ध्यान की शुरूआत भाग --- 1 (ध्यान
में असफलता के कारण)xxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxx
(इस पोस्ट में वह गलतियॉ बताई गयी है जिनको
करते रहने पर हम ध्यान में कभी आगे नही बढ सकते या यदि हम आगे बढ चुके है तो इनको
करने पर हम नीचे गिर जायेंगे)
ध्यान क्या है। इसकी विधियॉ क्या है और ये
कैसे काम करता है।
इसको जानने से पहले हमे ये जानना आवश्यक है कि
ध्यान में हम क्या गलतियां करते है जिसकी वजह से हमें इसमें सफलता नही मिलती।
यदि शुरूआती गलतियों पर हमने ध्यान नही दिया तो हमको कभी सफलता नही मिल सकती। हम
ध्यान की तमाम विधियों की बात तो दिन भर करते है मगर ध्यान के साथ अन्जाने में
की जाने वाली गलतियों की तरफ हमारी नजर नही जाती। तो आइये जरा एक नजर डाल लेते हे
उन गलतियों पर। इसके अलावा अन्य बहुत सी गलतियॉ है जिनका जिक्र इस पोस्ट में
करना रह गया होगा उनको खुद ही समझने का प्रयास करे व कमेण्ट बाक्स में नीचे
लिखे। उनको भी पोस्ट में शामिल किया जायेगा जिससे कि साधकों को अपनी कमी को
पहचानने में मदद मिल सके।
अधिकतर साधकों को शिकायत है कि वो एक दो महीने
से ध्यान कर रहे है कोई दस पॉच साल से ध्यान कर रहे है और कुछ उससे भी ज्यादा
समय से कर रहे है मगर उनको कोई सफलता नही मिली। जबकि वेा काफी प्रयास कर रहे है।
दिन रात प्रयास कर रहे हैै कभी कुछ कभी कुछ। अपने मन को नियंत्रण में करने के लिये
वो हर समय कोई ना कोई विधि अपनाते रहते है मगर नतीजा वही जीरो।
इसका कारण ये है कि हम ध्यान तो रोज कर रहे है
पूरी मेहनत से कर रहे है मगर उसके साथ हम कुछ ऐसी गलतियों को लेकर चल रहे है जिनके
होते ध्यान में सफलता तो क्या प्रारम्भिक अनुभव होना भी असम्भव है।
हम ध्यान की तमाम विधियों को जान लेते है उनके
आधार पर ध्यान शुरू कर देते है। एक विधि से कुछ हासिल नही हुआ तो दस दिन में
दूसरी आजमाने लगे फिर उससे कुछ हासिल नही हुआ तो तीसरी करने लगे। इन सबसे कुछ
हासिल नही होगा।
अपनी मानसिकता अथवा सुविधा के अनुसार किसी एक
विधि का चुनाव कर लीजिये और उसी पर पूरा ध्यान दीजिये। हो सकता है कि आप हर विधि
पर ध्यान एकाग्र ना कर पाये तो दूसरी आजमा लीजिये। मगर ये ध्यान रखिये कि यदि ध्यान
के नियमों के अनुसार अभ्यास नही करेंगे तो असफलता ही हाथ लगेगी। नियमों के साथ
यदि अभ्यास करने पर आपको सफलता नही मिलती तो आप दूसरी विधि का चुनाव करें।
वैसे तो ध्यान की 125 से ज्यादा
विधियॉ है मगर उसमें सबसे आसान व शीघ्र सफलता दिलाने वाली विधि केवल दो तीन ही है।
आप ये बिल्कुल ना समझना कि मुश्किल विधि से ज्यादा लाभ होगा। किसी विधि का कोई
महत्व नही है हमको तो केवल किसी विधि का प्रयोग करके अपने मन में चलने वाले
विचारों को कम करना होता है। निरन्तर अभ्यास से विचार कम होते होते लगभग समाप्त
हो जाते है।
मगर ध्यान में बहुत कोशिश् करने पर भी हमारे
विचार समाप्त नही हो पाते। ध्यान से हमारे विचार तो समाप्त होते है मगर हम ध्यान
से उठने के बाद उनको फिर झिंझोडना शुरू कर देते है और ध्यान से प्राप्त एनर्जी
को फिर से बेकार के कामों में खर्चा कर देते है।
ध्यान मे की जाने वाली गलतियॉ।।
जब हम ध्यान मे बैठते है तो हमारा मन शांत भी
हो जाता है अक्सर हम उससे उठने के बाद अपने को बहुत शांत व ऊर्जा वान महसूस करते
है। मगर फिर हम अपने दिमाग को चलाने लगते है कभी टी वी कभी रेडियों कभी फेसबुक। ये
ध्यान रखिये कि आधे एक घण्टे की फेसबुक साधना हमारी दो तीन घण्टे की ध्यान
साधना से एकत्र की हुई पूरी एनर्जी पी जाती है। तो जो लोग दिन भर फेसबुक में लगे
है वो साधना में किसी प्रकार की सफलता की उम्मीद ना करे। सेैकडो लोग मुझसे इनबाक्स
मे बात करते है अपने आगे ना बढने का कारण पूछते है। मै उनसे सवाल जवाब करके उनको
उनकी कमियॉ समझाता हॅू। अधिकतर लोगों के पास यही समस्या है कि वो दिन रात फेसबुक
साधना में लगे है ओर फेसबुक में दिन रात घूमते हुये ही हजारों तरह की शक्तियॉ व
सिद्धियॉ प्राप्त करना चाहते है। उनको ये सब करते हुये इस जनम मे कुछ नही मिलना!!
मेने सैकडो लोगों से कहा कि फेसबुक में जब तक लगे रहोगे तब तक ध्यान में कुछ नही
मिलना। तो उन सब ने छूटते ही कहा कि तुम खुद भी तो यही कर रहे हो। मेने कहा कि मै
खुद यही कर रहा हॅॅूू तो मै अपनी गलती ताे मानता ही हॅूू और इस दशा में मै परेशान
नही हॅूू कि मुझे कुछ मिल जाये। मे जानता हॅू कि फेसबुक मेरी एनर्जी को वेस्ट कर
रहा है और इसको इसतेमाल करते हुये मै आगे नही बढ सकता।। जो आदमी अपनी गलती को
पहचानना उसको दूर करना नही चाहता वो कभी कुछ नही पायेगा। वाे केवल सपनों मे ही
जीता रहे। सपने देखने में पैसे नही लगते और ना कुछ करना पडता है।
याद रखिये कि जो बात आपका ध्यान अपनी तरफ बार
बार खीचे। समझ लीजिये कि वो आपकी सबसे बडी बाधा है ध्यान की सफलता में।
जब तक हम फालतू के कामों में अपनी एनर्जी खर्चा
करते रहेंगे तब तक ध्यान साधना में एक कदम नही चल सकते।
यदि आप दिन रात फेसबुक पर पोस्ट करते रहते है
कि इसने ये किया उसने वो किया राहुल गांधी ने ये किया इन्दिरा गांधी ने वो किया
मोदी ने ऐसा किया कलाम ने वेैसा किया। तो आप अध्यात्मिक आदमी नही है। अध्यात्म
हमको ये देखना नही सिखाता कि किसने क्या किया। अध्यात्म तो हमको ये देखना
सिखाता है कि हमने क्या किया। यदि आप ये नही देख पा रहे कि आपने क्या किया तो आप
अध्यात्मिक नही है।
अधिकतर लोगों को एक पोसट सबसे अच्छी लगती है
कि गो माता के हत्यारों को फांसी दो। क्यों भाई क्या गो माता में ही जान होती
है। भैंस बकरे मुर्गे आदि पशुओं में जान नही होती? तुम सच्चे अध्यात्मिक
आदमी हो। गाय का दूध पीते हो उससे फायदा उठाते हो तो वो माता दिखने लगी। भैंस के
चमडे का जूता बेल्ट अपने शरीर मे रात दिन लटकाये घूमते हो इसी लिये उसके जान की
दुहाई नही देते क्योकि ऐसा करके तुम्हारा नुकसान हो जायेगा।
साधना की असफलता के कारण
अधिकतर लोगों ने टी वी पर शक्तिमान सीरियल देख
कर कुण्डलिनी के चमत्कार देख कर कुण्डलिनी को जाना है। बल्कि जाना नही उसका नाम
ही सुना है और उसके चमत्कारों की वजह से वो उससे आकर्षित है। वो सोचते है कि वो
दुनिया भर की नशेबाजी अययाशी करते हुये किसी शार्टकट विधि से उसकाे जाग्रत कर
लेंगे ओर फिर चमत्कार दिखा कर खूब पैसा कमायेंगे नाम होगा। उसके बाद वो महिलाओं
लडकियों को आकर्षित करके उनसे गलत फायदा उइायेंगे दूसरों के गुप्त रहस्यों को
जान लेंगे दूसरों को वश में करके उसका पैसा हडप लेंगे आदि आदि। उनका सोचना सच है।
कुण्डलिनी जाग्रत व्यक्ति ये सब कर सकता है। मगर समस्या ये है कि जब तक आपकी ये
सब भावनाये आपके मन मे है तब तक आप कुण्डलिनी जाग्रत कर ही नही सकते। चाहे जितना
प्रयास कर लो। यही कारण है लोगो की ध्यान में असफलता का।
बहुत से साधक कहलाने वाले व्यक्ति दिन रात नेट
पर पोर्न फिल्मे देखते फोटो देखते लाइक्स करते रहते है। वो अपनी एनर्जी इन्ही
गंदे कामों में वेस्ट कर रहे है बार बार कहते हे कि कुण्डलिनी जगाने का रस्ता
बताओ। जो बता रहे हो वो गलत है क्योकि मेरी जाग नही रही। भाई ना तो नाग रही ना
जागेगी क्योंकि आपकी आत्मा ये सब गंदगी देखते देखते इस प्रकार खोखली हो चुकी है
कि वो कुण्डलिनी शक्ति का बोझा उठाने में ही असमर्थ है और उसका जागरण आपको मौत के
मुह मे ले जायेगा। अपात्र की कुण्डलिनी ना जाग सके इस बात की व्यवस्था तो ईश्वर
ने ही कर दी है। जब तक आप गंदगी को नही छोडेंगे कुण्डलिनी शक्ति का बोझा उठाने
लायक नही हो जायेंगे तब तक उसका जागरण तो दूर है वो एक सांस तक नही लेगी चाहे सौ
दो सौ साल आप प्रयास कर लो।
बहुत से लोग दिन भर फेसबुक पर अपने घर की औरतों
व लडकियों की फोटो डाल कर उनपर आये घटिया कमेण्ट और लाइक्स देख कर खुश होते है।
ये क्या कर रहे हो भाई कया घर की औरतों के जिस्म की नुमाइश लगा रहे हो। लडकी ओरत
को देखते ही फेसबुकिया कुत्ते तुरन्त दुम हिलाने लगते है ओर वाह क्या बाडी है
नाइस पिक्चर क्या लग रही हो जैसे घटिया कमेण्ट आना शुरू हो जाते है ओर तुम इनपर
खुश हो रहे हो ये तुम्हारा कौन सा सस्ता व घटिया स्तर दिखा रहा है। तुमको ये सब
अच्छा इसी लिये लग रहा है क्योंकि तुम फेसबुक पर लडकियों औरतों के फोटो देख कर
खुद भी कुत्ते की तरह दुम हिलाते हो।
कई साधक कहलाने वाले दिन भर अपनी सेल्फी ही
अपलोड कर करके खुश होते है सोचते है कि पूरी दुनिया का आदमी उन्ही को देखने के
लिये बैठा तरस रहा है ओर वो सब यदि उनको ना देखें तो किसी को नीद नही आयगी। जबकि
कोइ उनको नही देखता। किसके पास समय है कि तुम्हारी बीस तीस फोटो राेज नहाने खाने
की देख कर झूठी वाह वाही करके दिन भर ताली बजाये। जहॉ तीन बार नोटिफिकेशन जाता है
आदमी समझ जाता है कि आप बहुत बडे बेवकूफ है फिर आपने अपनी कोई नहाते खाते की फोटो
डाली होगी। बस आपका नोटिफिकेशन आफ हो जाता है और दुबारा आदमी उधर झांक कर देखता भी
नही है।।
ध्यान साधना एक तरह से ईश्वर की बनाई
प्रक्रति की साधना है क्योंकि इसके माध्यम से आप प्रक्रति के साथ ही एकाकार हो
जाते है। वही हमारा असली स्वरूप भी है। मगर हम प्रक्रति में मौजूद कुछ जीवों को
दूसरे नजरिये से देख रह है उनके लिये नफरत का भाव रख रहे है। बात करते है कि ईश्वर
एक ही है। मगर हमारा कहने का मतलब ये नही होता कि सारे धर्मो का ईश्वर एक है
बल्कि हम ये कहना चाहते है कि सिर्फ हमारा ईश्वर ही ईश्वर है एकमात्र वही ईश्वर
है ओर बाकी सारी धर्मो के ईश्वर झूठे व मक्कार है और दूसरे धर्म वालों को अपने
इश्वर को छोड कर हमारे ईश्वर को ही मान लेना चाहिये।
लाेग पूछते है कि कि खाने के बाद रात में ध्यान
कर सकते है। अब यदि आपका ये नजरिया है कि पहले खाना खा ले ध्यान तो बेकार का काम
है बाद मे कर लेंगे तो आप इस मार्ग पर कुछ नही पायेंगे। ये भी तो किया जा सकता है
कि खाना एक घण्टे बाद खा ले पहले ध्यान की प्रैक्टिस कर ले।
ये बात समझ लो कि ध्यान में सफलता के लिये
किसी विधि से ज्यादा जरूरी है अपनी सफलता के लिये आपका जुनून। ध्यान में सिर्फ
जुनूनी या पागल ही सफल होते है। यदि आपको ध्यान में सफलता के लिये जुनून नही है
पागल पन नही है अपने प्रयास के लिये ईमानदारी नही है तो आप कभी कुछ नही पा सकते।
यदि आप रोज दो या तीन बार एक एक घण्टे ईमानदारी से एक निश्चित समय पर मेडिटेशन के
लिये नही बैठेंगे तो कुछ हाथ नही आना।। निश्चित समय पर बैठने से हमको ये लाभ होता
है कि अगले दिन उसी समय पर हमारा मन खुद ही हमको ध्यान दिलाता है कि ध्यान अभ्यास
का समय हो गया। यदि सुबह सात बजे बैठना है तो बैठना ही है। यदि रात में आठ बजे
बैठना है तो बेठना ही है। यदि हम ये करते है कि अभी कर लेंगे तभी कर लेंगे। थोडी
देर टी वी देख ले तब कर लेगे। तो समझ लो कि ध्यान को आप बोझा बना कर ढो रहे है।
समय आप अपनी सुविधा के अनुसार निश्चित कर लीजिये। यदि किसी कारण वश किसी दिन समय
आगे पीछे हो जाये तो कोई बात नही है। मगर यदि आप टाल मटोल कर रहे है तो आप इस
मार्ग के पथिक नही है। दो चार दिन रो धोकर अभ्यास किया मगर फिर पॉचवे दिन टाल
दिया ओर समय ना मिलने का बहाना बना दिया।। यदि निरन्तर यात्रा जारी नही रखेंगे तो
कुछ हाथ नही आना क्योंकि एक दिन की यात्रा को बेवजह रोक देने का मतलब है कि चार
छह दिन पीछे लौट जाना। यदि मजबूरी वश रोकना पडे तो नुकसान नही है मगर जानबूझ कर
रोकने का मतलब है कि आप अपने मन को कमजोर कर रहे है अपने आतमविश्वास को कमजोर कर
रहे है। साधना से उसको रिकवर करने में ज्यादा मेहनत करनी होगी।
अधिकतर लोग ध्यान मे चार कदम चलते है और पहले
ही अनुभव पर खुश हो जाते है उनको लगता है कि बहुत बडी चीज हाथ आ गयी। उसके बाद वो
सोचते है कि मै ध्यान में सफल् तो हो ही रहा हॅू दो चार दिन ना करूं तो मुझको कोई
फर्क नही पडेगा। मगर ध्यान रखिये कि आप चाहे कितनी ही ऊचाई पर पहुच जाये। यदि आप
अपना अभ्यास निरन्तर नही बनाये रखेगे तो गडढे में गिरना निश्चित है।
यदि आपका उददेश्य ध्यान से शक्तियॉ पाकर
वशीकरण सम्मोहन दूसरे के मन की बात जानना दूसरे के गुुप्त रहस्यों को जानना या
दूसरों से फायदा उठाना है तो आपको कुछ हाथ नही आता। ये प्रक्रति की साधना है और
प्रक्रति कभी आपके किसी गलत काम का समर्थन नही करती ओर आपकी किसी गलती को माफ नही
करती।
साधना में एक बार उपर चढ कर नीचे गिरने पर
दुबारा उठने मे ओर अधिक मेहनत लगती है। उसके बाद फिर उठ कर गिरने के बाद तीसरी बार
में और अधिक मेहनत लगेगी। जितनी बार उपर उठने ओर गिरने का क्रम चलेगा उतना ही आप
निराश होते जायेगे आपकी बुद्धि जड होती जायेगी और आप को हर बार पहले के मुकाबले ज्यादा
मेहनत करनी पडेगी। मगर फिर दुबारा यदि हम अपनी साधना के प्रति ईमानदार हो जाये तो
मेहनत जयादा नही करनी पडती। एक बार का समझा हुआ मार्ग दुबारा चलने पर आसान लगता है
मगर हम आलसी होते जाते है और हमारी मानसिकता बन जाती है निराशा की। जिसकी वजह से
हम लापरवाह होते जाते है। क्योंकि हम अपने पहले अनुभव को दुबारा अभ्यास में
तुरनत पाना चाहते है। ये भूल जाते है कि पहला अनुभव पहली बार में पन्द्रह दिन में
आया था। अबकी बार हम उस अनुभव को 15 दिन भी देने को तैयार नही होते इसी
वजह से निराश होकर बार बार अभ्यास छोड देते है।
ध्यान के दो प्रकार के उददेश्य है। एक तो
सांसारिक व दूसरा अध्यात्मिक। जिन लोगों का उददेश्य सांसारिक कार्यो को ध्यान
के माध्यम से अच्छी प्रकार से सम्पन्न करना है वो सुबह शाम या जब चाहे ध्यान
कर सकते है उनके लिये अधिक नियम कायदे नही है। उनको जब समय मिले तब कर ले। टी वी
देखें कम्प्युटर चलाये फेसबुक चलाये।
मगर जिनका ध्यान साधना का उददेश्य कुछ अध्यातिमक
शक्तियों की प्राप्ति है उनको सही समय पर सोना जागना खाना आदि का नियम मानना होगा।
लोगों को शिकायत है कि ध्यान मे नीद आने लगती है। शुरूआत में ध्यान में नीद आना
गलत नही है मगर यदि लगातार आपको ध्यान मे नीद आ रही है तो उसके कई कारण हो सकते
है कि आपकी नींद पूरी नही हो रही। आप जरूरत से ज्यादा खाना खा रहे है। आप थक जाने
पर ध्यान कर रहे है। इसके अन्य कारण भी हो सकते है जिनको आप अच्छी तरह से समझ
सकते है। सच्चे साधक को दस बजे अवश्य ही सो जाना चाहिये। ओर चार बजे उठ कर साधना
शुरू कर देनी चाहिये। मगर शहरी दिनचर्या में ये सम्भव नही है तो उसके अनुसार अपना
समय एडजस्ट कर लीजिये। यदि आप किसी कार्यवश देर तक जाग रहे है तो ठीक है। मगर यदि
आप टी वी देखने के लिये रात ग्यारह बारह तक जग रहे है तो गलत कर रहे है। आप वही
के वही रहेंगे।
यदि आप दिन भर चोरी बेईमानी ठगी करते है किसी
का दस मारा किसी का बीस मारा। मौका मिला तो मार लिया। तो समझ लो कि आप अध्यातिमक
नही है। ध्यान रखों कि अध्यात्म का पहला सिद्धांत अपनी गलतियों का सुधार है।
यदि आप अपनी गलतियों को गलती नही मानते तो अध्यात्म आपके लिये सपना ही है।
अधिकतर लोगों ने टी वी पर शक्तिमान सीरियल देख
कर कुण्डलिनी के चमत्कार देख कर कुण्डलिनी को जाना है। बल्कि जाना नही उसका नाम
ही सुना है और उसके चमत्कारों की वजह से वो उससे आकर्षित है। वो सोचते है कि वो
दुनिया भर की नशेबाजी अययाशी करते हुये किसी शार्टकट विधि से उसकाे जाग्रत कर
लेंगे ओर फिर चमत्कार दिखा कर खूब पैसा कमायेंगे नाम होगा। उसके बाद वो महिलाओं
लडकियों को आकर्षित करके उनसे गलत फायदा उइायेंगे दूसरों के गुप्त रहस्यों को
जान लेंगे दूसरों को वश में करके उसका पैसा हडप लेंगे आदि आदि। उनका सोचना सच है।
कुण्डलिनी जाग्रत व्यक्ति ये सब कर सकता है। मगर समस्या ये है कि जब तक आपकी ये
सब भावनाये आपके मन मे है तब तक आप कुण्डलिनी जाग्रत कर ही नही सकते।
उपर लिखी बातों को पढ कर समझ लीजिये कि आप यदि
ध्यान में सफल नही हो रहे तो आपकी क्या गलती है। उपर लिखी मानसिकता व व्यवहार
सम्बन्धित एक भी गलती यदि आपमें मौजूद है तो आप अध्यात्मिक नही है। यदि आप इन सब
गलतियों को छोडना नही चाहते तो पहले इन हरकतों से अपना मन भर लीजिये दिन भर अपना
फेसबुक स्टेटस अपडेट कर लीजिये। दूसरे धर्मो के खिलाफ जहर उगल लीजिये। राजनीतिक
पार्टियासें के खिलाफ जहर उगल लीजिये। जब आपके अंदर भरा जहर समाप्त हो जाये तब
अध्यात्म में आइये। अध्यात्म दो नाव की सवारी नही है। यदि आप उपरोक्त गलतियों
में से कोई भी गलती ओर अध्यात्म के रूप में दो नावों की सवारी कर रहे है तो आप
अपने आप को धोखा दे रहे है।
अब आप ही निश्चित कीजिये कि आप का ध्यान साधना
का उददेश्य क्या है और अपने उददेश्य के अनुसार आप सच्चे साधक है या नही।
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