चौंसठ
योगिनी पूजन
एक श्वेत वस्त्र
पर रोली से चौंसठ खाने बनाकर एक - एक खाने में एक - एक योगिनियों को स्थित करें ।
इनके नाम क्रम से यह हैं -
१. गजानना,
२. सिंहमुखी, ३. गृहस्था, ४. काकतुंडिका,
५. उग्रग्रीवा, ६. हयग्रीवा, ७. वाराही, ८. शरमानना,
९. उलूकी, १०. शिवाख्या, ११. मयूरा, १२. विकटानन,
१३. अष्टवक्रा, १४. कोटराक्षी, १५. कुब्जा, १६. विकटलोचना,
१७. शुष्कोदरी, १८. ललजिह्वा, १९. श्वेतदष्ट्रा, २०. वानरानना,
२१. ऋक्षाक्षी, २२. केकरा, २३. वृहत्तुन्डा,
२४. सुराप्रिया, २५. कपालहस्ता, २६. रक्ताक्षी, २७. शुक्री,
२८. श्येनी, २९. कपोतिका, ३०. पाशहस्ता, ३१. दण्डहस्ता,
३२. प्रचण्डा, ३३. चण्डविक्रमा, ३४. शिशुघ्री, ३५. पापहन्त्री,
३६. काली, ३७. रुधिर पायिनि, ३८. वसोधरा, ३९. गर्भभक्षा,
४०. हस्ता, ४१. ऽऽ न्त्रमालिनी, ४२. स्थूलकेशी, ४३. वृहत्कुक्षिः, ४४. सर्पास्या,
४५. प्रेतहस्ता, ४६. दशशूकरा, ४७. क्रौञ्ची, ४८. मृगशीर्षा,
४९. वृषानना, ५०. व्वात्तास्या, ५१. धूमिनि, श्वाषाः, ५२. व्यौमैकचरणा, ५३. उर्ध्वदृक्, ५४. तापनी, ५५. शोषिणी
दृष्टि, ५६. कोटरी, ५७. स्थूल नासिका, ५८. विद्युत्प्रभा, ५९. बलाकास्या, ६०. मार्जारी,
६१. कटपूतना, ६२. अट्ठाटटहासा, ६३. कामाक्षी, ६४. मृगाक्षी
मृगलोचना ।
स्थलमातृका पूजन
स्थलमातृका
पूजन
१. ब्राह्मी,
२. माहेश्वरी, ३. कौमारी, ४. वैष्णवी,
५. वाराही, ६. इन्द्राणी, ७. चामुण्डा - ये सात स्थल मात्रुकाओं का नाम लेकर पूर्ववत् कहे हुए रीति से
आह्वान पूजनादि करना चाहिए ।
अधिदेवता
पूजन
ईश्वर शिवा,
स्कन्द, विष्णु, ब्रह्मा, इन्द्र, यम, काल, चित्रगुप्त - ये क्रम से नवग्रहों के दक्षिण
भाग में स्थापित कर पूजन करें ।
प्रत्यधि
देवता पूजन
अग्नि, जल, पृथ्वी, विष्णु, इन्द्र इन्द्राणी, प्रजापति, सर्प, ब्रह्मा ये क्रम से नवग्रहों के वाम भाग में
स्थापित कर पूजन करें ।
पञ्चलोक
पाल
१. गणपति,
२, दुर्गा, ३. वायु. ४. आकाश
और ५. अश्विनी कुमार । पंचलोक पालों को नौ ग्रहों के उत्तर भाग में आह्वान स्थापन
तथा पूजनादि करना चाहिए ।
दश
दिकपाल
१. इन्द्र,
२. अग्नि, ३. यम, ४. नऋति, ५. वरुण, ६. वायु. ७. कुबेर. ८, ईश्व, ९. अनन्त और १०.
ब्रह्मा ।
दश दिकपालों को
दसों दिशाओं में स्थापित करें ।
श्री
कार्तिकेय पूजन
जहाँ देवी का आसन
( रक्त वस्त्र ) है उसी के सामने नीचे की ओर षडानन स्वामी कार्तिकेय का पूजन करना
चाहिए ।
बिल्व
पत्र पूजन
बिल्व वृक्ष की
एक डाल काटकर लाए और आसन के ऊपर छाया की भाँति लगा दें । अभाव में २ - ३ पत्तियों
की ९ पंखुड़ियाँ ही लाकर वस्त्र पर रख ध्यान करें -
ॐ चतुर्भुज बिल्व
वृक्षः रजताभ्याम् वृषस्थितम् ।
नानालंकार
संयुक्तं जटामण्डल धारिणीम् ॥
' ॐ बिल्व वृक्षाय
नमः ' कहकर पूजन करें । फिर
प्रार्थना करें - ॐ श्री फलोऽसि महाभाग सदात्वं शंकर प्रिये कामाक्ष्या रोपनार्थाय
त्वांमहं वरये प्रभो ।
अब पूजनकर्त्ता भावना करके वृषभ, त्रिशूल
और डमरु का भी पूजन करें । तदनन्तर महालक्ष्मी, महासरस्वती तथा महाकाली का पूजन
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