भगवान शिव हिंदू
संस्कृति के प्रणेता हैं। वे आदिदेव महादेव हैं। हमारी सांस्कृतिक मान्यता के
अनुसार 33 करोड़ देवताओं में
शिरोमणि अलौकिक शक्ति देव शिव ही हैं। महाशिवरात्रि पर्व दरअसल भगवान शिवशंकर के
तांडव नृत्य का महापर्व है।
शिव शब्द का अर्थ
है 'कल्याण' और दानार्थक धातु से रात्रि बना है जिसका अर्थ
है सुख प्रदान करने वाला। यानी शिवरात्रि का अर्थ होता है वह रात्रि जो आनंद
प्रदायिनी है और जिसका शिव के साथ विशेष संबंध है।
ऐसी मान्यता है
कि जो व्यक्ति महाशिवरात्रि के व्रत पर भगवान शिव की भक्ति, दर्शन, व्रत पूजा नहीं
रखता वह सांसारिक माया, मोह के बंधन में
हजारों वर्षों तक उलझा रहता है। शिवरात्रि के व्रत के बारे में पुराणों में कहा
गया है कि इसका फल कभी किसी हालत में भी निरर्थक नहीं जाता है।
ऐसे करें व्रत
शिवरात्रि के दिन
प्रातः उठकर स्नानादि से निवृत होकर शिव मंदिर जाएं। वहां शिवलिंग का पूजन करें।
गीता में कहा गया
है कि
या निशां
सर्वभूतानां तस्या जागृर्ति संयंमी।
यस्यां जागृति
भूतानि सा निशा पश्चतो सुनेः।।
यानी विषयों से
युक्त सांसारिक लोगों की जो रात्रि है, उसमें संयमी लोग ही जागृत अवस्था में रहते हैं और जहां शिवपूजा का अर्थ पुष्प,
चंदन, एवं बिल्वपत्र, धतूरा, भांग आदि अर्पित कर भगवान शिव का जप व्रत करते
हुए एकाकार होना ही शिवपूजा है।
चार प्रहर चार
पूजा
महाशिवरात्रि में
चार प्रहरों में अलग-अलग विधि से पूजा का प्रावधान है। पहले प्रहर में भगवान शिव
की ईशान मूर्ति को दूध द्वारा स्नान कराएं, दूसरे प्रहर में उनकी अघोर मूर्ति को दही से स्नान करवाएं
और तीसरे प्रहर में घी से स्नान कराएं और चौथे प्रहर में शहद से स्नान कराना
चाहिए। शिव की पूजा करते
समय ऊँ नमः शिवाय कहिए और देवादिदेव महादेव का ध्यान करना चाहिए। शिवरात्रि के दिन
शिव को बादाम, कमल पुष्प,
अफीम बीज और धतुरे का पुष्प और बिल्वपत्र
चढ़ाना बहुत ही शुभ माना गया है
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