शनिवार, 4 अक्टूबर 2014

दुर्गा शप्तशती-प्रभावी और तीव्र प्रभाव देने वाला चरित्र

                 भक्त जनों सादर-अभिनन्दन !कलियुग का प्रभाव वास्तव में द्रष्टिगोचर होने लगा है !विभिन्न पंचांग का निर्माण आज के नव ज्ञाता लोग कर रहे है -प्रत्येक पर्व -हल छठ ,श्री कृष्ण जन्माष्टमी ,अनंत चतुर्दशी .महालय, पितृ विसर्जन अमावस्या व विजय दसमी पर्व दो दो कर जन मानस को भ्रमित कर रहे है !आज के पेशेवर पंडितो से सावधान होने की जरूरत है ये अपना [उल्लू ]कार्य साधन ही करते है नर्क का भागी भी बनाते है !मनुष्य ही केवल विवेक शील प्राणी है !उसका सदुपयोग करे पतन की और न जाये !प्रति दिन त्रुटियाँ करने से ही सभी सदैव कष्ट में रहते है !आपका शुभेछु !

            किसी योग्य गुरु से दीक्षा ग्रहण करनी चाहिए। दीक्षा शब्द का अर्थ मात्र यही होता है कि एक व्यक्ति ने सीखया और दूसरे ने सही से सीख लियाहो तो इसे दीक्षा कह जाता है। एक दिन मे ना जाने कितनी दीक्षाए हम सब के बीच मे समप्न्न होती रहती है। यदि इससे भी ज्यादा कोई गुरु कृपा करे तो वह गुरु अपनी की गई साधना का कुछ अंश अपने शिष्य मे डाल देता है।                    दीक्षा भी ठीक ऐसे ही होती है जैसे किसी ने, अपनी मेहनत से कमाई सम्पति को किसी दूसरे व्यक्ति के नाम कर दिया। अब यह बात अलग है कि कितने प्रतिशत। गुरु दीक्षा के दौरान सभी क्रिया को समझाते है। यह किसी भी माध्यम से किया जा सकता है। किसी भी साधना की मुद्राएँ न्यास, यंत्र पुजन, माला पुजन, प्राण प्रतिष्ठा, पंचोपचार आदि की जानकारी गुरु करवाते है। साथ ही वो विधि प्रदान करते है जिससे साधना होगी और अवश्यकता होने पर यंत्र, माला भी आदि प्रदान करते है। केवल शरीर के त्याग के समय ही कोई गुरु अपनी सारी शक्ति को किसी शिष्य को दे सकता है। साधक स्वयं को श्री गुरु के चरणों में समर्पित कर अनवरत शक्ति-साधन हेतु यजन-पूजन धारा में बह चले तो फिर कुछ भी असंभव नहीं रहता है। 
  • पहले स्वयं की देह को शोधन किया जाता है और मंत्रो के द्वारा स्नान करता है।
  • पूजन स्थान का शोधन भी करना चाहिए है।
  • देह का शोधन करने हेतु आसन पर आसीन होकर प्राणायाम तथा भूत शुद्धि की क्रिया से अपने शरीर का शोधन करना चाहिए।
  • ईष्ट देवता की शरीर मे प्रतिष्ठा कर नाना प्रकार के न्यास इत्यादि कर अपने शरीर को देव-भाव से अभिभूत कर अपने ईष्ट देवता का अन्तर्यजन करता है। शास्त्रो मे इसलिए कहा जाता है कि 'देवम्‌ भूत्वा देवम्‌ यजेत' अर्थात्‌ देवता बनकर ही देवता कर ही किया जाता है। 
  • ईष्ट देवता बहिर्याग पूजन का मतलब यह है कि अन्दर तो देवता स्थापित है ही परंतु उसको बाहर लाकर बाहर भी पुजा करी जाती है। जैसे यंत्र आदि मे स्थापित देवता की पुजा करना।                     
        
    आह्वान कर मंत्र द्वारा संस्कार करना चाहिए इसके पश्चात पंचोपचार, षोडषोपचार अथवा चौसठ उपचारों के द्वारा महाविद्या यंत्र में स्थित देवताओं का पूजन कर, उसमें स्थापित देवता की ही अनुमति प्राप्त कर पुजन करना चाहिए। फिर अंतिम समय मे तर्पण करके, हवन वेदी को देवता मानकर अग्नि रूप में पूजन कर विभिन्न प्रकार के बल्कि द्रव्यों को भेंट कर उसे पूर्ण रूप से संतुष्ट करता है। इसके बाद देवता की आरती कर पुष्पांजलि प्रदान करता है। इसके कवच-सहस्रनामं स्त्रोत्र आदि का पाठ करके स्वयं को देवता के चरणों में आत्मसमर्पित करता है। पश्चात देवता के विसर्जन की भावना कर देवता को स्वयं के हृदयकमल में प्रतिष्ठित कर लेता है और शेष सामग्रीयो को किसी जल मे प्रवाहित कर दे।
    - दुर्गा शप्तशती के प्रयोग 

    दुर्गा शप्तशती आज के कलयुग में एक बहुत ही प्रभावी और तीव्र प्रभाव देने वाला चरित्र है इसको यदि समुचित तरीके से प्रयोग किया जाये तो एक व्यक्ति को उसके सभी प्रश्नों और समस्यायों का निवारण इसके श्लोकों में निहित है -!
    मेरा अपना मानना तो ये हैं की इस पुस्तक कि जरुरत हर एक घर में है और साथ ही इसके विधानों कि जानकारी भी प्रत्येक मनुष्य के लिए आवश्यक है -!
    लेकिन विधि का विधान भी बहुत बड़ा है - मैंने स्पष्ट देखा है कि यदि आपके भाग्य में कष्ट लिखा हुआ है तो सामने आपका समाधान लिए हुए कोई व्यक्ति खड़ा है और बार - बार दोहरा रहा है कि ऐसे कर लो तो समस्यायों से मुक्त हो जाओगे लेकिन आपके पास समय ही नहीं होता कि आप किसी कि बात सुन सकें या किसी विधान को कर सकें -!


    आज का समाज इतना भौतिक हो गया है कि सभी खुश रहना चाहते हैं लेकिन खुद को खुश रखने के लिए जब प्रयास करने कि बारी आती है तो प्रतिनिधि तलाश करने लग जाते हैं जो उनके बदले कुछ ले देकर जो भी करना है कर दे और जिसका फल उन्हें मिल जाये -!
    लेकिन कोई भी ये नहीं सोचता कि ऐसा कैसे सम्भव हो सकता कि करे कोई और पाये कोई और - इसलिए अपने लिए समय आप ही निकालें - इस दुनिया का नियम है और सबको पता भी है की जितनी मेहनत आप करेंगे - सुख भी उसका उतना ही आप भोगेंगे - इसलिए जहाँ जरुरत महसूस हो वहाँ अपने पुरोहित या जानकारों कि मदद अवश्य लें संकोच न करें - लेकिन जहाँ जरुरत न हो वहाँ हर विधान को खुद ही पूरा करने कि कोशिश करें - क्या पता आप जिस उद्देश्य से या जिस इच्छा कि पूर्ति के लिए धन देकर प्रतिनिधि खरीद रहे हैं वह प्रतिनिधि जिस विधान को करेगा तो उतनी आर्द्र भावना को व्यक्त करेगा भी या नहीं -!
    फिर क्या होगा ? परिणाम भी उसी भावना के अनुसार मिलेगा ना क्योंकि किसी भी साधना या आराधना में भावना प्रधान होती है -!


    नवरात्रों का आगमन होने ही वाला है इस क्रम में मैं कुछ विशिष्ट उपाय जो शप्तशती कि पुस्तक साथ रखकर किये जा सकते हैं वर्णित करने जा रहा हूँ - आशा करता हूँ कि माँ महामाया आप सबको उन्नति और समस्यारहित जिंदगी का वरदान अवश्य प्रदान करेंगी
    दुर्गा सप्तशती से कामनापूर्ति :-



    १. लक्ष्मी, ऐश्वर्य, धन संबंधी प्रयोगों के लिए पीले रंग के आसन का प्रयोग करें

    २. वशीकरण, उच्चाटन आदि प्रयोगों के लिए काले रंग के आसन का प्रयोग करें

    ३. बल, शक्ति आदि प्रयोगों के लिए लाल रंग का आसन प्रयोग करें

    ४. सात्विक साधनाओं, प्रयोगों के लिए कुश के बने आसन का प्रयोग करें


    ५. वस्त्र- लक्ष्मी संबंधी प्रयोगों में आप पीले वस्त्रों का ही प्रयोग करें

    ६. यदि पीले वस्त्र न हो तो मात्र धोती पहन लें एवं ऊपर शाल लपेट लें

    ७. आप चाहे तो धोती को केशर के पानी में भिगोंकर पीला भी रंग सकते हैं

    हवन करने से आपको ये लाभ मिलते हैं :- 

    १. जायफल से कीर्ति 

    २. किशमिश से कार्य की सिद्धि

    ३. आंवले से सुख और 

    ४. केले से आभूषण की प्राप्ति होती है।

    इस प्रकार फलों से अर्ध्य देकर यथाविधि हवन करें

    अ. खांड 

    ब. घी 

    स गेंहू 

    ड. शहद 

    य. जौ 

    र. तिल 

    ल. बिल्वपत्र 

    व. नारियल 

    म. किशमिश 

    झ. कदंब से हवन करें

    ५. गेंहूं से होम करने से लक्ष्मी की प्राप्ति होती है

    ६. खीर से परिवार वृद्धि 

    ७. चम्पा के पुष्पों से धन और सुख की प्राप्ति होती है

    ८. आवंले से कीर्ति 

    ९. केले से पुत्र प्राप्ति होती है

    १०. कमल से राज सम्मान 

    ११. किशमिश से सुख और संपत्ति की प्राप्ति होती है

    १२. खांड, घी, नारियल, शहद, जौं और तिल इनसे तथा फलों से होम करने से मनवांछित वस्तु की प्राप्ति होती है

    विधि :-

    व्रत करने वाला मनुष्य इस विधान से होम कर आचार्य को अत्यंत नम्रता के साथ प्रमाण करें और यज्ञ की सिद्धि के लिए उसे दक्षिणा दें। इस महाव्रत को पहले बताई हुई विधि के अनुसार जो कोई करता है उसके सब मनोरथ सिद्ध हो जाते हैं। नवरात्र व्रत करने से अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है।

    नवार्ण मंत्र को मंत्रराज कहा गया है और इसके प्रयोग भी अनुभूत होते हैं :-

    नर्वाण मंत्र :- 

    ।। ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ।।

    परेशानियों के अन्त के लिए :-

    ।। क्लीं ह्रीं ऐं चामुण्डायै विच्चे ।।

    लक्ष्मी प्राप्ति के लिए :-

    ।। ओंम ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ।।

    शीघ्र विवाह के लिए :-

    ।। क्लीं ऐं ह्रीं चामुण्डायै विच्चे ।।


    सप्त-दिवसीय श्रीदुर्गा-सप्तशती-पाठ


    सप्तशती :- जैसा कि नाम से ही पता चलता है कि ऐसा चरित्र या एक ऐसा संग्रह जो सात सौ (श्लोकों) का समूह है - दुर्गा शप्तशती में कुल सात सौ श्लोकों का संग्रह है -!

    इसमें पाठ करने का जो क्रम बताया गया है वह निम्न प्रकार है :-
    दिन
    अध्याय
    प्रथम
    अध्याय १
    द्वितीय
    अध्याय २
    तृतीय
    अध्याय ४
    चतुर्थ
    अध्याय ५
    पँचम
    अध्याय ९ -१०
    षष्ठ
    अध्याय ११
    सप्तम
    अध्याय १२ १३

     

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