दश महाविद्या
दश महाविद्या
जिसकी उपासना से चतुर्मुख सृष्टि रचने में समर्थ होते हैं, विष्णु जिसके कृपा कटाक्ष से विश्व का पालन करने में समर्थ
होते हैं, रुद्र जिसके बल से विश्व
का संहार करने में समर्थ होते हैं, उसी सर्वेश्वरी
जगन्माता महामाया के दस स्वरूपों का संक्षिप्त चरित्र प्रस्तुत है। देवी के 10 रूपों - काली, तारा, षोडशी, भुवनेश्वरी, छिन्नमस्ता, भैरवी, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी और कमला-
का वर्णन तोडल तंत्र में किया गया है। शक्ति के यह रूप संसार के सृजन का सार है।
इन शक्तियों की उपासना मनोकामनाओं की पूर्ति। सिद्धि प्राप्त करने के लिए की जाती
है। देवताओं के मंत्रों को मंत्र तथा देवियों के मंत्रों को विद्या कहा जाता है।
इन मंत्रों का सटीक उच्चारण अति आवश्यक है। ये दश महाविद्याएं भक्तों का भय निवारण
करती हैं। जो साधक इन विद्याओं की उपासना करता है, उसे धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष सबकी प्राप्ति हो जाती है।
1. काली : दश
महाविद्याओं में काली प्रथम है। महा भागवत के अनुसार महाकाली ही मुखय हैं। उन्हीं
के उग्र और सौम्य दो रूपों में अनेक रूप धारण करने वाली दश महाविद्याएं हैं।
कलियुग में कल्प वृक्ष के समान शीघ्र फलदायी एवं साधक की समस्त मनोकामनाएं पूर्ण
करने में सहायक हैं। शक्ति साधना के दो पीठों में काली की उपासना श्यामापीठ पर
करने योग्य है। वैसे तो किसी भी रूप में उन महामाया की उपासना फल देने वाली है
परंतु सिद्धि के लिए उनकी उपासना वीरभाव से की जाती है।
2. तारा : भगवती
काली को नीलरूपा और सर्वदा मोक्ष देने वाली और तारने वाली होने के कारण तारा कहा
जाता है। भारत में सबसे पहले महर्षि वशिष्ठ ने तारा की आराधना की थी। इसलिए तारा
को वशिष्ठाराधिता तारा भी कहा जाता है। आर्थिक उन्नति एवं अन्य बाधाओं के निवारण
हेतु तारा महाविद्या का स्थान महत्वपूर्ण है। इस साधना की सिद्धी होने पर साधक की
आय के नित नये साधन खुलने लगते हैं और वह पूर्ण ऐश्वर्यशाली जीवन व्यतीत कर जीवन
में पूर्णता प्राप्त कर लेता है। इनका बीज मंत्र 'ह्रूं' है। इन्हें
नीलसरस्वती के नाम से भी जाना जाता है। अनायास ही विपत्ति नाश, शत्रुनाश, वाक्-शक्ति तथा मोक्ष की प्राप्ति के लिए तारा की उपासना की
जाती है।
3. षोडशी : षोडशी
माहेश्वरी शक्ति की सबसे मनोहर श्री विग्रह वाली सिद्ध देवी हैं। इनकी चार भुजाएं
एवं तीन नेत्र हैं। ये शांत मुद्रा में लेटे हुए सदाशिव पर स्थित कमल के आसन पर
आसीन हैं। जो इनका आश्रय ग्रहण कर लेते हैं उनमें और ईश्वर में कोई भेद नहीं रह
जाता। षोडशी को श्री विद्या भी माना गया है। इनके ललिता, राज-राजेश्वरी, महात्रिपुरसुंदरी, बालापञ्चदशी आदि
अनेक नाम हैं, वास्तव में षोडशी
साधना को राज-राजेश्वरी इसलिए भी कहा गया है क्योंकि यह अपनी कृपा से साधारण
व्यक्ति को भी राजा बनाने में समर्थ हैं। चारों दिशाओं में चार और एक ऊपर की ओर
मुख होने से इन्हें पंचवक्रा कहा जाता है। इनमें षोडश कलाएं पूर्ण रूप से विकसित
हैं। इसलिए ये षोडशी कहलाती है। इन्हें श्री विद्या भी माना गया है और इनकी उपासना
श्री यंत्र या नव योनी चक्र के रूप में की जाती है। ये अपने उपासक को भक्ति और
मुक्ति दोनों प्रदान करती हैं। षोडशी उपासना में दीक्षा आवश्यक है।
4. भुवनेश्वरी :
महाविद्याओं में भुवनेश्वरी महाविद्या को आद्या शक्ति अर्थात मूल प्रकृति कहा गया
है। इसलिए भक्तों को अभय और समस्त सिद्धियां प्रदान करना इनका स्वाभाविक गुण है।
दशमहाविद्याओं में ये पांचवें स्थान पर परिगणित है। भगवती भुवनेश्वरी की उपासना
पुत्र-प्राप्ति के लिए विशेष फलप्रदा है। अपने हाथ में लिए गये शाकों और फल-मूल से
प्राणियों का पोषण करने के कारण भगवती भुवनेश्वरी ही 'शताक्षी' तथा 'शाकम्भरी' नाम से विखयात हुई।
5. छिन्नमस्ता :
परिवर्तनशील जगत का अधिपति कबंध है और उसकी शक्ति छिन्नमस्ता है। छिन्नमस्ता का
स्वरूप अत्यंत ही गोपनीय है। इनका सर कटा हुआ है और इनके कबंध से रक्त की तीन
धाराएं प्रवाहित हो रही हैं जिसमें से दो धाराएं उनकी सहचरियां और एक धारा देवी
स्वयं पान कर रही हैं इनकी तीन आंखें हैं और ये मदन और रति पर आसीन हैं। इनका
स्वरूप ब्रह्मांड में सृजन और मृत्यु के सत्य को दर्शाता है। ऐसा विधान है कि
चतुर्थ संध्याकाल में छिन्नमस्ता की उपासना से साधक को सरस्वती सिद्धि हो जाती है।
इस प्रकार की साधना के लिए दृढ़ संकल्प शक्ति की आवश्यकता होती है और जो साधक जीवन
में निश्चय कर लेते हैं कि उन्हें साधनाओं में सफलता प्राप्त करनी है वे अपने गुरु
के मार्गदर्शन से ही इन्हें संपन्न करते हैं।
7. धूमावती :
धूमावती देवी महाविद्याओं में सातवें स्थान पर विराजमान हैं। धूमावती महाशक्ति
अकेली है तथा स्वयं नियंत्रिका है। इसका कोई स्वामी नहीं है। इसलिए इन्हें विधवा
कहा गया है। धूमावती उपासना विपत्ति नाश, रोग निवारण, युद्ध जय आदि के
लिए की जाती है। यह लक्ष्मी की ज्येष्ठा हैं, अतः ज्येष्ठा नक्षत्र में उत्पन्न व्यक्ति जीवन भर दुख
भोगता है। जो साधक अपने जीवन में निश्चिंत और निर्भीक रहना चाहते हैं उन्हें
धूमावती साधना करनी चाहिए।
8. बगलामुखी : यह
साधना शत्रु बाधा को समाप्त करने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण साधना है। ये सुधा
समुद्र के मध्य में स्थित मणिमय मण्डप में रत्नमय सिंहासन पर विराजमान है। इस
विद्या के द्वारा दैवी प्रकोप की शांति, धन-धान्य के लिए और इनकी उपासना भोग और मोक्ष दोनों की सिद्धि के लिए की जाती
है। इनकी उपासना में हरिद्र माला, पीत पुष्प एवं
पीत वस्त्र का विधान हैं इनके हाथ में शत्रु की जिह्वा और दूसरे हाथ में मुद्रा
है।
9. मातंगी : मातंग
शिव का नाम और इनकी शक्ति मातंगी है। इनका श्याम वर्ण है और चंद्रमा को मस्तक पर
धारण किए हुए हैं। इन्होंने अपनी चार भुजाओं में पाश, अंकुश, खेटक और खडग धारण
किया है। उनके त्रिनेत्र सूर्य, सोम और अग्नि
हैं। ये असुरों को मोहित करने वाली और भक्तों को अभीष्ट फल देने वाली हैं। गृहस्थ
जीवन को सुखमय बनाने के लिए मातंगी की साधना श्रेयस्कर है।
10. कमला : जिसके घर
में दरिद्रता ने कब्जा कर लिया हो और घर में सुख-शांति न हो, आय का स्रोत न हो उनके लिए यह साधना सौभाग्य के
द्वार खोलती है। कमला को लक्ष्मी और षोडशी भी कहा जाता है। वैसे तो शास्त्रों में
हजारों प्रकार की साधनाएं दी गई हैं लेकिन उनमें से दस महत्वपूर्ण विद्याओं की
साधनाओं को जीवन की पूर्णता के लिए महत्वपूर्ण बताया गया है। जो व्यक्ति दश
महाविद्याओं की साधना को पूर्णता के साथ संपन्न कर लेता है। वह निश्चय ही जीवन में
ऊंचा उठता है परंतु ध्यान रहे विधिवत् उपासना के लिए गुरु दीक्षा नितांत आवश्यक
है। निष्काम भाव से भक्ति करने के लिए दश शक्तियों के नाम का उच्चारण करके भी इनका
अनुग्रह प्राप्त किया जा सकता है। शक्ति पीठों में शक्ति उपासना के अंतर्गत
नवदुर्गा व दशमहाविद्या साधना करने से शीध्र सिद्धि होती है।
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