शास्त्रों के अनुसार भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को बहुला चौथ या बहुला चतुर्थी कहा जाता है। इस वर्ष यह व्रत शनिवार यानी 11 अक्टूबर को है। हमारी सनातन संस्कृति प्राणियों में सदभाव विश्व का कल्याण के बारे में कहा गया है।
धार्मिक दृष्टिकोण से बहुला चतुर्थी मूलतः गाय के पूजन का पर्व है। जिस प्रकार गौ माता अपना दूध पिलाकर मनुष्य को पोषित करती है उसी कृतज्ञता की भावना से हम सभी को गाय को सम्मान देकर पूजना चाहिए।
बहुला चतुर्थी पूजन संतान प्रदायक तथा ऐश्वर्य को बढ़ाने वाला है। धार्मिक शास्त्रों में ऐसा वर्णित है की जीवन में माता से बढ़कर गौ माता का स्थान है।
बहुला व्रत विधि
इस दिन सुबह जल्दी उठकर नित्य कर्मों से निवृत्त होने के बाद स्नान आदि के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करना चाहिए। व्रती को पूरा दिन निराहार रहना होता है। संध्या समय में गाय माता तथा उसके बछडे़ की पूजा की जाती है।
भोजन में कई तरह के पकवान बनाए जाते हैं, जिन खाद्य पदार्थों को बनाया जाता है, उन्हीं का संध्या समय में गाय माता को भोग लगाया जाता है। भारत के कुछ भागों में जौ तथा सत्तू का भी भोग लगाया जाता है। बाद में इसी भोग लगे भोजन को स्त्रियां ग्रहण करती हैं। इस दिन गाय तथा सिंह की मिट्टी की मूर्ति का पूजन भी किया जाता है।
संध्या के समय पूरे विधि-विधान से प्रथम पूजनीय भगवान गणेश की पूजा की जाती है। रात्रि में चन्द्रमा के उदय होने पर उन्हें अर्ध्य दिया जाता है। कई स्थानों पर शंख में दूध, सुपारी, गंध तथा अक्षत (चावल) से भगवान श्रीगणेश और चतुर्थी तिथि को भी अर्घ्य दिया जाता है।
इस प्रकार इस संकष्ट चतुर्थी का पालन जो भी व्यक्ति करता है, उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। व्यक्ति को मानसिक तथा शारीरिक कष्टों से छुटकारा मिलता है। जो व्यक्ति संतान के लिए व्रत नहीं रखते हैं, उन्हें संकट, विघ्न तथा सभी प्रकार की बाधाएं दूर करने के लिए इस व्रत को अवश्य करना चाहिए।
इस पूजन और उपाय से निःसंतान को संतान की प्राप्ति होती है। संतान के सुखों में वृद्धि होती है। घर परिवार में सुख और शांति विद्यमान होती है। व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। व्यक्ति को मानसिक तथा शारीरिक कष्टों से छुटकारा मिलता है। जो लोग संतान के लिए व्रत नहीं रखते हैं, उन्हें संकट, विघ्न तथा सभी प्रकार की बाधाएं दूर करने के लिए इस व्रत को अवश्य करना चाहिए।
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