अजब हैरान हूं भगवन, तुम्हें कैसे रिझाऊं
मैं
कोई वस्तु नहीं ऐसी, जिसे सेवा में लाऊं मैं
कोई वस्तु नहीं ऐसी, जिसे सेवा में लाऊं मैं
करूं किस तौर आवाहन, कि तुम मौजूद हो हर जां,
निरादर है बुलाने को, अगर घंटी बजाऊं मैं ||1||
निरादर है बुलाने को, अगर घंटी बजाऊं मैं ||1||
लगाना भोग कुछ तुमको, एक अपमान करना है,
खिलाता है जो सब जग को, उसे कैसे खिलाऊं मैं ||3
खिलाता है जो सब जग को, उसे कैसे खिलाऊं मैं ||3
,,,अजब हैरान हूं भगवन, तुम्हें कैसे रिझाऊं
मैं
कोई वस्तु नहीं ऐसी, जिसे सेवा में लाऊं मैं
कोई वस्तु नहीं ऐसी, जिसे सेवा में लाऊं मैं
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