वेद की दिव्यता
देखिये, और दुसरों को भी
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1- आग, कर्ज और शत्रु यदि किंचित मात्र भी शेष रह जाते
हैं तो फिर से बढ़ जाते हैं, इसलिए उन्हें
पूरी तरह से खत्म कर देना चाहिए।
2- पृथ्वी में
तीन रत्न हैं - जल, अन्न और सुभाषित,
किन्तु मूर्ख जन पत्थर के टुकड़ों को ही रत्न
समझते हैं।
3- वन में न तो
सिंह का राज्यभिषेक होता है न ही उसे राजा घोषित करने के लिए कोई संस्कार (उत्सव)।
सिंह स्वयं के सत्त्व (गुण) और विक्रम के द्वारा जंगल का राजा बन जाता है।
4- वन में आग
लगने पर जो हवा का झौंका उसको बढ़ाने के लिए उसका सहायक बन जाता है वही हवा का
झौंका छोटे से दीपक की ज्वाला को बुझा देता है, अर्थात सबल के सभी साथी होते हैं।
5- विद्या,
धन और शक्ति जहाँ एक खल (दुर्जन) को विवादी,
अहंकारी और अत्याचारी बनाते हैं वहीं वे एक
साधु (सज्जन) को ज्ञानी, दानी और रक्षक
बनाते हैं।
6- दुर्बल का बल
राजा होता है, बालक (शिशु) का
बल उसका रोना होता है, मूर्ख का बल मौन
(कुछ बोलकर अपनी मूर्खता प्रकट करने के स्थान पर चुप रह कर अपनी मूर्खता छिपाना)
होता है और चोर का बल असत्य भाषण (झूठ बोलना) होता है।
7- देवी-देवताओं
को घोड़े की नहीं, हाथी की नहीं,
व्याघ्र (सिंह) की नहीं, मात्र बकरे की बलि दी जाती है, कमजोर की रक्षा भगवान भी नहीं करते।
8- व्यास की
कीर्तिस्वरूप अठारह पुराणों का सार है - परोपकार ही पुण्य है और दूसरों को पीड़ा
देना ही पाप। (कहा भी गया है "परहित सरिस धरम नहि भाई, परपीड़ा सम नहि अधिकाई।)
9- ईश्वर के
द्वारा निर्मित हिमालय से इंदु सरोवर (हिन्द महासागर) तक के क्षेत्र को
हिन्दुस्तान के नाम से जाना जाता है।
10- समस्त पृथ्वी के वासियों को इस देश में जन्मे
पूर्वपुरुषों (ऋषि मुनियों) से सच्चरित्रता के साथ जीवनयापन की शिक्षा ग्रहण करनी
चाहिए।
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