभनों और मोहक सौंदर्य आदि से यह विचलित करने का पूरा प्रयास करती है |विचलित हुए तो पतन हो जाता है |अतः मन को नियंत्रित रखना और संयमित रहना आवश्यक है |जब यह प्रकट हो तो मंत्र जप पूरा होते ही इसके गले में गुलाब के फूलों की माला डाल दें |माला स्वीकार होने पर यह साधक से प्रसन्न होकर पूछती है ,तब अपना मनोरथ बताकर और वचनबद्ध करके हमेशा के लिए अपने वश में कर सकते हैं |इससे विभिन्न काम कराये जा सकते हैं |भौतिक सुख-सुविधाएँ जुताई जा सकती हैं |उच्च साधना में सहायता ली जा सकती है |इस साधना में भयानक स्थिति भी आ सकती है ,क्योकि आसपास की नकारात्मक शक्तियां भी साधना से प्रभावित होती हैं |वह विघ्न-बाधा-उत्पात कर सकती हैं या साधना से आकर्षित हो प्रकट हो सकती हैं |इस समय किसी उच्च साधक द्वारा निर्मित यन्त्र-ताबीज आपकी रक्षा भी करता है ,विघ्न-बाधा भी हटता है और साधना में सफलता भी दिलाता है |यह साधना इस्लामी साधना है अतः इसे उसी रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है |करने को कोई भी कर सकता है |

साधना विधि :--
साधना शुक्रवार को रात्री ११ बजे प्रारम्भ करें |साधक सर्वप्रथम शुद्ध कूप या नल जल से स्नान कर लुंगी धारण करें ,सर पर जालीदार टोपी धारण करें |कमरा एकांत में और बिलकुल शांत हो |आसन हरे रंग का हो |आसन पर बैठने की मुद्रा नमाज पढने वाली हो |पूरे शरीर में हिना इत्र लगाएं |सामने ताम्बे की पट्टी पर अंकित यंत्र को स्थापित करें |[यन्त्र पहले से बनवाकर रखें ]|यन्त्र पर हिना लगाएं |लोबान की धूनी देकर निम्न मंत्र का निश्चित संख्या में जप करें | यह साधना मात्र नौ दिनों की है |९ दिन में शाह्तूर की परी प्रकट होती है |
मंत्र :-- ॐ नमो-----------

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