शास्त्रानुसार
संतान सप्ति का पर्व भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष सप्तमी तिथि को मनाया जाता है।
शास्त्रों में संतान सप्ति के दिन शिव तथा गौरी की आराधना का विधान है। इस दिन पर
किए गए पूजन व्रत और उपाय से निसंतान को संतान की प्राप्ति होती है तथा संतान के
सुखों में वृद्धि होती है और संतान के कष्टों का निवारण होता है। यह पर्व मूलतः
निसंतान दंपति हेतु कल्याण कारक है। इस व्रत को करने से सन्तान के सुखों में
वृद्धि होती है। व्यक्ति के पापों का नाश होता है। नियमपूर्वक जो कोई भी व्यक्ति
संतान सप्तमी का व्रत करता है तथा शिव और पार्वती की सच्चे मन से आराधना करता है,
निश्चय ही अमर पद प्राप्त करके अन्त में शिवलोक
को जाता है। इस व्रत को 'मुक्ताभरण'
भी कहते हैं।
संतान सप्तमी का
पौराणिक मत: इस व्रत का आलेख करते हुए श्री कृष्ण ने युधिष्ठिर को बताया था। एक
समय में लोमश नामक ऋषि मथुरा पधारे। देवकी और वासुदेव ने श्रद्धापूर्वक लोमश ऋषि
की सेवा की। सेवा से प्रसन्न होकर लोमश ऋषि ने देवकी और वसुदेव को कंस द्वारा मारे
गए पुत्रों के शोक से उबरने हेतु 'संतान सप्तमी' के व्रत करने की सलाह दी। लोमश ऋषि ने देवकी और वसुदेव को
राजा नहुष तथा उनकी पत्नी चंद्रमुखी के बारे में भी बताया और ये भी कहा के यह व्रत
नहुष और चंद्रमुखी द्वारा भी रखा गया था तथा इस व्रत के प्रताप से उनके भी पुत्र
नहीं मरे। लोमश ऋषि ने देवकी और वसुदेव को यह आश्वासन दिया के इस व्रत करने से वो
भी पुत्र शोक से मुक्त पांएगे।
संतान सप्तमी
व्रत पूजन और उपाय: इस वर्ष संतान सप्तमी 1 सितम्बर, 2014 को सोमवार के दिन मुक्ता भरण किया जाएगा। इस सप्तमी के व्रत को करने वाले को प्रात:काल
में स्नान और नित्यक्रम से निवृ्त होकर, स्वच्छ वस्त्र धारण करने चाहिए। इसके पश्चात प्रात काल में भगवान शंकर और
पार्वती की पूजा अर्चना करनी चाहिए। इस दिन श्री कृष्ण तथा उनकी पत्नी जाम्बवती
तथा उनके बच्चे साम्ब की पूजा भी की जाती है। इस व्रत का विधान दोपहर तक रहता है।
इस दिन एक समय का भोजन करें, दोपहर के समय
चंदन, अक्षत, धूप, दीप, नैवेध, सुपारी तथा नारियल आदि से शिव-पार्वती की पूजा
करें। नैवेद्ध के रुप में खीर-पूरी तथा गुड़ के पुए का भोग लगाएं। संतान की रक्षा
की कामना करते हुए गौरी-शंकर को मौली चढ़ाएं। गौरी-शंकर को अर्पित कि हुई मौली
वरदान के रूप में स्वयं धारण करके व्रत कथा सुनें।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें