शुक्रवार, 3 जुलाई 2015

कुन्डलनी का विज्ञान "


कुंडलिनी का नाम बहुत सुना है और अब तो बहुत से लोग कहने लगे हैं कि मेरी कुंडलिनी जाग्रत है, लेकिन क्या यह सच है? यह सवाल उन्हें खुद से करना चाहिए। सच मानों तो कुंडलिनी जिसकी भी जाग्रत हो जाती है उसका संसार में रहना मुश्किल हो जाता है, क्योंकि यह सामान्य घटना नहीं है।
संयम और सम्यक नियमों का पालन करते हुए लगातार ध्यान करने से धीरे धीरे कुंडलिनी जाग्रत होने लगती है और जब यह जाग्रत हो जाती है तो व्यक्ति पहले जैसा नहीं रह जाता। वह दिव्य पुरुष बन जाता है।
कुंडलिनी एक दिव्य शक्ति है जो सर्प की तरह साढ़े तीन फेरे लेकर शरीर के सबसे नीचे के चक्र मूलाधार में स्थित है। जब तक यह इस प्रकार नीचे रहती है तब तक व्यक्ति सांसारिक विषयों की ओर भागता रहता है। परन्तु जब यह जाग्रत होती है तो ऐसा प्रतीत होने लगता है कि कोई सर्पिलाकार तरंग है जो घूमती हुई ऊपर उठ रही है। यह बड़ा ही दिव्य अनुभव होता है।
हमारे शरीर में सात चक्र होते हैं। कुंडलिनी का एक छोर मूलाधार चक्र पर है और दूसरा छोर रीढ़ की हड्डी के चारों तरफ लिपटा हुआ जब ऊपर की ओर गति करता है तो उसका उद्देश्य सातवें चक्र सहस्रार तक पहुंचना होता है, लेकिन यदि व्यक्ति संयम और ध्यान छोड़ देता है तो यह छोर गति करता हुआ किसी भी चक्र पर रुक सकता है।
जब कुंडलिनी जाग्रत होने लगती है तो पहले व्यक्ति को उसके मूलाधार चक्र में स्पंदन का अनुभव होने लगता है। फिर वह कुंडलिनी तेजी से ऊपर उठती है और किसी एक चक्र पर जाकर रुकती है उसके बाद फिर ऊपर उठने लग जाती है। जिस चक्र पर जाकर वह रुकती है उसको व उससे नीचे के चक्रों में स्थित नकारात्मक उर्जा को हमेशा के लिए नष्ट कर चक्र को स्वस्थ और स्वच्छ कर देती है।
कुंडलिनी के जाग्रत होने पर व्यक्ति सांसारिक विषय भोगों से दूर हो जाता है और उसका रूझान आध्यात्म व रहस्य की ओर हो जाता है। कुंडलिनी जागरण से शारीरिक और मानसिक ऊर्जा बढ़ जाती है और व्यक्ति खुद में शक्ति और सिद्धि का अनुभव करने लगता है।
कुंडलिनी जागरण के प्रारंभिक अनुभव : जब कुंडलिनी जाग्रत होने लगती है तो व्यक्ति को देवी-देवताओं के दर्शन होने लगती हैं। ॐ या हूं हूं की गर्जना सुनाई देने लगती है। आंखों के सामने पहले काला, फिर पील और बाद में नीला रंग दिखाई देना लगता है।
उसे अपना शरीर हवा के गुब्बारे की तरह हल्का लगने लगता है। वह गेंद की तरह एक ही स्थान पर अप-डाउन होने लगता है। उसके गर्दन का भाग ऊंचा उठने लगता है। उसे सिर में चोटी रखने के स्थान पर अर्थात सहस्रार चक्र पर चींटियां चलने जैसा अनुभव होता है और ऐसा लगता है कि मानो कुछ है जो ऊपर जाने की कोशिश कर रहा है। रीढ़ में कंपन होने लगता है। इस तरह के प्रारंभिक अनुभव होते हैं।


 कुन्डलनी का विज्ञान "
नमस्कार मित्रो आज बहु चचॅति विषय कुन्डलनी शक्ति इससे जुडे अनुभव व विचार रखुगा , दोस्तो मे कुन्डलनि की परिभाषा पर नही जाउगा और लिखी लिखाइ रटी रटाइ बातो से आपका मन भी उब चूका होगा । कुन्डलनी से आज एक बहूत बडा साधक वगॅ प्रभावित है कइ गुपॅ चल रहै ,दोस्तो सच कडवा होता है पर बहोशी तोड सकता है एक भी साधक नही है जिसके पास कुन्डलनी के दोरान आनेवाले चक्रो का अनुभव हो ,और उसने बताया हो । होता क्या साधारन तोर पर हमे किसी चक्र पर हरकत महसूस होती है तो हम समझते है कि हमने यह चक्र भेद लिया है इसी प्रकार चक्र भेद भेद कर कइ उच्च कोटि के साधक खुद को सहत्रार तक ले आए या दावेदार मानते है खुद को सहत्रार चक्र या कइ तो सब पार ही कर चुके है । मित्रो एसा नही किसी चक्र पर हरकत हो ना उसका भेदन नही है । हमारे भीतर सांस चल रही है यह सारे चक्रो ओर शरीर के सारे बिन्दुओ को छुती है यह सासं अपने साथ उजाॅ लिए हुए ,जब ध्यान प्रगाड होता है तो सांस की वह उजाॅ सपष्ट महसूस की जासकती है इसे एक उदाहरन से समझते है जैसे एक electric wire छह अलग अलग बल्बो से जुढी हो उन छह बल्बो को छह चक्र कह सकते है |यह चक्र तो अपना काम कर ही रहै है और स्वत खिले है पर हमारे अनुभव मे नही ।
अब कुन्डलनी क्या करती इन सब चक्रो व शरीर के भीतर चल राह सारा घटनाक्रम दिखाने मे सहायक होती है सपष्ट रूप से इसे उदारन से समझते है जैसे कोइ लिफ्ट ,क्रेन ,या आपने डिजनी वलडॅ मे बच्चो के झुले मे ट्रेन देखी होगी वो zig zag चलती है,और सारा डिज्नी लैंड का चक्कर लगाती हे उसी प्रकार कुण्डलनी शक्ति एक ऐसा माध्यम हे जिसके द्वारा चेतना व् चित जुड़ कर शारीर के सारे अन्तेर जगत का भ्रमण किया जा सकता हे | आप कुण्डलनी को एक vehical भी कह सकते हे | जेसा की मेने पहले कहा साधक साँस पर ध्यान करते हे या चक्रों पर ध्यान करते हे उससे वहां उनेह वाइब्रेशन महसूस होती हे वेह उस चक्र का अनुभव होना या उसका भेदन होना नहीं हे तो क्या हे अनुभव कुण्डलनी का ?
शारीर का अन्तेर भ्रमण ही कुण्डलनी का जाग्रत होना हे ,होता क्या जब हमारी चित व् चेतना कुण्डलनी के साथ जुडती हे यानि शारीर के अन्तेर भ्रमण को निकलते हे तो हमें हड्डी मांस नहीं बल्कि शारीर का उर्जा रूप प्रकट होता हे गुदा चक्र से चलकर यह सफ़र सहस्त्रार पर समाप्त होता हे इस दौरान केवल वाइब्रेशन ही नहीं हम पूर्णता अन्तेर में परवेश पाते हे मित्रो अनुभव इतना गाहेरा हे कुण्डलनी का की मेरे शब्द आपको अधूरे लग सकते हे पर में प्रयास करता हु | जेसे हमारा ह्रदय हे यह एक मशीन हे इसी तरेह जो सात चक्र हे वो भी शारीर की मशीने हे जिसके द्वारा शारीर का सारा चक्र चलता हे जिंतना बड़ा यंत्र या उतना ही उर्जावान हे उतना ही प्रकशित व अलोकिक लोक हे | यह सारा उर्जा शेत्र हे | एक चक्र से दुसरे चक्र के बीच में चलते वक्त एसा अनुभव होता हे जेसे की आप एक छोटे पहाड़ से बड़े पहाड़ पर छलांग लगते हे बिलकुल एसा ही महसूस होता हे दो पहड़ो के बीच जेसे खाई होती उसी तरह जेसे पहले नीचे उतरे फिर उप्पेर गय | यह सारा सफ़र प्रकाश मान व् अलोकिक हे | इस सफ़र के दौरान शंखनाद,घंटा ध्वनि और हर चक्र में अंदर जाते हुए ज्योत के दर्शन होते हे जेसे की ज्योत एक द्वार की तरेह होती हे ,सहस्त्रार पर जाकर कुण्डलनी समाप्त हो जाती हे वो वही तक ही पंहुचा सकती हे | सहस्त्रार हमारा ब्रेन हे उसमे अनेको छोटी छोटी नाढ़ीया तंतु हे वो सब प्रकाशमान हे | आप साधारण तोर से कह सकते हे की यह सात चक्र जो शारीर की पहुच में ही आते हे वेह कुण्डलनी के माध्यम से अनुभव किये जा सकते हे | लेकिन मित्रो यह सतो चक्र नाशवान हे शारीर का ही उर्जा वन रूप हे | सात इससे उपर हे | हमारी वर्तमान अवस्था में आत्मा or मन आज्ञा चक्र में निवास में स्थित हे | हम सब कुछ आज्ञा चक्र से ही अनुभव करते हे | इस्सलिये हमें इससे उपर की यात्रा को महत्व देना चाहिए न की हम गुदा चक्र से सुरुआत करे |
मित्रो कुछ लोग कुण्डलनी जागरण को देवकी शक्तियों से जोड़ कर अपनी दुकान चलते हे वो दावा करते हे की सब दीखता हे भूत वर्तमान भविष्य या एक कोरी कल्पना हे ,उनेह खुद को कुण्डलनी का ही पता नहीं हे | मित्रो यह अस्तित्व एक ही ताकत से चल रहा हे अगर हर कोई यहाँ शक्तिमान हो जाये तो इसका विनाश कब का हो चूका होता | हाँ यह जरुर हे की कुदरत आपसे काम जरुर ले सकती हे उसके लिए आपको कई बार भूत और भविष्य या वर्तमान की सिमित जानकारी देती हे ,इससे यह समज लेना की में तिर्काल्दर्शी स्वम्भू हु बहुत बड़ी मुर्खता हे | हम शक्तियों को जान सकते हे और जो भी शक्तियों के होने का दावा करता हे वेह वही कर्म कर रहा हे जेसे कोई इस्त्री के कपडे भरे बाज़ार में उतारे | उसका इसको दंड भोगना पड़ता हे | यह सारा अस्तित्व एक नियम के तहत हे वो सबके लिए बराबर हे चाहे कुंडलनी जाग्रत पुर्ष हो या नहीं |

 
 कांपता जिस्म सुर्ख चेहरा था ,

हर पल साँस साँस होश गहरा था
सात दरवाजों पर सात शमाओं का पहरा था
हर दर नवाज़ा हर शमा में ठहरा था
न हो पता बयाँ तजुर्बा कितना गहरा था
मित्रो यह अनुभव ऐसा हे की कहने को बहुत हे पर शब्द नहीं हे ,में किसी को कोई भरम नहीं देना चाह ता ,इसके जागरण के बाद भी इन्सान साधारण ही होता हे कुछ नहीं बदलता | और सहस्त्रार तक नाशवान हे सब जो भी मेने अब तक कहा हे यह मेरा फर्स्ट हैण्ड एक्सपीरियंस हे इसमें मुझे तनिक भी संदेह नहीं हे | आप लोगो से निवदन किया हे अगर कुछ अच्छा लगे तो ग्रहण कर सकते हे धन्यवाद |

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