,,,,,,,,,भाद्रशुक्ल पंचमी
को महान ऋषि पंचमी का व्रत किया जाता है। ब्रह्माण्ड पुराण के अनुसार इस अवसर पर
स्नान-शौच करके वेदी बनाकर उस पर विविध रंगों से अष्टदल कमल का चित्रण किया जाता, फिर उस पर ऋषियों
की मूर्ति बनाकर विधान के साथ पूजन किया जाता है। ऋषि पंचमी इस वर्ष 30 अगस्त को
है। इस दिन ऋषियों का पूजन बहुत अर्थपूर्ण है। ऋषि मन्त्रद्रष्टा, मन्त्रस्रष्टा और
युगसृजेता होते हैं।
समाज में जो भी उत्तम प्रचलन, प्रथा-परम्पराएं
हैं, उनके प्रेरणा स्रोत ऋषिगण ही हैं। इन्होंने विभिन्न विषयों
पर महत्त्वपूर्ण शोध किए हैं। यथा-व्यासजी ने गहन वेदज्ञान को सुबोध्य पुराण ज्ञान
के रूप में रूपान्तरित कर ज्ञानार्जन का मार्ग प्रशस्त किया। चरक, सुश्रुतादि
आयुर्विज्ञान पर अनुसन्धान किए। जमदग्रि-याज्ञबल्क्य यज्ञ विज्ञान पर शोध प्रयोग
किये। वशिष्ठ ने ब्रह्मविद्या व राजनीति विज्ञान तथा विश्वामित्र ने गायत्री
महाविद्या का रहस्योद्घाटन किया।
नारद जी ने भक्ति साधना के अनमोल सूत्र दिए। पर्शुराम ने
ऊंच-नीचादि जातिगत भेद-वैषम्य का निराकरण किया। भगीरथ ने जल विज्ञान की महत्ता को
समझकर धरती पर गंगावतरण के पुनीत पुरुषार्थ किया। पतंजलि ने योग विज्ञान की विविध
साधना मार्ग प्रस्तुत किए। अन्य ऋषियों ने भी व्यापक समाज हित के कार्य किए हैं
जिनका मानव जाति सदा ऋणी रहेगी।
ये सभी ऋषि भारतीय संस्कृति के उन्नायक, युग सृजेता, मुक्तिमार्ग का
पथ प्रदर्शक, राष्ट्रधर्म के संरक्षक, व्यष्टि-समष्टि
की समस्त गति, प्रगति और सद्गति के उद्गाता हैं। संसार के तमाम रहस्यमय
विद्याओं की खोज, उन पर प्रयोग, समाज में
सत्पात्रों को उनकी शिक्षा दीक्षा, उनकी सहायता से
अभिनव समाज निर्माण जैसे महत्त्वपूर्ण कार्य सब इन महान ऋषियों की ही देन हैं।
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