शनिवार, 4 अक्टूबर 2014

दुर्गा शप्तशती के किस अध्याय से किस कामना

इस प्रकार से सात दिनों में तेरहों अध्यायों का पाठ किया जाता है -!

१. पहले दिन एक अध्याय

२. दूसरे दिन दो अध्याय

३. तीसरे दिन एक अध्याय

४. चौथे दिन चार अध्याय

५. पाँचवे दिन दो अध्याय

६. छठवें दिन एक अध्याय

७. सातवें दिन दो अध्याय

पाठ कर सात दिनों में श्रीदुर्गा-सप्तशती के तीनो चरितों का पाठ कर सकते हैं !

श्रीदुर्गा-सप्तशती-पाठ विधि :-

सबसे पहले अपने सामने गुरुऔर गणेश जी आदि को मन-ही-मन प्रणाम करते हुए दीपक को जलाकर स्थापित करना चाहिए। फिर उस दीपक की ज्योति में भगवती दुर्गा का ध्यान करना चाहिए।

ध्यान :-

ॐ विद्युद्दाम-सम-प्रभां मृग-पति-स्कन्ध-स्थितां भीषणाम्।
कन्याभिः करवाल-खेट-विलसद्-हस्ताभिरासेविताम् ।।
हस्तैश्चक्र-गदाऽसि-खेट-विशिखांश्चापं गुणं तर्जनीम्।
विभ्राणामनलात्मिकां शशि-धरां दुर्गां त्रिनेत्रां भजे ।।


ध्यान के पश्चात् पंचोपचार / दशोपचार / षोडशोपचार से माता का पूजन करें - इसके बाद उपरोक्त वर्णित विधि के अनुसार शप्तशती का पाठ करें :-

पंचोपचार पूजन / दशोपचार पूजन / षोडशोपचार पूजन

आत्मशुद्धि

संकल्प

शापोद्धार

कवच

अर्गला

कीलक

शप्तशती पाठ ( दिवस भेद क्रम में )

तत्पश्चात माता से क्षमा प्रार्थना करें - क्षमा प्रार्थना का स्तोत्र भी आपको शप्तशती में ही मिल जायेगा - !

इसके द्वारा ज्ञान की सातों भूमिकाओं :-

१. शुभेच्छा

२. विचारणा

३. तनु-मानसा

४. सत्त्वापति

५. असंसक्ति

६. पदार्थाभाविनी

७. तुर्यगा

सहज रुप से परिष्कृत एवं संवर्धित होती है


इसके अतिरिक्त किस प्रकार कि समस्या निवारण के लिए कितने पाठ करें इसका विवरण निम्न प्रकार है :-

ग्रह-शान्ति हेतु ५ बार

महा-भय-निवारण हेतु ७ बार

सम्पत्ति-प्राप्ति हेतु ११ बार

पुत्र-पौत्र-प्राप्ति हेतु १६ बार

राज-भय-निवारण - १७ या १८ बार

शत्रु-स्तम्भन हेतु - १७ या १८ बार

भीषण संकट - १०० बार

असाध्य रोग - १०० बार

वंश-नाश - १०० बार

मृत्यु - १०० बार

धन-नाशादि उपद्रव शान्ति के लिए १०० बार




दुर्गा शप्तशती के अध्याय और कामना पूर्ति :-


तो अब हम बात करते हैं कि दुर्गा शप्तशती के किस अध्याय से किस कामना कि पूर्ति होती है :-

प्रथम अध्याय- हर प्रकार की चिंता मिटाने के लिए।

  1. द्वितीय अध्याय- मुकदमा झगडा आदि में विजय पाने के लिए।
  2. तृतीय अध्याय- शत्रु से छुटकारा पाने के लिये।
  3. चतुर्थ अध्याय- भक्ति शक्ति तथा दर्शन के लिये।
  4. पंचम अध्याय- भक्ति शक्ति तथा दर्शन के लिए।
  5. षष्ठम अध्याय- डर, शक, बाधा ह टाने के लिये।
  6. सप्तम अध्याय- हर कामना पूर्ण करने के लिये।
  7. अष्टम अध्याय- मिलाप व वशीकरण के लिये।
  8. नवम अध्याय- गुमशुदा की तलाश, हर प्रकार की कामना एवं पुत्र आदि के लिये।
  9. दशम अध्याय- गुमशुदा की तलाश, हर प्रकार की कामना एवं पुत्र आदि के लिये।
  10. एकादश अध्याय- व्यापार व सुख-संपत्ति की प्राप्ति के लिये।
  11. द्वादश अध्याय- मान-सम्मान तथा लाभ प्राप्ति के लिये।
  12. त्रयोदश अध्याय- भक्ति प्राप्ति के लिये।

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