रविवार, 7 सितंबर 2014

ANNAT-CHATURDASHI


महाभारत की कथा के अनुसार दुर्योधन ने जुए में युधिष्ठिर को छल से हरा दिया। युधिष्ठिर को अपना राज-पाट त्यागकर पत्नी एवं भाईयों सहित 12 वर्ष वनवास एवं एक वर्ष के अज्ञातवास पर जाना पड़ा। वन में पाण्डवों को बहुत ही कष्टमय जीवन बिताना पड़ रहा था। एक दिन भगवान श्री कृष्ण पाण्डवों से मिलने वन में पधारे।

युधिष्ठिर ने भगवान श्री कृष्ण से कहा कि हे मधुसूदन इस कष्ट से निकलने का और पुनः राजपाट प्राप्त करने का कोई उपाय बताएं। भगवान ने कहा कि आप सभी भाई पत्नी समेत भद्र शुक्ल चतुर्दशी के दिन व्रत रखकर अनंत भगवान की पूजा करें। 'यह व्रत इस वर्ष 8 सितम्बर को है।' इस व्रत का नाम अनंत चतुर्दशी है।युधिष्ठिर ने पूछा कि अनंत भगवान कौन हैं इनके बारे में बताएं। इसके उत्तर में श्री कृष्ण ने बताया कि यह भगवान विष्णु ही हैं। चतुर्मास में भगवान विष्णु शेषनाग की शैय्या पर अनंत शयन में रहते हैं। अनंत भगवान ने वामन रूप धारण करके दो पग में ही तीनों लोकों को नाप लिया था।

इनके ना तो आदि का पता है न अंत का इसलिए भी यह अनंत कहलाते हैं। इनकी पूजा से नश्चित ही आपके सारे कष्ट समाप्त हो जाएंगे। युधिष्ठिर ने परिवार सहित यह व्रत किया और पुनःराज्यलक्ष्मी ने उन पर कृपा की। युधिष्ठिर को अपना खोया हुआ राज-पाट फिर से मिल गया।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें