रविवार, 19 अक्टूबर 2014

महालक्ष्मी पूजन-Mahalaxmi Pooja-२३.10.२०१४

मां लक्ष्मी के मंदिर में जाकर कमल पुष्प, गुलाब पुष्प, गन्ना, कमल गट्टे की माला इत्यादि दीपावली के दिन प्रात: चढ़ाकर यथाशक्ति श्रीसूक्त, लक्ष्मी सूक्त तथा कनकधारा स्तोत्र का पाठ करें। धन प्राप्ति के मार्ग खुलेंगे। कमल गट्टे लाल वस्त्र में बांधकर तिजोरी में रखें।दीपावली की रात्रि को पूजा में लाल कपड़े में बांधकर 11-11 सुपारी, काली हल्दी, पीली हल्दी, कौड़ी (संभव हो तो लक्ष्मी कौड़ी), गोमती चक्र तथा एक एकाक्षी नारियल रखें। दूसरे दिन यह पोटली तिजोरी या गल्ले में रख दें।


4. नौकरी-व्यवसाय में दिक्कत हो तो मीठा जल, कुछ मुटठी चने की दाल लक्ष्मीजी पर चढ़ाकर पश्चात पीपल की जड़ में चढ़ाकर अपनी समस्या बोलें। कार्यसिद्धि होगी।इच्छापूर्ति के लिए केसर, गोरोचन, कुंकु से दीपावली की प्रात: वटवृक्ष का पत्ता तोड़कर उस पर अपनी इच्‍छा लिखें तथा बहते जल में बहा दें। ऐसा 7 दिन लगातार करें। इच्छापूर्ति निश्चित होगी।                                                                                                 महालक्ष्मी पूजन-Mahalaxmi Pooja
महालक्ष्मी पूजनकर्ता स्नान करके कोरे अथवा धुले हुए शुद्ध वस्त्र पहनें, माथे पर  तिलक लगाएँ और शुभ मुहूर्त में पूजन शुरू करें। इस हेतु शुभ आसन पर पूर्व  या उत्तर दिशा की ओर मुँह करके पूजन करें। पूजन शुरू करने के पूर्व पूजन की समस्त सामग्री व्यवस्थित रूप से पूजा-स्थल पर रख लें। पूजन के दिन घर को स्वच्छ करके स्वयं भी पवित्र होकर सांयकाल में इनका पूजन करें ।    
पूजन पूर्वाभिमुख अथवा उत्तराभिमुख होकर करें, स्थापना यथासंभव ईशान कोण में करें ।

दीपावली पूजन सामग्री
सिंहासन (चौकी, आसन)
सफेद कपड़ा (आधा मीटर)
लाल कपड़ा (आधा मीटर)
लक्ष्मीजी की मूर्ति
गणेशजी की मूर्ति
विष्णु जी की मूर्ति
चाँदी का सिक्का
षोडशमातृका यन्त्र
नवग्रह बीसा यन्त्र
श्री यन्त्र
जल कलश-2(ताँबे या मिट्टी के)
वन्दनवार के लिए गन्ने
शुद्ध जल ताम्बे के पात्र में
अक्षत (चावल)
कुंकु (रोली)
पुष्प(गुलाब,गेंदा,चमेली आदि)
कमल पुष्प
पुष्पहार
चंदन
केसर (तीन-चार पत्तियां)
अष्टगंध (अगर,तगर,चन्दन,
कस्तूरी,रक्तचंदन,कुंकुम,देवदारु तथा केसर का मिश्रण)
दूध
दही
घृत (शुद्ध घी)
शहद (मधु)
शक्कर
पंचामृत
पान के पत्ते (2)
गंगाजल
सिंदूर
लक्ष्मीजी,गणेशजी,अम्बिका को अर्पित करने हेतु वस्त्र (अथवा नाडा या लाल कपडा)
उपवस्त्र (चूड़ी,टिकी आदि)
यज्ञोपवित
आभूषण (अंगूठी,पायजेब)
मधुपर्क (घर में रखे सोने चांदी के सिक्के तथा पैसे)
इत्र की शीशी
कुशा व दूर्वा
धूप बत्ती
अगरबत्ती
दीपक  (मुख्य, घी का)
नैवेद्य या मिष्ठान्न  (पेड़ा, मिठाई आदि)
सौभाग्य  द्रव्य- मेहँदी
नाड़ा
मौली
सुपारी
ऋतुफल  (गन्ना, सीताफल, सिंघाड़े इत्यादि)
तुलसी दल
बड़े दीपक के लिए तेल
ताम्बूल (सुपारी, लौंग व इलायची लगा पान का बीड़ा)
श्रीफल (नारियल)
धान्य (चावल, गेहूँ,जौ)
दीपक (21,11,31,..आदि )
बताशे
प्रशाद
थाल
कटोरियाँ
अष्टगंध मिश्रित जल
चन्दन मिश्रित जल
कपूर (आरती हेतु)
नयी कलम (लेखनी)
पंजिका (बही खाता या पुस्तिका )
नोट : जो सामग्री पूजन में उपलब्ध न हो उसके स्थान पर देवता के नाम मंत्र के साथ मनसा परिकल्प्य समर्पयामी’’ कहकर अक्षत(चावल) चढाएं ।
महालक्ष्मी पूजन विधि
पूजन के लिए किसी चौकी या साफ़ लाल वस्त्र पर महालक्ष्मी, गणेश एवं श्रीहरि की नवीन मुर्तियाँ स्थापित करें । माता लक्ष्मी की मूर्ति को मध्य में रखें, उनके दाहिने भाग में विष्णुजी एवं बाएं भाग में गणेश प्रतिमा स्थापित करें । साथ ही किसी कांसे के बर्तन में अष्टदलकमल बनाकर उसमे द्रव्यलक्ष्मी रखकर उस पात्र को भी स्थापित करें। समस्त मूर्तियां अक्षत पर स्थापित करें। गणेश एवं अंबिका की मूर्ति के अभाव में दो सुपारियों को धोकर, पृथक-पृथक नाड़ा बाँधकर कुंकु लगाकर गणेशजी के भाव से पाटे पर स्थापित करें। सर्वप्रथम मानसपूजा[1] करें। तदनंतर कर्मकांड आरम्भ करें।
पवित्रीकरण :
पवित्रीधारण करके बाएँ हाथ में जल लेकर दाहिने हाथ की अनामिका(छोटी ‌‍अँगुलि)‌ से निम्न मंत्र बोलते हुए अपने एवं पूजन सामग्री पर जल छिड़कें-
ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा ।
यः स्मरेत्‌ पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यंतरः शुचिः ॥
पुनः पुण्डरीकाक्षं, पुनः पुण्डरीकाक्षं, पुनः पुण्डरीकाक्षं ।
आसन :
निम्न मंत्र से अपने आसन पर उपरोक्त तरह से जल छिड़कें-
ॐ पृथ्वी त्वया घृता लोका देवि त्वं विष्णुना घृता ।
त्वं च धारय मां देवि पवित्रं कुरु च आसनम्‌ ॥
आचमन :
दाहिने हाथ में जल लेकर तीन बार पुष्प, चम्मच या अंजुलि से एक बूँद पानी अपने मुँह में छोड़िए और बोलिए -
ॐ केशवाय नमः स्वाहा, ॐ नारायणाय नमः स्वाहा, ॐ माधवाय नमः स्वाहा ।
यह बोलकर हाथ धो लें-
ॐ गोविन्दाय नमः हस्तं प्रक्षालयामि ।
स्वस्ति-वाचन :-निम्न मंगल मंत्र बोलें-
ॐ स्वस्ति न इंद्रो वृद्धश्रवाः स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः ।
स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्ट्नेमिः स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु ॥
द्यौः शांतिः अंतरिक्षं शांतिः पृथिवी शांतिरापः शांतिरोषधयः शांतिः।
वनस्पतयः शांतिर्विश्वे देवाः शांतिर्ब्रह्म शांतिः सर्व(गँ)शांतिः शांतिरेव शांति सामा शांतिरेधि।
यतो यतः समिहसे ततो नो अभयं कुरु । शंन्नः कुरु प्राजाभ्यो अभयं नः पशुभ्यः। सुशांतिर्भवतु ॥
ॐ सिद्धि बुद्धि सहिताय श्री मन्ममहागणाधिपतये नमः ॥
संकल्प :
अपने दाहिने हाथ में जल, पुष्प, अक्षत व द्रव्य लेकर श्री महालक्ष्मी आदि के पूजन का संकल्प करें-
ॐ विष्णवे नमः। ॐ विष्णवे नमः। ॐ विष्णवे नमः। ॐ अद्य श्री ब्रह्मणोऽह्नि द्वितीयेपरार्धे
श्री श्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे कलियुगे कलिप्रथमचरणे जम्बूद्वीपे भरतखंडे भारतवर्षेमध्यक्षैत्रे, (*इंदौर) नगरे, (*माँगलिया)ग्रामे, (*अमुक) नाम संवत्सरे, दक्षिणायने, शरद त्र्मृतो
महामांगल्यप्रद मासोत्तमे कार्तिकमासे, शुभ कृष्णपक्षे, पुण्यायाम अमावस्यायां तिथौ, (*अमुक)वासरे, (*भारद्वाज)गौत्रोत्पन्न:, (*अमुक)नाम, (*शर्मा), अहं श्रुतिस्मृतिपुराणोक्तफलावाप्तिकामनया ज्ञाताज्ञातकायिकवाचिकमानसिकसकलपापनिवृत्तिपूर्वकं स्थिरलक्ष्मीप्राप्तये श्रीमहालक्ष्मीप्रीत्यर्थं महालक्ष्मी पूजनं कुबेरादि देवानाम्‌ पूजनम्‌ च करिष्ये । तदंग्त्वेन गौरीगणपति पूजनम्‌ च करिष्ये।
श्रीगणेश-अंबिका पूजन-हाथ में अक्षत व पुष्प लेकर श्रीगणेश एवं अंबिका का ध्यान करें-

श्री गणेश का ध्यान :
गजाननं भूतगणादि सेवितं कपित्थजम्बूफल चारुभक्षणम्‌ ।
उमासुतं शोक विनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वर पादपंकजम्‌ ॥
श्री अंबिका का ध्यान :
नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नमः ।
नमः प्रकृत्यै भद्रायै नियताः प्रणताः स्मताम्‌ ॥
श्रीगणेश अंबिकाभ्यां नमः, ध्यानं समर्पयामि ।
(श्री गणेश मूर्ति, अम्बिका मूर्ति अथवा मूर्ति के रूप में सुपारी पर अक्षत चढ़ाएँ, नमस्कार करें।)
अब भगवान गणेश-अंबिका का आह्वान [2] करें-
ॐ गणानां त्वा गणपति(गँ)हवामहे प्रियाणां त्वा प्रियपति(गँ)हवामहे,
निधीनां त्वा निधिपति(गँ)हवामहे वसो मम। आहमजानि गर्भधमात्वमजासि गर्भधम्‌ ।
एह्येहि हेरम्ब महेश्पुत्र समस्त विघ्नौघ विनाशदक्ष ।
मांग्ल्यापूजा प्रथमप्रधान गृहाण पूजाम् भगवन्नमस्ते ॥
ॐ भूर्भुवः स्वः सिद्धिबुद्धिसाहिताय गणपतये नमः, गणपतिमावाहयामि, स्थापयामि पूजयामि च ।
(श्री गणेश पर अक्षत चढ़ाएँ।)
ॐ अम्बे अम्बिकेऽम्बालिके न मा नयति कश्चन ।
ससस्त्यश्चकः सुभद्रिकां काम्पीलवासिनीम्‌ ॥
हेमाद्रितनयाम् देवीं वरदाम शंकरप्रियाम् ।लम्बोदरस्य जननिम् गौरीमावाहयाम्यहम् ॥
ॐ भूभुर्वः स्वः गौर्ये नमः, गौरीमावाहयामि, स्थापयामि पूजयामि च ।\
(श्री गौरी या सुपारी पर अक्षत चढ़ाएँ।)--प्रतिष्ठा :
प्रतिष्ठा हेतु निम्न मंत्र बोलकर गणेश व सुपारी पर पुनः अक्षत चढ़ाएँ-
ॐ मनो जूतिर्जुषतामाज्यस्य बृहस्पतिर्यज्ञमिमं तनोत्वरिष्टं यज्ञ(गँ)समिमं दधातु।
विश्वे देवास इह मादयंतामोऽम्प्रतिष्ठ ॥
अस्यै प्राणाः प्रतिष्ठन्तु अस्यै प्राणाः क्षरन्तु च ।
अस्यै देवत्वमर्चायै मामहेति च कश्चन ॥
गणेश-अम्बिके! सुप्रतिष्ठिते वरदे भवेताम्‌ ।
प्रतिष्ठापूर्वकम्‌ आसनार्थे अक्षतान्‌ समर्पयामि गणेशाम्बिकाभ्यां नमः ।
(आसन के लिए अक्षत समर्पित करें।)
अब हाथ में जल लेकर निम्न मंत्र बोलकर जल अर्पित करें-
ॐ देवस्य त्वा सवितुः प्रसवेऽश्विनोर्बाहुभ्यां पूष्णो हस्ताभ्याम्‌ ।
एतानि पाद्य, अर्घ्य, आचमनीय, स्नानीय, पुनराचमनीयानि
समर्पयामि गणेशाम्बिकाभ्यां नमः ।-(जल चढ़ा दें।)
तत्पश्चात यदि अभीष्ट हो तो गंधपुष्पधूपदीपनैवेद्यादिनी समर्पयामीकहकर ॐ भूभुर्वः स्वः गणेशाम्बिकाभ्यां नमःनाम मंत्र से पंचोपचार पूजन (गंध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य) समर्पित करें । चाहें तो षोडशोपचार पूजन महालक्ष्मी प्रधान पूजन के साथ ही करें ।
प्रार्थना :-इसके पश्चात गणेश-अम्बिका की प्रार्थना करें-
विघ्नेश्वराय वरदाय सुरप्रियाय लम्बोदराय सकलाय जगद्धिताय ।
नागाननाय श्रुतियज्ञ विभूषताय गौरीसुताय गणनाथ नमो नमस्ते ॥
वक्रतुंड महाकाय सूर्यकोटी समप्रभ । निर्विघ्नं कुरुमे देव सर्वकार्येषु सर्वदा ।
त्वं वैष्णवी शांतिरनंतवीर्या विश्वस्य बीजं परमासी माया ।
सम्मोहितं देवि समस्तमेतत् त्वं वै प्रसन्ना भुवि मुक्तिहेतुः ।।
'अनया पूजया गणेशाम्बिके प्रीयेताम्‌, न ममकहकर जल छोड़ दें।
नोट :- इसके पश्चात (1) षोडशमातृका पूजन (2) कलश पूजन तथा (3) नवग्रह पूजन किया जाता है।
षोडशमातृका पूजन
षोडशमातृकाओं की स्थापना के लिए फर्श पर सोलह कोष्टकों का चौकोर मंडल बनाया जाता है। पश्चिम दिशा से पूर्व दिशा की ओर मातृकाओं की स्थापना करें। प्रत्येक कोष्ठक में रक्त अक्षत, जौ अथवा गेहूँ रखें। पहले कोष्ठक में गौरी का आह्वान किया जाता है। लेकिन गौरी के आह्वान से पहले भगवान गणेश के आह्वान की परंपरा है।  गणेश का आह्वान पुष्प और अक्षत से किया जाता है। अन्य कोष्ठकों में मंत्र उच्चारित करते हुए आह्वान करें।
आह्वान एवं स्थापना मंत्र :
इस मंत्रों में षोडशमातृकाओं का आह्वान किया गया है :-
1. ॐ गणपतये नमः, गणपतिमावाहयामि, स्थापयामि ।
   ॐ गौर्यै नमः, गौरीमावाहयामि, स्थापयामि ।
2. ॐ पद्मायै नमः, ॐ पद्मावाहयामि, स्थापयामि ।
3. ॐ शच्यै नमः, शचीमावाहयामि, स्थापयामि ।
4. ॐ मेधायै नमः, मेधामावाहयामि, स्थापयामि ।
5. ॐ सावित्र्यै नमः, सावित्रीमावाहयामि स्थापयामि ।
6. ॐ विजयायै नमः, विजयामावाहयाम, स्थापयामि ।
7. ॐ जयायै नमः जयामावाहयामि, स्थापयामि ।
8. ॐ देवसेनायै नमः, देवसेनामावाहयामि, स्थापयामि ।
9. ॐ स्वधायै नमः, स्वधामावाहयामि, स्थापयामि ।
10. ॐ स्वाहायै नमः, स्वाहामावाहयामि, स्थापयामि ।
11. ॐ मातृभ्यो नमः, मातृः आवाहयामि, स्थापयामि ।
12. ॐ लोकमातृभ्यो नमः, लोकमातृः आवाहयामि, स्थापयामि ।
13. ॐ धृत्यै नमः, धृतिमावाहयामि, स्थापयामि ।
14. ॐ पुष्ट्यै नमः, पुष्टिमावाहयामि, स्थापयामि ।
15. ॐ तुष्ट्यै नमः, तुष्टिमावाहयामि, स्थापयामि.
16. ॐ आत्मनः कुलदेवतायै नमः, आत्मनः कुलदेतामावाहयामि, स्थापयामि ।

इस मंत्र द्वारा षोडशमातृकाओं का आह्वान, स्थापना करें -
ॐ मनो जूतिर्जुषतामाज्यस्य बृहस्पतिर्यज्ञमिमं तनोत्वरिष्टं यज्ञ(गँ)समिमं दधातु।
विश्वे देवास इह मादयंतामोऽम्प्रतिष्ठ ॥
अक्षत छोड़ते हुए मातृका-मंडल की प्रतिष्ठा करें ।
ॐ गणेशसहितगौर्यादिषोडशमातृकाभ्यो नमःनाम मंत्र से पंचोपचार पूजन करें ‌। नैवेद्य के साथ गुड तथा घी का भी नेवैद्य लगाये ।
‌प्रार्थना :
'ॐ गणेश सहितगौर्यादि षोडशमातृकाभ्यो नमः ।'
अनया पूजया गणेशसहित गौर्यादिषोडशमातरः प्रीयन्ताम्‌, न मम ।
इस मंत्र के साथ अक्षत अर्पित करने के बाद नमस्कार करें और फिर निम्न मंत्र का उच्चारण करें-
गौरी पद्मा शची मेधा सावित्री विजया जया । देवसेना स्वधा स्वाहा मातरो लोकमातरः ॥
धृतिः पुष्टिस्तथा तुष्टिरात्मनः कुलदेवता । गणेशेनाधिका ह्येता वृद्धौ पूज्याश्च षोडशः ॥

 पूर्व
आत्मनः  कुलदेवता-१६लोकमातरः-१२देवसेना-८मेधा-४तुष्टिः-१५मातरः-११जया-७शची-३पुष्टिः-१४स्वाहा
१०विजया-६पद्मा-२धृतिः-१३स्वधा-९सावित्री-५गौरी-१गणेश-षोडशमातृका मंडल
नवग्रह पूजन विधि
नवग्रह-पूजन के लिए नवग्रह बीसा यन्त्र अथवा नवग्रह मंडल की स्थापना लाल वस्त्र पर अक्षत के ऊपर करें । पहले ग्रहों का आह्वान करके उनकी स्थापना की जाती है। बाएँ हाथ में अक्षत लेकर निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुए दाएँ हाथ से अक्षत अर्पित करते हुए ग्रहों का आह्वान करें ।
प्रार्थना एवं स्थापना मंत्र :
ॐ ब्रह्मा मुरारिस्त्रिपुरान्तकारी भानुः शशी भूमिसतो बुधश्च ।
गुरुश्च शुक्रः शनि राहुकेतवः सर्वेग्रहाः शांतिकरा भवन्तु ॥
सूर्यः शौर्यमथेन्दुरुच्चपदवीं सन्मंगलं मंगलः।
सद्बुद्धिं च बुधो गुरुश्च गुरुतां शुक्र सुखं शं शनिः ।
राहुर्बाहुबलं करोतु सततं केतुः कुलस्योन्नतिं
नित्यं प्रीतिकरा भवन्तु मम ते सर्वेऽनकूला ग्रहाः ॥
आह्वान :
निम्न मंत्र से नवग्रहों का आह्वान करके उनकी पूजा करें :
अस्मिन नवग्रहमंडले आवाहिताः सूर्यादिनवग्रहा देवाः सुप्रतिष्ठिता वरदा भवन्तु ।
प्रतिष्ठा :
हाथ में अक्षत लेकर निम्न मंत्र उच्चारित करते हुए नवग्रह मंडल में प्रतिष्ठा के लिए अर्पित करें।
ॐ मनो जूतिर्जुषतामाज्यस्य बृहस्पतिर्यज्ञमिमं ततनोत्वरिष्टं यज्ञ(गँ)समिमं दधातु।
विश्वे देवास इह मादयन्तामोऽम्प्रतिष्ठ ॥
पूजन:
तत्पश्चात निम्न मंत्र के साथ पंचोपचार पूजन करें -
गंधपुष्पधूपदीपनैवेद्यादिनी समर्पयामी”  कहकर गंध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य अर्पित करें ।
प्रार्थना :
जपाकुसुमसंकाशं काश्यपेयं महद्युतिम्। तमोऽरिं सर्वपापघ्नं प्रणतोऽस्मि दिवाकरम् ॥१॥
दधि शंख तुषाराभं क्षीरोदार्णव संभवम्। नमामि शशिनं सोमं शम्भोः मुकुट भूषणम्॥२॥
धरणी गर्भ संभूतं विद्युत्कान्तिसमप्रभम्। कुमारं शक्ति हस्तं च मंगलं प्रणमाम्यहम्॥३॥
प्रियंगुकलिकाश्यामं रूपेणाप्रतिमं बुधम्। सौम्यं सौम्यगुणोपेतं तं बुधं प्रणमाम्यहम्॥४॥
देवानां च ऋषीणां च गुरुं काञ्चन संनिभम्। बुद्धिभूतं त्रिलोकेशं तं नमामि बृहस्पतिम्॥५॥
हिम कुन्द मृणालाभं दैत्यानां परमं गुरुम्। सर्व शास्त्र प्रवक्तारं भार्गवं प्रणमाम्यहम्॥६॥
नीलांजन समाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम्। छायामार्तण्डसंभूतं तं नमामि शनैश्चरम्॥७॥
अर्धकायं महावीर्यं चन्द्रादित्य विमर्दनम्। सिंहिका गर्भ संभूतं तं राहुं प्रणमाम्यहम्॥८॥
पलाश पुष्प संकाशं तारका ग्रह मस्तकम्। रौद्रं रौद्रात्मकं घोरं तं केतुं प्रणमाम्यहम्॥९॥
इति व्यास मुखोद् गीतं यः पठेत् सुसमाहितः। दिवा वा यदि वा रात्रौ विघ्न शान्तिः भविष्यति॥१०॥
नर नारी नृपाणां च भवेद् दुःस्वप्न नाशनम्। ऐश्वर्यं अतुलं तेषाम् आरोग्यं पुष्टि वर्धनम्॥११॥
गृह नक्षत्रजाः पीडा स्तस्कराग्नि समुद्भवाः। ताः सर्वाः प्रशमं यान्ति व्यासो ब्रू ते न संशयः॥१२॥
॥ इति श्रीव्यास विरचितं नवग्रहस्तोत्रं संपूर्णम् ॥
कलश पूजन(वरुण पूजन )
कलश स्थापित किए जाने हेतु लकड़ी के एक पाटे पर अष्टदल कमल बनाकर उस पर धान्य(गेहूँ) बिछा दें। कलश (मिट्टी अथवा तांबे का लोटा) पर रोली से स्वास्तिक का चिन्ह बनाकर लोटे के गले में तीन धागे वाली मौली (नाड़ा) लपेटें व धान्य पर कलश रखकर जल से भर दें एवं उसमें चंदन, औषधि (जटामॉसी, शिलाजीत आदि), दूब, पाँच पत्ते (बरगद, गूलर, पीपल, आम, पाकड़ अथवा पान के पत्ते), कुशा एवं गौशाला आदि की मिट्टी, सुपारी, पंचरत्न (यथाशक्ति) व द्रव्य छोड़ दें। नारियल पर लाल कपड़ा लपेटकर, चावल से भरे एक पूर्ण पात्र को कलश पर स्थापित कर उस पर नारियल रख दें। हाथ जोड़कर कलश में वरुण देवता का आह्वान करें :-स्थापना :
कलश में जल भरकर निम्न मंत्र का उच्चारण करें :-
ॐ वरुणस्योत्तम्भनमसि वरुणस्य स्कम्भसर्जनी स्थो वरुणस्य
ऋतसदन्यसि वरुणस्य ऋतसदन्मसि वरुणस्य ऋतसदनमा सीद ।
आह्वान :
अब सुपारी और पंच रत्न आदि जल कलश में डाल दें। इसके बाद कलश पर चावल का पात्र रखकर लाल वस्त्र से लपेटा नारियल रखना चाहिए। अब वरुण देवता का स्मरण करते हुए आह्वान करें-
ॐ भूर्भुवः स्वः भो वरुण इहागच्छ, इहतिष्ठ, स्थापयामि पूजयामि च ।
ध्यान व प्रार्थना :
अब कलश पर सब देवताओं का ध्यान करें एवं चंदन, अक्षत, धूप, दीप, नैवेद्य अर्पित कर पूजन करें। अंत में बोलें :-
कलशस्य मुखे विष्णुः कंठे रुद्रः समाश्रितः । मूले त्वस्य स्थतो ब्रह्मा मध्ये मातृगणाः स्मृताः ॥
कुक्षौ तु सागराः सर्वे, सप्तद्वीपा वसुंधराः । अर्जुनी गोमती चैव चंद्रभागा सरस्वती ॥
कावेरी कृष्णवेणी च गंगा चैव महानदी । ताप्ती गोदावरी चैव माहेन्द्री नर्मदा तथा ॥
नदाश्च विविधा जाता नद्यः सर्वास्तथापराः । पृथिव्यां यान तीर्थानि कलशस्तानि तानि वैः ॥
सर्वे समुद्राः सरितस्तीथर्यानि जलदा नदाः । आयान्तु मम कामस्य दुरितक्षयकारकाः ॥
ॐ अपां पतये वरुणाय नमः । ॐ वरुणाद्यावाहित देवताभ्यो नमः।
समर्पण :
कृतेन अनेन पूजनेन कलशे वरुणाद्यावाहितदेवताः प्रीयन्तां न मम।



महालक्ष्मी पूजन (प्रधान पूजा) प्रारंभ-प्रतिष्ठा :
बायें हाथ में अक्षत लेकर दायें हाथ से उन अक्षतों को प्रतिमा पर छोडें-
ॐ मनो जूतिर्जुषतामाज्यस्य बृहस्पतिर्यज्ञमिमं तनोत्वरिष्टं यज्ञ(गँ)समिमं दधातु।
विश्वे देवास इह मादयंतामोऽम्प्रतिष्ठ ॥
अस्यै प्राणाः प्रतिष्ठन्तु अस्यै प्राणाः क्षरन्तु च ।
अस्यै देवत्वमर्चायै मामहेति च कश्चन ॥
               ध्यान :-हाथ में पुष्प लेकर महालक्ष्मी का ध्यान करें-


या सा पद्मासनस्था विपुलकटितटी पद्मपत्रायताक्षी
गम्भीरावर्तनाभिस्तनभरनमिता शुभ्रवस्त्रोत्तरीया ।
या लक्ष्मीर्दिव्यरूपैर्मणिगणखचितैः स्नापिता हेमकुम्भैः
सा नित्यं पद्महस्ता मम वसतु गृहे सर्वमांगल्ययुक्ता ॥
ॐ हिरण्यवर्णां हरिणीं सुवर्णरजतस्रजाम्‌ ।
चंद्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आ वह ॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः, ध्यानार्थे पुष्पाणि समर्पयामि ।
(पुष्प अर्पित करें।)
आह्वान :
सर्वलोकस्य जननीं सर्वसौख्यप्रदायिनीम्‌ ।
सर्वदेवमयीमीशाम् देवीमावाहयाम्यहम् ॥
ॐ तां म आ वह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम्‌ ।
यस्यां हिरण्यं विन्देयं गामश्वं पुरुषानहम् ॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः, महालक्ष्मीमावाहयामि, आवाहनार्थे पुष्पाणि समर्पयामि ।
(आह्वान के लिए पुष्प अर्पित करें।)
आसन :
तप्तकांचनवर्णाभं मुक्तामणिविराजितम्‌ ।
अमलं कमलं दिव्यमासनं प्रतिगृह्यताम्‌ ॥
ॐ अश्र्वपूर्वां रथमध्यां हस्तिनादप्रमोदिनीम्‌ ।
श्रियं देवीमुप ह्वये श्रीर्मा देवी जुषताम्‌ ॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः, आसनं समर्पयामि ।
(पुष्प अर्पित करें।)
पाद्य :
गंगादितीर्थसम्भूतं गन्धपुष्पादिभिर्युतम्‌ ।
पाद्यं ददाम्यहं देवि गृहाणाशु नमोऽस्तु ते ॥
ॐ कां सोस्मितां हिरण्यप्राकारामार्द्रां ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीम्‌ ।
पद्मेस्थितां पद्मवर्णां तामिहोप ह्वये श्रियम्‌ ॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः, पादयोः पाद्यं समर्पयामि ।
(चन्दन पुष्पदियुक्त जल अर्पित करें।)
अर्घ्य :
अष्टगन्धसमायुक्तं स्वर्णपात्रप्रपूरितम्‌ ।
अर्घ्यं गृहाणमद्यतं महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते ॥
ॐ चन्द्रां प्रभासां यशसा ज्वलन्तीं श्रियं लोके देवजुष्टामुदाराम्‌ ।
तां पद्यनीमीं शरणं प्रपद्ये-अलक्ष्मीर्मे नश्यतां त्वां वृणे ॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः, हस्तयोरर्घ्यं समर्पयामि ।
(अष्टगंध मिश्रित जल अर्घ्यपात्र से देवी के हाथों में दें।)
आचमन :
सर्वलोकस्य या शक्तिर्ब्रह्मविष्ण्वादिभिः स्तुता ।
ददाम्याचमनम् तस्यै महलक्ष्म्यै मनोहरं ॥
ॐ आदित्यवर्णे तपसोऽधि जातो वनस्पतिस्तव वृक्षोऽथ बिल्वः ।
तस्य फलानि तपसा नुदन्तु या अन्तरा याश्च बाह्या-अलक्ष्मीः ॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः, आचमनीयं जलं समर्पयामि ।(जल चढ़ाएँ।)
स्नान :
मन्दाकिन्याः समानीतै: हेमाम्भोरुहवासितैः ।
स्नानं कुरुष्व देवेशि सलिलैश्च सुगन्धिभिः ॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः, स्नानं समर्पयामि ।
(स्नानीय जल अर्पित करें।)
स्नानान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि ।
('ॐ महालक्ष्म्यै नमः' बोलकर आचमन हेतु जल दें।)
दुग्ध स्नान :
कामधेनुसमुत्पन्नं सर्वेषां जीवनं परम्‌ ।
पावनं यज्ञहेतुश्च पयः स्नानार्थमर्पितम्‌ ॥
ॐ पयः पृथिव्यां पय औषधीषु पयो दिव्यन्तरिक्षे पयो धाः ।
पयस्वतीः प्रदिशः सन्तु मह्यम्‌ ॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः, पयः स्नानं समर्पयामि । पयः स्नानान्ते शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि ।
(कच्चे दूध से स्नान कराएँ, पुनः शुद्ध जल से स्नान कराएँ।)
दधिस्नान :
पयसस्तु समुद्भूतं मधुराम्लं शशिप्रभम्‌ ।
दध्यानीतं मया देवि स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम्‌ ॥
ॐ दधिक्राव्णो अकारिषं जिष्णोरश्वस्य वाजिनः सुरभि नो मुखा करत्प्र ण आयू(गँ)षि तारिषत्‌ ।
ॐ महालक्ष्म्यै नमः, दधिस्नानं समर्पयामि। दधिस्नानान्ते शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि ।
(दधि से स्नान कराएँ, फिर शुद्ध जल से स्नान कराएँ।)
घृत स्नान :
नवनीतसमुत्पन्नं सर्वसंतोषकारकम्‌ ।
घृतं तुभ्यं प्रदास्यामि स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम्‌ ॥
ॐ घृतं घृतपावनः पिबत वसां वसापावनः पिबतान्तरिक्षस्य हविरसि स्वाहा ।
दिशः प्रदिश आदिशो विदिश उद्दिशो दिग्भ्यः स्वाहा ॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः, घृतस्नानं समर्पयामि । घृतस्नानान्ते शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि ।
(घृत स्नान कराकर शुद्ध जल से स्नान कराएँ।)
मधु स्नान :
तरुपुष्पसमुद्भूतं सुस्वादु मधुरं मधु ।
तेजः पुष्टिकरं दिव्यं स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम्‌ ॥
ॐ मधु वाता ऋतायते मधु क्षरन्ति सिन्धवः ।
माध्वीर्नः सन्त्वोषधीः ॥
मधु नक्तमुतोषसो मधुमत्पार्थिव(गँ) रजः ।
मधु द्यौरस्तु नः पिता ॥
मधुमान्ना वनस्पतिर्मधुमाँऽअस्तु सूर्यः ।
माध्वीर्गावो भवंतु नः ॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः, मधुस्नानं समर्पयामि । मधुस्नानन्ते शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि ।
(शहद स्नान कराकर शुद्ध जल से स्नान कराएँ।)
शर्करा स्नान :
इक्षुसारसमुद्भूता शर्करा पुष्टिकारिका ।
मलापहारिका दिव्या स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम्‌ ॥
ॐ अपा(गँ), रसमुद्वयस(गँ) सूर्ये सन्त(गँ) समाहितम् ।
अपा(गँ) रसस्य यो रसस्तं वो गृह्णाम्युत्तममुपयामगृहीतोसीन्द्राय
त्वा जुष्टं गृह्णाम्येष ते योनिरिन्द्राय त्वा जुष्टतमम्‌ ॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः शर्करास्नानं समर्पयामि, शर्करा स्नानान्ते पुनः शुद्धोदक स्नानं समर्पयामि ।
(शर्करा स्नान कराकर जल से स्नान कराएँ।)
पंचामृत स्नान :
(दूध, दही, घी, शकर एवं शहद मिलाकर पंचामृत बनाएँ व निम्न मंत्र से स्नान कराएँ।)
पयो दधि घृतं चैव मधुशर्करयान्वितम्‌ ।
पंचामृतं मयानीतं स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम्‌ ॥
ॐ पंच नद्यः सरस्वतीमपि यन्ति सस्त्रोतसः ।
सरवस्ती तु पञ्चधा सो देशेऽभवत्‌-सरित्‌ ॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः, पंचामृतस्नानं समर्पयामि, पंचामृतस्नानान्ते शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि ।
(पंचामृत स्नान व जल से स्नान कराएँ।)

गन्धोदक स्नान :
मलयाचलसम्भूतं चन्दनागरुसम्भवम्‌ ।
चन्दनं देवदेवेशि स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम्‌ ॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः, गन्धोदकस्नानं समर्पयामि ।
(चंदनयुक्त जल से स्नान कराएँ।)
(अब श्रीसूक्त, पुरुष सूक्त अथवा सहस्रनाम आदि से पुष्पार्चन अथवा जल अभिषेक फिर शुद्धोदक स्नान कराएँ अथवा सीधे शुद्धोदक स्नान कराएँ।)
(नोट : श्री सूक्त में लक्ष्मी का आवाहन एवं अलक्ष्मी का तिरस्कार किया गया है, अतः पाठ सावधानी पूर्वक उच्चारित करना चाहिए, इस हेतु हमने यहाँ अलक्ष्मीशब्द के आने पर संधि-विच्छेद कर दिया है । )                            ।।श्री सूक्त।।
ॐ हिरण्य-वर्णां हरिणीं, सुवर्ण-रजत-स्त्रजाम्।
चन्द्रां हिरण्यमयीं लक्ष्मीं, जातवेदो म आ वह।।१॥
तां म आवह जात-वेदो, लक्ष्मीमनप-गामिनीम्।
यस्यां हिरण्यं विन्देयं, गामश्वं पुरूषानहम्।।२॥
अश्वपूर्वां रथ-मध्यां, हस्ति-नाद-प्रमोदिनीम्।
श्रियं देवीमुप ह्वये, श्रीर्मा देवी जुषताम्।।३॥
कां सोऽस्मितां हिरण्य-प्राकारामार्द्रां ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीं।
पद्मे स्थितां पद्म-वर्णां तामिहोपह्वये श्रियम्।।४॥
चन्द्रां प्रभासां यशसा ज्वलन्तीं श्रियं लोके देव-जुष्टामुदाराम्।
तां पद्म-नेमिं शरणमहं प्रपद्ये अलक्ष्मीर्मे नश्यतां त्वां वृणे।।५॥
आदित्य-वर्णे तपसोऽधिजातो वनस्पतिस्तव वृक्षोऽक्ष बिल्वः।
तस्य फलानि तपसा नुदन्तु यान्तरायाश्च बाह्या अलक्ष्मीः।।६॥
उपैतु मां दैव-सखः, कीर्तिश्च मणिना सह।
प्रादुर्भूतोऽस्मि राष्ट्रेऽस्मिन्, कीर्तिं वृद्धिं ददातु मे।।७॥
क्षुत्-पिपासाऽमलां ज्येष्ठां, अलक्ष्मीर्नाशयाम्यहम्।
अभूतिमसमृद्धिं च, सर्वां निर्णुद मे गृहात्।।८॥
गन्ध-द्वारां दुराधर्षां, नित्य-पुष्टां करीषिणीम्।
 ईश्वरीं सर्व-भूतानां, तामिहोप ह्वये श्रियम्।।९॥
मनसः काममाकूतिं, वाचः सत्यमशीमहि।
पशूनां रूपमन्नस्य, मयि श्रीः श्रयतां यशः।।१०॥
कर्दमेन प्रजा-भूता, मयि सम्भ्रम-कर्दम।
श्रियं वासय मे कुले, मातरं पद्म-मालिनीम्।।११॥
आपः सृजन्तु स्निग्धानि, चिक्लीत वस मे गृहे।
नि च देवीं मातरं श्रियं वासय मे कुले।।१२॥
आर्द्रां यः करिणीं यष्टिं, पिंगलां पद्म-मालिनीम्।
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं, जातवेदो म आवह।।१३॥
आर्द्रां पुष्करिणीं पुष्टिं, सुवर्णां हेम-मालिनीम्।
सूर्यां हिरण्मयीं लक्ष्मीं, जातवेदो म आवह।।१४॥
तां म आवह जात-वेदो लक्ष्मीमनप-गामिनीम्।
यस्यां हिरण्यं प्रभूतं गावो दास्योऽश्वान् विन्देयं पुरूषानहम्।।१५॥
यः शुचिः प्रयतो भूत्वा, जुहुयादाज्यमन्वहम्।
श्रियः पंच-दशर्चं च, श्री-कामः सततं जपेत्।।१६॥
पद्मानने पद्मविपद्मपत्रे पद्मप्रिये पद्मदालयताक्षी ।
विश्वप्रिये विष्णुमनोनुकुले त्वत्पादपद्मं मयि संनिधत्स्व ॥१७ ॥ 
पद्मानने पद्म ऊरू पद्माक्षी पद्मसम्भवे।
तन्मेभजसि पद्माक्षी येन सौख्यं लभाम्यहम् ॥१८ ॥
अश्वदायी गोदायी धनदायी महाधने।
धनं मे जुषतां देवि सर्वकामांश्च देहि मे ॥१९ ॥
पुत्रपौत्रं धनं धान्यं हस्त्यश्वाश्वतरी रथम्।
प्रजानां भवसि माता आयुष्मन्तं करोतु मे ॥२० ॥
धनमग्निर्धनं वायुर्धनं सूर्यो धनं वसुः।
धनमिन्द्रो बृहस्पतिर्वरुणो धनमश्विना ॥२१ ॥
वैनतेय सोमं पिब सोमं पिबतु वृत्रहा।
सोमं धनस्य सोमिनो मह्यं ददातु सोमिनः ॥२२ ॥
न क्रोधो न च मात्सर्यं न लोभो नाशुभा मतिः।
भवन्ति कृतपुण्यानां भक्त्या  श्रीसूक्तजापिनाम् ॥२३ ॥
सरसिजनिलयेसरोजहस्ते धवलतरांशुक गन्धमाल्यशोभे।
भगवतिहरिवल्लभे मनोज्ञे त्रिभुवनभूतिकरि प्रसीदमह्यम् ॥२४॥
विष्णुपत्नीं क्षमादेवीं माधवीं माधवप्रियाम्।
लक्ष्मीं प्रियसखीं भूमिम् नमाम्यच्युतवल्लभाम् ॥२५ ॥
महालक्ष्मी च विद्महे विष्णुपत्नी च धीमहि।
 तन्नो लक्ष्मीः प्रचोदयात् ॥२६ ॥
आनंदः कर्दमः श्रीदश्चिक्लित इति विश्रुताः ।
 ऋषयः श्रियः पुत्राश्च श्रीर्देवीर्देवता मताः ॥२७ ॥
ऋणरोगादिदारिद्र्य पापक्षुदपमृत्यवः ।
 भयशोकमनस्तापा नश्यन्तु मम सर्वदा ॥२८ ॥   
श्रीवर्चस्वम् आयुष्यमारोग्यम् अविधाच्छोभमानं महीयते।
धान्यं धनं पशुं बहुपुत्रलाभं शतसंवत्सरं दीर्घमायुः ॥२९ ॥
॥इति ऋग्वेदोक्तम् श्रीसूक्तम् सम्पूर्णम् ॥
शुद्धोदक स्नान :

मन्दाकिन्यास्तु यद्वारि सर्वपापहरं शुभम्‌ ।
तदिदं कल्पितं तुभ्यं स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम्‌ ॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः, शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि ।
(गंगाजल अथवा शुद्ध जल से स्नान कराएँ। तदनंतर प्रतिमा का अंग-प्रोक्षण(पोंछना) करके उसे यथास्थान आसान पर स्थापित करें ।)-आचमन :
तत्पश्चात 'ॐ महालक्ष्म्यै नमः' कहकर आचमन कराएँ।
वस्त्र :-दिव्याम्बरं नूतनं हि क्षौमं त्वतिमनोहरम्‌ ।
दीयमानं मया देवि गृहाण जगदम्बिके ॥
ॐ उपैतु मां देवसखः कीर्तिश्च मणिना सह ।
प्रादुर्भूतोऽस्मि राष्ट्रेऽस्मिन्‌ कीर्तिमृद्धिं ददातु मे ॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः, वस्त्रं समर्पयामि, आचमनीयं जलं च समर्पयामि ।
(वस्त्र अर्पित करें, आचमनीय जल दें।)
उपवस्त्र :-कंचुकीमुपवस्त्रं च नानारत्नैः समन्वितम्‌ ।
गृहाण त्वं मया दत्तं मंगले जगदीश्र्वरि ॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः, उपवस्त्रं समर्पयामि, आचमनीयं जलं च समर्पयामि ।
(उपवस्त्र चढ़ाएँ, आचमन के लिए जल दें।)
मधुपर्क :-कांस्य कांस्येन पिहितो दधिमध्वाज्यसंयुतः ।
मधुपर्को मयानीतः पूजार्थं प्रतिगृह्यताम् ॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः, मधुपर्कं समर्पयामि, आचमनीयं जलं च समर्पयामि ।
(कांस्य पत्र में स्थित मधुपर्क(सोने चांदी के सिक्के इत्यादि) अर्पित करें)
यज्ञोपवीत :-ॐ तस्मादअकूवा अजायंत ये के चोभयादतः ।
गावोह यज्ञिरे तस्मात्तस्माज्जाता अजावयः ॥
ॐ यज्ञोपवीतं परमं पवित्रं प्रजापतर्येत्सहजं पुरस्तात् ॥
आयुष्यमग्र्यं प्रतिमुञ्च शुभ्रं यज्ञोपवीतं बलमस्तुतेजः ।
ॐ महालक्ष्म्यै नमः, ॐ श्रीगणेशाय नमः, ॐ भगवते वासुदेवाय नमः । यज्ञोपवीतं समर्पयामि ।
(श्रीहरी, श्रीगणेश को यज्ञोपवित चढ़ाएँ, आचमन के लिए जल दें।)
आभूषण :-रत्नकंकणवैदूर्यमुक्ताहारादिकानि च ।
सुप्रसन्नेन मनसा दत्तानि स्वीकुरुष्व भोः ॥
ॐ क्षुत्पिपासामलां ज्येष्ठाम्‌-अलक्ष्मीं नाशयाम्यहम्‌ ।
अभूतिमसमृद्धिं च सर्वां निर्णुद मे गृहात्‌ ॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः, नानाविधानि कुंडलकटकादीनि आभूषणानि समर्पयामि ।
(आभूषण समर्पित करें।)
गन्ध :-श्रीखण्डं चन्दनं दिव्यं गन्धाढ्यं सुमनोहरम्‌ । विलेपनं सुरश्रेष्ठे चन्दनं प्रतिगृह्यताम्‌ ॥
ॐ गन्धद्वारां दुराधर्षां नित्युपुष्टां करीषिणीम्‌ । ईश्वरीं सर्वभूतानां तामिहोप ह्वये श्रियम्‌ ॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः, गन्धं समर्पयामि ।
(अनामिका (छोटी) अंगुली से केसर मिश्रित चन्दन अर्पित करें।)
रक्त चन्दन :-रक्तचन्दनसम्मिश्रं पारिजातसमुद्भवम्‌ ।
मया दत्तं महालक्ष्मि चन्दनं प्रतिगृह्यताम ॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः, रक्तचन्दनं समर्पयामि ।
(रक्त चंदन चढ़ाएँ।)
सिन्दूर :-सिन्दूरं रक्तवर्णं च सिन्दूरतिलकप्रिये ।
भक्त्या दत्तं मया देवि सिन्दूरं प्रतिगृह्यताम्‌ ॥
ॐ सिन्धोरिव प्राध्वने शूघनासो वात प्रमियः पतयन्ति यह्वाः ।
घृतस्य धारा अरुषो न वाजी काष्ठा भिन्दन्नूर्मिभिः पिन्वमानः ॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः, सिन्दूरं समर्पयामि ।(सिन्दूर चढ़ाएँ।)
कुंकुम :-कुंकुमं कामदं दिव्यं कुंकुमं कामरूपिणम्‌ ।
अखण्डकामसौभाग्यं कुंकुमं प्रतिगृह्यताम्‌ ॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः, कुंकुमं समर्पयामि ।
(कुंकुम अर्पित करें।)
पुष्पसार (इत्र) :-तैलानि च सुगन्धीनि द्रव्याणि विविधानि च ।
मया दत्तानि लेपार्थं गृहाण परमेश्वरि ॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः, पुष्पसारं च समर्पयामि ।
(सुगन्धित तेल व इत्र चढ़ाएँ।)
अक्षत (अथवा देशाचार से गुड, धनिया, हलदी आदि भोग के रूप में ):
अक्षताश्च सुरश्रेष्ठे कुंकुमाक्ताः सुशोभिताः ।
मया निवेदिता भक्त्या गृहाण परमेश्वरि ॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः, अक्षतान्‌ समर्पयामि ।
(कुंकुमाक्त अक्षत चढ़ाएँ।)
पुष्प एवं पुष्पमाला :
माल्यादीनि सुगन्धीनि मालत्यादीनि वै प्रभो । मयानीतानि पुष्पाणि पूजार्थं प्रतिगृह्यताम्‌ ॥
ॐ मनसः काममाकूतिं वाचः सत्यमशीमहि । पशूनां रूपमन्नस्य मयि श्रीः श्रयतां यशः ॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः, पुष्पं पुष्पमालां च समर्पयामि ।
(लाल कमल के पुष्प तथा पुष्पमालाओं से अलंकृत करें।)
दूर्वा :-विष्ण्वादिसर्वदेवानां प्रियां सर्वसुशोभनाम्‌ ।
क्षीरसागरसम्भूते दूर्वां स्वीकुरू सर्वदा ॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः, दूर्वांकुरान्‌‌ समर्पयामि ।
(दूर्वांकुर अर्पित करें।)
अंग पूजा :-तदनंतर महालक्ष्मी के विभिन्न अंगों का कुंकुम एवं अक्षत मिश्रित पुष्पों से पूजन करें :-
पैर पूजन- ॐ चपलायै नमः, पादौ पूजयामि।
जानु पूजन- ॐ चञ्चलायै नमः, जानुनी पूजयामि ।
कमर पूजन- ॐ कमलायै नमः, कटिं पूजयामि ।
नाभि पूजन- ॐ कात्यायन्यै नमः, नाभिं पूजयामि ।
जठर पूजन- ॐ जगन्मात्रे नमः, जठरं पूजयामि ।
वक्षस्थल पूजन- ॐ विश्ववल्लभायै नमः, वक्षः स्थलम्‌ पूजयामि ।
हाथ पूजन- ॐ कमलवासिन्यै नमः, हस्तौ पूजयामि ।
मुख पूजन- ॐ पद्माननायै नमः, मुखं पूजयामि ।
तीनों नेत्र पूजन- ॐ कमलपत्राक्ष्यै नमः, नेत्रत्रयं पूजयामि ।
सिर पूजन- ॐ श्रियै नमः, शिरः पूजयामि ।
समस्त अंग पूजन- ॐ महालक्ष्म्यै नमः, सर्वांङ्गं पूजयामि ।
अष्टसिद्धिपूजन :
इसके पश्चात घड़ी की सुई की तरह आठों दिशाओं में निम्न आठ सिद्धियों का पूजन करें -
पूर्व दिशा में :- 'ॐ अणिम्ने नमः'
आग्नेय कोण में :- 'ॐ महिम्ने नमः'
दक्षिण दिशा में :- 'ॐ गरिम्णे नमः'
नैऋत्य कोण में :- 'ॐ लघिम्ने नमः'
पश्चिम दिशा में :- 'ॐ प्राप्त्यै नमः'
वायव्य कोण में :- 'ॐ प्रकाम्यै नमः'
उत्तर दिशा में :- 'ॐ ईशितायै नमः'
ईशान कोण में :- 'ॐ वशितायै नमः'
अष्टलक्ष्मी पूजन :
इसके बाद पूर्व दिशा से शुरू कर घड़ी की सुई की दिशा के क्रम से आठों दिशाओं में अष्ट लक्ष्म‍ियों का पूजन करें।
ॐ आद्यलक्ष्म्यै नमः
ॐ विद्यालक्ष्म्यै नमः
ॐ सौभाग्यलक्ष्म्यै नमः
ॐ अमृतलक्ष्म्यै नमः
ॐ कामलक्ष्म्यै नमः
ॐ सत्यलक्ष्म्यै नमः
ॐ भोगलक्ष्म्यै नमः
ॐ योगलक्ष्म्यै नमः
धूप :
वनस्पतिरसोद्भूतो गन्धाढ्यः सुमनोहरः । आघ्रेयः सर्वदेवानां धूपोऽयं प्रतिगृह्यताम्‌ ॥
ॐ कर्र्दमेन प्रजा भूता मयि संभव कर्दम । श्रियं वासय में कुले मातरं पद्ममालिनीम्‌ ॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः, धूपमाघ्रापयामि ।
(धूप आघ्रापित करें।)
दीप :
कार्पास वर्तिसंयुक्तं घृतयुक्तं मनोहरम्‌ । तमो नाशकरं दीपं गृहाण परमेश्वरि ॥
ॐ आपः सृजन्तु स्निग्धानि चिक्लीत वस मे गृहे । नि च देवीं मातरं श्रियं वासय मे कुले ॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः, दीपं दर्शयामि ।
(दीपक दिखाकर हाथ धो लें।)
नैवेद्य (साल की धानी सहित पंचमिष्ठान्न व सूखे मेवे) :
नैवेद्यं गृह्यतां देवि भक्ष्यभोज्य समन्वितम्‌ । षड्रसैरन्वितं दिव्यं लक्ष्मि देवि नमोऽस्तु ते ॥
ॐ आर्द्रां पुष्करिणीं पुष्टिं पिंगलां पद्ममालिनीम्‌ ॥ चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आ वह ॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः, नैवेद्यं निवेदयामि ।
बीच में जल छोड़ते हुए निम्न मंत्र बोलें :-
1. ॐ प्राणाय स्वाहा 2. ॐ अपानाय स्वाहा       3. ॐ समानाय स्वाहा
4. ॐ उदानाय स्वाहा 5. ॐ व्यानाय स्वाहा।
मध्ये पानीयम्‌, उत्तरापोशनार्थम् हस्तप्रक्षालनार्थं मुखप्रक्षालनार्थं च जलं समर्पयामि ।
( नैवेद्य निवेदित कर पुनः हस्तप्रक्षालन के लिए जल अर्पित करें।)

करोद्वर्तन :
'ॐ महालक्ष्म्यै नमः' यह कहकर करोद्वर्तन के लिए हाथों में चन्दन उपलेपित करें।
आचमन :
शीतलं निर्मलं तोयं कर्पूरेण सुवासितम्‌ ।
आचम्यतां जलं ह्येतत्‌ प्रसीद परमेश्वरि ॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः, ॐ महालक्ष्म्यै नमः, ॐ महालक्ष्म्यै नमः, आचमनीयं जलं समर्पयामि ।
(आचमन के लिए जल दें।)
ऋतुफल :
(सीताफल,अनार,सेब, गन्ना, सिंघाड़े व अन्य फल।)
फलेन फलितं सर्वं त्रैलोक्यं सचराचरम्‌ ।
तस्मात्‌ फलप्रदादेन पूर्णाः सन्तु मनोरथाः ॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः, अखण्डऋतुफलं समर्पयामि, आचमनीयं जलं च समर्पयामि ।
(ऋतुफल अर्पित करें तथा आचमन के लिए जल दें।)
ताम्बूल एवं पूगीफल :
पूगीफलं महद्दिव्यं नागवल्लीदलैर्युतम्‌ ।
एलाचूर्णादिसंयुक्तं ताम्बूलं प्रतिगृह्यताम्‌ ॥
ॐ आर्द्रां यः करिणीं यष्टिं सुवर्णां हेममालिनीम्‌ ।
सूर्यां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आ वह ॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः, मुखवासार्थे ताम्बूलं समर्पयामि ।
(लवंग, इलायची एवं पूगीफल(सुपारी) रखकर ताम्बूल(पान) अर्पित करें।)


दक्षिणा :
हिरण्यगर्भगर्भस्थं हेमबीजं विभावसोः ।
अनन्तपुण्यफलदमतः शान्तिं प्रयच्छ मे ॥
ॐ तां म आ वह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम्‌ ।
यस्यां हिरण्यं प्रभूतं गावो दास्योऽश्वान्‌ विन्देयं पुरुषानहम्‌ ॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः, दक्षिणां समर्पयामि ।
(दक्षिणा चढ़ाएँ।)
आरती :
चक्षुर्दं सर्वलोकानां तिमिरस्य निवारणम्‌ ।
आर्तिक्यं कल्पितं भक्त्या गृहाण परमेश्वरि ॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः, नीराजनं समर्पयामि ।
(आरती करें,जल छोड़ें व हाथ धोएँ।)
प्रदक्षिणा :
यानि कानि च पापानि जन्मान्तरकृतानि च ।
तानि तानि विनश्यन्ति प्रदक्षिणपदे पदे ॥
(प्रदक्षिणा करें।)
प्रार्थना :
हाथ जोड़कर बोलें :-
विशालाक्षी महामाया कौमारी शंखिनी शिवा ।
चक्रिणी जयदात्री चरणमत्ता रणाप्रिया ॥
सुरसुरेंद्रादिकिरीटमौक्तिकै-र्युक्तम सदा यत्तव पादपंकंजम्  ।
परावरं पातु वरं सुमंगलम् नमामि भक्त्याखिलकामसिद्धये ॥
भवानि त्वं महालक्ष्मीः सर्वकामप्रदायिनी ।
सुपूजिता प्रसन्ना स्यान्महालक्ष्मि ! नमोऽस्तु ते ॥
नमस्ते सर्वदेवानां वरदासी हरिप्रिये ।
या गतिस्त्वत् प्रपन्नानां सा मे भूयात् त्वदर्चनात् ॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः, प्रार्थनापूर्वकं नमस्कारान समर्पयामि ।
(प्रार्थना करते हुए नमस्कार करें।)
समर्पण :-'कृतेनानेन पूजनेन भगवती महालक्ष्मीदेवी प्रीयेताम्‌, न मम'
(हाथ में जल लेकर छोड़ दें।)
देहलीविनायक  पूजन
अपने व्यापारिक प्रतिष्ठान व घर के मुख्य प्रवेश द्वार पर 'ॐ श्रीगणेशाय नमः' लिखें साथ ही 'स्वस्तिक चिन्ह', 'शुभ-लाभ' आदि मांगलिक एवं कल्याणकारी शब्द सिन्दूर अथवा केसर से लिखें। इसके पश्चात 'ॐ देहलीविनायकाय नमः'   मंत्र बोलकर गन्ध, पुष्प, अक्षत से पूजन करें।
दवात (श्री महाकाली) पूजन :
काली स्याहीयुक्त दवात को भगवती महालक्ष्मी के सामने पुष्प व अक्षत पर रखें, सिन्दूर से स्वस्तिक बना दें तथा नाड़ा लपेट दें। निम्न मंत्र बोलकर 'ॐ श्रीमहाकाल्यै नमः' गन्ध, पुष्प, अक्षत, धूप, दीप,नैवेद्यादि से दवात में भगवती महाकाली का पूजन करें।इस प्रकार प्रार्थनापूर्वक उन्हें प्रणाम करें-
कालिके! त्वं जगन्मातः मसिरूपेण वर्तसे ।
उत्पन्ना त्वं च लोकानां व्यवहारप्रसिद्धये ॥
या कालिका रोगहरा सुवन्द्या भक्तैः समस्तैर्व्यवहरादक्षैः ।
जनैर्जनानां भयहारिणी च सा लोकमाता मम सौख्यदास्तु ॥
(पुष्प अर्पित कर प्रणाम करें।)
लेखनी पूजन :-लेखनी (कलम) पर नाड़ा बाँधकर सामने की ओर रखें। निम्न मंत्र बोलकर पूजन करें :-
लेखनी निर्मिता पूर्वं ब्रह्मणा परमेष्ठिना ।
लोकानां च हितार्थाय तस्मात्तां पूजयाम्यहम्‌ ॥
'ॐ लेखनीस्थायै देव्यै नमः'
गंध, पुष्प, पूजन कर इस प्रकार प्रार्थना करें :-
शास्त्राणां व्यवहाराणां विद्यानामाप्नुयाद्यतः ।
अतस्त्वां पूजयिष्यामि मम हस्ते स्थिरा भव ॥
बही-खाता (सरस्वती),(पंजिका) पूजन :
बही-खातों पर स्वस्तिक बनाएँ व बसना पर स्वस्तिक चिह्न बनाकर उस पर रखें एवं एक थैली के ऊपर रोली या केसरयुक्त चंदन से स्वस्तिक चिन्ह बनाएँ तथा थैली में पाँच हल्दी की गाँठें, धनिया, कमलगट्टा, अक्षत, दूर्वा व द्रव्य रखकर, उसमें सरस्वती का ध्यान करें।
या कुन्देन्दुतुषारहार धवला या शुभ्रवस्त्रावृता ।
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना ॥
या ब्रह्माच्युतशंकरप्रभृतिभिर्देवेः सदा वन्दिता ।
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा ॥
ध्यान बोलकर प्रणाम करें। निम्न मंत्र द्वारा सरस्वती का गंध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य से पूजन करें :-
'ॐ वीणापुस्तक धारिण्यै श्री सरस्वत्यै नमः'
तिजोरी (कुबेर) पूजन :
तिजोरी पर स्वस्तिक बनाएँ एवं निधिपति कुबेर का निम्न वाक्य बोलकर आह्वान करें :-
आवाहयामि देव त्वामिहायाहि कृपां कुरु ।
कोशं वर्द्धय नित्यं त्वं परिरक्ष सुरेश्र्वर ॥
आह्वान के पश्चात निम्न मंत्र द्वारा 'ॐ कुबेराय नमः' कुबेर का गन्ध, अक्षत, धूप, दीप, नैवेद्य आदि से
पूजन कर प्रार्थना करें :-
धनदाय नमस्तुभ्यं निधिपद्माधिपाय च ।
भगवन्‌ त्वत्प्रसादेन धनधान्यादिसम्पदः ॥
इसके पश्चात पूर्व में महालक्ष्मी के साथ पूजित थैली (हल्दी, धनिया, कमलगट्टा, द्रव्य, दूर्वादि से युक्त) तिजोरी में रखकर कुबेर एवं महालक्ष्मी को प्रणाम करें।
तुला-पूजन :-व्यापारिक प्रतिष्ठान में उपयोग आने वाले तराजू (तुला) पर स्वस्तिक बनाकर उस पर नाड़ा लपेटें व नाड़े से लपेटे तुलाधिष्ठातृदेवता का ध्यान निम्न प्रकार से करें :-
नमस्ते सर्वदेवानां शक्तित्वे सत्यमाश्रिता ।
साक्षीभूता जगद्धात्री निर्मिता विश्वयोनिना ॥
तत्पश्चात निम्न मंत्र द्वारा 'ॐ तुलाधिष्ठातृदेवतायै नमः' तुला का गंध, अक्षत, धूप, दीप, नैवेद्य से पूजन कर प्रणाम करें।
दीपमालिका (दीपक) पूजन :
एक थाली में ग्यारह, इक्कीस या उससे अधिक या कम (यथाशक्ति) दीपक प्रज्वलित कर उन्हें महालक्ष्मी के सामने की ओर रखकर उस दीपमालिका की इस प्रकार प्रार्थना करें :-
त्वं ज्योतिस्त्वं रविश्चन्द्रो विद्युदग्निश्च तारकाः ।
सर्वेषां ज्योतिषां ज्योतिर्दीपावल्यै नमो नमः ॥
प्रार्थना के पश्चात निम्न मंत्र 'ॐ दीपावल्यै नमः' द्वारा दीप माला का गंध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य से पूजन करें।

इसके पश्चात अपने अनुसार गन्ना, सीताफल, सिंघाड़े,, साल की धानी इत्यादि पदार्थ अर्पित करें। साल की धानी गणेश, अम्बिका, महालक्ष्मी तथा अन्य देवी-देवताओं को भी अर्पित करें। अंत में इन सभी दीपकों द्वारा घर या व्यापारिक  प्रतिष्ठान को सजाएँ। इसके पश्चात दीपक और कपूर से श्री महालक्ष्मी की महाआरती करें।
लक्ष्मीजी की प्रधान आरती
    एक थाली में स्वस्तिक का चिन्ह बनाकर अक्षत व पुष्पों के आसन पर घी का दीपक प्रज्ज्वलित करें एक अलग छोटे पात्र में कपूर भी प्रज्ज्वलित करके वह भी थाली में रख लें । जल से आरती थाली का प्रोक्षण कर ले । फिर खड़े होकर घंटी, मृदंग बजाते हुए सपरिवार निम्न आरती करें -
ॐ जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता ।
तुमको निसदिन सेवत हर-विष्णु-धाता ॥ॐ जय... ॥
उमा, रमा, ब्रह्माणी, तुम ही जग-माता ।
सूर्य-चन्द्रमा ध्यावत, नारद ऋषि गाता ॥ॐ जय... ॥
दुर्गा रूप -निरंजनि, सुख-सम्पत्ति-दाता ।
जोकोई तुमको ध्यावत, ऋद्धि-सिद्धि-धन पाता ॥ॐ जय... ॥
तुम पाताल-निवासिनि, तुम ही शुभदाता ।
कर्म-प्रभाव-प्रकाशिनि, भवनिधि की त्राता ॥ॐ जय... ॥
जिस घर तुम रहती, तहँ सब सद्गुण आता ।
सब सम्भव हो जाता, मन नहिं घबराता ॥ॐ जय... ॥
तुम बिन यज्ञ न होवे , वस्त्र न हो पाता ।
खान-पान का वैभव सब तुमसे आता ॥ॐ जय... ॥
शुभ-गुण-मंदिर सुन्दर, क्षीरोदधि-जाता ।
रत्न चतुर्दश तुम बिन कोई नहिं पाता ॥ॐ जय... ॥
महालक्ष्मी(जी) की आरती, जो कई नर गाता ।
उर आनन्द समाता, पाप उतर जाता ॥ॐ जय... ॥
(आरती करके शीतलीकरण हेतु जल छोड़ें एवं स्वयं आरती लें, पूजा में सम्मिलित सभी लोगों को आरती दें, आरती दोनों हाथों से लें, फिर हाथ धो लें।)
मंत्र-पुष्पांजलि :
अपने हाथों में पुष्प लेकर निम्न मंत्रों को बोलें :-
ॐ यज्ञेन यज्ञमयजन्त देवास्तानि धर्माणि प्रथमान्यासन्‌ ।
तेह नाकं महिमानः सचन्त यत्र पूर्वे साध्याः सन्ति देवाः ॥
ॐ राजाधिराजाय प्रसह्य साहिने नमो वयं वैश्रवणाय कुर्महे ।
स मे कामान्‌ कामकामाय मह्यं कामेश्वरो वैश्रवणो ददातु ॥
कुबेराय वैश्रवणाय महाराजाय नमः ।
ॐ स्वस्ति साम्राज्यं भौज्यं स्वाराज्यं वैराज्यं पारमेष्ठ्यं राज्यं
महाराज्यमाधिपत्यमयं समन्तपर्यायी स्यात्‌ सार्वभौमः सार्वायुषान्ता दापरार्धात्‌ ।
पृथिव्यै समुद्रपर्यन्ताया एकराडिति तदप्येष
श्लोकोऽभिगीतो मरुतः परिवेष्टारो मरुत्तस्यावसन्‌ गृहे ।
आविक्षितस्य कामप्रेर्विश्वेदेवाः सभासद इति ।
ॐ विश्वतश्चक्षुरुत विश्वतोमुखो विश्वतोबाहुरुत विश्वतस्पात्‌ ।
सं बाहुभ्यां धमति सं पतत्रैर्द्यावाभूमी जनयन्‌ देव एकः ॥
महालक्ष्म्यै च विद्महे, विष्णुपत्न्यै च धीमहि, तन्नो लक्ष्मीः प्रचोदयात्‌ ।
ॐ या श्रीः स्वयं सुकृतिनां भवनेष्वलक्ष्मीः पापात्मनां कृतधियां हृदयेषु बुद्धिः
श्रद्धा सतां कुलजनप्रभवस्य लज्जा तां त्वां नताः स्म परिपालय देवि विश्वम्‌ ॥
ॐ महालक्ष्म्यै नमः, मंत्रपुष्पांजलिं समर्पयामि ।
(हाथ में लिए फूल महालक्ष्मी पर चढ़ा दें, प्रदक्षिणा करें, साष्टांग प्रणाम करें ।)
क्षमा प्रार्थना :,
 अब हाथ जोड़कर निम्न क्षमा प्रार्थना बोलें :-
नमस्ते सर्वदेवानां वरदासी हरिप्रिये । या गतिस्त्वत् प्रपन्नानां सा मे भूयात् त्वदर्चनात् ॥
आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम्‌ । पूजां चैव न जानामि क्षमस्व परमेश्वरि ॥
मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वरि ।
यत्पूजितं मया देवि परिपूर्ण तदस्तु मे ॥
त्वमेव माता च पिता त्वमेव, त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव ।
त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव, त्वमेव सर्वम्‌ मम देवदेव ॥
पापोऽहं पापकर्माहं पापात्मा पापसम्भवः ।
त्राहि माम्‌ परमेशानि सर्वपापहरा भव ॥
अपराधसहस्राणि क्रियन्तेऽहर्निशं मया ।
दासोऽयमिति मां मत्वा क्षमस्व परमेश्वरि ॥
सरसिजनिलये सरोजहस्ते धवलतरान्शुक गंधमाल्यशोभे ।
भगवती हरिवल्लभे मनोज्ञे त्रिभुवनभुतकारी प्रसीद मह्यम्  ॥
पूजन समर्पण :-हाथ में जल लेकर निम्न मंत्र बोलें :-
'ॐ अनेन यथाशक्ति अर्चनेन श्री महालक्ष्मीः प्रसीदतुः ॥'
(जल छोड़ दें, प्रणाम करें)
विसर्जन :-अब हाथ में अक्षत लें (गणेश एवं महालक्ष्मी की प्रतिमा को छोड़कर अन्य सभी) प्रतिष्ठित देवताओं को अक्षत छोड़ते हुए निम्न मंत्र से विसर्जन कर्म करें :-
यान्तु देवगणाः सर्वे पूजामादाय मामकीम्‌ ।
इष्टकामसमृद्धयर्थं पुनर्अपि पुनरागमनाय च ॥
(विसर्जन केवल मिट्टी, सुपारी अथवा पुष्पों का ही किसी शुद्ध जल स्त्रोत अथवा तीर्थ जल में करें । घर में रखने वाली ताम्बे या चांदी की मूर्तियों को विसर्जित न करें । जो मूर्तियां विसर्जित नहीं की जाती उनका आवाहन भी सामान्यतः नहीं किया जाता, तब पूजा में मात्र धयान तथा प्रतिष्ठा के अनंतर स्नानादि कर्मकांड करें । )
यदि अभीष्ट हो तो अब पुरुषसूक्त, कनकधारा स्त्रोत(शंकराचार्य रचित), अष्टलक्ष्मीस्त्रोत आदि का पाठ भी कर सकते हैं ।
ॐ आनंद ! ॐ आनंद !! ॐ आनंद !!!
पूजन के पश्चात मिष्ठान्न तथा भोग वितरित कर स्वयं भी लें । अपने-अपने लोकाचार से साल की धानी, गुड धनिया आदि का प्रशाद वितरित करें । लक्ष्मी माता को प्रणाम कर सभी बड़े लोगों के चरण स्पर्श करें । अपने घर को दीपकों से सजाएँ । इस रात्रि को यथासंभव जितने समय तक हो सके घर के द्वार खुले रखें । ढोल बजवाये । बच्चों को नेग(आशीर्वाद के साथ पैसे) दें । आतिशबाजी करें तथा भोजन ग्रहण करें ।

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