मंगलवार, 30 सितंबर 2014

हनुमान की मां पार्वती बनी उनकी पूंछ।

भोले शंकर ने माता पार्वती का मनोरथ पूर्ण करने के लिए कुबेर से कहलवाकर स्वर्ण का भव्य महल बनवाया। रावण की दृष्टि जब इस महल पर पड़ी तो उसने सोचा इतना सुंदर महल तो त्रिलोकी में किसी के पास नहीं है। अत: यह महल तो मेरा होना चाहिए। वह ब्राह्मण का रूप धार कर अपने इष्ट भोले शंकर के पास गया और भिक्षा में उनसे स्वर्ण महल की मांग करने लगा।

भोले शंकर जान गए की उनका प्रिय भक्त रावण ब्राह्मण का रूप धार कर उनसे महल की मांग कर रहा है। द्वार पर आए ब्राह्मण को खाली हाथ लौटाना उन्हें धर्म विरूध लगा क्योंकि शास्त्रों में वर्णित है द्वार पर आए हुए याचक को कभी भी खाली हाथ या भूखे नहीं जाने देना चाहिए। भूलकर भी अतिथि का अपमान मत करो। हमेशा दान के लिए हाथ बढाओ। ऐसा करने से सुख, समृद्धि और प्रभु कृपा स्वयं तुम्हारे घर आएंगी परन्तु याद रहे दान के बदले मे कुछ पाने की इच्छा न रखें। निर्दोष हृदय से किया गया गुप्त दान महाफल प्रदान करता है।
भोले शंकर ने खुशी-खुशी महल रावण को दान में दे दिया। जब पार्वती जी को ज्ञात हुआ की उनका प्रिय महल भोले शंकर ने रावण को दान में दे दिया है तो वह खिन्न हो गई। भोले शंकर ने उनको मनाने का बहुत प्रयत्न किया मगर वह न मानीं। जब सभी प्रयास विफल हो गए तो उन्होंने पार्वती जी को वायदा किया की त्रेतायुग में जब राम अवतार होगा तो मैं वानर का रूप धर कर हनुमान का अवतार लूंगा। तब आप मेरी पूंछ बन जाएं।

 राक्षसों का संहार करने के लिए प्रभु राम की माया से रावण माता सीता का हरण कर ले जाएगा तो मैं माता सीता की खोज खबर लेने तुम्हारे स्वर्ण महल में आऊंगा जोकि भविष्य में सोने की लंका के नाम से विख्यात होगी। उस समय तुम मेरी पूंछ के रूप में लंका को आग लगा देना और रावण को दण्डित करना। पार्वती जी मान गई। इस तरह भोले शंकर बने हनुमान और मां पार्वती बनी उनकी पूंछ।

ये प्रसंग भी शिव के श्री हनुमान अवतार और लंकादहन का एक कारण माना जाता है।

वेद व्यास से मिला वरदान द्रौपदी के जीवन का सबसे बड़ा अभिशाप

वेद व्यास से मिला वरदान द्रौपदी के जीवन का सबसे बड़ा अभिशाप बन गया,
जब वेद व्यास ने द्रौपदी से कहा कि उसकी पांच शादियां होंगी तो द्रौपदी ने उनकी बात यह कहकर टाल दी कि जिस समाज में  स्त्री के एक से अधिक पति होते हैं उसे उस समाज में निकृष्ट समझा जाता है. पर अंतत: वेद व्यास की भविष्यवाणी सत्य हुई और द्रौपदी पांचों पांडव भाईयों से विवाह करके पांचाली बनी.


स्वंयवर में अर्जुन द्वारा द्रौपदी को जीतने के बाद जब पांचों भाई द्रौपदी को साथ लेकर कुंती के पास पहुंचे तो कुंती किसी काम में व्यस्त थीं.  उत्साहित पांडवों ने अपनी मां से कहा मां देखो हम क्या लाए हैं”! उनकी मां ने बिना ये देखे कि किस विषय में बात हो रही है, अपने पुत्रों से कहा कि वे जो भी लाए हैं उसे आपस में बांट लें. पांडवों के लिए मां का वचन टालना संभव नहीं था इसलिए द्रौपदी को  सिर्फ अर्जुन के बजाए पांचों भाईयों की पत्नी बनना स्वीकार करना पड़ा.


द्रौपदी के साथ पांडवों का विवाह स्वंय महर्षि वेद व्यास ने संपन्न करवाया. पांचों भाइयों की सुविधाको ध्यान में रखते हुए उनसे कहा कि द्रौपदी एक-एक वर्ष के लिए सभी पांडवों के साथ रहेंगी और जब वह एक भाई से दूसरे भाई के पास जाएगी तो उसका कौमार्य फिर से वापस आ जाएगा.
वेद व्यास ने पांडवों के समक्ष यह भी शर्त रखी कि जब द्रौपदी एक भाई के साथ पत्नी के तौर पर रहेंगी तब अन्य चार भाई उनकी तरफ नजर उठाकर भी नहीं देखेंगे. ऐसा कहा जाता है कि अर्जुन को वेद व्यास की ये शर्त और पांचाली का पांडवों से विवाह करना पसंद नहीं आया और यही वजह है कि पति के रूप में कभी भी अर्जुन द्रौपदी के साथ सामान्य नहीं रह पाए.



 द्रौपदी के लिए भी पांच पतियों के साथ सामन्जस्य बैठाना ताउम्र कठिन रहा. पांच पति होने के बावजूद द्रौपदी ताउम्र अपने पति के प्यार के लिए तरसती रहीं. वह हर साल अलग-अलग अपने पतियों के साथ रहती और उनके शयन कक्ष की शोभा बढ़ाती, लेकिन वह दिल से किसी की भी न हो सकीं.

कुछ विद्वानों का यह भी कहना है कि स्वंयवर से पहले ही द्रौपदी को उन राजकुमारों की हाथ से बनी तस्वीरें दिखाई जा चुकी थीं जो स्वयंवर की प्रतियोगिता में हिस्सा लेने जा रहे थे. इन राजकुमारों में से द्रौपदी को कर्ण सबसे प्रभावी लगे और मन ही मन वे उन्हें अपना पति बनाने का सपना भी देखने लगीं, पर स्वंयवर के समय जब  कर्ण अपनी विद्या का प्रदर्शन करने के लिए आगे आए तो द्रौपदी के भाई ने उन्हें यह कहकर रोक लिया कि इस स्वयंवर में सिर्फ राजकुमार ही भाग ले सकते हैं और वह एक सूतपूत्र है. इस तरह द्रौपदी की इच्छा दिल में ही दबकर रह गई.

शनिवार, 27 सितंबर 2014

देवी पुराण : जानें, शिवा कैसे बनी महाकाली, ऐसे भेजा शिव ने विवाह का प्रस्ताव

देवी पुराण :
उज्जैन। देवी की आराधना करने वाले ये मानते हैं कि इस ब्रह्मांड को संभालने वाली और इसका मूल माता आदिशक्ति हैं। पार्वती को ही मां आदिशक्ति या जगतमाता कहा जाता है। यूं तो शिवजी और पार्वतीजी से जुड़ी अनेक रोचक कथाएं हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि मां सती के यज्ञ में आहूत हो जाने के बाद शिव व पार्वती का मिलन कैसे हुआ और क्यों व कब से उन्हें महाकाली कहा जाने लगा। यदि नहीं तो आइए आज आपको बताते हैं देवी पुराण का एक रोचक किस्सा कि कैसे पार्वती को मिला महाकाली नाम व क्यों हैं वे शव वाहना.....

देवी पुराण के अनुसार एक समय की बात है। हिमालय और उनकी पत्नी मेना ने त्रिलोक की माता सनातनी दुर्गा की तपस्या कर उन्हें पुत्री रूप में प्राप्त करने की कामना की। उन दोनों की तपस्या से प्रसन्न होकर स्वयं ब्रह्मरूपा जगदंबा मेना के गर्भ में आई। देवी मेना ने शुभ दिन में कमल के समान मुखवाली, सुंदर प्रभावाली जगन्माता भगवती को पुत्री रूप में जन्म दिया।
जब पर्वतराज ने सुना कि उनके घर तीन नेत्रों वाली, आठ भुजाओं वाली माथे पर चंद्र धारण किए कन्या ने जन्म लिया है। वे समझ गए कि उनके घर सूक्ष्मा परा-प्रकृति ने ही अपनी लीला से उनके यहां अवतार ग्रहण किया है। उन्होंने मां जगदंबा से सामान्य रूप में आने की प्रार्थना की। माता ने एक सुंदर कन्या का रूप धारण कर लिया। इसके बाद माता ने जगदंबा ने हिमालय और मेना देवी को ब्रह्माज्ञान और तत्वज्ञान दिया। फिर वे एक सामान्य बच्ची की तरह अपनी मां का दूध पीने लगी।
              जब शिवजी करने लगे सती की वापसी के लिए तपस्या- सती के चले जाने के बाद शिवजी अक्सर ध्यान मग्र ही रहा करते थे। इस तरह शिवजी को सती के वियोग में देखकर नारदजी चिंतित हुए। उन्होंने सोचा कि उन्हें शिव को योग से जगाकर ये बता देना चाहिए कि माता सती फिर से जन्म ले चुुकीं हैं।

इतना विचार कर नारदजी शिवजी को माता के जन्म का समाचार देते हैं। शिव समाधी से उठते ही पूछने लगते हैं कहां है मेरी सती। यहां ग्रंथकार ने कहा है कि आदि से लेकर अनंत तक शिव और पार्वती की तरह न कोई पति-पत्नी हुए न होंगे। इनका प्रेम व दांपत्य अद्वितीय है। इसके बाद नारद जी राजा हिमाचल के पास जाते हैं और उन्हें ये समझाते हैं कि पार्वती के रूप में सती ने जन्म लिया है और ये शिव की अद्र्धांगिनी बनेगी। नारद मुनि का समाचार सुनकर शिवजी ने भी सती को वापस पाने के लिए हिमाचल के एक शिखर पर तपस्या करने का मन बनाया। शिवजी ने यह संदेश हिमालय को पहुंचाया।
शिवजी के पास कब और कैसे पहुंची पार्वतीजी - शिवजी के आने का समाचार सुनते ही हिमालय ने अपने अधीनस्थों को आज्ञा दी कि जहां से गंगा का अवतरण हुआ है। वहां कोई नहीं जाएगा। जो भी वहां जाएगा वह दंड का भागी होगा। समय आने पर शिव जी वहां आए और तपस्या में लीन हो गए। इधर पार्वतीजी भी दिन-प्रतिदिन विवाह योग्य हो रही थी। एक दिन जगन्माता पार्वती ने स्वयं कहा कि मैं तपस्या में लीन शिवजी के समक्ष जाऊंगी। जब पार्वती ने ऐसा कहा तो उनकी माता मेना रोने लगीं। उनसे कहने लगी माता आप मुझे छोड़कर वन न जाएं।


पार्वतीजी ने उन्हें समझाया और हिमालय के उस शिखर की और निकल पड़ीं। जहां शिवजी तपस्या में रत थे। पार्वती माता वहीं वन में रहने लगीं। महादेवी शिव के समीप रहकर उनकी सेवा तो कर रही थी, लेकिन शिव उन पर प्रसन्न नहीं हुए। इससे सारे देवता भी बहुत चिंतित हो गए, क्योंकि उस समय तीनों लोकों में तारकासुर ने ब्रह्मा से मिले वरदान के कारण हाहाकार मचा रखा था। उसने इंद्र को पराजित कर उसका सिंहासन छिन लिया था। तीनों लोकों में उसका अत्याचार बढ़ता ही जा रहा था। सभी देवता ये जानते थे कि इस राक्षस का संहार सिर्फ शिव के पुत्र ही कर सकते हैं। इसलिए देवताओं ने एक उपाय करने की सोची।पार्वतीजी ने उन्हें समझाया और हिमालय के उस शिखर की और निकल पड़ीं। जहां शिवजी तपस्या में रत थे। पार्वती माता वहीं वन में रहने लगीं। महादेवी शिव के समीप रहकर उनकी सेवा तो कर रही थी, लेकिन शिव उन पर प्रसन्न नहीं हुए। इससे सारे देवता भी बहुत चिंतित हो गए, क्योंकि उस समय तीनों लोकों में तारकासुर ने ब्रह्मा से मिले वरदान के कारण हाहाकार मचा रखा था। उसने इंद्र को पराजित कर उसका सिंहासन छिन लिया था। तीनों लोकों में उसका अत्याचार बढ़ता ही जा रहा था। सभी देवता ये जानते थे कि इस राक्षस का संहार सिर्फ शिव के पुत्र ही कर सकते हैं। इसलिए देवताओं ने एक उपाय करने की सोची।
शिव और शिवा के मिलन के लिए देवताओं ने किया कौन सा उपाय- इंद्र और अन्य देवताओं ने शिवा और शिव के मिलन के लिए कामदेव का सहयोग लेने की सोची। इंद्र ने कामदेव से कहा आप सभी में प्रेमात्मक प्रवृति बढ़ाते हैं। आपको शिवजी में काम जगाकर सारे संसार की रक्षा करनी होगी। यह सुनकर वसन्त को साथ लेकर कामदेव अपनी पत्नी रति को लेकर शिव जी के पास पहुंचे। वहां कई दिनों तक रूकें। पर्वत के सारे प्राणि काम पीड़ित हो गए, लेकिन शिवजी का ध्यान भंग न हुआ। यह देख कामदेव खिन्न हो गए, उन्होंने तुरंत शिवजी पर कामबाण चलाया।
वह बाण सीधा भगवान शंकर के  वाम भाग में लगा। शिवजी समागम करने को उत्सुक हो गए। अपने मन पर यह प्रभाव देख शिवजी ने सोचा कि इस विकार का कारण क्या है। वे समझ गए कि कामदेव ने ही मेरा अतिक्रमण किया है। ऐसा सोचकर रुद्र क्रोध से जल उठे। उन्हें इस तरह क्रोधित देख कामदेव सहायता के लिए देवताओं को पुकारने लगे। सभी देवता शिवजी से शांत होने की प्रार्थना करने लगे, लेकिन शिवजी का तीसरा नेत्र खुल गया और कामदेव भस्म हो गए।
 कैसे शांत हुआ भगवान शंकर का क्रोध- शिवजी के नेत्र से निकली व अग्रि सारे ब्रह्मांड को जलाने लगी। कामदेव की यह दशा देखकर उनकी पत्नी रति रोने लगी। वह देवी पार्वती के पास पहुंची और उनसे अपने पति के लिए प्रार्थना करने लगी। माता पार्वती ने रति को शांत किया और उनके पति को जीवनदान दिलवाने का वादा कर शिवजी के पास पहुंची। वे बोली मुझ आद्यशक्ति ने आपको पाने के लिए कितना तप किया। फिर आपने कामदेव को क्यों नष्ट कर दिया। पार्वती के ये वचन सुनकर शिव आश्चर्य चकित रह गए। वे मुस्कुराने लगे और बोले में इस निर्जन वन में कितने दिनों से तपस्यारत हूं। आज मैं बहुत प्रसन्न हूं।

अपनी प्रिया सती को सामने देख रहा हूं। यह सुनकर देवी पार्वती बोलीं मैं पर्वतराज हिमालय के यहां जन्म लेकर आपको पतिरूप में प्राप्त करने आई हूं। यह बोलकर माता आद्यशक्ति शिवजी के सामने अपने दिव्य स्वरूप में प्रकट हुई। यह देखकर शिव रोमांचित और आनंदित हो गए। शिवजी बोले आप इस संपूर्ण जगत की माता हैं। शिवे मैं इसी वर के लिए आपसे प्रार्थना करता हूं। जहां-जहां आपका यह सुंदर कालीरूप स्थापित हो वहां मेरे हृदय में आप स्थापित हो और आप आज से इस संसार में शव वाहना मां महाकाली के नाम से विख्यात होंगी। यह सुनकर माता बोलीं ऐसा ही हो और फिर गौरी के रूप में परिणत हो गईं। उसके बाद शिवजी ने काम देव को फिर स्वस्थ कर दिया।
शिवजी ने कैसे पहुंचाया पार्वतीजी के पिता तक विवाह का प्रस्ताव- यह सब घटना होने के बाद शिवजी और पार्वतीजी तपस्या में लीन हो गए। दोनों ने एक-दूसरे का ध्यान करते हुए। लगभग तीन हजार साल तपस्या की। यह देखकर फिर देवता चिंतित हो गए। कामदेव ने दोनों से जाकर तपस्या से जागने की प्रार्थना की। पार्वतीजी ने कहा मैं अपने पिता की आज्ञा के बिना शिवजी को पतिरूप में स्वीकार नहीं कर सकती।


मां इतना कहकर अपनी सखियों के साथ अपने पिता के घर की ओर चल दीं। भगवान शिव ने पार्वती को प्राप्त करने के लिए सप्तऋिषियों का स्मरण किया। वे सभी महर्षि शिवजी के पास पहुंचे। उन्होंने महादेव से पूछा भगवन आप ने हम लोगों का स्मरण क्यों किया है। तब शिव ने कहा मेरी माया मुझे छोड़कर चली गई है। मैं उनसे विवाह करना चाहता हूं, लेकिन उनका कहना है कि जब उनके पति हिमालय मुझे बुलाकर उनका पाणिग्रहण नहीं करवाते हैं।

वो मुझे पत्नी रूप में प्राप्त नहीं होगी। इसलिए आप लोग जाइए और हिमालय से बात कीजिए। तब सारे महर्षि हिमालय के यहां पहुंचते हैं और हिमालय से अपनी पुत्री को शिवजी के लिए देने की प्रार्थना करते हैं। नारदजी एक बार फिर हिमालय को पार्वती के पूर्वजन्म में सती होने की कथा सुनाते हैं। तब हिमालय कहते हैं ऋषिगण में अपनी पुत्री को शिवजी की प्रिया बनाना चाहता हूं। आप किसी शुभ समय उनके पास जाएं और मेरा यह संदेश उन्हें दें।

शुक्रवार, 26 सितंबर 2014

सपने तथा उनसे प्राप्त होने वाले संभावित फल

              सपने तथा उनसे प्राप्त होने वाले संभावित फल

1- सांप दिखाई देना- धन लाभ
2- नदी देखना- सौभाग्य में वृद्धि
3- नाच-गाना देखना- अशुभ समाचार मिलने के योग
4- नीलगाय देखना- भौतिक सुखों की प्राप्ति
5- नेवला देखना- शत्रुभय से मुक्ति
6- पगड़ी देखना- मान-सम्मान में वृद्धि
7- पूजा होते हुए देखना- किसी योजना का लाभ मिलना
8- फकीर को देखना- अत्यधिक शुभ फल
9- गाय का बछड़ा देखना- कोई अच्छी घटना होना
10- वसंत ऋतु देखना- सौभाग्य में वृद्धि
11- स्वयं की बहन को देखना- परिजनों में प्रेम बढऩा
12- बिल्वपत्र देखना- धन-धान्य में वृद्धि
13- भाई को देखना- नए मित्र बनना
14- भीख मांगना- धन हानि होना
15- शहद देखना- जीवन में अनुकूलता
16- स्वयं की मृत्यु देखना- भयंकर रोग से मुक्ति
17- रुद्राक्ष देखना- शुभ समाचार मिलना
18- पैसा दिखाई- देना धन लाभ
19- स्वर्ग देखना- भौतिक सुखों में वृद्धि
20- पत्नी को देखना- दांपत्य में प्रेम बढ़ना
21- स्वस्तिक दिखाई देना- धन लाभ होना
22- हथकड़ी दिखाई देना- भविष्य में भारी संकट
23- मां सरस्वती के दर्शन- बुद्धि में वृद्धि
24- कबूतर दिखाई देना- रोग से छुटकारा
25- कोयल देखना- उत्तम स्वास्थ्य की प्राप्ति
26- अजगर दिखाई देना- व्यापार में हानि
27- कौआ दिखाई देना- बुरी सूचना मिलना
28- छिपकली दिखाई देना- घर में चोरी होना
29- चिडिय़ा दिखाई देना- नौकरी में पदोन्नति
30- तोता दिखाई देना- सौभाग्य में वृद्धि
31- भोजन की थाली देखना- धनहानि के योग
32- इलाइची देखना- मान-सम्मान की प्राप्ति
33- खाली थाली देखना- धन प्राप्ति के योग
34- गुड़ खाते हुए देखना- अच्छा समय आने के संकेत
35- शेर दिखाई देना- शत्रुओं पर विजय
36- हाथी दिखाई देना- ऐेश्वर्य की प्राप्ति
37- कन्या को घर में आते देखना- मां लक्ष्मी की कृपा मिलना
38- सफेद बिल्ली देखना- धन की हानि
39- दूध देती भैंस देखना- उत्तम अन्न लाभ के योग
40- चोंच वाला पक्षी देखना- व्यवसाय में लाभ
41- स्वयं को दिवालिया घोषित करना- व्यवसाय चौपट होना
42- चिडिय़ा को रोते देखता- धन-संपत्ति नष्ट होना
43- चावल देखना- किसी से शत्रुता समाप्त होना
44- चांदी देखना- धन लाभ होना
45- दलदल देखना- चिंताएं बढऩा
46- कैंची देखना- घर में कलह होना
47- सुपारी देखना- रोग से मुक्ति
48- लाठी देखना- यश बढऩा
49- खाली बैलगाड़ी देखना- नुकसान होना
50- खेत में पके गेहूं देखना- धन लाभ होना
51- किसी रिश्तेदार को देखना- उत्तम समय की शुरुआत
52- तारामंडल देखना- सौभाग्य की वृद्धि
53- ताश देखना- समस्या में वृद्धि
54- तीर दिखाई- देना लक्ष्य की ओर बढऩा
55- सूखी घास देखना- जीवन में समस्या
56- भगवान शिव को देखना- विपत्तियों का नाश


57- त्रिशूल देखना- शत्रुओं से मुक्ति
58- दंपत्ति को देखना- दांपत्य जीवन में अनुकूलता
59- शत्रु देखना- उत्तम धनलाभ
60- दूध देखना- आर्थिक उन्नति
61- धनवान व्यक्ति देखना- धन प्राप्ति के योग
62- दियासलाई जलाना- धन की प्राप्ति
63- सूखा जंगल देखना- परेशानी होना
64- मुर्दा देखना- बीमारी दूर होना
65- आभूषण देखना- कोई कार्य पूर्ण होना
66- जामुन खाना- कोई समस्या दूर होना
67- जुआ खेलना- व्यापार में लाभ
68- धन उधार देना- अत्यधिक धन की प्राप्ति
69- चंद्रमा देखना- सम्मान मिलना
70- चील देखना- शत्रुओं से हानि
71- फल-फूल खाना- धन लाभ होना
72- सोना मिलना- धन हानि होना
73- शरीर का कोई अंग कटा हुआ देखना- किसी परिजन की मृत्यु के योग
74- कौआ देखना- किसी की मृत्यु का समाचार मिलना
75- धुआं देखना- व्यापार में हानि
76- चश्मा लगाना- ज्ञान में बढ़ोत्तरी
77- भूकंप देखना- संतान को कष्ट
78- रोटी खाना- धन लाभ और राजयोग
79- पेड़ से गिरता हुआ देखना किसी रोग से मृत्यु होना
80- श्मशान में शराब पीना- शीघ्र मृत्यु होना
81- रुई देखना- निरोग होने के योग
82- कुत्ता देखना- पुराने मित्र से मिलन
83- सफेद फूल देखना- किसी समस्या से छुटकारा
84- उल्लू देखना- धन हानि होना
85- सफेद सांप काटना- धन प्राप्ति
86- लाल फूल देखना- भाग्य चमकना
87- नदी का पानी पीना- सरकार से लाभ
88- धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाना- यश में वृद्धि व पदोन्नति
89- कोयला देखना- व्यर्थ विवाद में फंसना
90- जमीन पर बिस्तर लगाना- दीर्घायु और सुख में वृद्धि
91- घर बनाना- प्रसिद्धि मिलना
92- घोड़ा देखना- संकट दूर होना
93- घास का मैदान देखना- धन लाभ के योग
94- दीवार में कील ठोकना- किसी बुजुर्ग व्यक्ति से लाभ
95- दीवार देखना- सम्मान बढऩा
96- बाजार देखना- दरिद्रता दूर होना
97- मृत व्यक्ति को पुकारना- विपत्ति एवं दुख मिलना
98- मृत व्यक्ति से बात करना- मनचाही इच्छा पूरी होना
99- मोती देखना- पुत्री प्राप्ति
100- लोमड़ी देखना- किसी घनिष्ट व्यक्ति से धोखा मिलना
101- गुरु दिखाई देना- सफलता मिलना
102- गोबर देखना- पशुओं के व्यापार में लाभ
103- देवी के दर्शन करना- रोग से मुक्ति
104- चाबुक दिखाई देना- झगड़ा होना
105- चुनरी दिखाई देना- सौभाग्य की प्राप्ति
106- छुरी दिखना- संकट से मुक्ति
107- बालक दिखाई देना- संतान की वृद्धि
108- बाढ़ देखना- व्यापार में हानि
109- जाल देखना- मुकद्में में हानि
110- जेब काटना- व्यापार में घाटा
111- चेक लिखकर देना- विरासत में धन मिलना
112- कुएं में पानी देखना- धन लाभ
113- आकाश देखना- पुत्र प्राप्ति
114- अस्त्र-शस्त्र देखना- मुकद्में में हार
115- इंद्रधनुष देखना- उत्तम स्वास्थ्य
116- कब्रिस्तान देखना- समाज में प्रतिष्ठा
117- कमल का फूल देखना- रोग से छुटकारा
118- सुंदर स्त्री देखना- प्रेम में सफलता
119- चूड़ी देखना- सौभाग्य में वृद्धि
120- कुआं देखना- सम्मान बढऩा
121- अनार देखना- धन प्राप्ति के योग
122- गड़ा धन दिखाना- अचानक धन लाभ
123- सूखा अन्न खाना- परेशानी बढऩा
124- अर्थी देखना- बीमारी से छुटकारा
125- झरना देखना- दु:खों का अंत होना
126- बिजली गिरना- संकट में फंसना
127- चादर देखना- बदनामी के योग
128- जलता हुआ दीया देखना- आयु में वृद्धि
129- धूप देखना- पदोन्नति और धनलाभ
130- रत्न देखना- व्यय एवं दु:ख 131- चंदन देखना- शुभ समाचार मिलना
132- जटाधारी साधु देखना- अच्छे समय की शुरुआत
133- स्वयं की मां को देखना- सम्मान की प्राप्ति
134- फूलमाला दिखाई देना- निंदा होना
135- जुगनू देखना- बुरे समय की शुरुआत
136- टिड्डी दल देखना- व्यापार में हानि
137- डाकघर देखना- व्यापार में उन्नति
138- डॉक्टर को देखना- स्वास्थ्य संबंधी समस्या
139- ढोल दिखाई देना- किसी दुर्घटना की आशंका
140- मंदिर देखना- धार्मिक कार्य में सहयोग करना
141- तपस्वी दिखाई- देना दान करना
142- तर्पण करते हुए देखना- परिवार में किसी बुर्जुग की मृत्यु
143- डाकिया देखना- दूर के रिश्तेदार से मिलना
144- तमाचा मारना- शत्रु पर विजय
145- उत्सव मनाते हुए देखना- शोक होना
146- दवात दिखाई देना- धन आगमन
147- नक्शा देखना- किसी योजना में सफलता
148- नमक देखना- स्वास्थ्य में लाभ
149- कोर्ट-कचहरी देखना- विवाद में पडऩा
150- पगडंडी देखना- समस्याओं का निराकरण
151- सीना या आंख खुजाना- धन लाभ 



स्वास्तिक चक्र"

हमारे हिन्दू सनातन धर्म में परम पवित्र ॐ के बाद ..... "स्वास्तिक चक्र" दूसरा सबसे पवित्र प्रतीक चिन्ह है...!

मुख्यत: स्वस्तिक की चारों भुजाएं चार दिशाओं, चार युगों, चार वेदों, चार वर्णों, चार आश्रमों, चार पुरुषार्थों, ब्रह्माजी के चार मुखों और हाथों समेत चार नक्षत्रों आदि की प्रतीक मानी जाती है।
स्वास्तिक , मानव जाति की सबसे प्राचीनतम धार्मिक प्रतीक चिन्हों में से एक है... और, यह सिर्फ हमारे हिंदुस्तान या हिन्दू धर्म में ही नहीं बल्कि.... मिस्र, बेबीलोन, ट्रॉय , सिन्धु घाटी और माया ... जैसी प्राचीनतम सभ्यताओं में भी इस्तेमाल किया जाता था.....!
चौंकाने वाले पुख्ता सबूत मौजूद हैं कि.... भारत की सभ्यता ...... मिस्र, बेबीलोन और माया सहित सभी प्राचीन सभ्यता से भी अधिक प्राचीनतम है ..... और, वास्तव में, अन्य सभी सभ्यताओं की जड़ में हिंदू सनातन धर्म ही है...!
असल में..... स्वास्तिक...... संस्कृत शब्द........ "" स्वस्तिका"" शब्द से निकला है..... जिसका अर्थ .... शुभ या भाग्यशाली वस्तु है.... और, इसे अच्छी किस्मत सूचित करने के लिए एक निशान के रूप में प्रयोग किया जाता है...!
अगर हम शब्दों की बात करें तो..... स्वास्तिका..... . तीन संस्कृत शब्दों के संयोजन के द्वारा बनी है ..... सु + अस्ति+का ....
इसमें ..."" सु "" का अर्थ होता है ...... अच्छा...
अस्ति का अर्थ होता है..... वर्तमान में ...
और, का का अर्थ होता है..... भविष्य में भी....!

कब्ज:

              कब्ज:
कब्ज से अभिप्राय है, कि मल-त्याग न होना, मल-
त्याग कम होना, मल में गांठें निकलना, लगातार पेट साफ
न होना, रोजाना टट्टी नहीं जाना, भोजन पचने के बाद
पैदा मल पूर्ण रूप से साफ न होना, टट्टी जाने के बाद पेट
हल्का और साफ न होना आदि को कब्ज कहते हैं।
कारण :
खानपान सम्बंधी गलत आदतें जैसे- समय पर भोजन
न करना, बासी और अधिक चिकनाई वाला भोजन,
मैदा आदि से बनाया गया मांसाहारी भोजन, भोजन में
फाइबर की कमी, अधिक भारी भोजन अधिक खाना, शौच
को रोकने की आदत, शारीरिक श्रम न करना, विश्राम
की कमी, मानसिक तनाव (टेंशन), आंतों का कमजोर
होना, पानी की कमी, गंदगी में रहना, मादक
द्रव्यों का सेवन, एलोपैथी दवाइयों के दुष्प्रभाव के
कारण, भोजन के साथ अधिक पानी पीने, मिर्च-मसालेदार
तथा तले हुए पदार्थ जैसे-पूरी-कचौड़ी, नमकीन, चाट-
पकौड़े खाने, अधिक गुस्सा, दु:ख आलस्य आदि कारणों से
कब्ज हो जाती है।
लक्षण :
कब्ज से पीड़ित रोगी को अनेक प्रकार के लक्षण
माने जाते हैं। जैसे- पेट में भारीपन होना , पेट में दर्द ,
भोजन में अरुचि (भोजन अच्छा न लगना), सुस्ती और
बेचैनी, जी मिचलाना , सिर में दर्द होना, पेट में दर्द होना,
चक्कर आना , खांसी, श्वास (दमा), बवासीर (अर्श)
आदि।
               भोजन तथा परहेज :
दालों में मूंग और मसूर की दालें, सब्जियों में कम से
कम मिर्च-मसालें डालकर परवल, तोरई, टिण्डा, लौकी,
आलू , शलजम, पालक और मेथी आदि को खा सकते हैं। आधे
से ज्यादा चोकर मिलाकर गेहूं तथा जौ की रोटी खाएं।
भूख से एक रोटी कम खाएं। अमरूद , आम, आंवला, अंगूर,
अंजीर, आलूचा, किशमिश, खूबानी और आलूबुखारा,
चकोतरा और संतरे, खरबूजा , खीरा, टमाटर , नींबू,
बंदगोभी, गाजर, पपीता, जामुन, नाशपाती, नींबू, बेल,
मुसम्मी, सेब आदि फलों का सेवन करें। दिन भर में 6-7
गिलास पानी अवश्य पीयें। मूंग की दाल
की खिचड़ी खायें। फाइबर से बने खाने की चीजें
का अधिक मात्रा में सेवन करें, जैसे- फजियां, ब्रैन (गेहूं,
चावल और जई आदि का छिलका), पत्ते वाली सब्जियां,
अगार, कुटी हुई जई, चाइनाग्रास और ईसबगोल
आदि को कब्ज से परेशान रोगी को खाने में देना चाहिए।
तले पदार्थ, अधिक मिर्च मसाले, चावल , कठोर
पदार्थ, खटाई, रबड़ी, मलाई, पेड़े आदि का सेवन न करें।
कब्ज दूर करने के लिए हल्के व्यायाम और टहलने
की क्रिया भी करें। पेस्ट्रियां, केक और मिठाइयां कम
मात्रा में खानी चाहिए।